सोमवार, 24 मार्च 2014

शिव मंदिरों का खजाना बटेश्वर

 ए क नहीं, दो नहीं, लगभग आधा सैकड़ा शिव मंदिर। एक ही जगह पर, एक ही परिसर में। आठवीं शताब्दी की कारीगरी का उत्कृष्ट नमूना। आसपास बिखरे पड़े तमाम अवशेष। पुरातत्व विभाग और सरकार ईमानदारी से प्रयास करते रहेंगे तो निश्चित ही चारों तरफ बिखरे पड़े इन्हीं अवशेषों में से और मंदिर जी उठेंगे। जैसे फीनिक्स पक्षी के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी ही राख से फिर जी उठता है। मुरैना जिले के बटेश्वर में अवशेषों के बीच खड़े मंदिरों को देखकर तो यही उम्मीद मजबूत होती कि भविष्य में यहां विशालतम मंदिर समूह होगा। पुरातत्वविद मानते हैं कि कभी यहां ३०० से ४०० मंदिर हुआ करते थे। इनमें ज्यादातर शिव मंदिर हैं। कुछेक विष्णु मंदिर भी हैं। श्रंखलाबद्ध खड़े करीब आधा सैकड़ा मंदिरों का समूह ही जब प्रखरता के साथ अपनी विरासत की कहानी बयान करता है तो सोचिए ३००-४०० मंदिरों का समूह कैसे भारतीय संस्कृति, सभ्यता और विरासत का परचम लहराएगा।

गुरुवार, 20 मार्च 2014

कुछ सवाल केजरीवाल से


लो कतंत्र में सवाल पूछने की पूरी आजादी है। यह अच्छा भी है। जिसे हमने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वाहन करने के लिए चुना है, उससे फीडबैक लेने के लिए सवाल पूछना जरूरी है। ताकि देश जान सके कि सरकार की गति ठीक है या नहीं। यह परंपरा विकसित होनी चाहिए लेकिन उत्तरदायित्व के साथ। हम जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछ रहे हैं तो कुछ सवालों के जवाब देने के लिए हमें भी तैयार रहना चाहिए। यह ठीक नहीं कि जब हमसे सवाल पूछे जाएं तो हम बिदक जाएं और सवाल पूछने वाले पर ही दोषारोपण करने लगें। आम आदमी पार्टी (आआपा) के महत्वपूर्ण चेहरे अरविन्द केजरीवाल के साथ यही दिक्कत है। देशभर में घूम-घूमकर अन्य पार्टियों के नेताओं से सवाल पूछ रहे दिल्ली के 49 दिन के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल तब उखड़ जाते हैं जब कोई उनकी तरफ सवाल उछाल देता है। उन्हें सवाल पूछने की तो आदत है लेकिन जवाब देना उन्हें शायद शोभनीय नहीं लगता। या फिर उनके पास सवालों के उचित जवाब नहीं होते। ऐसे में अन्य नेताओं की तरह अरविन्द भी चुप्पी साध जाते हैं या फिर घुमा-फिराकर सफाई देने की कोशिश करते हैं। मीडिया जब तक उन्हें स्थापित करता रहा, उन्हें स्पेस देता रहा, उनकी सुनता रहा तब तक सबकुछ ठीक था। लेकिन, दिल्ली की जिम्मेदारी से भाग खड़े अरविन्द केजरीवाल, अपने कई बयानों से पलट चुके अरविन्द केजरीवाल और दोहरे आचरण वाले अरविन्द केजरीवाल से जब मीडिया ने सवाल पूछने शुरू किए तो उन्होंने मीडिया को बिकाऊ बता दिया। कह दिया मीडिया मैनेज हो रही है। मीडिया को मैनेज करने के मामले पर तो अरविन्द केजरीवाल का चेहरा सबके सामने आ गया है। उनकी पोल खुल गई है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में अरविन्द केजरीवाल और पुण्यप्रसून वाजपेयी क्या कर रहे हैं? उनकी बातचीत