शनिवार, 25 दिसंबर 2021

‘अटलपथ’ पर चल रही सरकार


मोदी सरकार ने भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा प्रारंभ की है। यह केवल एक परंपरा न रहे, इसका प्रयास भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते हैं। उनका तो ध्येय ही है-‘सुशासन’। केंद्र सरकार के लोककल्याण एवं विकास कार्यों को देखकर यह आश्वस्ति होती है कि वर्तमान सरकार अटल पथ पर चल रही है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो देश ने एक करवट ली और जनता के बीच आशा की नयी लहर दौड़ी थी। उन्होंने नये भारत के निर्माण की नींव रखी। अटलजी ने नये भारत के निर्माण को जहाँ छोड़ा था, मोदीजी उसे वहीं से आकार दे रहे हैं। वह मंदिर निर्माण का सपना हो या फिर जम्मू-कश्मीर से विवादास्पद अनुच्छेद-370 को समाप्त करने का संकल्प, सब आज संभव हो रहा है।

रविवार, 5 दिसंबर 2021

भारत में दर्शन का आधार है ‘संवाद’

सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । 

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥2॥ 

समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् l 

समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥3॥ 

समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । 

समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥4॥

ऋग्वेद के 10वें मंडल का यह 191वां सूक्त ऋग्वेदका अंतिम सूक्त है। इस सूक्त में सबकी अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले अग्निदेव की प्रार्थना, जो आपसी मतभेदों को भुलाकर सुसंगठित होने के लिए की गयी है। आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें। समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर एवं विरोध त्याग करके अपना काम करें। हम सबकी प्रार्थना एकसमान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण मन-चित्त-विचार समान हों। मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ। तुम सबके संकल्प एकसमान हों, तुम्हारे ह्रदय एकसमान हों और मन एकसमान हों, जिससे तुम्हारा कार्य परस्पर पूर्णरूपसे संगठित हों।

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

इस्लामिक कानूनों की माँग का औचित्य


भारत जैसे देश में इस्लामिक संगठन यदि ‘ईशनिंदा’ जैसे विवादित कानून की माँग कर रहे हैं, तब इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। जरा यह भी देखने की आवश्यकता है कि सेकुलर बुद्धिजीवी इस तरह के कानूनों की माँग का विरोध करने की जगह किस कोने में दुबक गए हैं? जब भी देश में समान नागरिक संहिता जैसे सेकुलर कानून की माँग उठती है तब यही बुद्धिजीवी उछल-उछलकर विरोध करते हैं। स्पष्ट है कि वे कहने के लिए सेकुलर हैं, लेकिन उनका आचरण घोर सांप्रदायिक है। उनके व्यवहार में हिन्दू विरोध और इस्लामिक तुष्टीकरण की झलक दिखाई देती है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में सम्पन्न हुई अपनी एक बैठक में भारत में पाकिस्तान के उस कानून को लागू करने का प्रस्ताव पारित किया है, जिसके तहत मोहम्मद पैगंबर साहब या कुरान के संबंध में अपमानजनक, आपत्तिजनक या आलोचनात्मक बात कहने पर मृत्युदंड का प्रावधान है। पाकिस्तान में इस कानून का दुरुपयोग सुधारवादी मुस्लिमों के विरुद्ध ही नहीं अपितु गैर-मुस्लिमों को भयाक्रांत करने और उन्हें दबाने के लिए किया जाता है। यह भी देखने में आया है कि सामान्य बात को भी ‘ईशनिंदा’ बताकर अनेक गैर-मुस्लिमों को प्रताडि़त और दंडित किया गया है। क्या भारत जैसे देश में इस प्रकार के सांप्रदायिक कानून की वकालत होनी चाहिए?

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति से जोड़ता है ‘जनजाति गौरव दिवस’

भारत सरकार ने भारत माता के महान बेटे बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को ‘जनजाति गौरव दिवस’ के रूप में मान्यता देकर प्रशंसनीय कार्य किया है। जनजाति समुदाय के इस बेटे ने भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक स्वतंत्रता के लिए महान संघर्ष किया और बलिदान दिया। अपनी धरती की रक्षा के लिए उन्होंने विदेशी ताकतों के साथ जिस ढंग से संघर्ष किया, उसके कारण समूचा जनजाति समाज उन्हें अपना भगवान मानने लगा। उन्हें ‘धरती आबा’ कहा गया। भगवान बिरसा मुंडा न केवल भारतीय जनजाति समुदाय के प्रेरणास्रोत हैं बल्कि उनका व्यक्तित्व हम सबको गौरव की अनुभूति कराता है। इसलिए उनकी जयंती सही मायने में ‘गौरव दिवस’ है।

सोमवार, 15 नवंबर 2021

माँ अन्नपूर्णा प्रतिमा की वापसी - सांस्कृतिक विरासत के प्रति प्रतिबद्ध मोदी सरकार


एक महत्वपूर्ण प्रयास केंद्र में भाजपानीत सरकार के आने के बाद से प्रारंभ हुआ है, जिसकी चर्चा व्यापक स्तर पर नहीं हुई है। केंद्र सरकार के लक्षित प्रयासों के कारण 2014 के बाद से 42 मूर्तियों को विदेशों से वापस लाया गया है। ये मूर्तियां पुरातात्विक महत्व की हैं और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। संस्कृति मंत्रालय एवं विदेश मंत्रालय के संयुक्त प्रयास भारत की विरासत के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को भी प्रकट करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष ही लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को वापिस लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की थी। लगभग 107 वर्ष पहले वाराणसी के मंदिर से चुराई गई माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को कनाडा की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रिजायना’ के ‘मैकेंजी आर्ट गैलरी’ में रख दिया गया था। कला एवं सौंदर्य की दृष्टि से उत्क्रष्ट इस प्रतिमा को केंद्र सरकार कनाडा से वापस प्राप्त करने में सफल रही। केंद्र सरकार की ओर से 11 नवम्बर को उत्तरप्रदेश सरकार को यह प्रतिमा सौंपी गई। आगे हम सबने देखा कि उत्तरप्रदेश सरकार ने बहुत ही गरिमामयी आयोजन के साथ प्रतिमा को उसके मूल स्थान पर स्थापित कर दिया। नये भारत में यह एक सुखद परिवर्तन दिखाई दे रहा है कि सरकारें अब निसंकोच अपनी विरासत की पुनर्स्थापना कर रही हैं।

शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

नायकों का सम्मान


देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों/सम्मानों को लेकर समाज में सकारात्मक चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोधी भी मन मारकर प्रशंसा करने को मजबूर हैं कि उन्होंने देश के वास्तविक नायकों को खोजकर उनका सम्मान करने की परंपरा प्रारंभ की है। सही मायने में अब पद्म पुरस्कारों को अधिक पात्र लोग मिल रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में जिन साधारण से दिखने वाले असाधारण लोगों को पद्म पुरस्कार दिए गए हैं, उससे पद्म पुरस्कारों का ही सम्मान अधिक बढ़ गया है। एक समय था जब ज्यादातर नामचीन और सत्ता के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने वाले लोगों के हिस्से में ये पुरस्कार आते थे। सरकार 'अपने लोगों' को संतुष्ट एवं प्रसन्न करने के लिए उन्हें ये पुरस्कार देती थी। लेकिन अब दृश्य पूरी तरह बदल गया है। अपने काम से अलग पहचान बनाने वाले आम लोगों को पद्म पुरस्कार मिल रहे हैं।

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021

सिनेमा के निशाने पर हिन्दू संस्कृति

फिल्म निर्माता प्रकाश झा की विवादित वेबसीरीज ‘आश्रम’ के कारण एक बार फिर आम समाज में यह विमर्श चल पड़ा है कि सिनेमाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं रचनाधर्मिता के निशाने पर हिन्दू संस्कृति ही क्यों रहती है? फिल्मकार अन्य संप्रदायों पर सिनेमा बनाने का साहस क्यों नहीं कर पाते हैं? हिन्दू संस्कृति एवं प्रतीकों को ही अपनी तथाकथित रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए चुनने के पीछे का एजेंडा क्या है? मुस्लिम कलाकार भी अपने धर्म की आलोचनात्मक प्रस्तुति करने की जगह हिन्दू धर्म पर ही व्यंग्य करना पसंद करता है। पिछले दिनों एम्स दिल्ली के विद्यार्थियों ने भी रामलीला का आपत्तिजनक मंचन किया, जिसका निर्देशन शोएब नाम के लड़के ने किया था। हिन्दू बार-बार इन प्रश्नों के उत्तर माँगता है, लेकिन उसको कभी भी समाधानमूलक उत्तर मिले नहीं। परिणामस्वरूप अपमानजनक एवं उपेक्षित परिस्थितियों और चयनित आलोचना एवं चुप्पी ने उसके भीतर आक्रोश को जन्म देना प्रारंभ कर दिया है।

शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021

व्यक्तियों के आधार पर नहीं, संघ को तत्व के आधार पर समझें

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन शुभ संकल्प के साथ एक छोटा बीज बोया था, जो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे सामने है। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँची है, न केवल पहुँची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ संघ की पहुँच न केवल कठिन थी, बल्कि असंभव मानी जाती थी। किंतु, आज उन क्षेत्रों में भी संघ नेतृत्व की भूमिका में है। बीज से वटवृक्ष बनने की संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डॉक्टर हेडगेवार को उम्मीद थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, पंरतु उसके भीतर जीवन है। जब माली अच्छा हो और बीज में जीवटता हो, तो प्रतिकूल वातावरण भी उसके विकास में बाधा नहीं बन पाता है। अनेक व्यक्तियों, विचारों और संस्थाओं ने संघ को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए, किंतु उनके सब षड्यंत्र विफल हुए। क्योंकि, संघ की जड़ों के विस्तार को समझने में वह हमेशा भूल करते रहे। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। आज भी अनेक लोग संघ को राजनीतिक चश्मे से ही देखने की कोशिश करते हैं। पिछले 96 बरस में इन लोगों ने अपना चश्मा नहीं बदला है। इसी कारण यह संघ के विराट स्वरूप का दर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। जबकि संघ इस लंबी यात्रा में समय के साथ सामंजस्य बैठाता रहा और अपनी यात्रा को दसों दिशाओं में लेकर गया।

बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के बढ़ते कदम


भारतीय अंतरिक्ष संघ (इंडियन स्पेस एसोसिएशन) की स्थापना के साथ भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी स्थिति को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को नयी ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपना एक दृष्टिकोण है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत नवोन्मेष का केंद्र बने, इसके लिए वह लगातार प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के साथ न केवल उन्होंने संवाद बढ़ाया है बल्कि वैज्ञानिकों को नवोन्मेष के लिए प्रोत्साहित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं।

सोमवार, 11 अक्तूबर 2021

निशाने पर कश्मीरी हिन्दू

जम्मू-कश्मीर के घाटी और श्रीनगर के क्षेत्रों में इस्लामिक आतंकी जिस तरह चिह्नित करके हिन्दुओं की हत्याएं कर रहे हैं, उससे पता चलता है कि वह 1990 की तरह हिन्दुओं को भयाक्रांत करके बचे-खुचे हिन्दुओं को भी खदेडऩा चाहते हैं। विवादास्पद अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर अनेक हिन्दू घाटी में नौकरी एवं व्यवसाय करने गए हैं। 1990 में इस्लामिक आतंकवाद से पीडि़त होकर जिन हिन्दुओं को घर छोडऩे पड़े, सरकार उन्हें उनके घर एवं संपत्तियों वापस दिखाने के प्रयास भी कर रही है। मोदी सरकार के यह सब प्रयास इस्लामिक चरमपंथियों को पसंद नहीं आ रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने एक बार फिर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को जीवित नहीं रहने दिया जाएगा। सरकार को आतंकवादियों की इस चुनौती को गंभीरता से लेना चाहिए।

शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021

शिक्षक के हाथ में राष्ट्र के उत्थान-पतन की बागडोर

‘स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष और शिक्षकों की भूमिका’




तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।

आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्॥ - श्रीविष्णुपुराण 1-19-41

अर्थात, कर्म वही है जो बन्धन का कारण न हो और विद्या भी वही है जो मुक्ति की साधिका हो। इसके अतिरिक्त और कर्म तो परिश्रम रुप तथा अन्य विद्याएँ कला-कौशल मात्र ही हैं॥

शुक्रवार, 3 सितंबर 2021

गाय को मिले राष्ट्रीय पशु का दर्जा

भारत में प्राचीनकाल से गाय का बहुत महत्व रहा है। गाय भारतीय संस्कृति की प्रतीक होने के साथ ही अर्थव्यवस्था की धुरी भी रही है। हिन्दुओं के लिए गाय आस्था का केंद्र भी है। यही कारण रहा है कि हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोग हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने और उनकी आस्था पर चोट पहुँचाने के लिए गाय की हत्या करने का घिनौना काम करते हैं। देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो गोमांस खाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इसके पीछे उसकी मंशा उदरपूर्ति नहीं बल्कि हिन्दुओं को दु:ख पहुँचाना की रहती है। रामचंद्र गुहा जैसे बुद्धिजीवी तो मांसाहारी नहीं होने के बाद भी बीफ की प्लेट सोशल मीडिया में शेयर करते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि गाय के प्रति श्रद्धा रखने वालों को आहत किया जा सके। केरल के कांग्रेसी चौराहे पर गाय काटकर तो कम्युनिस्ट ‘बीफ फेस्ट’ का आयोजन करके हिन्दुओं की आस्था पर सीधे चोट पहुँचाते हैं। ऐसे ही अनेक बुद्धिजीवी लोग गोमांस खाने को अपना मौलिक अधिकार समझते हैं। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ऐसे लोगों को आईना दिखाने का काम किया है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि गोमांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता। अपितु गो-संरक्षण को माननीय न्यायालय ने मौलिक अधिकार कहा है।

बुधवार, 1 सितंबर 2021

खेलों को प्रोत्साहन : “सब खेलें, सब खिलें”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 80वें संस्करण में देश की जनता से खेलों पर बात की। देश के सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधानमंत्री द्वारा खेलों पर बात करने से निश्चित ही देश में खेल संस्कृति को बढ़ावा मिलेगा। उन परिवारों में भी खेल के प्रति एक सकारात्मक दृष्टिकोण पैदा होगा, जो अपने बच्चों को सिर्फ पढ़ाई तक सीमित करना चाहते हैं। पढ़ाई पर अत्यधिक जोर के कारण ज्यादातर परिवारों में बच्चों के खेलने पर एक तरह से अघोषित प्रतिबंध रहता है। खेलों का संबंध अच्छे करियर से तो है ही, उससे अधिक खेलों के माध्यम से संपूर्ण व्यक्तित्व विकास होता है। पढ़ाई के साथ खेलों में रुचि रखने वाले युवा शारीरिक और मानसिक स्तर पर अधिक मजबूत होते हैं। खेल हमारे भीतर निर्णय लेने, सामूहिक रूप से काम करने और नेतृत्व लेने की क्षमता का विकास करते हैं। खेल प्रत्येक परिस्थिति में धैर्य और उत्साह रखने का गुण पैदा करते हैं। खेल हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ ही सकारात्मक दृष्टिकोण देते हैं।

मंगलवार, 31 अगस्त 2021

पैरालिंपिक : हौसलों का स्वर्ण

टोक्यो ओलिंपिक-2020 के बाद अब टोक्यो पैरालिंपिक-2020 में भारतीय खिलाड़ी अपने चमक बिखेर रहे हैं। टोक्यो पैरालिंपिक में भारत के हिस्से में 31 अगस्त तक दो स्वर्ण पदक सहित 10 पदक आ चुके हैं। पैरालिंपिक में भारतीय दल ऐतिहासिक प्रदर्शन कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि टोक्यो ओलिंपिक-2020 में भारतीय दल ने अपने प्रदर्शन को जिस स्तर पर छोड़ा था, पैरालिंपिक में भाग ले रहे दल ने उसी ऊंचाई से अपनी विजय यात्रा शुरू की है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अवनि लेखरा ने शूटिंग में और सुमित अंतिल ने जेवलिन थ्रो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाकर इतिहास रच दिया। शूटिंग में स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही अवनि देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई, जिसने ओलिंपिक या पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीता हो। इसी तरह पैरालिंपिक में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतने वाले सुमित पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। टोक्यो ओलिंपिक में जेवलिन थ्रो में ही नीरज चौपड़ा ने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था।

सोमवार, 16 अगस्त 2021

स्वदेशी से स्वनिर्भर


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सबका ध्यान एक ओर लाल किले की प्राचीर से दिए जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन पर था, तो वहीं दूसरी ओर सबकी उत्सुकता यह जानना भी थी कि इस महत्वपूर्ण प्रसंग पर विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत क्या मार्गदर्शन देंगे? प्रधानमंत्री मोदी ने अपना संबोधन पिछले छह-सात वर्ष के विकास पर केंद्रित किया। शुरुआत में उन्होंने स्वतंत्रता के नायकों का स्मरण किया। आखिर में उन्होंने नये भारत के निर्माण के लिए अपने ही दिए नारे को और विस्तार दिया- "सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास"। निश्चित ही कोई देश अपने सपनों को तब ही पूरा कर सकता है, जब वह सपना सबकी आँखों में बसे और सब उसको साकार करने के लिए मिलकर प्रयत्न करें। वहीं, सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मुंबई के एक विद्यालय में ध्वजारोहण किया और इस अवसर पर उन्होंने जो कुछ कहा, उसे हमें गाँठ बांध लेना चाहिए। वही एक रास्ता है, जो हमें मजबूत बनाएगा और सामर्थ्यशाली भी। वह रास्ता है- स्वदेशी का।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

ओलिंपिक में भारत के लिए ‘स्वर्ण’ की शुरुआत


टोक्यो ओलिंपिक में भारत के सुनहरे सफर का समापन स्वर्ण पदक के साथ हुआ। भारतीय सेना के जवान एवं खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने 121 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाया है। भाला फेंक प्रतियोगिता में उन्होंने अपने परिश्रम से भारत के भाल को स्वर्ण से अलंकृत कर दिया। टोक्यो ओलिंपिक भारत के लिए अब तक का सबसे सफल ओलिंपिक रहा है। भारत ने एक स्वर्ण और दो रजत पदक सहित कुल 7 पदक जीते हैं। इससे पहले हमने लंदन ओलिंपिक में 6 पदक जीते थे। इस बार नीरज चोपड़ा के स्वर्ण के अलावा मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में रजत, कुश्ती में रवि दहिया ने रजत, कुश्ती में ही बजरंग पूनिया ने कांस्य, पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में कांस्य और लवलिना बोरगोहेन ने मुक्केबाजी में कांस्य पदक भारत के नाम किए। हालाँकि भारत से और अधिक बेहतर प्रदर्शन की अपेक्षा थी। टोक्यो ओलिंपिक भारत के लिए अब तक का सबसे सफल ओलिंपिक रहा, इसके पीछे मोदी सरकार की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

सोमवार, 2 अगस्त 2021

मध्यप्रदेश में टीके का कुशल प्रबंधन


देश के कई राज्यों में कुप्रबंधन की वजह से कोरोनारोधी टीका बर्बाद हो रहा है, वहीं मध्यप्रदेश टीकाकरण में एक के बाद एक कीर्तिमान बना रहा है। जब समूचे देश में 21 जून से कोरोनारोधी टीकाकरण अभियान के रूप में शुरू हुआ था, तब मध्यप्रदेश में पहले दिन ही यानी 21 जून को मात्र 10 घंटे में लगभग 16 लाख 95 हजार लोगों को टीका लगाने का इतिहास रचा गया। उस दिन मध्यप्रदेश टीकाकरण में देश के अन्य सभी राज्यों से बहुत आगे खड़ा था। इतना ही नहीं, अभी तक एक दिन में इतनी संख्या में दुनिया के किसी भी शहर में टीकाकरण नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश की इस उपलब्धि को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। उसके बाद भी मध्यप्रदेश टीकाकरण में लगातार रिकॉर्ड बनाता रहा। अब एक बार फिर मध्यप्रदेश के टीकाकरण के कुशल प्रबंधन एवं संचालन की चर्चा देश में हो रही है। मध्यप्रदेश में अब तक चार करोड़ से अधिक लोगों को टीका लगाया जा चुका है। इसमें लगभग ढाई करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहला टीका लगाया जा चुका है और 50 लाख से अधिक लोगों को दूसरा टीका भी लगाया जा चुका है।

रविवार, 1 अगस्त 2021

भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का प्रयास है ‘भारत-बोध’

देखें, डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक 'भारत बोध' की चर्चा


भारत में लेखकों, साहित्यकारों एवं इतिहासकारों का एक ऐसा वर्ग रहा है, जिसने समाज को ‘भारत बोध’ से दूर ले जाने का प्रयास किया। उन्होंने पश्चिम की दृष्टि से भारत को देखा और अपने लेखन में वैसे ही प्रस्तुत किया। उन्होंने इस प्रकार के विमर्श खड़े किए, जिनसे उपजे भ्रम के वातावरण में भारतीय समाज अपने मूल स्वरूप को विस्मृत करने की दिशा में बढ़ गया। अपनी लेखनी एवं मेधा का उपयोग इस वर्ग ने देश को उसकी मूल संस्कृति से काटने के लिए किया। परंतु, भारत की वास्तविक पहचान को मिटा देना इतना आसान कार्य भी नहीं है। अनेक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आक्रमणों के बाद भी भारत अपनी पहचान के साथ उन्नत हिमालय की तरह खड़ा हुआ है। थोड़ी-बहुत जो धुंध छा गई थी, उसे हटाने का प्रयास भारतीयता से ओतप्रोत लेखक वर्ग कर ही रहा है। पत्रकारिता के प्राध्यापक एवं लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की नयी पुस्तक ‘भारत बोध’ भारत को भारतीय दृष्टि से देखने के प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रयास है। डॉ. मालवीय ने अपनी पुस्तक में 41 आलेखों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक धारा के कुछ आयामों को प्रस्तुत किया है। भारत की संस्कृति, त्योहार एवं उनकी अवधारणा, रीति-रिवाजों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय बोध, पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति भारतीय मानस और भारत में राष्ट्र की संकल्पना जैसे समसामयिक विमर्श के अनेक बिन्दुओं पर उनके विचारों का निर्मल प्रवाह दिखाई देता है। 

लेखक डॉ. सौरभ मालवीय ने अपनी पीएचडी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ जैसे महत्वपूर्ण विषय पर की है। संभवत: यही कारण रहा होगा कि उनके लेखों से गुजरने पर गहन अध्ययन की अनुभूति होती है। भारतीय वांग्मय से सूत्र और प्रसंग लेकर डॉ. मालवीय ने अपनी बातों को आधार दिया है। राष्ट्र, संस्कृति, पर्यावरण और मीडिया जैसे विषयों पर भी जब उन्होंने लेखन किया है, तो उनको समझने एवं समझाने के लिए लेखक ने भारतीय वांग्मय के पृष्ठ ही पलट कर देखे हैं। संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद को समझने के लिए उन्होंने पाश्चात्य विद्वानों एवं पाश्चात्य दृष्टि की अपेक्षा भारतीय मनीषियों के चिंतन को श्रेष्ठ माना है। यही सही भी है। भारत के संदर्भ में जब बात आए, तब हमें अपने पुरखों को अवश्य पढऩा चाहिए कि आखिर उन्होंने भारत की व्याख्या किस तरह की है? उनका भारत बोध क्या था? ‘भारत की अवधारणा’ को समझाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह एवं विचारक डॉ. मनमोहन वैद्य कहते हैं कि “भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ”। लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारत बोध’ इन चार चरणों से होकर गुजरती है। इसलिए यह पुस्तक हमें भारत की वास्तविक पहचान के निकट ले जाने के प्रयास में सफल होती दिखती है। 

