सोमवार, 10 जुलाई 2023

सामाजिक समरसता के लिए समर्पित श्रीगुरुजी का जीवन

श्रीगुरुजी और सामाजिक समरसता पर उनके विचार


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्रद्धेय माधव सदाशिवराव गोलवलकर का जीवन हिन्दू समाज के संगठन, उसके प्रबोधन एवं सामाजिक-जातिगत विषमताओं को समाप्त करके एकरस समाज के निर्माण के लिए समर्पित रहा है। जातिगत ऊँच-नीच एवं अस्पृश्यता को समाप्त करने की दिशा में श्रीगुरुजी के प्रयासों से एक बड़ा और उल्लेखनीय कार्य हुआ, जब 13-14 दिसंबर, 1969 को उडुपी में आयोजित धर्म संसद में देश के प्रमुख संत-महात्माओं ने एकसुर में समरसता मंत्र का उद्घोष किया-  

“हिन्दव: सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्।

मम दीक्षा हिन्दू रक्षा, मम मंत्र: समानता।।”

अर्थात् सभी हिन्दू सहोदर (एक ही माँ के उदर से जन्मे) हैं, कोई हिन्दू नीच या पतित नहीं हो सकता। हिन्दुओं की रक्षा मेरी दीक्षा है, समानता यही मेरा मंत्र है।1 श्रीगुरुजी को विश्वास था कि देश के प्रमुख धर्माचार्य यदि समाज से आह्वान करेंगे कि अस्पृश्यता के लिए हिन्दू धर्म में कोई स्थान नहीं है, इसलिए हमें सबके साथ समानता का व्यवहार रखना चाहिए, तब जनसामान्य इस बात को सहजता के साथ स्वीकार कर लेगा और सामाजिक समरसता की दिशा में बड़ा कार्य सिद्ध हो जाएगा। विश्व हिन्दू परिषद की ओर से इस धर्म संसद में श्रीगुरुजी के आग्रह पर सभी संतों ने सर्वसम्मति से सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक का प्रस्ताव पारित किया। श्रीगुरुजी ने अपनी भूमिका को यहीं तक सीमित नहीं रखा अपितु अब उन्होंने विचार किया कि यह शुभ संदेश लोगों तक कैसे पहुँचे। क्योंकि उस समय आज की भाँति मीडिया की पहुँच जन-जन तक नहीं थी। सामाजिक समरसता के इस अमृत को जनसामान्य तक पहुँचाने के लिए श्रीगुरुजी ने 14 जनवरी 1970 को संघ के स्वयंसेवकों के नाम एक पत्र लिखा2, जिसमें उन्होंने कहा कि कर्नाटक में कार्यकर्ताओं की अपेक्षा से कई गुना अधिक सफल आयोजन हुआ। मानो हिन्दू समाज की एकता एवं परिवर्तन के लिए शंख फूंक दिया गया हो। परंतु हमें इससे आत्मसंतुष्ट होकर बैठना नहीं है। अस्पृश्यता के अभिशाप को मिटाने में हमारे सभी पंथों के आचार्य, धर्मगुरु और मठाधिपतियों ने अपना समर्थन दिया है। परंतु प्रस्ताव को प्रत्यक्ष आचरण में उतारने के लिए केवल पवित्र शब्द काफी नहीं हैं। सदियों की कुरीतियां केवल शब्द और सद्भावना से नहीं मिटती। इसके लिए अथक परिश्रम और योग्य प्रचार करना पड़ेगा। नगर-नगर, गाँव-गाँव, घर-घर में जाकर लोगों को बताना पड़ेगा कि अस्पृश्यता को नष्ट करने का निर्णय हो चुका है। और यह केवल आधुनिकता के दबाव में नहीं, बल्कि हृदय से हुआ परिवर्तन है। भूतकाल में हमने जो गलतियां की हैं, उसे सुधारने के लिए अंत:करण से इस परिवर्तन को स्वीकार कीजिए। श्रीगुरुजी के इस पत्र से हम समझ सकते हैं कि अस्पृश्यता को समाप्त करने और हिन्दू समाज में एकात्मता का वातावरण बनाने के लिए उनका संकल्प कैसा था? धर्माचार्यों से जो घोषणा उन्होंने करायी, वह समाज तक पहुँचे, इसकी भी चिंता उन्होंने की। संघ की शाखा पर सामाजिक समरसता को जीनेवाले लाखों स्वयंसेवक सरसंघचालक के आह्वान पर ‘हिन्दव: सोदरा: सर्वे’ के मंत्र को लेकर समाज के सब लोगों के बीच में गए।

मंगलवार, 4 जुलाई 2023

स्कूल की छुट्टियां

 School ki Chhuttiyan | बचपन की याद दिलाती यह कविता


स्कूल के दिनों, बच्चे

करते थे प्रतीक्षा

अपनी छुट्टियों की, ताकि

समुद्र के किनारे वाले शहर में

या खूबसूरत वादियों के देश

जा सकेंगे घूमने

आई-बाबा के साथ।


परन्तु, मेरे लिए तो

मेरे गाँव का तालाब ही

किसी गोवा का समुद्र था

और सूखा-नंगा पहाड़

हिमालय का उत्तुंग शिखर।

खलियान तो जैसे

कुछ दिन के लिए

लॉर्ड्स का क्रिकेट मैदान

बन जाया करता था।


अपने सपने में

आया नहीं कभी

मनाली का फैमिली टूर भी

फिर लॉस एंजिल्स,

वेल्स के जंगल, हवाई

और इटली का लेक गार्डा तो

बहुत दूर की बात थी।


अपन राम के लिए तो

बजरंग मंदिर और

उसके औघड़ बगीचे में

स्वर्ग के सुख से बढ़कर थी

दाल-टिक्कर की पार्टी।

चढ़ना ऊंचे पेड़ों पर

लांघना खेतों की मेड़

खंडहर किले में खोजना रहस्य

अपने लिए तो यही थी

माचू-पिचू की साहसिक यात्रा। 


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कवि लाेकेन्द्र सिंह