से साफ जाहिर हो रहा है कि मीडिया को मैनेज किया जा रहा है। पत्रकारिता धर्म का उल्लंघन किया जा रहा है। सवाल पूछने की परंपरा का शुभारम्भ करने के लिए अरविन्द केजरीवाल प्रशन्सा के पात्र हैं। लेकिन केजरीवाल को समझना होगा कि उन्हें सिर्फ सवाल पूछने का ही अधिकार नहीं है, जवाब देने की जिम्मेदारी से वे भी नहीं बच सकते। राजनीतिक बदलाव की बात करने वाले अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के अब तक के सफर का आकलन करने पर कई सवाल बनते हैं। कुछ सवाल अरविन्द केजरीवाल से हैं, जिनके जवाब उन्हें देना चाहिए, क्योंकि जनता जानना चाहती है।
          आआपा के मुखिया अरविन्द केजरीवाल से सबसे पहला सवाल तो यही बनता है कि आपने अन्ना का साथ क्यों छोड़ा? जबकि आप कहते थे कि जो अन्ना कहेंगे वही होगा? फिर क्या कारण रहे कि अन्ना को छोड़कर राजनीतिक पार्टी बनाने की ठान ली? इस सवाल का गोलमोल जवाब अरविन्द कई बार देते हैं कि उन्हें राजनीति में आने के लिए बाध्य किया गया। लेकिन यह सम्पूर्ण जवाब नहीं है। जनता तो अब मानने लगी है कि आपने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए अन्ना हजारे का इस्तेमाल किया। भ्रष्टाचार के प्रति जनता के गुस्से को आपने कैश कराया। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन खड़ाकर राजनीति में पहुंचने के लिए रास्ता बनाया। अन्ना हजारे कहते हैं कि अरविन्द अब बदल गया है। वह सत्ता लोलुप हो गया है। क्या आप सत्ता लोलुप हैं? यदि नहीं तो मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए आप अपने बच्चों की सौंगध को कैसे भूल गए? ऐसा तो कोई कुटिल राजनीतिज्ञ ही कर सकता है। आपने तो जिस पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोला था, उसी पार्टी से समर्थन लेकर सरकार बना ली। आप मुख्यमंत्री बन गए। आखिर क्या कारण रहे इसके पीछे? 
         अरविन्द केजरीवाल से एक अहम सवाल। यह सवाल आजकल हरकोई उनसे पूछ रहा है लेकिन वे ईमानदारी भरा जवाब नहीं दे रहे। आपकी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है या फिर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ? केन्द्र की यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई लड़ाई आखिर नरेन्द्र मोदी के विरोध तक कैसे पहुंच गई? जबकि नरेन्द्र मोदी तो स्वयं ही भ्रष्टाचार का विरोध कर रहे हैं। फिर आप नरेन्द्र मोदी के विरोध में हंगामा करके क्या जताना चाहते हैं? कहीं आप कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब तो नहीं देख रहे? जिस तरह दिल्ली विधानसभा से पूर्व कांग्रेस को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी पार्टी बताकर आपने जीत हासिल की और चुनाव के बाद उसी पार्टी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली की कुर्सी पर बैठ गए। मुख्यमंत्री बनने के लिए आपने अपने सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी। तमाम घोटालों के लिए दोषी पार्टी का समर्थन ले