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने ठीक ही लिखा है कि “डॉ. मालवीय ने इस पुस्तक हेतु अपने जिन निबंधों का चयन किया है, वे सभी भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत की पहचान को सुनिश्चित और संस्थापित करने वाले हैं”। पुस्तक के संदर्भ में एक और बात महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल लेखों की भाषा सहज, सरल और सरस है। भाषा की सरलता के कारण आज की युवा पीढ़ी भी पुस्तक में शामिल विषयों की गहराई में उतर पाएगी। आलेखों में प्रस्तुत विचारों में भी एक प्रवाह है, जो पाठकों को बांधे रखने में सफल रहेगा। 

‘भारत बोध’ का प्रकाशन यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ने किया है। पुस्तक में 176 पृष्ठ हैं और मूल्य 220 रुपये है। पुस्तक के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बिहार क्षेत्र के प्रचारक सूबेदार जी और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिन्हें पुस्तक में शामिल किया गया है। ‘भारत बोध’ की प्रस्तावना भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने लिखी है, जिन्होंने स्वयं भी ‘भारत बोध’ के संदर्भ में विपुल लेखन किया है। बहरहाल, डॉ. सौरभ मालवीय की यह पुस्तक भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का महत्वपूर्ण प्रयास है। उनका यह प्रयास भारत की वास्तविक संकल्पना को समाज तक पहुँचाने में सफल हो, ऐसी कामना है। इसके साथ ही यह पुस्तक इस दिशा में चल रहे विमर्श में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है। 

पुस्तक : भारत बोध

लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय

पृष्ठ : 176

मूल्य : 220 रुपये (पेपरबैक)

प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस,

1/10753, गली नं. 3, सुभाष पार्क, 

नवीन शाहदरा, दिल्ली-32

स्वदेश, भोपाल समूह में प्रकाशित 'भारत बोध' की समीक्षा-लोकेन्द्र सिंह

सोमवार, 26 जुलाई 2021

आज की आवश्यकता है 'भारत जोड़ो आंदोलन'

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में देश के नागरिकों से महत्वपूर्ण आह्वान किए हैं। प्रधानमंत्री की पहल पर समूचा देश स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर 'आजादी का अमृत महोत्सव' मना रहा है। देश के ऐसे बलिदानियों को याद किया जा रहा है, जिन्हें इतिहास की पुस्तकों या अन्यत्र वह स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। इस उत्सव को और अधिक विस्तार देने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री मोदी ने अपील की है कि यह किसी राजनीतिक दल या सरकार का आयोजन नहीं है बल्कि यह सभी भारतवासियों का कार्यक्रम है। इसलिए सभी लोगों को अमृत महोत्सव से जुडऩा चाहिए और महापुरुषों का स्मरण करें। यकीनन जब हम अपने महापुरुषों को याद करेंगे, तब उनके व्यक्तित्व के साथ उनका कृतित्व का स्मरण भी करेंगे, जो हमें गौरव की अनुभूति से भरेगा। साथ ही यह भी ध्यान आएगा कि स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए हमने कितना संघर्ष किया है। स्वतंत्रता का मूल्य क्या है? अपने महापुरुषों का स्मरण करेंगे तब हम भारत, भारतीयता और भारतीय मूल्यों के अधिक नजदीक भी जाएंगे। 

'मन की बात' के 79वें संस्करण में प्रधानमंत्री मोदी ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सामयिक आह्वान किया है। उन्होंने कहा कि "बात जब आजादी के आंदोलन और खादी की हो तो पूज्य बापू का स्मरण होना स्वाभाविक है। जैसे बापू के नेतृत्व में 'भारत छोड़ो आंदोलन' चला था, वैसे ही आज हर देशवासी को 'भारत जोड़ो आंदोलन' का नेतृत्व करना है"। 'भारत जोड़ो आंदोलन' यदि जनांदोलन बन जाता है तब उसके अनेक सुखद परिणाम आएंगे। पहला, अंतरराष्ट्रीय पटल पर भारत जिस तेजी और मजबूती से आगे बढ़ रहा है, उसमें भारत की स्थिति और सशक्त होगी। दूसरा, भारत में सक्रिय 'ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड' के मनसूबे ध्वस्त होंगे और भारत आंतरिक तौर पर और अधिक शक्तिशाली हो जाएगा। यह आंतरिक शक्ति भारत को प्रत्येक क्षेत्र में मजबूत करेगी। 

पिछले कुछ समय को गौर से देखें तो ऐसी अनेक भारत विरोधी ताकतें सक्रिय हैं, जो वर्ग, जाति, संप्रदाय एवं अन्य प्रकार के संघर्ष उत्पन्न करने की साजिशें रच रही हैं। उन उसको मुंहतोड़ जवाब देने के लिए 'भारत जोड़ो आंदोलन' की अनिवार्यता नजर आ रही है। भारत को स्वतंत्र कराने के लिए महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के विरुद्ध 'भारत छोड़ो आंदोलन' खड़ा किया। आज उसी स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए भी 'भारत जोड़ो आंदोलन' की आवश्यकता है। प्रधानमंत्री मोदी के इस आह्वान के साथ सभी देशवासियों को जुडऩा चाहिए और इस आंदोलन को ऐतिहासिक रूप देकर भारत को मजबूत बनाने में अपनी भूमिका का निर्वाहन करना चाहिए। 

बुधवार, 21 जुलाई 2021

भारत की संस्कृति के साक्षी

भारत की मूल संस्कृति क्या है? इसको लेकर दिग्भ्रिमित करने वाले अनेक विमर्श चलते रहते हैं। एक शायर ने तो यहाँ तक कह दिया कि यहाँ सब किराएदार हैं, कोई मकान मालिक नहीं। उनके कहने का आशय यही था कि भारत में अलग-अलग समय में लोग आते गए और बस गए। भारतीय मूल का कोई नहीं है। दरअसल, वे आर्य-द्रविणवाली कपोल कल्पना के लिए गढ़े गए झूठ के या तो वाहक थे या फिर उसके फेर में फंस गए होंगे। भारत के मूल लोग कौन थे, उनकी संस्कृति क्या थी, जीवन पद्धति क्या थी, धर्म क्या था, यह सब कोई शायर नहीं बता सकता, बल्कि भारत की मिट्टी इसका स्वयं जवाब देती है कि उसमें किसका रक्त शामिल है। अयोध्या से लेकर मथुरा, राखीगढ़ी से लेकर उज्जैन तक खुदाई में भारतीय संस्कृति के प्रमाण मिलते हैं।

शनिवार, 17 जुलाई 2021

बेहतर जीवन के लिए आवश्यक है जनसंख्या नियंत्रण

उत्तरप्रदेश की योगी सरकार देश में सर्वाधिक जनसंख्या वाले प्रदेश के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून लाने जा रही है। 11 जुलाई को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तरप्रदेश जनसंख्या विधेयक-2021 के मसौदे के बारे में स्वयं लोगों को जानकारी दी। दरअसल, विपक्षी राजनीतिक एवं उनके सहयोगी बुद्धिजीवी अत्यंत आवश्यक कानून को भी सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास करने लगे थे। तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवी वर्ग का दोगलापन एवं पाखंड अब खुलकर सामने आ गया है। उत्तरप्रदेश जनसंख्या विधेयक किसी एक संप्रदाय की जनसंख्या को रोकने का एजेंडा नहीं है। यह कानून सब पर एक समान रूप से लागू होगा। यह कानून किसी विशेष संप्रदाय को लक्षित करके तैयार नहीं किया गया है। इसके बावजूद विपक्षी नेता एवं अन्य लोग जनसंख्या नियंत्रण के प्रयास को मुुस्लिम विरोधी बता रहे हैं। जबकि यही लोग यह दावा भी करते हैं कि मुस्लिमों की जनसंख्या दर में हिन्दुओं की अपेक्षा कमी आई है। यानी अब मुस्लिम भी सात-आठ बच्चे पैदा नहीं कर रहे बल्कि वे भी हम दो-हमारे दो की अवधारणा पर चल रहे हैं। जब यह सच है कि मुसलमानों ने आधुनिक सोच के साथ कदमताल करना शुरू कर दिया है, तब यह कानून उनके विरुद्ध कैसे हो सकता है?

कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर चिंता


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कोरोना संक्रमण की तीसरी आवृत्ति (तीसरी लहर) को लेकर चिंता जताई है। संक्रमण की दूसरी आवृत्ति से पहले जिस तरह के संकेत मिले थे, ठीक वैसे ही संकेत इस समय देश के विभिन्न राज्यों में देखे जा रहे हैं। महाराष्ट्र, केरल, ओडिशा, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु में पिछले कुछ समय से कोरोना संक्रमण के नये मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। महामारी की दूसरी आवृत्ति से पूर्व भी इन राज्यों में संक्रमण बढ़ा था। देश के अन्य राज्यों में भले ही स्थितियां नियंत्रित दिख रही हैं, लेकिन खतरा बरकरार है। कोरोना संक्रमण को एक राज्य से दूसरे राज्य में फैलने में अधिक समय नहीं लगता है। हमने दूसरी आवृत्ति में स्थितियों को अचानक से भयावह और अनियंत्रित होते हुए देखा है। केंद्र सरकार ने तब भी राज्यों को चेताया था और जरूरी प्रबंध करने के निर्देश दिए थे लेकिन तब सरकारें ही नहीं, आम नागरिक भी गफलत में चले गए थे। सबकी मिला-जुली लापरवाही के कारण परिस्थितियां बहुत बिगड़ गई थीं। सरकारों को ही नहीं, अपितु नागरिकों को भी दूसरी लहर के पीड़ादायक परिणामों से सबक लेने की आवश्यकता है।

शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता


देश में लंबे समय से समान नागरिक संहिता की माँग हो रही है, लेकिन वोटबैंक की राजनीति करने वालों ने इस मामले को मुस्लिम समुदाय से जोड़कर अत्यधिक संवेदनशील बना दिया है। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति का ही असर है कि देश में सबके लिए समान नागरिक संहिता नहीं है, जबकि संविधान में इसका आग्रह किया गया है। समान नागरिक संहिता नहीं होने से सर्वाधिक नुकसान उसी मुस्लिम संप्रदाय का है, जिसके नाम पर समान नागरिक संहिता का विरोध किया जाता है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने समान नागरिक संहिता पर महत्वपूर्ण टिप्पणी कर लंबे समय से चली आ रही माँग को तेज कर दिया है। मीणा जनजाति की एक महिला और उसके पति के बीच तलाक के प्रकरण की सुनवाई के दौरान दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि देश में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता है और इसे लाने का यही सही समय है। उच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार से इस मामले में जरूरी कदम उठाने को कहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय समाज में जाति, धर्म और समुदाय से जुड़े अंतर समाप्त हो रहे हैं। इस बदलाव की वजह से दूसरे धर्म और दूसरी जातियों में शादी करने और फिर तलाक होने में दिक्कतें आ रही हैं। आज की युवा पीढ़ी को इन दिक्कतों से बचाने की जरूरत है। इस समय देश में समान नागरिक संहिता होनी चाहिए। अनुच्छेद-44 में समान नागरिक संहिता को लेकर जो बात कही गई है, उसे हकीकत में बदलना होगा। 

