किसी ने तुमसे कह दिया- समुन्दर है सबसे धीर-गंभीर
और तुमने मान लिया, बाप ने बेटी से कहा।
पर तुमने कभी मुझसे पूछा ही नहीं
और कभी मेरे हृदय में देखा ही नहीं।।
किसी ने तुमसे कह दिया- आकाश है सबसे ऊंचा
और तुमने मान लिया, गुरु ने शिष्य से कहा।
पर तुमने कभी मुझसे जाना ही नहीं
और कभी मेरे गुरुत्व में देखा ही नहीं।।
किसी ने तुमसे कहा दिया- महासागर में है सबसे अधिक पानी
और तुमने मान लिया, मां ने अपने बच्चों से कहा।
पर तुमने कभी मुझसे पूछा ही नहीं
और कभी मेरी आंखों में देखा ही नहीं।।
किसी ने तुमसे कह दिया- बरगद की जड़ें हैं सबसे गहरी, मजबूत
और तुमने मान लिया, निश्छल मित्र ने मित्र से कहा
पर तुमने कभी मुझे समझा ही नहीं
और कभी अपनी दोस्ती की जड़ों में देखा ही नहीं।।
- लोकेन्द्र सिंह -
("मैं भारत हूँ" काव्य संग्रह में शामिल कविता)