ज म्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी पर भगत सिंह क्रांति सेना के कार्यकर्ताओं ने जूता उछाल दिया। शाह गिलानी नई दिल्ली में कश्मीर पर आयोजित सेमिनार में हिस्सा लेने पहुंचे थे। तेजिंदर पाल बग्गा के नेतृत्व में पहुंचे भगत सिंह क्रांति सेना के लोगों ने जूता उछालते हुए कहा कि देश के गद्दारों के साथ ऐसा ही सुलूक किया जाएगा।
कुछ समय से देखने में आया है कि जूता खूब चल रहा है। शुरुआत में जूता विरोध में और क्रोध में चला। अब लगता है सुर्खियां बटोरने के लिए चल रहा है। भारत में सबसे पहले जूता गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर उछाला गया। ७ अप्रैल, २००९ को कथित पत्रकार जनरैल सिंह ने चिदंबरम को निशाना बनाया था। जनरैल सिंह १९८४ के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को सीबीआई की ओर से क्लीनचिट दिए जाने से नाराज थे। उसके बाद तो हर कोई जूता चलाने निकल पड़ा। सुर्खियां बटोरने का आसान तरीका बन गया-जूता फेंकना। कांग्रेस के युवराज पर भी एक सभा में जूता उछाल दिया गया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी नहीं बच सके। उन पर जूता फेंकने वाला तो पुलिस अधिकारी ही था। जम्मू-कश्मीर के एक अन्य अलगाववादी नेता यासीन मलिक पर भी अजमेर यात्रा के दौरान चप्पल फेंकी गई। संभवत: उनका विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी पर जूता नहीं होगा, इसलिए उसने चप्पल ही फेंक दी। भ्रष्टाचारी और देश विरोधी बयान देने वालों को ही निशाना बनाया जा रहा हो ऐसा नहीं है, कुछ सिरफिरों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जन जागरण में लगी अन्ना टीम को भी एक-दो बार निशाने पर लिया। अन्ना टीम के अतिसक्रिय सदस्य अरविंद केजरीवाल सहित किरण बेदी, कुमार विश्वास और मनीष सिसौदिया जब देहरादूर में सभा को संबोधित कर रहे थे तो शराब के नशे में धुत एक युवक ने मंच की ओर जूता उछाला दिया था। वहीं कालेधन के खिलाफ गांव-गांव तक रथयात्रा निकालने वाले योगगुरु बाबा रामदेव की ओर सीआरपीएफ के जवान ने जूता उछाल दिया था।
पी. चिदंबरम से शाह गिलानी तक कई नाम हैं, जिन पर जूता उछाला जा चुका है। यह फेरहिस्त हो भी लंबी होगी इसकी संभावना नजर आ रही है। लेकिन, जूता चलाने और उछाने की (कु) परंपरा से कोई बदलाव आया, ऐसे दिखता नहीं। ऐसे में जूता चलाने वालों को जूता चलाने के कुछ नए तरीके सोचने होंगे। हवा में जूता उछालने का तरीका बेहद पुराना, घटिया और उबाउ हो गया है। जूता उछालकर सुर्खियां बटोरने वालों को मेरी सलाह है कि वे श्रीलाल शुक्ल की रागदरबारी का पारायण कर लें। उसमें जूता चलाने के नए और कुछ पारंपरिक तरीके दिए गए हैं। जूता चले तो कुछ इस ढंग से चले कि व्यवस्था में परिवर्तन आ सके अन्यथा कोई मतलब नहीं। सुर्खियां ही बटोरना है तो दिल्ली के विश्वविद्यालय जेएनयू के विद्यार्थियों से सीख लें। उन्हें चर्चित रहने के फण्डे बेहतर पता हैं। कभी वे हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान कर महान कम्युनिस्ट बन जाते हैं तो कभी रामायण का (कु)पाठ कराने की जिद पाल कर चर्चित हो जाते हैं। यही नहीं हाल ही में उन महान सेकुलरों ने विश्वविद्यालय की मेस में सूअर और गाय का मांस परोसे जाने की मांग की है। ये भी जूतों के ही भूत हैं बातों से नहीं मानेंगे लेकिन सवाल वही कि जूता कैसे चलाएं कि कुछ बात बने।
जूता चलाने की पद्धतियां
रागदरबारी में वर्णित और मेरे अंचल में प्रचलित कुछ जूता चलाने की पद्धतियां यहां में प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि जूता चलाने वाले अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। किसी को ढंग से जुतियाना (जूता मारना) हो तो पहले जूते को तीन दिन तक पानी में भिगाकर रखें। यह ध्यान रखें कि जूता फटा हुआ हो। क्योंकि फटा हुआ और तीन-चार दिन पानी में भिगाया हुआ जूता मारने में अच्छी आवाज करता है, दूर-दूर तक लोगों को सूचना मिल जाती है कि कहीं जूता चल रहा है। तीन दिन पानी में गीला होने से जूते का चमड़ा जरा हरिया जाता है, तब मार भी अच्छी पड़ती है। इस पद्धति का उपयोग देश और संस्कृति विरोधी कार्यों में संलिप्त लोगों के लिए करना चाहिए। जब बात पढ़े-लिखे आदमी को जुतियाने की हो तब गोरक्षक जूते का उपयोग करना चाहिए। गोरक्षक जूते से पिटाई करने में मार तो बढिय़ा पड़ जाती है पर आदमी बेइज्जती से बच जाता है। वह अपने बचाव में कह भी सकता है कि मेरी पिटाई ऐरे-गैरे जूते से नहीं गोरक्षक जूते से हुई है। इसके अलावा जुतियाने का सबसे बढिय़ा और शानदार तरीका है कि गिनकर सौ जूते मारने चलें, निन्यानबे तक आते-आते पिछली गिनती भूल जाएं और फिर से एक से गिनकर, नए सिरे से जूता लगाना शुरू कर दें। जूता चलाने में नवाचार तो होना ही चाहिए। इसलिए जूता चलाने का ख्याल मन में रखने वालों से निवेदन है कि वे इनमें से कोई फण्डा अपनाएं या फिर कुछ और नया करें। कुल मिलाकर जूता कुछ ऐसे चले कि बात बन जाए।