उच्च न्यायालय की टिप्पणी के बाद जैसा कि तय था- देश में स्वयं को सेकुलर एवं संविधान हितैषी कहलाने वाला वर्ग समान नागरिक संहिता के विरोध में उतर आया। बुद्धिजीवियों का यह वर्ग आज तक इस बात को नहीं समझा सका है कि समान नागरिक संहिता भला किस प्रकार से किसी संप्रदाय के विरुद्ध हो सकती है? एक तरफ यह वर्ग संविधान से देश चलना चाहिए, इस बात की रट लगाता है, वहीं दूसरी ओर अनेक विषयों में संविधान को दरकिनार करना चाहता है। यह दकियानूसी सोच उस समय भी सक्रिय हो गई थी, जब बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर देश की आधी आबादी (महिलाओं) को उनके अधिकार देने के लिए समान नागरिक संहिता का विधेयक प्रस्तुत करना चाहते थे। विरोध को देखते हुए डॉ. अंबेडकर ने प्रस्ताव किया कि समान नागरिक संहिता पर एक राय बनाकर उचित समय पर इसे लागू किया जाना चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि आज तक इस पर एक राय नहीं बन सकी है। अब तक सत्ता के केंद्र में रहे राजनीतिक दलों ने कभी इस दिशा में आम सहमति बनाने के प्रयास भी नहीं किए। बल्कि उन्होंने तो इस माँग को वोटबैंक की राजनीति का माध्यम बना लिया। 

उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व सर्वोच्च न्यायालय भी समान नागरिक संहिता लागू करने की बात कह चुका है। उस समय तो अल्पसंख्यक समुदाय (ईसाई) के एक व्यक्ति ने ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी कि एक देश में अलग-अलग कानून क्यों हैं? विरोध करने वाले कूपमंडूकों को समझना चाहिए कि समान नागरिका संहिता सबको समान अधिकार देगी। इसलिए इसका स्वागत किया जाना चाहिए। केंद्र सरकार से अपेक्षा है कि वह जल्द ही इस दिशा में आवश्यक कदम उठाए। 

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रविवार, 11 जुलाई 2021

अपना शहर-अपने लोग

देखें वीडियो : ग्वालियर तू बहुत याद आता है | Gwalior


गोपाचल पर्वत पर शान से खड़ा

आसमान का मुख चूमता 'दुर्ग'

नदीद्वार, ज्येन्द्रगंज, दौलतगंज

नया बाजार से कम्पू को आता रास्ता

वहां बसा है मेरा प्यारा घर

मुझे बहुत भाता है 

ग्वालियर तू मुझे बहुत याद आता है। 


सात भांति के वास्तु ने संवारा

सबको गोल घुमाता 'बाड़ा' 

दही मार्केट में कपड़ा, टोपी बाजार में जूता

गांधी मार्केट में नहीं खादी का तिनका

पोस्ट ऑफिस के पीछे नजर बाग मार्केट में 

मेरा दोस्त कभी नहीं जाता है

ग्वालियर तू मुझे बहुत याद आता है। 


सन् 1857 के वीरों की विजय का गवाह

शहर की राजनीति का बगीचा 'फूलबाग'

बाजू से निकला स्वर्णरेखा नाला

कईयों को कर गया मालामाल

नए-नए बने चौपाटी की चाट खाने

शाम को सारा शहर जाता है

ग्वालियर तू मुझे बहुत याद आता है। 


चाय की दुकान, कॉलोनी का चौराहा

यहां सजती हैं दोस्तों की महफिल

देश की, विदेश की, आस की, पड़ोस की

बातें होती दुनिया जहांन की

मां की ममता, पिता का आश्रय 

बहन का दुलार, पत्नी का प्यार बुलाता है

ग्वालियर तू मुझे बहुत याद आता है। 


- लोकेन्द्र सिंह -

(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)

मंगलवार, 6 जुलाई 2021

सबर कर...

देखें वीडियो : सबर कर | ये वक्त गुजर जायेगा | Ye Waqt Guzar Jayega



ये वक्त गुजर जाएगा तू जरा सबर कर

ये हकीकत है तू खुशी से बसर कर।


कलयुग है भाई बहुत काजल है फैला

दाग न लगे दामन पर, तू फिकर कर। 


चरैवेति में असली मजा है ठहराव तो सजा है

मंजिल है दूर, हौसला रख, तू सफर कर।


बहुत मौका परस्त है ये जमाना लोकेन्द्र

कौन दोस्त-दुश्मन, तू जरा ये खबर कर।


दरियादिली से दुश्मन की हिमाकत बढ़ रही है

अदब से रहेगा वो, तू जरा तिरछी नजर कर।


- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)

सोमवार, 28 जून 2021

टीकाकरण में मध्यप्रदेश का कीर्तिमान

CoWIN Portal से प्राप्त आंकड़े

मध्यप्रदेश की सरकार और जनता ने वह काम कर दिखाया है, जिसकी वर्तमान समय में अत्यधिक आवश्यकता है। मध्यप्रदेश में कोरोना टीकाकरण को लेकर समाज में जिस प्रकार की जागरूकता आई है, उससे कोरोना महामारी को हराने एवं संक्रमण की तीसरी आवृत्ति को रोकने में सफलता मिलने की संभावना बढ़ गई है। 21 जून से प्रारंभ हुए कोरोना टीकाकरण महाभियान के अंतर्गत मध्यप्रदेश के नागरिक लगातार कीर्तिमान रच रहे हैं। टीकाकरण महाभियान के पहले दिन ही 21 जून को मध्यप्रदेश में मात्र 10 घंटे में लगभग 16 लाख 95 हजार लोगों को टीका लगाने का इतिहास रच दिया था। उस दिन मध्यप्रदेश टीकाकरण में देश के अन्य सभी राज्यों से बहुत आगे खड़ा था। इतना ही नहीं, अभी तक एक दिन में इतनी संख्या में दुनिया के किसी भी शहर में टीकाकरण नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश की इस उपलब्धि को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। 

अच्छी बात यह है कि मध्यप्रदेश के नागरिक यह रिकॉर्ड अपने नाम करके रुक नहीं गए, बल्कि उसके बाद भी टीकाकरण को लेकर प्रदेश में उत्साह का वातावरण है। महाभियान के अंतर्गत 23 जून को मध्यप्रदेश में 11 लाख 37 हजार 888 लोगों को टीका लगाया गया, उस दिन भी मध्यप्रदेश टीकाकरण में शीर्ष पर रहा। जबकि 24 जून को 7 लाख 48 हजार 611 लोगों ने टीकाकरण कराया। वहीं, 26 जून को टीकाकरण में मध्यप्रदेश ने फिर कीर्तिमान रचा। इस दिन प्रदेश में 10 लाख 719 लोगों को कोरोनारोधी टीका लगाया गया। कुल मिलाकर टीकाकरण महाभियान में मध्यप्रदेश लगातार देश-दुनिया में शीर्ष पर बना हुआ है। 

विपक्षी राजनीतिक दलों एवं उनके सहयोगी बुद्धिजीवियों द्वारा अनेक प्रकार के भ्रम उत्पन्न करने के बाद भी टीकाकरण को लेकर मध्यप्रदेश में जो विश्वास और उत्साह का वातावरण बना है, उसके पीछे कहीं न कहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार की सक्रियता एवं उसके प्रति जनता का विश्वास है। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने महाभियान से पूर्व टीकाकरण के प्रति जनजागरण, उत्साह एवं विश्वास का वातावरण बनाने के लिए संपूर्ण समाज का सहयोग माँगा। उन्हें समाज का सहयोग मिला भी। सामान्य नागरिकों से लेकर प्रभावशाली लोगों ने टीकाकरण के प्रति लोगों को प्रेरित करने का जो सामाजिक दायित्व निभाया, उसकी सराहना करनी होगी। प्रदेश के जिम्मेदार नागरिकों को यह दायित्व तब तक निभाना है, जब तक कोरोना पूरी तरह समाप्त न हो जाए। याद रखें कि कोरोना के विरुद्ध हम प्रत्येक लड़ाई को जनजागरूकता से ही जीत सकते हैं। 

मध्यप्रदेश में कोरोना के मामले एक हजार से भी कम हो गए हैं। 35 जिलों में एक भी नया मामला सामने नहीं आया है। वहीं, विगत सात दिनों से संक्रमण की दर 0.1 प्रतिशत है। इसके बाद भी हमें अभी सावधानी छोडऩी नहीं है। हमें स्वयं तो कोरोना नियमों का पालन करना है, अपने आसपास भी अन्य लोगों को सचेत करते रहना है। कोरोना महामारी की पहली लहर हो या फिर उसकी पुनरावृत्ति, दोनों ही अवसरों पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी सरकार ने जिस सक्रियता से काम किया, उसकी सराहना राजनीतिक स्वार्थ, विचारधारा एवं असहमतियों से ऊपर उठकर की जानी चाहिए। उम्मीद है कि प्रदेश में जागरूकता का यह वातावरण बना रहेगा।

शनिवार, 19 जून 2021

झूठ के सहारे सांप्रदायिक तनाव की साजिश

गाजियाबाद में ‘जय श्रीराम’ नहीं कहने पर एक मुस्लिम बुजुर्ग के साथ मारपीट की गई और उसकी दाढ़ी काट दी गई। इस आशय का एक वीडियो वायरल कर देश की तथाकथित सेकुलर बिरादरी ने एक बार फिर भारत और हिन्दू धर्म पर हमला बोल दिया। देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के उद्देश्य से फैलाए गए इस झूठ को उन तथाकथित पत्रकारों एवं वेबसाइट्स ने भी साझा किया, जो स्वयं को ‘फैक्ट-चेकर’ (Fact Checker) बताते हैं। ‘कौव्वा कान ले गया’ की तर्ज पर विपक्षी दलों के नेता लोग भी इस झूठ को ले उड़े। मानो कि हिन्दू समाज को कठघरे में खड़ा करने के लिए ये लोग तैयार बैठे रहते हैं। गाजियाबाद पुलिस ने तत्काल मामले की पड़ताल कर यह स्पष्ट कर दिया कि यह आपसी विवाद का मामला है और उसमें आरोपी सिर्फ हिन्दू नहीं है बल्कि तीन मुस्लिम (आरिफ, आदिल और मुशाहिद) भी पकड़े गए हैं, जिन्होंने बुजुर्ग के साथ मारपीट की और कथित तौर पर उसकी दाढ़ी काटी। अब भला मुस्लिम लोग ही मुस्लिम बुजुर्ग को ‘जय श्रीराम’ नहीं कहने पर क्यों पीटेंगे? हिन्दू ऐसा करेंगे, यह सवाल ही बेकार है। अब तक इस तरह के जितने भी मामले आये हैं, वे फर्जी निकले या उनका सच कुछ और था। 

बुधवार, 16 जून 2021

मुंह की खाएगा रामद्रोही वर्ग


जब ऋषि-मुनि समाज कल्याण के उद्देश्य के साथ यज्ञ-हवन करते थे, तब पुनीत कार्य में बाधा उत्पन्न करने के लिए राक्षस अनेक प्रकार के धतकर्म करते थे। प्राचीन ग्रंथों में अनेक स्थानों पर इस प्रकार का वर्णन आता है। समय बदल गया, परिस्थितियां बदल गईं, लेकिन राक्षस कर्म वैसा का वैसा ही है। देश में कुछ ताकतें ऐसी हैं, जो वर्षों से रामकाज में बाधा उत्पन्न करने के भरसक प्रयास करती आ रही हैं।

