बुधवार, 30 दिसंबर 2020

आओ, आत्मनिर्भरता का संकल्प लें

स्वदेशी का विरोध करने वाले असल में भारत विरोधी


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में ‘आत्मनिर्भर भारत का संकल्प’ लेने का बहुत महत्वपूर्ण आह्वान किया है। कोविड-19 ने हमें बहुत नुकसान पहुँचाया है, तो कई महत्वपूर्ण सबक भी दिए हैं, जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण है- आत्मनिर्भरता का सबक। देश में जब लॉकडाउन था, तब प्रधानमंत्री मोदी ने देश को ‘लोकल फॉर वोकल’ का नारा दिया था, जिसका असर पिछले कुछ महीनों में देखा गया है। भारत के नागरिकों में स्वदेशी के प्रति भावना प्रबल हुई है। इस वर्ष बड़े त्यौहारों पर भी लोगों ने बाहरी कंपनियों की जगह स्थानीय उत्पाद खरीदने में रुचि दिखाई। यही कारण है कि हमारी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद होने से स्थानीय व्यावसायी और कामगारों के मन में उपजी निराशा ‘लोकल फॉर वोकल’ के कारण दूर हो रही है। यदि हम ही अपने उत्पादों को प्रोत्साहित नहीं करेंगे, तब देश आर्थिक तौर पर कैसे सशक्त होगा?

आश्चर्य होता है कि कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों को स्वदेशी को बढ़ावा देने से चिढ़ क्यों होती है? वे विदेशी कंपनियों के पक्षधर और स्वदेशी कंपनियों के विरोधी नजर आते हैं। स्वदेशी कंपनियों के विरुद्ध नकारात्मक वातावरण बनाने में बुद्धिजीवियों का एक वर्ग सदैव अग्रणी रहता है। उनके इस विमर्श को समझने की आवश्यकता है। यह मानसिक गुलामी की स्थिति है या फिर विदेशी फंडिंग का प्रभाव? दोनों ही स्थितियां त्याज्य हैं। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के निर्माताओं और उद्योग जगत से आग्रह किया है कि “देश के लोगों ने मजबूत कदम आगे बढ़ाया है, वोकल फॉर लोकल आज घर-घर में गूंज रहा है। ऐसे में अब यह सुनिश्चित करने का समय है कि हमारे उत्पाद विश्वस्तरीय हों। जो भी वैश्विक स्तर पर श्रेष्ठ है, उसे हम भारत में बनाकर दिखाएं। इसके लिए हमारे उद्यामी साथियों को आगे आना है। स्टार्टअप को भी आगे आना है”। प्रधानमंत्री मोदी के इस आह्वान में देश को आर्थिक शक्ति बनाने का बड़ा संकल्प शामिल है। आत्मनिर्भर भारत के शुभ संकल्प की पूर्ति में भारत के आम नागरिकों एवं सज्जनशक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है। स्वदेशी के विरुद्ध चलने वाले सभी प्रकार के नकारात्मक विमर्शों को निष्प्रभावी करके ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में आगे बढऩा होगा। अपने स्थानीय एवं स्वदेशी उद्यमियों को प्रोत्साहित करना होगा। 

एक जनवरी पर नये कैलेंडर वर्ष के लिए संकल्प लेने का चलन बन गया है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक सकारात्मक विचार हमारे सामने रखा है कि क्या हम नये वर्ष में भारत में बने उत्पादों का उपयोग करने का संकल्प ले सकते हैं? उन्होंने कहा- “मैं देशवासियों से आग्रह करूंगा कि दिनभर इस्तेमाल होने वाली चीजों की आप एक सूची बनाएं। उन सभी चीजों की विवेचना करें और यह देखें कि अनजाने में कौन-सी विदेश में बनी चीजों ने हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया है तथा एक प्रकार से हमें बंदी बना दिया है। भारत में बने इनके विकल्पों का पता करें और यह भी तय करें कि आगे से भारत में बने, भारत के लोगों के पसीने से बने उत्पादों का हम इस्तेमाल करें”।

   

         स्वदेशी जागरण मंच का नारा है- ‘चाहत से देसी, जरूरत से स्वदेशी और मजबूरी में विदेशी’। स्वदेशी के इस सूत्र को ध्यान में रखकर हमें एक सूची बनानी चाहिए कि इस वर्ष हम किन स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग करेंगे? यह भी सूची बना सकते हैं कि किन वस्तुओं को भारत में बनाए जाने की अपेक्षा आप भारत के निर्माताओं, उद्योग जगत और स्टार्टअप से करते हैं। इससे भारत का उद्योग जगत आपकी अपेक्षाओं से भी अवगत हो सकेगा। यदि हम सही में भारत को सशक्त करना चाहते हैं, तब हमें स्वदेशी के विचार को न केवल मजबूत बनाना होगा, बल्कि अपनी जीवन में भी उतारना होगा।