लिया। इसके बाद 49 दिन तक जिस तरह से आपकी सरकार चली, उससे आपकी नेक-नीयत पर भी कई सवाल खड़े हुए। क्या कारण था कि सरकार में आने के बाद आपने कॉमनवेल्थ गेम में हुए भ्रष्टाचार के मामले में दोषी लोगों के खिलाफ एफआईआर नहीं कराई? जबकि अन्ना आंदोलन के दौरान आप माइक पर चीख-चीखकर कहते थे कि हमारे पास सुबूत हैं। हम एफआईआर कराएंगे इस मामले में। आपके मुताबिक शीला दीक्षित भ्रष्टाचार की पर्याय थीं तो क्या कारण रहे कि सरकार में आने के बाद भी आपने शीला दीक्षित को जेल नहीं भिजवाया? आपने सरकार में आने के बाद शीला दीक्षित के एक भी घोटाले की जांच के आदेश जारी क्यों नहीं किए? संभवत: मुख्यमंत्री बनने के लिए आपने कांग्रेस से समर्थन ही इन्हीं शर्तों पर लिया होगा कि आप कांग्रेस के भ्रष्टाचार को भूल जाएंगे।  
           अरविन्द केजरीवाल की नाटकीय और विरोधाभास से भरी राजनीति में बेचारी दिल्ली की जनता खुद को ठगा-सा महसूस कर रही है। उसकी उम्मीदों को जोर का झटका जोर से लगा है। दु:खों का पहाड़ छोटा होगा, इस आस में जिस पर भरोसा दिखाया वह तो जिम्मेदारी से भाग खड़ा हुआ। दरअसल केजरीवाल को भ्रम हो गया है कि दिल्ली के विधानसभा चुनाव में उन्हें जिस तरह आशा के विपरीत सफलता मिली, उसी तरह आम चुनाव में भी वे अच्छी तादाद में सीटें जीत लेंगे। अब उनकी नजर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। यही कारण है कि केजरीवाल ने दिल्ली की जनता को उसके हाल पर छोड़कर प्रधानमंत्री की कुर्सी की ओर दौड़ लगा दी है। दिल्ली की जनता की ओर से अरविन्द केजरीवाल से कुछ और सवाल हैं। आपने मुख्यमंत्री बनने से पूर्व घोषणा की थी कि आम आदमी पार्टी की सरकार बनी तो दिल्ली में ठेकाप्रथा को खत्म करेंगे। विभिन्न विभागों में ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों को स्थायी नौकरी देंगे? मुख्यमंत्री बनने के बाद कितने कर्मचारियों को स्थायी नौकरी दी? आपने दिल्लीवासियों से वादा किया था कि सरकार में आए तो बिजली के बिल माफ किए जाएंगे? क्या हुआ आपके इस वादे का? आपने वादा किया था दिल्लीवासियों से कि सबको पानी दिया जाएगा मुफ्त में। क्या हुआ आपके इस वादे का? दिल्ली के कई इलाके क्यों प्यासे रह गए?  
          अरविन्द केजरीवाल क्या आपका आचरण दोहरा है? आपकी ईमानदारी और नैतिकता के मापदण्ड अपने लोगों के लिए अलग हैं और दूसरी पार्टियों के नेताओं के लिए अलग। महिलाओं को प्रताडि़त करने का गंभीर आरोप आआपा के नेता सोमनाथ भारती पर लगा। वेबसाइट के माध्यम से अवैध तरीके से लोगों को ठगने का आरोप भी सोमनाथ भारती पर लगा। इसके बावजूद आपने क्यों नहीं सोमनाथ भारती को पार्टी से बाहर किया? क्यों नहीं आपने आरोपों की जांच कराई? क्यों नहीं आपने सोमनाथ भारती के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई? आम आदमी पार्टी के अन्य नेताओं के संबंध में भी आपका यही स्टैण्ड रहा। आपके ये दोहरे मापदण्ड आखिर क्या जाहिर करते हैं? क्या ऐसे राजनीतिक बदलाव आएगा? 