पहले इन ताकतों ने यह सिद्ध करने के लिए पूरा जोर लगा लिया कि अयोध्या में श्रीराम का कोई मंदिर नहीं था। जब लगा कि इनके झूठ चल नहीं रहे तो न्यायालय में जाकर सुनवाई को टालने के प्रयास किए। इस काम में भी जब सफलता मिलती नहीं दिखी तो कहने लगे कि मंदिर की जगह अस्पताल या स्कूल बनाना चाहिए। परंतु, न्यायालय से लेकर समाज तक ने एकजुटता से राक्षसों की मंशा को पूरा नहीं होने दिया। जब सर्वोच्च न्यायालय ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के पक्ष में निर्णय दिया और वहाँ मंदिर निर्माण की प्रक्रिया आगे बढऩे लगी, तब इस ‘रामद्रोही वर्ग’ के कलेजे पर खूब सांप लौटे। मंदिर निर्माण में समाज के सहयोग और उत्साह को देखकर उन्हें बहुत पीड़ा हुई। जब रामभक्तों ने अपने प्रभु के भव्य मंदिर के लिए दिल खोलकर समर्पण किया, तब भी रामद्रोही वर्ग को बहुत कष्ट हुआ। उन्होंने उस समय भी भरपूर प्रयास किए कि लोग श्रीराममंदिर निर्माण के लिए दान न दें। लेकिन, समाज ने तब भी उनकी नहीं सुनी। 

अधम गति को प्राप्त हो चुका यह वर्ग अभी भी बेशर्मी से श्रीराम मंदिर के पुनीत कार्य को बदनाम करने के प्रयासों में लगा हुआ है। इस पृष्ठभूमि से आप समझ गए होंगे कि श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए कथित ‘जमीन घोटाले’ के पीछे कौन-सी मानसिकता एवं षड्यंत्र है। जिन्होंने यह प्रयास किए कि श्रीराम मंदिर के निर्माण के लिए लोग दान न दें, वे आज ‘रामधन’ को लेकर चिंतित होने की नौटंकी कर रहे हैं। जिन्होंने न्यायालय में हलफनामा दिया कि राम का कोई अस्तित्व नहीं है तथा राम काल्पनिक थे, वे आज ‘रामनाम’ ले रहे हैं। ऐसे में उनके पाखंड को समझना किसके लिए कठिन है। दरअसल, रामद्रोही वर्ग नहीं चाहता कि देश के स्वाभिमान से जुड़े पुनीत स्मारक का निर्माण निश्कलंक और निर्विघ्न सम्पन्न हो। वह अभी तक श्रीराम को स्वीकार नहीं कर सका है। 

देखें - अयोध्या में मंदिर बनेगा धूम-धाम से :

श्रीराम जन्मभूमि ट्रस्ट की ओर से श्रीमान चंपत राय जी ने समूची सच्चाई को प्रकट कर दिया है, लेकिन धूर्त अभी भी नहीं मानेंगे। क्योंकि उनका तो काम ही है, धूल का गुब्बार उड़ाकर लोगों के सामने धुंध उपस्थित करना और खुद दूर खड़े होकर तमाशा देखना। परंतु, वे भूल गए कि यह रामकाज है, यहाँ उनकी धूर्तता चलने वाली नहीं। जिन्होंने श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए समर्पण किया है, उन्हें भली प्रकार पता है कि उनकी एक-एक पाई का उपयोग ‘रामकाज’ में होगा। यह निश्चित है कि राष्ट्रनिर्माण के यज्ञ में विघ्न पैदा करने का काम कर रहीं राक्षसी मानसिकता कभी सफल नहीं हो सकती।    

अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण से जुड़े कथित ज़मीन घोटाले का सच जानने के लिए देखें ये समाचार :

जमीन बेचने वाले सुल्तान अंसारी ने कहा कि "राम के काम के लिए आधी कीमत पर बेची ज़मीन"

राम मंदिर मामले में ज़मीन घोटाले का भ्रम फैलाने वालों पर FIR की तैयारी

संभलकर चलने की आवश्यकता

कोरोना महामारी की दूसरी लहर से बाहर निकलकर अब हम सामान्य गतिविधियों की ओर बढ़ रहे हैं। याद रहे अभी एकदम सामान्य जीवन जीने का समय नहीं आया है। हमें सावधानी के साथ व्यवहार करना होगा, अन्यथा एक बार फिर कोरोना हम पर हावी हो सकता है। दूसरी लहर ने यह भी बता दिया कि यह कितनी खतरनाक महामारी है। इसलिए याद रखें कि हमारा जरा भी बेपरवाह आचरण हमारे ही परिवार, समाज और देश के लिए घातक हो सकता है। पहले अनलॉक के बाद हमने जो गलतियां की हैं, उनसे सबक सीखने की बहुत जरूरत है। प्रशासन और आम नागरिकों को, दोनों को अपनी भूमिकाएं सजगता से निभानी होंगी। आम नागरिक कोविड-19 व्यवहार का कड़ाई और स्व-अनुशासन के साथ पालन करें। प्रशासन कोरोना संक्रमण पर निगरानी बनाए रखे, नागरिकों को कोविड-19 व्यवहार का पालन करने के लिए प्रोत्साहित करे और किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए आवश्यक प्रबंध भी करे। 

जब हम सबकुछ अनलॉक करने की ओर बढ़ रहे हैं, तब प्रशासन को अनलॉक की वैज्ञानिक प्रक्रिया को अपनाना चाहिए। अनेक शोध अध्ययनों से साबित हुआ है कि एकदम से अनलॉक करने से कोरोना संक्रमण तेजी से लौट आता है। चरणबद्ध अनलॉक करने से कोरोना संक्रमण की वापसी को बहुत हद तक टाला जा सकता है। मध्यप्रदेश अब तक सधे हुए कदमों से अनलॉक की ओर बढ़ रहा है। लोगों को काम-धंधा मिले और अर्थव्यवस्था को गति मिले, इसके लिए उद्योग-कारोबार एवं बाजारों को शुरू करना आवश्यक है। इन्हें अनिश्चितकालीन समय तक रोका नहीं जा सकता। परंतु देखने में आ रहा है कि बाजार खोलते ही भारी भीड़ उमडऩे लगी है। मास्क और शारीरिक दूरी के अनिवार्य नियमों का पालन होते नहीं दिख रहा है। हमें यह समझना होगा कि इस लापरवाही का दुष्परिणाम हमें ही भोगना पड़ सकता है। 

बाजार चलते रहें, इसके लिए जरूरी है कि व्यवसायी एवं ग्राहक दोनों ही कोविड-19 अनुरूप व्यवहार का पालन करें। जब तक देश में बड़ी जनसंख्या का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक सार्वजनिक स्थलों पर मास्क पहनने, शारीरिक दूरी बनाने, समय-समय पर साबुन से हाथ धोने और भीड़ जुटाने से बचने जैसी जरूरतों के लिए लगातार जन जागरण करना होगा। वैसे तो हम सबको स्व-अनुशासन का पालन करते हुए स्वयं ही इन नियमों का पालन करना चाहिए किंतु यदि कोई उपरोक्त दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है, तब उस पर कड़ा जुर्माना लगाया जाना चाहिए।

सोमवार, 14 जून 2021

मदरसे में बम विस्फोट से उपजे सवाल

बिहार के बांका जिले के मदरसे में हुए विस्फोट से अनेक प्रश्न उठने लगे हैं। यह स्वाभाविक ही है। क्योंकि उसके मूल में दो बातें हैं- एक, मदरसे संदिग्ध गतिविधियों को लेकर पहले भी सवालों के घेरे में आते रहे हैं। दो, यह बड़ा सवाल है कि शिक्षा संस्थान में विस्फोटक सामग्री का क्या उपयोग किया जा रहा था? बांका के मदरसे में विस्फोट के बाद जिस तरह की संदिग्ध गतिविधियों को अंजाम दिया गया, उनसे भी अनेक संदेह उत्पन्न हो रहे हैं। सांप्रदायिक शिक्षा के नाम पर देशभर में संचालित मदरसे केवल अपनी कट्टरवादी तालीम के लिए ही बदनाम नहीं है, बल्कि हिंसक गतिविधियों एवं विस्फोटक सामग्री के भंडारण केंद्र होने के आरोप पहले भी मदरसों पर लगते रहे हैं। पूर्व में भी मदरसों में बम विस्फोट की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। पश्चिम बंगाल के वर्धमान जिले के खागरागढ़ के एक मदरसे में हुए बम विस्फोट में तो दो आतंकियों की मौत हुई थी और उस विस्फोट के तार बांग्लादेश के आतंकी गिरोह जमात-उल-मुजाहिदीन से जुड़े थे। बिहार के बांके जिले के मदरसे में हुए बम विस्फोट को भी उसी तरह की घटना माना जा रहा है। 

अब तक सामने आई जानकारी के अनुसार अवैध ढंग से बने इस मदरसे में धमाका कंटेनर में रखे एक देसी बम के फटने से हुआ है। मौलाना के मौत की वजह दम घुटना बताया गया है। विस्फोट इतना जबरदस्त था कि मदरसे का भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गया और इलाका धमाके से थर्रा गया था। मौके पर बम बाँधने में उपयोग की जाने वाली सुतली, कील और कंटेनर के प्रमाण मिले हैं। ये प्रमाण संकेत देते हैं कि मदरसे में बम बनाने का कार्य किया जा रहा था। विस्फोटक सामग्री भी भारी मात्रा में रही होगी, तभी इतना बड़ा धमाका संभव हो सका। सोचिए, यदि उस समय वहाँ बच्चे पढ़ रहे होते, तब क्या स्थिति बनती? ये मदरसे बच्चों का भविष्य संवारने के केंद्र हैं या फिर उनके जीवन को सब प्रकार के नष्ट करने के अड्डे? 

कुछ स्थानीय लोगों के हवाले से बताया गया था कि मौलाना बम बनाता था और तीन युवक उसका सहयोग करते थे। क्षेत्र में छोटी-छोटी बात पर बमबारी होती थी। भागलपुर से बारूद लाकर काम किया जाता था। यह भी तथ्य सामने आ रहे हैं कि मौलाना का संबंध तबलीगी जमात से था और उसका बांग्लादेश आना-जाना भी था। 

बहरहाल, इस घटना की जाँच राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा कराई जानी चाहिए। यह छोटी और सामान्य घटना नहीं है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। बांका की घटना से सबक लेकर देश के अन्य राज्यों में संचालित मदरसों की जाँच भी समय रहते करनी चाहिए और उनकी निगरानी बढ़ानी चाहिए। अब समय आ गया है कि मदरसों के संचालन के लिए स्पष्ट और पारदर्शी व्यवस्था बने। मदरसों पर सरकार का पूरा नियंत्रण हो। वहाँ सरकार द्वारा तय पाठ्यक्रम ही पढ़ाया जाए। प्रशासन को लगातार मदरसों का औचक निरीक्षण करना चाहिए ताकि सांप्रदायिक तालीम की आड़ में वहाँ चलने वाली संदिग्ध एवं खतरनाक गतिविधियों को रोका जा सके।

सोमवार, 31 मई 2021

पुण्यश्लोक राजमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर

देखें यह वीडियो : Rajmata Devi Ahilyabai Holkar



अहिल्याबाई का जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के जिले अहमदनगर के चौंढ़ी ग्राम तालुका जामखेड़ा में हुआ था। उनके पिता माणकोजी शिंदे और माता सुशीलाबाई बहुत धार्मिक थे। अपने माता-पिता से ही धार्मिक और संवेदनशील होने का संस्कार अहिल्याबाई को विरासत में मिला।  

वर्ष 1733 में पुणे में हिंदू विधि-विधान से उनका विवाह श्रीमंत खण्डेराव के साथ सम्पन्न हुआ। उनको आशीर्वाद देने के लिए बाजीराव पेशवा अपने परिवार के साथ आए थे। एक साधारण परिवार की दिव्य कन्या अब इंदौर के राजमहल की रानी हो गई।

शनिवार, 29 मई 2021

एक ध्येय के सूत्र से बंधे थे वीर सावरकर और भगत सिंह

वीडियो ब्लॉग देखें: Veer Savarkar and Bhagat Singh | वीर सावरकर पर भगत सिंह के विचार


आपने देखा और पढ़ा होगा कि भारत में तथाकथित बुद्धिजीवियों का एक विशेष वर्ग स्वातंत्र्यवीर सावरकर और सरदार भगत सिंह को एक-दूसरे के सामने खड़ा करने का प्रयास करता है। ऐसा करते समय उसकी नीयत साफ नहीं होती। मन में बहुत मैल रहता है। दरअसल, वे स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर को कमतर दिखाने और उनका अपमान करने की चेष्टा कर रहे होते हैं। लेकिन, सूरज से भी भला कोई आँखें मिला सकता है। दो महापुरुषों/क्रांतिकारियों की तुलना करके ऐसे लोग अपने ओछेपन को ही उजागर कर रहे होते हैं। ऐसा करते समय उन्हें पता ही नहीं होता कि दोनों क्रांतिवीर एक-दूसरे का बहुत सम्मान करते थे। आज हम वीर सावरकर और सरदार भगत सिंह के आपसी संबंधों को टटोलने का प्रयास करेंगे। हम जानेंगे कि कैसे भगत सिंह क्रांति की राह में सावरकर के प्रति आदर का भाव रखते थे और सावरकर के मन में भगत सिंह के प्रति कितनी आत्मीयता थी?