मंगलवार, 15 दिसंबर 2020

ये चाय बहुत खास है

भारत में कुछ बुद्धिजीवियों ने गाय को विवाद विषय बना दिया है, जबकि गाय तो प्रेम और वात्सल्य की मूर्ति है। यह तो दिलों का मेल कराती है। 

गाँव में अपरिचित परिवार में सुबह-सुबह यह चाय गाय माता ने ही नसीब कराई है। 

हुआ यह कि हम पांच लोग इंदौर से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए निकले।

एक गाँव से गुजर रहे थे तो सड़क किनारे एक घर देखा, वहां चार-पांच गाय थी। सुबह का समय था तो गांव के शुद्ध वातावरण में गाय के शुद्ध दूध की चाय पीने का मन हुआ। हमने गाड़ी रोकी। हमारे साथ अभियंता श्री संजय चौधरी थे, उन्होंने गाड़ी से उतर कर सूर्य देवता को नमन किया। इसी क्रम में अपन राम ने गाड़ी में बैठे-बैठे गाय माता को प्रणाम किया। 

संजय जी ने आंगन में पहुंच कर आवाज दी। घर से एक पुरुष बाहर निकल कर आया। संजय जी ने उसको निवेदन किया कि "भाई साहब, यदि गाय के दूध की चाय मिल जाये तो दिन बन जायेगा"। उन सज्जन ने कहा कि हम चाय बनाने का काम नहीं करते हैं। हालांकि, सड़क किनारे घर होने से कई बार लोग पूछते हैं। हम सबको मना कर देते हैं। लेकिन, आपको अवश्य पिलायेंगे"। यह कहते हुए उस सज्जन के चेहरे पर आत्मीयता और आतिथ्य का भाव स्पष्ट दिख रहा था। 

हम उनकी यह बात सुनकर हैरान हुए कि ये किसी चाय नहीं बनाते, लेकिन हमारे लिए बना रहे हैं। ऐसा क्यों है? 

हम सबकी चाय पीने की इच्छा पूरी हो रही थी। ऐसे में यह प्रश्न बेमानी था कि वे हमारे लिए चाय बनवाने के लिए तैयार क्यों हुए? परंतु मैं अपनी इस जिज्ञासा को अधिक देर तक दबा नहीं सका। 

मैंने उत्सुकता दिखाते हुए पूछ ही लिया कि "आपकी इस कृपा का कारण क्या है"?

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा- "यह मेरी कृपा नहीं, बल्कि गाय माता की कृपा है। मैंने आपको गाय को प्रणाम करते हुए देख लिया था। मन में विचार आया कि ये भले लोग हैं जो गाय के प्रति श्रद्धा रखते हैं। अन्यथा, आजकल तो लोग गाय का मांस खाने की होड़ लगाते हैं। जब मैंने अपनी पत्नी को कहा कि दो गाड़ियां हमारे घर बाहर आकर खड़ी हुई हैं। उसमें बैठे लोगों ने हमारी गायों के सामने झुककर हाथ जोड़े हैं। उसे भी अच्छा लगा"। 

हमारी बातचीत चल ही रही थी कि उस किसान की पत्नी और घर की मालकिन बाहर ट्रे में चाय के कप लेकर निकलीं। कप से उठ रही वाष्प के साथ अदरक और इलायची की सुगंध भी बता रही थी कि यह चाय बहुत विशेष है। 

हम सबने उस गोसेवी किसान परिवार के आंगन में बैठकर चाय की चुस्कियां लीं। बाद में, जब हम जाने लगे तो संजय जी ने उन सज्जन को सौ रुपये देना चाहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। संजय जी ने घर की मालकिन को अपनी बहन मानते हुए उसको पैसे देने का प्रयास किया तो उसने भी कह दिया- "भला कोई बहन चाय के बदले अपने भाइयों से पैसे लेगी"। 

हम सबके लिए वह क्षण एक आत्मीय और मन को आनंदित करने वाला बन गया। यकीनन, भारत गांव में बसता है। गांव और गाय, हमारे जीवन के अभिन्न अंग हैं। 

गो-माता की जय... 