          अरविन्द केजरीवाल राजनीतिक बदलाव की बात करते हैं। उनकी वेबसाइट पर दावा किया गया है कि वे औरों से अलग हैं। उनकी राजनीति साफ-सुथरी है। उनकी पार्टी का एजेण्डा है भ्रष्टाचार को खत्म करना। देश के सामने सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। लेकिन, हकीकत यह है कि आआपा कहीं से भी औरों से अलग नहीं है। अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी वोट बैंक की संकीर्ण राजनीति में कूद पड़ी है। मुस्लिम वोटों को अपनी झोली में करने के लिए आपकी पार्टी के एक जिम्मेदार नेता कश्मीर पर बेहद ओछा और आपत्तिजनक बयान देते हैं। लेकिन, आपने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि यह उनकी निजी राय है। यह तो बाकि की पार्टियां भी करती हैं। फिर आप सबसे अलग होने का दावा किस आधार पर करते हैं? किसी दूसरे की बात तो छोडि़ए जनाब आप तो खुद की ही बताइए।  'सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा है।' आपने मुस्लिमों के बीच इंडियन इस्लामिक कल्चर सेंटर में यह बयान देकर क्या मुस्लिमों का नया रहनुमा बनने की कोशिश की है? आपकी बदली हुई चाल देखकर शंका होती है कि आप कैसे देश को वैकल्पिक राजनीति देंगे? आपके बदलते रंग देखकर तो यही लग रहा है कि आप भी तुष्टीकरण की राजनीति को बढ़ावा देंगे।
          आखिर में बिना किसी भूमिका के कुछ सवाल अरविन्द केजरीवाल से हैं। आपकी ही पार्टी की एक महिला नेता ने आप पर आरोप लगाया कि बहुत से काम जनता की राय से करने वाले अरविन्द टिकट बांटने में क्यों जनता की राय नहीं मांगते? आपकी वेबसाइट पर लिखा है कि आआपा में कोई हाईकमान नहीं है। लेकिन, दुनिया को तो पता है कि आपकी मर्जी के बगैर कुछ भी नहीं होता? आम आदमी पार्टी की वेबसाइट पर 'हम औरों से अलग क्यों' सेक्शन में झूठों की भरमार है। जैसे आपके विधायक और मंत्री लालबत्ती नहीं लेंगे। सरकारी बंगले में नहीं रहेंगे। लेकिन आपके नेताओं ने सरकारी बंगले लिए। बत्ती लगाकर भी घूमे। आखिर क्यों? आपने भी तो अब तक सरकारी बंगला खाली नहीं किया। जबकि अब आप मुख्यमंत्री नहीं हैं। 
         आम आदमी होने का दंभ भरने और आम आदमी के जैसा दिखने के लिए आपने खूब ड्रामे किए हैं। संभवत: आप इसमें सिद्धहस्त हैं। माहिर हैं। धरना और प्रदर्शन में आपकी विशेषज्ञता है। खैर, सीधा सवाल है कि आप तो आम आदमी है। यदि गुजरात के पुलिसकर्मी ने कुछ पूछताछ के लिए आपको रोक लिया तो इतना हंगामा क्यों खड़ा कर दिया आपने और आपकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने? खुद को आम आदमी साबित करने के लिए गणतंत्र दिवस के मौके पर आपने कहा था कि आप जनता के बीच बैठकर परेड देखेंगे लेकिन टीवी पर आप यूपीए के मंत्रियों के साथ बैठे दिखाई दिए। यूपीए के मंत्रियों के साथ आपके क्या कनेक्शन हैं? जनता को मालूम है कि आप इन सवालों के जवाब नहीं देंगे। आप ही की पार्टी के टिकट पर चुनाव जीते विनोद कुमार बिन्नी ने भी आपसे बहुत से सवाल पूछे थे लेकिन आपने उनके एक भी सवाल का जवाब आज तक नहीं दिया है। मीडिया के सवालों के भी जवाब नहीं दिए हैं। फिर आम जनता की आप क्यों सुनेंगे। लेकिन, ये पब्लिक है बॉस सब जानती है। 