बुधवार, 26 मई 2021

शर्मनाक! आपदा में भी ‘कन्वर्जन का खेल’

मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में कोरोना महामारी की आड़ में ईसाई संप्रदाय के प्रचार का और कन्वर्जन (धर्मान्तरण) की प्रक्रिया का चौकाने वाला मामला सामने आया है। मध्यप्रदेश सरकार ने अच्छी पहल करते हुए कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए ‘किल कोरोना’ अभियान शुरू किया, जिसके तहत घर-घर जाकर स्वास्थ्यकर्मी लोगों के स्वास्थ्य की जाँच कर हैं और उन्हें उचित परामर्श दे रहे हैं। महामारी से लोगों का जीवन बचाने के उद्देश्य से शुरू किए गए इस अभियान का उपयोग ईसाई संप्रदाय के प्रचार और कन्वर्जन के लिए प्रेरित करने हेतु किया जाएगा, इसकी कल्पना भी सरकार ने नहीं की होगी। सरकार क्या, कोई भी निर्मल मन का व्यक्ति यह कल्पना नहीं कर सकता। सोचिए, जो लोग शासकीय अभियान को भी ईसाई संप्रदाय के प्रचार एवं कन्वर्जन की प्रक्रिया के लिए उपयोग कर सकते हैं, वे अपने तथाकथित ‘सेवा प्रकल्पों’ के माध्यम से किस स्तर पर जाकर गरीब, पिछड़े एवं वनवासी बंधुओं को ईसाई बनाते होंगे? यह घटना इस बात का सबसे बड़ा प्रमाण है कि भारत में सेवा कार्यों के पीछे चर्च का एक ही एजेंडा है- कन्वर्जन। यह अत्यंत घृणित एवं निंदनीय कार्य है कि सेवा की आड़ में लोगों का धर्म परिवर्तित कर अपने संप्रदाय का विस्तार किया जाए।

शुक्रवार, 21 मई 2021

कोरोना की रोकथाम का मध्यप्रदेश मॉडल

कोरोना महामारी की दूसरी लहर अचानक तेजी से आई, जिसकी भयावहता ने सबको मूकदर्शक बना दिया। कैसे इस लहर को रोका जाए, यह बड़ा प्रश्न बन गया। प्रारंभिक दिनों में अफरा-तफरी के हालात बन गए। ऐसी कठिन परिस्थितियों को संभालने के लिए मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और उसके मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने युद्धस्तर पर प्रयास किए। मुख्यमंत्री श्री चौहान अत्यधिक सक्रिय नजर आए। पहले चरण में वे स्वयं सड़कों पर निकले और लोगों को कोरोना संबंधी दिशा-निर्देशों को पालन करने का आग्रह किया। लेकिन, परिस्थितियां तेजी से बिगड़ती जा रही थीं। तब उन्होंने प्रदेश में कोरोना संक्रमण का आकलन कर कोरोना कर्फ्यू जैसा कठोर निर्णय लेने में हिचक नहीं दिखाई। उधर, स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबंध ठीक हो इस पर भी सरकार ने विशेष जोर दिया। सामाजिक संस्थाओं से इस संकट की घड़ी में सहयोग करने का आग्रह भी उन्होंने किया। किल कोरोना अभियान चलाया। बहुत ही कम समय में सीमित संसाधनों और सरकार की सक्रियता के कारण मध्यप्रदेश की स्थिति अन्य राज्यों की तुलना में बेहतर हो गई है। 

गुरुवार, 20 मई 2021

स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर 'द वीक' का माफीनामा

वीडियो रिपोर्ट देखें : 'The Week' magazine apologies for defaming Veer Savarkar

'द वीक' पत्रिका ने स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर लिखे गए झूठे और अपमानजनक लेख के लिए माफी मांगी है। ‘द वीक’ की यह माफ़ी राष्ट्रभक्त लोगों की जीत है और महापुरुषों का अपमान करने वाले संकीर्ण मानसिकता के लोगों की पराजय। निरंजन टाकले नाम के पत्रकार का एक लेख ‘द वीक’ ने 24 जनवरी, 2016 को प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक ‘लैंब लायोनाइज्ड’ था। वीर सावरकर की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से लिखे गए इस लेख में मनगढ़ंत और तथ्यहीन बातें लिखी गयीं। तथ्यों को तोड़-मरोड़कर कर भी प्रस्तुत किया गया। ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ ने इस आलेख को चुनौती दी। सबसे पहले 23 अप्रैल, 2016 को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में इसकी लिखित शिकायत की गई। परन्तु प्रेस काउंसिल कहाँ, इस तरह के मामलों पर संज्ञान लेती है। राष्ट्रीय विचार से जुड़े विषयों पर उसकी उदासीनता सदैव ही देखने को मिली है, उसका कारण सब जानते ही हैं। उसके बाद स्मारक इस लेख के विरुद्ध याचिका लेकर न्यायालय पहुँच गया और हम देखते हैं कि न्यायालय में झूठ टिक नहीं सका। इससे पहले वीर सावरकर के सम्बन्ध में आपत्तिजनक कार्यक्रम के प्रसारण के लिए एबीपी माझा भी लिखित माफी मांग चुका है। सोचिये, इतिहास में इस तरह के लोगों ने कितना और किस प्रकार का झूठ परोसा होगा? 

मंगलवार, 18 मई 2021

सकारात्मकता का संचार : ‘हम जीतेंगे - पाजिटीविटी अनलिमिटेड’

हम विकट संकट से गुजर रहे हैं। इस प्रकार के वैश्विक संकट का सामना सामूहिक प्रयासों, धैर्य एवं सकारात्मक मन के साथ ही किया जा सकता है। निराश और हतोत्साहित मन से हम इस मुसीबत से पार नहीं पा सकते। वैसे भी दुनिया में यह सामाजिक व्यवस्था है कि दु:ख एवं कष्ट की स्थिति में व्यक्ति के दु:ख को बढ़ाने का काम नहीं किया जाता, अपितु उसे सांत्वना दी जाती है, धैय दिया जाता है और उसके दु:ख में शामिल होकर उसको हिम्मत दी जाती है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने समाज में सेवा एवं राहत कार्यों को करने के साथ ही अपने इस दायित्व को भी स्वीकार किया। निराशा के गर्त में धकेले जा रहे अपने समाज के मन में जीत का विश्वास जगाने के उद्देश्य से संघ की प्रेरणा से ‘कोविड रिस्पॉन्स टीम’ ने पाँच दिवसीय ‘हम जीतेंगे - पाजिटीविटी अनलिमिटेड’ व्याख्यानमाला का आयोजन किया। इस व्याख्यानमाला में सामाजिक एवं धार्मिक नेतृत्व ने समाज में आत्मविश्वास जगाने का प्रयास किया।

शुक्रवार, 14 मई 2021

संवेदनशीलता शिवराज सरकार

बेसहारा परिवार को पाँच हजार पेंशन और बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा का सराहनीय निर्णय

हम सब जानते हैं कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने किसी को संभलने का अवसर नहीं दिया। बहुत तेजी से फैली महामारी की यह लहर अपने पीछे अनेक प्रकार के दु:ख और कष्ट छोड़कर जाने वाली है। यह दु:ख और कष्ट छोटे हो सकते हैं यदि समाज और सरकार मिलकर प्रयास करें। कोरोना संक्रमण की त्रासद घटनाओं के कारण यह महामारी अब हमारे लिए सामाजिक समस्या भी बन गई है। अनेक परिवार बेसहारा हो गए हैं। उनमें जो कमाने-खिलानेवाले थे, उनका दु:खद निधन हो गया है। बेसहारा परिवार और बच्चों के सामने अनेक चिंताएं हैं। हमें प्रयास करना चाहिए कि हम सब ऐसे परिवारों की चिंताओं का समाधान कैसे कर सकते हैं? मध्यप्रदेश सरकार ने पहलकदमी करते हुए बेसहारा परिवारों को पाँच हजार रुपये मासिक पेंशन, बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा और राशन की नि:शुल्क व्यवस्था करने का निर्णय लिया है। यह निर्णय बाकी राज्यों की सरकारों के लिए अनुकरणीय हो सकता है। 

इस तरह के प्रयासों में सरकारों के साथ सामाजिक संगठनों एवं जागरूक व्यक्तियों की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। सरकार ऐसे परिवारों के लिए कोई योजना बनाए और सामाजिक संगठन एवं जागरूक नागरिक जरूरतमंद व्यक्ति तक इन योजनाओं का लाभ पहुँचाने में सहयोगी बनें। साथ यह भी नजर रखी जाए कि कोई जरूरतमंदों का हक न मार ले। योजनाओं का सीधा लाभ पीडि़त व्यक्ति को मिले। उसमें बिचौलिए आकर उनको सहायता देने की जगह उनके दर्द को बढ़ाने का काम न करें। मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार एवं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस बात के लिए प्रशंसा के पात्र हैं कि उन्होंने बेसहारा हुए परिवारों एवं बच्चों को प्रत्येक माह पाँच हजार रुपये की पेंशन देने का निर्णय लिया है। बेसहारा परिवारों के लिए यह बड़ी राहत होगी। यह निर्णय बताता है कि शिवराज सिंह चौहान बहुत संवेदनशील मुख्यमंत्री हैं। उनके लिए अंत्योदय की चिंता प्राथमिक है। वह उन परिवारों की चुनौतियों को समझते हैं, जो कमजोर आय वर्ग से हैं। पाँच हजार रुपये की मासिक पेंशन के साथ ही उन्होंने ऐसे बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई की व्यवस्था एवं परिवारों को नि:शुल्क राशन की व्यवस्था करने का निर्णय भी लिया है। 

इसके साथ ही महिलाओं को काम प्रारंभ करने के लिए सरकार की गारंटी पर बिना ब्याज का ऋण उपलब्ध कराने का निर्णय भी सराहनीय है। इस बात के लिए लोगों को अधिक प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि वे स्वावलंबी बनें और स्वरोजगार कर बाकी सबके लिए भी उदाहरण बनें। मध्यप्रदेश सरकार का यह निर्णय एक आत्मविश्वास पैदा करता है, एक भरोसा जगाता है एवं आश्वासन देता है कि कठिन परिस्थितियों में सरकार हमारा सहारा बनेगी और हम फिर से उठ खड़े होंगे। आज की निराशाजनक परिस्थिति में इस प्रकार का भरोसा बहुत जरूरी है। यह भरोसा ही इस कठिन लड़ाई में जीतने का हमारा सबसे बड़ा सहारा बनेगा। 

