मंगलवार, 23 अक्तूबर 2018

अब प्रयाग 'राज'


- लोकेन्द्र सिंह 
भारतीयता को स्थापित करने के मामले में उत्तरप्रदेश सरकार के प्रयास सराहनीय हैं। गत वर्ष से अयोध्या में दीपावली मनाने की शुरुआत कर उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने इस दिशा में बड़ी पहल प्रारंभ की थी। अब ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के शहर को उसका वास्तविक एवं गौरवशाली नाम 'प्रयागराज' लौटा कर अनुकरणीय कार्य किया है। भले ही एक समय में राजनीतिक और सांप्रदायिक ताकत ने प्रयागराज का नाम बदल कर इलाहाबाद कर दिया हो, लेकिन जनमानस के अंतर्मन में वह प्रयागराज ही रहा। इसलिए जब हम तर्पण करने के लिए इलाहाबाद जाते हैं, तो यह कभी नहीं करते कि इलाहाबाद जा रहे हैं, मुंह से हमेशा यही निकला- 'तर्पण के लिए प्रयाग जा रहे हैं।' भारतीय ज्ञान-परंपरा और अध्यात्म का सबसे बड़ा मानव संगम 'कुंभ' जिन चार शहरों में आयोजित होता है, उनके नाम हैं- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक। भले ही सन् 1583 में अकबर ने सरकारी दस्तावेज से प्रयागराज को मिटाकर उसकी जगह इलाहाबाद नाम लिख दिया हो, लेकिन इससे भारतीय मानस में अंकित 'प्रयागराज' कभी नहीं मिटा। वह अब तक अमिट रहा। कुंभ का आयोजन बाहरी तौर पर इलाहाबाद में होता रहा, लेकिन उसकी सांस्कृतिक भूमि हमेशा से प्रयाग ही रही। कुंभ में पवित्र स्नान के लिए देश के कोने-कोने से आने वाले श्रद्धालु कभी भी इलाहाबाद नहीं, बल्कि प्रयाग ही आए। इससे सिद्ध होता है कि सांस्कृतिक पहचान कभी जोर-जबरदस्ती से नहीं मिटती। वह उस संस्कृति के मानने वालों के मन में सदैव के लिए जिंदा रहती हैं। आज वह अवसर आया है जब प्रयाग को पुन: उसकी वास्तविक पहचान मिली।

शनिवार, 20 अक्तूबर 2018

ध्येयनिष्ठ पत्रकारिता के गौरवशाली 51 वर्ष

पत्रकारिता में श्रेष्ठ मूल्यों की स्थापना करने वाले स्वदेश के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा का मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित गरिमामय समारोह में आत्मीय अभिनंदन