मंगलवार, 11 मार्च 2014

ये लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं

 अ रविन्द केजरीवाल आहिस्ता-आहिस्ता संदिग्ध होते जा रहे हैं। उनका काम करने का तरीका भी ड्रामैटिक है। आम आदमी पार्टी के गठन के बाद देशवासियों को नई तरह की राजनीति की एक उम्मीद नजर आई थी। हालांकि सवाल तो आम आदमी पार्टी (आआपा) के गठन के साथ ही उठने लगे थे, अरविन्द केजरीवाल की मंशा पर। अन्ना का आंदोलन छोड़कर (कैश कराकर) राजनीतिक पार्टी बनाने की जरूरत क्या थी? अन्ना हजारे के विरोध के बाद भी केजरीवाल रुके क्यों नहीं? फिर भी आआपा से एक उम्मीद थी, जो अब धूमिल होती नजर आ रही है। अरविन्द केजरीवाल की नई तरह की राजनीति का आशय अगर हंगामा खड़ा करने से था तो यह विशाल लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है। आआपा के राजनीतिक स्टंट और स्टैण्ड भी गड़बड़ा गए हैं। मुस्लिम वोटों के लालच में केजरीवाल के लिए सांप्रदायिकता बड़ा मसला हो गया है, भ्रष्टाचार कहीं पीछे छूट गया है। जिसके खिलाफ चुनाव लड़ा, चुनाव से पूर्व जिसे पानी पी-पीकर कोसा, उसी के कंधे पर सवार होकर दिल्ली सरकार की कुर्सी पर विराजमान हो गए। जिसे महाभ्रष्ट बताया, उसी के समर्थन से सरकार बना ली। 'हम किसी से समर्थन न लेंगे और न देंगे' सार्वजनिक मंच से बच्चों की सौगंध लेकर की गई इस घोषणा को सत्ता लोलुप आम आदमी पार्टी के कर्ताधर्ता अरविन्द केजरीवाल ने भूलने में ज्यादा वक्त नहीं लगाया। आम आदमी पार्टी के व्यवहार से आरोप सच साबित होते दिख रहे हैं कि यह कांग्रेस की 'बी' पार्टी है। ईश्वर से प्रार्थना है कि यह सच न हो वरना वैकल्पिक राजनीति की बात करने वाले किसी भी सद्चरित्र व्यक्ति पर कोई भरोसा नहीं करेगा। खैर, यह तो साफ दिखने लगा है कि यूपीए सरकार के महाभ्रष्ट आचरण के खिलाफ शुरू हुई आम आदमी पार्टी की मुहिम अब भाजपा और नरेन्द्र मोदी विरोध में तब्दील होती दिख रही है। कह सकते हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई ये लड़ाई कम से कम अब तो भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं है।
आम चुनाव के नजदीक आते-आते अरविन्द केजरीवाल के प्रमुख टारगेट नरेन्द्र मोदी हो गए हैं, जबकि मोदी स्वयं भ्रष्ट सरकार को हटाकर व्यवस्था परिवर्तन की बात देशभर में कर रहे हैं। केजरीवाल भ्रष्ट सरकार को हटाने की मांग तो अब करते नहीं दिख रहे बल्कि भ्रष्ट सरकार को सत्ता से बेदखल करने वाले मोदी का विरोध करते जरूर दिख रहे हैं। इसका क्या आशय निकाला जाए? आआपा भ्रष्टाचार के खिलाफ है या नरेन्द्र मोदी के? अरविन्द केजरीवाल से यह सवाल पूछने वाले लोगों की खासी तादाद है। अन्य नेताओं के निजी विमान में यात्रा करने पर हंगामा खड़ा करते आए केजरीवाल इंडिया टुडे ग्रुप के आयोजन में निजी विमान से पहुंचे। इंडिया टुडे ग्रुप के इस कॉन्क्लेब में कई प्रबुद्ध लोगों ने केजरीवाल से यही सवाल पूछा। जिसका सटीक जवाब केजरीवाल नहीं दे सके। अन्य कई सवालों पर भी उनके पास कोई बहाना नहीं था। देशभर में सवाल पूछते घूम रहे केजरीवाल 'आपकी