सोमवार, 30 जुलाई 2018
सेकुलर-लिबरल साहित्यकारों की असहिष्णुता को उजागर करती एक पुस्तक ‘हम असहिष्णु लोग’
रविवार, 29 जुलाई 2018
चिंतनशील युवाओं को जोड़ने का प्रयास है "यंग थिंकर्स कॉन्क्लेव"
मंगलवार, 17 जुलाई 2018
हामिद अंसारी का शरीयत और जिन्ना प्रेम
रविवार, 15 जुलाई 2018
कांग्रेस से छूट नहीं पा रही हिंदू विरोध और मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति
कठघरे में चर्च से संचालित संस्थाएं
रविवार, 8 जुलाई 2018
पहली बारिश की सौंधी सुगंध-सी हैं 'रिश्तों की बूंदें'
गुरुवार, 5 जुलाई 2018
‘सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा’ की ओर बढ़ते कदम
भारत सरकार के प्रकाशन विभाग की पत्रिका 'योजना' के जुलाई-2018 के अंक में प्रकाशित |
- जगदीश उपासने एवं लोकेन्द्र सिंह
किसी भी राष्ट्र की पहचान उसके मानव संसाधन से बनती है। जबकि श्रेष्ठ मानव संसाधन शिक्षा व्यवस्था पर निर्भर करता है। एक सामान्य किंतु महत्वपूर्ण बात सभी जानते हैं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति वहाँ के नागरिकों पर निर्भर करती है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त किए हुए नागरिक ही अपने देश की प्रगति में सहयोग कर सकते हैं। शिक्षित नागरिक ही अपने देश को प्रगति के पथ पर आगे ले जाने में सक्षम होते हैं। स्वामी विवेकानंद ने शिक्षा के महत्व को समझाते हुए यहाँ तक कहा है कि 'यदि शिक्षा से सम्पन्न राष्ट्र होता तो आज हम पराभूत मन:स्थिति में न आए होते।' भारत में स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हुए जिन्होंने नागरिकों को शिक्षित बनाने पर सर्वाधिक जोर दिया। भारत जैसे विविधता सम्पन्न और विशाल देश में अब भी शिक्षा सब तक नहीं पहुँच सकी है। अनेक स्थानों पर शिक्षा के उपक्रम प्रारंभ तो हो गए किंतु उसमें गुणवत्ता नहीं है। दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत की शिक्षा व्यवस्था में भारतीय दृष्टिकोण ही नदारद है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने अपने पहले साल से ही शिक्षा में गुणात्मक एवं भारतीय दृष्टिकोण के अनुसार सुधार का शुभ संकल्प ले लिया था। सरकार के संकल्प 'सबको शिक्षा-अच्छी शिक्षा' की पूर्ति के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय योजनाबद्ध तरीके से निरंतर कार्य कर रहा है। पिछले चार वर्ष में स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उच्च शिक्षा में भी महत्वपूर्ण आवश्यक कदम सरकार ने उठाए हैं। शिक्षा के दोनों स्तर पर जितने भी प्रयास हुए हैं, सराहनीय हैं।