रविवार, 13 दिसंबर 2020

‘आरएसएस 360’: संघ की पूर्ण प्रतिमा

इस वीडियो ब्लॉग में देखें 'आरएसएस 360' की जानकारी


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस, 2025 में अपनी यात्रा के 100 वर्ष पूरे कर लेगा। यह किसी भी संगठन के लिए महत्वपूर्ण बात होती है कि इतने लंबे कार्यकाल में उसका निरंतर विस्तार होता रहे। अपने 100 वर्ष की यात्रा में संघ ने समाज का विश्वास जीता है। यही कारण है कि जब मीडिया में आरएसएस को लेकर भ्रामक जानकारी आती है, तब सामान्य व्यक्ति चकित हो उठता है, क्योंकि उसके जीवन में आरएसएस सकारात्मक रूप में उपस्थित रहता है, जबकि आरएसएस विरोधी ताकतों द्वारा मीडिया में उसकी नकारात्मक छवि प्रस्तुत की जाती है। संघ ने लंबे समय तक इस प्रकार के दुष्प्रचार का खण्डन नहीं किया। अब भी बहुत आवश्यकता होने पर ही संघ अपना पक्ष रखता है। दरअसल, इसके पीछे संघ का विचार रहा है कि- ‘कथनी नहीं, व्यवहार से स्वयं को समाज के समक्ष प्रस्तुत करो’। 1925 के विजयदशमी पर्व से अब तक संघ के स्वयंसेवकों ने यही किया। परिणामस्वरूप, सुनियोजित विरोध, कुप्रचार और षड्यंत्रों के बाद भी संघ अपने ध्येय पथ पर बढ़ता रहा। इसी संदर्भ में यह भी देखना होगा कि जब भी संघ को जानने या समझने का प्रश्न आता है, तब वरिष्ठ प्रचारक यही कहते हैं- ‘संघ को समझना है तो शाखा में आना होगा’। अर्थात् शाखा आए बिना संघ को नहीं समझा जा सकता। यह सत्य है कि किसी पुस्तक को पढ़ कर संघ की वास्तविक प्रतिमा से परिचित नहीं हुआ जा सकता। किंतु, संघ को नजदीक से देखने वाले लेखक जब कुछ लिखते हैं, तब उनकी पुस्तकें संघ के संबंध में प्राथमिक और सैद्धांतिक परिचय करा ही देती हैं। इस क्रम में सुप्रसिद्ध लेखक रतन शारदा की पुस्तक ‘आरएसएस 360’ हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के और नजदीक ले जाती है। यह पुस्तक संघ पर उपलब्ध अन्य पुस्तकों से भिन्न है। दरअसल, पुस्तक में संघ के किसी एक पक्ष को रेखांकित नहीं किया गया है और न ही एक प्रकार के दृष्टिकोण से संघ को देखा गया है। पुस्तक में संघ के विराट स्वरूप को दिखाने का प्रयास लेखक ने किया है। 

लेखक रतन शारदा (Ratan Sharda)

लेखक रतन शारदा ने संघ की अविरल यात्रा का निकट से अनुभव किया है। उन्होंने संघ में लगभग 50 वर्ष विभिन्न दायित्वों का निर्वहन किया है। इसलिए उनकी पुस्तक में संघ की यात्रा के लगभग सभी पड़ाव शामिल हो पाए हैं। चूँकि संघ का स्वरूप इतना विराट है कि उसको एक पुस्तक में प्रस्तुत कर देना संभव नहीं है। इसके बाद भी यह कठिन कार्य करने का प्रयास किया गया है। यह पुस्तक भ्रम के उन जालों को भी हटाने का महत्वपूर्ण कार्य करती है, जो हिटलर के प्रचार मंत्री गोएबल्स की संतानों ने फैलाए हैं। आज बहुत से लोग संघ के संबंध में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं। ऐसे जिज्ञासु लोगों के लिए यह पुस्तक बहुत महत्वपूर्ण है। स्वयं लेखक ने लिखा है कि “इस पुस्तक का जन्म मेरी उस इच्छा से हुआ था कि जो लोग संघ से नहीं जुड़े हैं या जिनको जानकारी नहीं है, उन्हें आरएसएस के बारे में बताना चाहिए”। पुस्तक पढ़ने के बाद संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से लेकर प्रबुद्ध वर्ग की प्रतिक्रियाएं भी इस बात की पुष्टी करती हैं कि पुस्तक अपने उद्देश्य की पूर्ति करती है। सुप्रसिद्ध लेखिका मधु पूर्णिमा किश्वर ने पुस्तक की प्रस्तावना लिखी है। उन्होंने भी उन ताकतों की ओर इशारा किया है, जो संघ के विरुद्ध तो दुष्प्रचार करती ही हैं, संघ की प्रशंसा करने वाले लोगों के प्रति भी घोर असहिष्णुता प्रकट करती हैं।