अदालत' में भी पत्रकार रजत शर्मा के सवालों के जवाब नहीं दे सके। अरविन्द केजरीवाल के सही-गलत के पैमाने भी अलग-अलग हैं। अपनों के लिए अलग और दूसरों के लिए अलग। किसी पार्टी के नेता पर भ्रष्टाचार या कानून तोडऩे का आरोप मात्र लगे तो केजरीवाल चाहते हैं कि उस पर तत्काल कार्रवाई की जाए। निश्चित ही कार्रवाई की जानी चाहिए, जरूर की जानी चाहिए। भ्रष्टाचार रोकने के लिए यह बेहद जरूरी है। तत्काल जांच कराने के बाद उक्त भ्रष्ट नेता को न केवल पार्टी से बाहर करना चाहिए बल्कि जेल भी भेजना चाहिए। भ्रष्टाचार की रकम भी वसूल करनी चाहिए। लेकिन, केजरीवाल की नीयत पर तब सवाल उठते हैं, जब उनकी पार्टी के नेताओं पर आरोप लगते हैं और उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। महिलाओं को प्रताडि़त करने का गंभीर आरोप आआपा के नेता सोमनाथ भारती पर लगा। वेबसाइट के माध्यम से अवैध तरीके से लोगों को ठगने का आरोप भी सोमनाथ भारती पर लगा। लेकिन, नतीजा क्या हुआ। ४९ दिन की दिल्ली सरकार में आखिर तक सोमनाथ भारती कानून मंत्री के पद पर सुशोभित होते रहे। अरविन्द केजरीवाल के ये दोहरे मापदण्ड आखिर क्या जाहिर करते हैं? क्या ऐसे राजनीतिक बदलाव आएगा?
अरविन्द केजरीवाल आजकल एक आरोप नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी पर लगा रहे हैं कि दोनों अंबानी की जेब में हैं। उनका कहना है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी अंबानी से चंदा ले रहे हैं। अगर इनकी सरकार केन्द्र में आई तो बदले में अंबानी को फायदा पहुंचाया जाएगा। असल में सरकार अंबानी के इशारे पर चलेगी। यानी अरविन्द कहना चाहते हैं कि जिससे चंदा लिया जाता है, सरकार उसके इशारे पर चलती है। फिर तो अरविन्द केजरीवाल से गंभीर सवाल बनता है। उनकी पार्टी को विदेशी लोगों और संस्थाओं से भारी मात्रा में चंदा मिल रहा है। विदेश से चंदा तो और अधिक संदिग्ध हो जाता है। अंबानी से चंदे पर सवाल उठाते अरविन्द यह क्यों नहीं बताते कि उनकी पार्टी किन शर्तों और संधि के आधार पर विदेशी नागरिकों और संस्थाओं से चंदा ले रही है? अगर अरविन्द सरकार में आते हैं तो इस विदेशी चंदे के बदले देश को क्या कीमत चुकानी पड़ेगी? आम आदमी पार्टी की वेबसाइट के मुताबिक ही आआपा को ७ मार्च २०१४ की तारीख तक ७३.६ प्रतिशत चंदा भारत के लोगों और संस्थाओं से मिला है। जबकि २६.४ प्रतिशत चंदा विदेशी लोगों और संस्थाओं से मिला है। सबसे अधिक ९.५ प्रतिशत यूनाईटेड स्टेट्स, ४.६ प्रतिशत यूनाईटेड अरब अमीरात इसके अलावा यूनाईटेड किंगडम सहित अन्य देशों से आम आदमी पार्टी को फंड मिल रहा है। अरविन्द केजरीवाल में दिल्ली की जनता ने भरोसा दिखाया था लेकिन केजरीवाल पहले तो कहे से पलटे और सरकार बनाई फिर जिम्मेदारी से भाग गए। दिल्ली की जनता से किए गए बिजली-पानी सहित अन्य वादे आज भी वहीं की वहीं हैं। बुजुर्ग कह गए हैं कि काठ की हांड़ी बार-बार नहीं चढ़ती। आम चुनाव में धोखे-धड़ाके से यदि काठ की हाड़ी चढ़ भी जाए तो क्या अरविन्द केजरीवाल बताएंगे कि अरब अमीरात और यूनाईटेड स्टेट्स सहित अन्य देशों की जेब में होगी सरकार? 