शनिवार, 24 अप्रैल 2021

संघ फिर मैदान में

कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान लोगों को संकट से उबारने एवं उन्हें सहायता देने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता एक बार फिर मैदान में नजर आ रहे हैं। पिछले वर्ष जब पहली बार देश कोरोना संक्रमण की चपेट में आया था और लोगों का जीवन बचाने के लिए सरकार ने कठोर निर्णय लेते हुए लॉकडाउन लगाया था, तब संघ के स्वयंसेवकों ने बड़े स्तर पर सेवा एवं राहत कार्यों का संचालन किया था। देश में जब भी आपदा की स्थिति होती है, संघ के स्वयंसेवक सबसे आगे खड़े नजर आते हैं। यह भावना देश और समाज के प्रति उनके समर्पण को बताती है। एक बार फिर जब देश में संक्रमण फैल रहा है, तब घर से लेकर अस्पताल तक संघ के स्वयंसेवक संक्रमितों एवं उनके परिजनों के लिए देवदूत बनकर कार्य कर रहे हैं। मरीजों को दवा, भोजन और अस्पताल तक पहुँचाने के काम में स्वयंसेवक लगे हुए हैं। 

अकसर यह मन में प्रश्न आता है कि बिना किसी विशेष प्रशिक्षण के संघ के स्वयंसेवक यह सब कैसे कर लेते हैं? पिछले वर्ष सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में इस बात की स्पष्टता सबको दी थी। दरअसल, संघ के लिए सेवाकार्य, किसी पर उपकार नहीं है। उसके लिए सेवाकार्य करणीय कार्य है। शाखा स्थान पर स्वयंसेवकों का मानस ही इस प्रकार तैयार हो जाता है कि यह समाज हमारा अपना है, प्रत्येक परिस्थिति में इसकी चिंता हमें ही करनी है। इसलिए अपने जीवन को भी दांव पर लगाकर वह कठिनतम परिस्थितियों में भी अग्रिम पंक्ति में खड़ा होता है।

           वर्तमान समय में संघ ने समूचे देश में, विशेषकर जहाँ कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है, वहाँ कोरोना सहायता केंद्र बनाए हैं। मध्यप्रदेश की ही बात करें तो यहाँ संघ ने प्रांतश: कोरोना हेल्प डेस्क बनाई हैं, जो लोगों को हर संभव सहायता उपलब्ध करा रही हैं। इसके साथ ही संघ की प्रेरणा से संचालित सरस्वती शिशु मंदिर, सेवा भारती, विद्या भारती ने अपने संस्थान क्वारन्टाइन सेंटर बनाने के लिए प्रशासन को सौंप दिए हैं। अनेक स्थान पर संघ के स्वयंसेवक स्वयं ही क्वारन्टाइन एवं आइसोलेशन सेंटर चला रहे हैं।

संघ से संबंधित संस्थाओं के अस्पताल एवं स्वास्थ्य केंद्र भी कोरोना मरीजों की सेवा में समर्पित हो गए हैं। संघ ने विभिन्न धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं से बात करके उनकी धर्मशालाओं, भोजनशालाओं एवं अस्पतालों को भी कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में उपलब्ध करवाया है। कोरोना के विरुद्ध युद्ध स्तर पर कार्य कर रहे संघ के स्वयंसेवक सबको साथ लेकर चल रहे हैं। संघ के इन प्रयासों को साधुवाद। अन्य सामाजिक संगठन भी संघ से प्रेरणा लेकर अपने दायित्व निर्वहन के लिए आगे आएं।

देखें 2 मिनट की यह फिल्म - 'समिधा: सेवा परमो धर्म'




गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

कोरोना से बचने स्वास्थ्य-आग्रह

मध्यप्रदेश में कोरोना संक्रमण अनियंत्रित होता जा रहा है। मध्यप्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल हो गया है, जहाँ कोरोना महामारी की दूसरी लहर तेजी से फैल रही है। कोरोना संक्रमितों के मामले में मध्यप्रदेश देश में सातवें स्थान पर पहुंच गया है। विगत सात दिन में इंदौर का औसत पॉजिटिविटी रेट 15 जबकि भोपाल का 19 पर पहुँच गया है। यह स्थिति चिंताजनक है। ऐसी स्थिति में मध्यप्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस भूमिका में सक्रिय हो गए हैं, जिसकी अपेक्षा किसी भी जनप्रतिनिधि से होती है। मुख्यमंत्री श्री चौहान प्रतिनिधि बाजारों में निकल कर लोगों को कोरोना संक्रमण के खतरे के प्रति जागरूक कर रहे हैं। इस संदर्भ में मंगलवार को उन्होंने महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने से ‘स्वास्थ्य-आग्रह’ की शुरुआत की। कोरोना महामारी के प्रति आम नागरिकों को जागरूक करने के लिए समाज के प्रमुख लोगों से आग्रह करने का यह अभिनव प्रयोग है। 

पिछले कुछ समय से कोरोना संक्रमण को लेकर सामान्य नागरिकों में जिस प्रकार की उदासीनता एवं लापरवाही बढ़ती गई है, ऐसी स्थिति में उन्हें फिर से सावधान करने के लिए समाज के ही प्रभावशाली लोगों का सहयोग आवश्यक है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक एवं पत्रकारों-साहित्यकारों से भी बातचीत कर उनसे कोरोना के विरुद्ध लड़ाई में सहयोग की माँग की है। नि:संदेह यदि सब मिलकर अपने आस-पास के लोगों को जागरूक करेंगे, तब कोरोना को हराना आसान होगा। जिस तरह प्रतिदिन मुख्यमंत्री श्री चौहान आम लोगों से मिल कर मास्क लगाने, शारीरिक दूरी रखने एवं स्वच्छता का आग्रह कर रहे हैं, वैसे प्रयास सभी क्षेत्रों के नेतृत्वकारी लोगों को करना चाहिए। कोरोना संक्रमण समूची मानवता के लिए खतरा बन गया है। दूसरी लहर में जिस प्रकार यह अधिक घातक हो गया, वैसे में अपने समाज को बचाना हम सबकी जवाबदेही है। शासन के साथ हर स्तर पर सहयोग करना ही इस समय हमारा धर्म होना चाहिए। 

मुख्यमंत्री ने अपने घर पर अपनी सहधर्मिणी एवं पुत्र को मास्क पहनाकर प्रतीकात्मक ढंग से संदेश दिया है कि कोरोना के विरुद्ध जन-जागरूकता की लड़ाई हमें अपने घर से ही शुरू करनी होगी। मुख्यमंत्री बार-बार चेता रहे हैं कि लॉकडाउन जैसी स्थितियां बनने से रोकना होगा, अन्यथा सरकार को अपने नागरिकों का जीवन बचाने के लिए कड़े कदम उठाने पड़ सकते हैं। एक बात स्पष्ट है कि आज की स्थिति में हम सब लॉकडाउन लगाने की स्थिति में नहीं है, अब लॉकडाउन लगा तो वह हम पर बहुत भारी पड़ेगा। इसलिए आवश्यक है कि हम सब अपने जवाबदेही को पहचाने और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ‘स्वास्थ्य-आग्रह’ के आह्वान को समझें। हमें अपनों के साथ ही समाज के प्रत्येक बंधु-भगिनी के स्वास्थ्य की चिंता करते हुए उनसे आग्रह करना होगा कि मास्क पहनें, स्वच्छ रहें और शारीरिक दूरी का पालन करें। साथ ही अनावश्यक रूप से बाहर न निकलें। 

सोमवार, 29 मार्च 2021

चार पाकिस्तान बनाने का विचार 'लीगी मानसिकता'

जिस मुस्लिम लीगी मानसिकता ने भारत का विभाजन किया था, वह अब भी मौजूद है। भारत की अखंडता, एकता और सांप्रदायिक सौहार्द के लिए यह विभाजनकारी मानसिकता खतरनाक संकेत है। बंगाल के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान तृणमूल कांग्रेस के नेता शेख आलम ने भारत के टुकड़े करके चार पाकिस्तान बनाने संबंधी देश विरोधी भाषण दिया है। बीरभूम जिले के नानूर विधानसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार करने पहुँचे शेख आलम ने कहा कि "हमारी जनसंख्या 30 प्रतिशत है और वो (हिन्दू) 70 प्रतिशत हैं। अगर पूरे भारत में हम 30 प्रतिशत लोग इकट्ठे हो जाते हैं तो हम चार-चार पाकिस्तान बना सकते हैं। फिर कहां जाएंगे ये 70 प्रतिशत लोग"? शेख आलम का यह बयान स्पष्ट तौर पर देशद्रोह की श्रेणी में आता है और इसके साथ ही यह भारत के विरुद्ध अंदरखाने में चल रही भयंकर साजिश की ओर भी इंगित करता है।

भारत हितैषी संगठनों एवं व्यक्तियों द्वारा बार-बार जब यह चेतावनी दी जाती है कि मुस्लिम बाहुल्य वाले क्षेत्र भारत की एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बन सकते हैं, तब उनकी बातों को तथाकथित सेक्युलर ताकतें सांप्रदायिक कह कर खारिज कर देती हैं। लेकिन, यही सेक्युलर समूह/व्यक्ति शेख आलम जैसे कट्टरपंथी एवं लीगी मानसिकता के लोगों के बयानों पर चुप्पी साध जाते हैं। बल्कि पुलिस प्रशासन द्वारा जब इनके विरुद्ध कार्रवाई की जाती है, तब यह गैंग तख्ती एवं मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतर आती है। इससे पहले भारत से पूर्वोत्तर राज्यों को तोडऩे की योजना बताने वाले शर्जील इमाम के मामले में देश ने देखा ही कि कैसे तथाकथित प्रगतिशील उसकी तरफदारी कर रहे थे। 

बंगाल में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहाँ लीगी मानसिकता का प्रभाव दिखाई देता है। इस संदर्भ में तृणमूल कांग्रेस की सरकार में मंत्री फिरहाद हकीम के उस बयान का उल्लेख आवश्यक हो जाता है, जिसमें उन्होंने माना कि बंगाल के कई क्षेत्र 'पाकिस्तान' बनाए जा चुके हैं। वर्ष 2016 के विधानसभा चुनाव के पांचवे चरण के मतदान से पहले मंत्री फिरहाद हकीम ने पाकिस्तान के एक पत्रकार से कहा था- "आप हमारे साथ आइए, हम अपको कोलकाता के मिनी पाकिस्तान ले चलते हैं"। वैसे यह स्थिति प्रत्येक उस शहर में बन गई है, जहाँ मुस्लिम आबादी 15 से 30 प्रतिशत है। मुस्लिम बाहुल्य वाले इन क्षेत्रों में सांप्रदायिक तनाव स्पष्ट तौर दिखाई देता है। जहाँ शेख आलम ने आपत्तिजनक बयान दिया है, उसी बीरभूमि के एक गाँव में 300 हिन्दू परिवारों को लगातार चौथे वर्ष दुर्गा पूजा का आयोजन करने के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ी। ममता सरकार में कई बार यह स्थिति बनी है कि दशहरा और दुर्गा पूजा से हिन्दुओं को रोका गया है। अपनी परंपरा-संस्कृति का पालन करने और धार्मिक स्वतंत्रता के अपने मौलिक अधिकार के लिए हिन्दुओं को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। 

यह स्थिति चिंताजनक है। शेख आलम के बयान को हवा में उड़ाना एक बड़ी भूल साबित हो सकती है। शासन-प्रशासन के साथ ही देशभक्त नागरिकों को लीगी मानसिकता पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। 