पुस्तक की सामग्री को तीन मुख्य भागों में बाँटा गया है। भाग-1 को ‘आत्मा’ शीर्षक दिया गया है, जो सर्वथा उपयुक्त है। लेखक ने इस भाग में संघ के संविधान का सारांश प्रस्तुत किया है और संघ की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इसी अध्याय में उस पृष्ठभूमि का उल्लेख आता है, जिसमें डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने संघ की स्थापना की और संघ की स्थापना के उद्देश्य को स्पष्ट किया। संघ का उद्देश्य क्या है? अकसर इस बात को लेकर कुछेक लोगों द्वारा खूब अपप्रचार किया जाता है। संघ का उद्देश्य उसकी प्रार्थना में प्रकट होता है, जिसे संघ स्थान पर प्रतिदिन स्वयंसेवक उच्चारित करते हैं। उस प्रार्थना के भाव को भी इस अध्याय में समझाने का प्रयत्न किया गया है। भाग-2 ‘स्वरूप’ शीर्षक से है, जिसमें संघ के विराट स्वरूप को सरलता से प्रस्तुत किया गया है। शाखा का महत्व, आरएसएस की संगठनात्मक संरचना और प्रचारक पद्धति पर लेखक ने विस्तार से लिखा है। यह अध्याय हमें संघ की बुनियादी संरचना और जानकारी देता है। ‘अभिव्यक्ति’ शीर्षक से भाग-3 में आरएसएस के अनुषांगिक संगठनों की जानकारी है, जिससे हमें पता चलता है कि वर्तमान परिदृश्य में संघ के स्वयंसेवक कितने क्षेत्रों में निष्ठा, समर्पण और प्रामाणिकता से कार्य कर रहे हैं। ‘राष्ट्र, समाज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ में लेखक रतन शारदा ने संघ के उन कार्यों का उल्लेख किया है, जिनको अपना कर्तव्य मान कर संकोचवश संघ बार-बार बताता नहीं है। 1947 में विभाजन की त्रासदी में लोगों का जीवन बचाने का उपक्रम हो, या फिर 1948 और 1962 के युद्ध में सुरक्षा बलों का सहयोग, संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर रहे। देश में आई बड़ी आपदाओं में भी संघ ने आगे बढ़ कर राहत कार्य किए हैं। कोरोना महामारी का यह दौर हमारे सामने है ही, जब सबने देखा कि कैसे संघ ने बड़े पैमाने पर सेवा और राहत कार्यों का संचालन किया। बहरहाल, सामाजिक समरसता और सेवा के क्षेत्र में किए गए कार्यों का प्रामाणिक विवरण ‘आरएसएस 360’ में हमें मिलता है। इसके अतिरिक्त ‘आपातकाल में लोकतंत्र के लिए संघ की लड़ाई’ और ‘संघ कार्य में मील के पत्थर’ जैसे महत्वपूर्ण विवरण के साथ पुस्तक का आरंभ होता है और अंत में पाँच अत्यंत महत्वपूर्ण परिशिष्ट शामिल किए गए हैं। इनमें संघ के अब तक के सरसंघचालकों की संक्षिप्त जानकारी, 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में संघ की भूमिका, 1948 में संघ पर प्रतिबंध की पृष्ठभूमि, प्रतिबंध के विरुद्ध सत्याग्रह के साथ ही संघ, पटेल और नेहरू के पत्राचार को शामिल किया गया है। 

निस्संदेह लेखक रतन शारदा की पुस्तक ‘आरएसएस 360’ पाठकों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संबंध में न केवल आधारभूत जानकारी देती है बल्कि उसके दर्शन, उसकी कार्यपद्धति और उसके उद्देश्य का समीप से परिचय कराती है। आरएसएस के संघर्षपूर्ण इतिहास के पृष्ठ भी हमारे सामने खोलती है। समाज, देश और लोकतंत्र को मजबूत बनाने में संघ के कार्यों का विवरण भी देती है। पूर्व में यह पुस्तक अंग्रेजी में ‘सीक्रेट्स ऑफ आरएसएस डिमिस्टिफायिंग-संघ’ शीर्षक से आई थी, जिसे बहुत स्वागत हुआ। हिन्दी जगत में ऐसी पुस्तक की आवश्यकता थी, इसलिए यहाँ भी यह भरपूर सराही जाएगी। पुस्तक का प्रकाशन ब्लूम्सबरी भारत ने किया है। पुस्तक में लगभग 350 पृष्ठ हैं और इसका मूल्य 599 रुपये है।

स्वदेश में प्रकाशित