      अरविन्द केजरीवाल अपनी बात से इतनी अधिक बार पलटी मार चुके हैं कि उनके संबंध में एक लोकप्रचलित कहावत बन गई है - 'यू टर्न यानी केजरीवाल टर्न।Ó उनकी पार्टी का मुख्य एजेण्डा है भ्रष्टाचार को खत्म करना। अब तक आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया अरविन्द केजरीवाल के लिए भ्रष्टाचार ही देश का सबसे बड़ा मुद्दा था। इसी मुद्दे पर उन्हें दिल्ली में अभूतपूर्व सफलता हाथ लगी थी। लेकिन, अब वे मुस्लिम वोटों पर डोरे डालने लगे हैं। वोट बैंक की सस्ती राजनीति में अब आआपा भी कूद पड़ी है। आआपा सांप्रदायिकता का कार्ड खेल रही है। 'सांप्रदायिकता भ्रष्टाचार से बड़ा मुद्दा है।' केजरीवाल ने मुस्लिमों के बीच इंडियन इस्लामिक कल्चर सेंटर में यह बयान देकर मुस्लिमों का नया रहनुमा बनने की कोशिश की है। आआपा के चोटी के नेता प्रशांत भूषण के कश्मीर मसले पर दिए गए बयान को भी इसी संदर्भ में देखने की जरूरत है। राजनीतिक बदलाव की बात करने वाली पार्टी आआपा भारतीय राजनीति के उसी मार्ग पर आगे बढ़ रही है जिस पर अन्य पार्टियों के पग चिन्ह हैं। आम आदमी पार्टी जातिवादी की राजनीति से भी अछूति नहीं है। पूर्व पत्रकार आशुतोष गुप्ता को दिल्ली में चांदनी चौक से टिकट देना, जातिवाद की राजनीति का बेहतरीन नमूना है। अरविन्द केजरीवाल को लगता है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्हें जो हाईप मिली उसे आम चुनाव में भुना लेना चाहिए। लोकप्रियता बरकरार रखने, मीडिया में छाए रहने और चर्चा का विषय बने रहने के लिए वे राजनीति के नए-नए पैंतरे चल रहे हैं। टिपीकल राजनीतिज्ञ बनने की दिशा में अरविन्द बढ़ रहे हैं। आआपा के गठन से राजनीति में भले बदलाव न दिख रहा हो लेकिन अरविन्द केजरीवाल में आमूलचूल परिवर्तन दिख रहा है। यह भी कह सकते हैं कि अरविन्द के व्यक्तित्व, सोच और विचारधारा पर पड़ा आवरण अब हट रहा है। अरविन्द केजरीवाल अपने मूल में प्रकट हो रहे हैं। अन्ना हजारे भी कहते हैं कि अरविन्द अब सत्ता लोलुप हो गया है। उसकी नजर कुर्सी पर है। कुर्सी पाने में या नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से रोकने में अरविन्द केजरीवाल कितने सफल होते हैं, जल्द ही इसका फैसला हो जाएगा। आम आदमी पार्टी और अरविन्द केजरीवाल की राजनीति का आकलन करते समय हमें यह कतई नहीं भूलना चाहिए कि अरविन्द केजरीवाल एण्ड टीम ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए अन्ना हजारे का जमकर इस्तेमाल किया है। केजरीवाल एण्ड टीम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए आंदोलन से राजनीति में आने की अपनी राह बनाई है। आम आदमी पार्टी के जन्म से लेकर अब तक के सफर से तस्वीर कुछ साफ हो गई है। भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुई यह लड़ाई अब कम से कम भ्रष्टाचार के खिलाफ नहीं दिखती।