यह भी देखें - कश्मीरी हिन्दुओं की हत्या के पीछे जेहादी मानसिकता




बुधवार, 24 मार्च 2021

हर बूँद अनमोल

Lokendra Singh

विश्व जल दिवस पर जल शक्ति अभियान की शुरुआत कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मनुष्यता एवं प्रकृति-पर्यावरण के हित में एक महत्वपूर्ण शुरुआत की है। जल संरक्षण और जल प्रबंधन एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना जल संरक्षण किए अगर हम जल का दोहन करेंगे, तो आने वाले समय में जल संकट की समस्या उत्पन्न हो जाएगी। भारत के अनेक हिस्सों में अब हम इस संकट का सामना करने की स्थिति में आ चुके हैं। यह संभलने का समय है। यह अभियान हमें संभलने का अवसर देता है। इस अभियान को ‘कैच द रैन’ नाम दिया गया है। वर्षा जल का संचयन करना, इसका उद्देश्य है। 

शहरीकरण की प्रक्रिया में एक बड़ी चूक पिछले वर्षों में हुई है कि वर्षा जल के संचयन की प्राकृतिक एवं नैसर्गिक संरचनाओं को हमने ध्वस्त कर दिया या बदहाल होने दिया। स्थिति यह है कि वर्षा जल का ज्यादातर हिस्सा बह कर शहर से बाहर चला जाता है, जबकि उसको वहाँ की भूमि में समाना चाहिए था। भू-जल स्तर को बनाए रखने में वर्षा जल का बहुत महत्व है। थोड़ी जागरूकता एवं थोड़े ही प्रयासों से हम वर्षा जल का संचयन कर सकते हैं। इसलिए इस अभियान को वर्षा जल के संचयन से जोडऩा अनुकरणीय है। 

मध्यप्रदेश में अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं एवं समाजसेवी वर्षा जल के संचयन के लिए क्रांतिकारी पहल प्रारंभ कर चुके हैं। मध्यप्रदेश के बैतूल में पर्यावरण पुरुष मोहन नागर बारिश के पानी को सहजने के लिए ग्रामवासियों के सहयोग से ‘गंगा अवतरण अभियान’ एवं ‘बोरी बंधान’ जैसे परंपरागत वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करते हैं। इन प्रयोगों के कारण जिन गाँवों में कभी जल संकट भयावह हो जाता था, आज वहाँ संग्रहित वर्षा जल का उपयोग सिंचाई के लिए भी होने लगा है। वहीं, झाबुआ में शिव गंगा अभियान के चला कर पद्मश्री महेश शर्मा ने एक लाख से अधिक जल संरचनाएं खड़ी कर दीं। दोनों ही महानुभाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा लेकर पर्यावरण संरक्षण के महती अभियान में जुटे हुए हैं। 

पर्यावरण पुरुष मोहन नागर के प्रयासों पर केन्द्रित फिल्म 


यह ठीक बात है कि सरकार ने वर्षा जल संरक्षण की चिंता की है लेकिन यह जब तक समाज की चिंता का विषय नहीं बनेगा, तब तक वांछित लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जल संरक्षण प्रत्येक मनुष्य का दायित्व होना चाहिए। जीवन में जल का क्या महत्व है, हमारी संस्कृति में, ऋषियों ने इसे भली प्रकार रेखांकित किया है। उन्होंने बताया है कि पृथ्वी का आधार जल और जंगल है। इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- “वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:” अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। हिन्दुओं के चार वेदों में से एक अथर्ववेद में बताया गया है कि आवास के समीप शुद्ध जलयुक्त जलाशय होना चाहिए। जल दीर्घायु प्रदायक, कल्याणकारक, सुखमय और प्राणरक्षक होता है। छान्दोग्योपनिषद् में अन्न की अपेक्षा जल को उत्कृष्ट कहा गया है। महर्षि नारद ने भी कहा है कि पृथ्वी भी मूर्तिमान जल है। अन्तरिक्ष, पर्वत, पशु-पक्षी, देव-मनुष्य, वनस्पति सभी मूर्तिमान जल ही हैं। जल ही ब्रह्मा है। 

आधुनिक जीवनशैली में हम अपनी संस्कृति की सीखों को पीछे छोड़ते आए हैं, जिसके कारण आज अनेक प्रकार के संकटों का सामना कर रहे हैं। जल शक्ति अभियान के माध्यम से हमारे पास एक अवसर आया है कि हम अपनी संस्कृति के संदेशों को आत्मसात करें, दुनिया के सामने आचरण हेतु प्रस्तुत करें और प्रकृति के साथ अपने आत्मीय संबंध को पुन: प्रगाढ़ करें। याद रखें, जल का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए इसका संरक्षण एवं संचयन अनिवार्य है।

मंगलवार, 2 मार्च 2021

पिता ने क्या किया

यूट्यूब चैनल 'अपना वीडियो पार्क' पर देखें


क्या किया पिता ने तुम्हारे लिए?
तुमने साहस कहां से बटोरा
प्रश्न यह पूछने का।
बचपन की छोड़ो
तब की तुम्हें सुध न होगी
जवानी तो याद है न
तो फिर याद करो...


पिता दफ्तर जाते थे साइकिल से
तुम्हें दिलाई थी नई मोपेड
जाने के लिए कॉलेज।
ऊंची पढ़ाई कराने तुम्हें
बैंक के काटे चक्कर तमाम
लाखों का लोन लिया उधार।
तुम्हारे कंधों पर होना था
बोझ उस उधार का
लेकिन, कमर झुकी है पिता की।


याद करो,
पिता ने पहनी तुम्हारी उतरी कमीज
लेकिन, तुम्हें दिलाई ब्रांडेड जींस
पेट काटकर जोड़े कुछ रुपये
तुम्हारा जन्मदिन होटल में मनाने।


नहीं आने दी तुम तक
मुसीबत की एक चिंगारी भी, कभी
खुद के स्वप्न खो दिए सब
तुम्हारे लिए चांद-सितारे लाने में।
पिता ही उस मौके पर साथ तुम्हारे थे
जब पहली बार हार से
कदम तुम्हारे लडख़ड़ाए थे।
सोचो पिता ने हटा लिया होता आसरा
तो क्या खड़े होते तुम
जिस जगह खड़े हो आज।


पिता होकर क्या पाया
तुम्हारा रूखा व्यवहार, बेअदब सवाल
पिता होकर ही समझोगे शायद तुम।
फिर साहस न जुटा पाओगे
प्रश्न यह पूछने का
क्या किया पिता ने तुम्हारे लिए?


आओ, प्यारे
प्रश्न यह बनाने की कोशिश करें
हमने क्या किया पिता के लिए?
क्या करेंगे पिता के लिए?
क्या उऋण हो सकेंगे पितृ ऋण से?

- लोकेन्द्र सिंह -

(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से) 


मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी की पत्रिका 'साक्षात्कार' के अगस्त-2020 के अंक में प्रकाशित

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2021

एकजुट भारत : वयं पंचाधिकं शतम्

तथाकथित किसान आंदोलन के नाम पर भारत विरोधी ताकतों ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करने का षड्यंत्र रचा, लेकिन भारत के नागरिकों ने अविलम्ब एकजुट प्रतिकार करके बता दिया कि हम भारत विरोधी किसी भी साजिश को सफल नहीं होने देंगे। यह भारत की शक्ति और उसकी सुंदरता है कि आम और प्रभावशाली, सभी लोगों ने भारत की आवाज को मजबूत किया। महाभारत का एक प्रसंग है, जिसमें संदेश दिया गया है कि – ‘वयं पंचाधिकं शतम्’। जो भारतीय संस्कृति में रचा-बसा है, वह इस संदेश को जीता है। उसे पता है कि भले ही हमारी आपस में असहमति है लेकिन बाहर के लिए हम सब एकजुट हैं। इसलिए अनेक असहमतियों के बाद भी विगत दिवस देश के सभी नागरिकों ने ‘भारत के विरुद्ध रचे गए प्रोपोगंडा’ का एक सुर में विरोध किया। 

सुबह से जो लोग पॉप सिंगर रिहाना, पॉर्न स्टार मिया खलीफा, एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग और कमला हैरिस की भतीजी/भान्जी के ट्वीट पर लहालोट हो रहे थे, उनके प्रोपोगंडा की हवा ‘हम भारत के लोग’ में आस्था रखने वाले भारतीयों ने निकाल दी। भारत की ओर से इस बात पर आपत्ति की गई है कि एक अलग दुनिया में रहने वाले इन लोगों ने जमीनी सच्चाई को जाने बिना ही अपनी नाक भारत के आंतरिक मामले में घुसाई है। क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदुलकर से लेकर अभिनेता अक्षय कुमार और एक सामान्य भारतीय नागरिक ने कहा कि “भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता। आईए, भारत के विरुद्ध इस प्रोपोगंडा के सामने एकजुट होकर खड़े होते हैं”। विदेश मंत्रालय ने भी उचित ही प्रतिक्रिया दी कि “भारत की संसद ने व्यापक बहस और चर्चा के बाद, कृषि क्षेत्र से संबंधित सुधारवादी कानून पारित किया। ये सुधार किसानों को अधिक लचीलापन और बाजार में व्यापक पहुँच देते हैं। ये सुधार आर्थिक और पारिस्थितिक रूप से सतत खेती का मार्ग प्रशस्त करते हैं”। 

यह सच है कि इन ‘सेलेब्रिटीज’ न तो कृषि सुधार कानूनों की एक पंक्ति पढ़ी है और न ही उन्हें किसानों की माँगों का ही पता है। उन्हें जो ट्वीट और पोस्टर दिया गया, उसे उन्होंने ट्वीट कर दिया। इस कॉपी-पेस्ट कर्म में अनजाने में स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग ने इस अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र की पोल खोल दी। ग्रेटा ने भारत में जारी किसान आंदोलन के समर्थन की अपील करते हुए जो ट्वीट किया, उसमें उन्होंने एक ऐसे दस्तावेज को साझा कर दिया, जिससे स्पष्ट होता है कि किसान आन्दोलन एक सोची समझी रणनीति के साथ शुरू किया गया था और 26 जनवरी का उपद्रव भी इसी रणनीति का हिस्सा था। गूगल ड्राइव पर साझा की गई इस फाइल में इस तथाकथित किसान आंदोलन के आगे की रणनीति एवं सोशल मीडिया अभियान का क्रम और अन्य गतिविधियों का ब्योरा दर्ज है। इसके साथ ही इस दस्तावेज में यह तक उल्लेख है कि किसको क्या ट्वीट करना है और किन्हें टैग करना है। दरअसल, प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने कृषि सुधार कानूनों की सराहना की है। उन संस्थाओं को टैग करके उन पर दबाव बनाने की योजना भी उजागर हुई है। 

इस दस्तावेज में भारत के कुछ मीडिया संस्थानों का भी जिक्र है, जो इस षड्यंत्र में उनके सहयोगी साबित हो सकते हैं। जैसे ही ग्रेटा ने यह ट्वीट किया, भारत विरोधी ताकतों की कलई खुल गई। आनन-फानन में ग्रेटा से यह ट्वीट हटवाया गया। हालाँकि, तब तक सच सामने आ चुका था। धीरे-धीरे ही सही, लेकिन इस आंदोलन के पीछे सक्रिय अराजक ताकतों का चेहरा सामने आता जा रहा है। वैसे भी राष्ट्रीय स्वाभिमान के पर्व ‘गणतंत्र दिवस’ पर हुई अराजकता और हिंसा के बाद से यह तथाकथित किसान आंदोलन अपनी नैतिकता खो चुका है। अब धीमे-धीमे जनसमर्थन और सहानुभूति से भी हाथ धो रहा है।