पत्रकारिता जब मिशन से हटकर व्यावसायिकता की पटरी चढ़ चुकी है, तब भी सिद्धांतों से डिगे बिना 51 वर्ष की लंबी यात्रा पूरी करने वाले स्वदेश (भोपाल समूह) के प्रधान संपादक श्री राजेन्द्र शर्मा को देखकर एक विश्वास पक्का हो जाता है कि पत्रकारिता अब भी मिशनरी मोड में है। निष्कलंक, निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता की यह यात्रा अब भी जारी है। लोकतंत्र के इस चौथे खंबे की ओर उम्मीदों से देखने वाला समाज चाहता है कि पत्रकारिता के यह गौरवशाली और ध्येयनिष्ठ 51 वर्ष 101 हो जाएं। पत्रकारिता के निरभ्र आकाश में दैदीप्यमान नक्षत्र ध्रुव की भांति श्री राजेन्द्र शर्मा न केवल आम जनमानस की आवाज बनें, बल्कि लोकहित के अपने पथ से भ्रष्ट होती पत्रकारिता का मार्गदर्शन भी करते रहें। उनके सान्निध्य में अनेक भारतीय कलम तैयार हुई हैं, जिनके लिए पत्रकारिता में समाज और राष्ट्र सर्वोपरि रहे। जिस प्रकार प्रतिकूल परिस्थितियों भी श्री शर्मा अपने पत्रकारिता धर्म पर अड़े रहे, अपने मूल्यों को साधे रहे, उसी तरह उनसे सीख कर पत्रकारिता जगत में आए पत्रकारों की कलम भी कभी झुकी नहीं। इस तरह स्वदेश परिवार के मुखिया श्री राजेन्द्र शर्मा ने न केवल अपनी कलम से देश की सेवा की, अपितु अपने गुरु दायित्व से भी राष्ट्र की उन्नति में योगदान दिया है। उनके त्याग, संघर्ष और मूल्यनिष्ठ पत्रकारीय जीवन को समाज भी मान्यता देता है। सम्मान करता है। 2018 में उनकी पत्रकारिता के 51 वर्ष पूर्ण होने पर उनके योगदान के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने और समूची यात्रा को आज की पीढ़ी से समक्ष उपस्थित करने के उद्देश्य से आम समाज ने 01 सितंबर को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में अभिनंदन समारोह का आयोजन किया। इस सारस्वत आयोजन में मंच पर देश की सम्मानित विभूतियों और अपेक्स बैंक के सभागार ‘समन्वय भवन’ में गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति यह बयान करने के लिए पर्याप्त थी कि श्री राजेन्द्र शर्मा एवं उनकी निष्कलंक पत्रकारिता के प्रति समाज के सुधिजनों में अपार श्रद्धा-आदर है। मंच पर भारतीय ज्ञान-परंपरा के प्रख्यात चिंतक, राजनीतिज्ञ एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. मुरली मनोहर जोशी, त्रिपुरा के राज्यपाल प्रो. कप्तान सिंह सोलंकी, केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री श्री नरेन्द्र सिंह तोमर, एकात्म मानव दर्शन अनुसंधान एवं विकास संस्थान के निदेशक डॉ. महेश चंद्र शर्मा, पूर्व मुख्यमंत्री श्री कैलाश जोशी, श्री बाबूलाल गौर, पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री सुरेश पचौरी, नगरीय प्रशासन एवं शहरी विकास मंत्री श्रीमती माया सिंह, भोपाल महापौर श्री आलोक शर्मा, सांसद श्री आलोक संजर, आयोजन समिति के कार्याध्यक्ष मूर्धन्य साहित्यकार श्री कैलाशचंद्र पंत, पूर्व सांसद रघुनंदन शर्मा, श्रीमती अरुणा शर्मा (श्री शर्मा की सहधर्मिणी) और स्वदेश के प्रबंध संपादक श्री अक्षत शर्मा उपस्थित रहे।

- चित्रों में देखें पूरी यात्रा - 

         
         

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018

श्रीराम मंदिर निर्माण और आरएसएस


- लोकेन्द्र सिंह 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक वर्षभर में प्रमुख छह उत्सव मनाता है, इनमें से एक विजयादशमी है। यह सभी उत्सव सामाजिक महत्व के हैं। विजयादशमी समाज की विजय की प्रवृत्ति को जगा कर रखने वाला उत्सव है। यह प्रत्येक बुराई से जीतने की प्रेरणा देता है। संभवत: यही कारण है कि भारतीय समाज समय-समय पर अनेक बुराइयों को निकाल बाहर करता है। विजयादशमी के दिन सरसंघचालक का जो उद्बोधन होता है, वह संघ के स्वयंसेवकों के लिए तो पाथेय का कार्य करता ही है, संघ की नीति और सामयिक मुद्दों पर उसकी दृष्टि को भी स्पष्ट करता है। इसलिए विजयादशमी का उद्बोधन विशेष महत्व रखता है। नागपुर में 18 अक्टूबर को विजयादशमी मनाई गई। मंच पर इस बार नोबल शांति पुरस्कार से सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश सत्यार्थी बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। निश्चित ही संघ विरोधी अब कैलाश सत्यार्थी और उनके काम को निशाना बनाएंगे। खैर, महत्व की बात यह है कि कैलाश सत्यार्थी ने भी अपने उद्बोधन में उन सब बातों को शामिल किया, जिन्हें संघ दोहराता आया है। उन्होंने संघ के प्रति विश्वास जताते हुए स्वयंसेवकों से स्वाभिमानी, संवेदनशील, समावेशी, सुरक्षित और स्वावलंबी भारत बनाने का आह्वान किया।