यह ऐतिहासिक चित्र उस समय का है जब स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर 1937 में ग्वालियर में आयोजित लक्ष्मीबाई बलिदान दिवस समारोह में आए थे।
हमें यह याद रखना चाहिए...
भारत के जिस स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व भारत की बेटी रानी लक्ष्मीबाई ने किया था, उसे अंग्रेज और उनके दरबारी लेखक एक साजिश के तहत 'सिपाही विद्रोह' लिख रहे थे।
जब अंग्रेज भारत की स्वतंत्रता के लिए 1857 की क्रांति से उठी चिंगारी को दबाने का प्रयास कर रहे थे। एक सुनियोजित आंदोलन को मात्र 'सिपाही विद्रोह' साबित करने में लगे थे, तब स्वातन्त्र्यवीर सावरकर ने तथ्यों के आधार पर 1857 की क्रांति को 'भारत का पहला स्वाधीनता संग्राम' सिद्ध किया।
ऐसा लिखने वाले, कहने वाले और उसे सिद्ध करने वाले वे पहले लेखक हैं।
इस संबंध में उन्होंने प्रेरक पुस्तक भी लिखी, जो क्रांतिकारियों की गीता बन गई। यह दुनिया की इकलौती पुस्तक है, जिसे किसी सरकार ने प्रकाशित होने से पूर्व ही प्रतिबंधित कर दिया था।
'1857 का स्वातंत्र्य समर' पुस्तक को यशस्वी क्रांतिकारी भगत सिंह ने ब्रिटिश सरकार को धता बताते हुए प्रकाशित करा कर क्रांतिकारी साथियों में वितरित कराया। अन्य क्रांतिकारियों ने भी इस पुस्तक को योजनापूर्वक प्रकाशित कराया।
यह चित्र समाचार पत्र 'स्वदेश' में प्रकाशित हुआ है।
बार-बार आप एक नारा सुनते होंगे 'कश्मीरियत को बचाना जरूरी है'। हालांकि, कश्मीरियत की हत्या तो उसी दिन हो गयी थी जब वहां से लक्षित करके कश्मीरी हिंदुओं-कश्मीरी पंडितों को लूट-पीट कर, मार-काट कर भगा दिया गया था।
चौराहे पर झुंड बना कर हिंदुओं की हत्या की, महिलाओं-लड़कियों के साथ सामूहिक बलात्कार किये, छोटे बच्चों को भी नहीं छोड़ा, संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया था।
यह सब आज भी बदस्तूर जारी है... आज भी जो कोई कश्मीरियत को बचाने या ज़िंदा रखने की कोशिश कर रहा है, उसे बेरहमी से खत्म कर दिया जाता है।
कभी सोचा है, ऐसा क्यों है???
क्योंकि, इस देश का तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार पर न केवल चुप रहा, बल्कि गाहे-बगाहे उस खरतनाक सोच पर पर्दा ही डालता रहा, जो आज भी कश्मीर में हिंदुओं को रहने नहीं देना चाहती।
अनंतनाग जिले में सरपंच अजय पंडित की हत्या इस बात की गवाह है।
उस कायर सोच ने अजय पंडित को पीछे से गोली मारी। मदद के बहाने से घर से बुलाकर।
परंतु, बात-बात पर हाथ में प्लेकार्ड और मोमबत्ती लेकर सड़कों पर उतरने वाले तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग ने अजय पंडित की हत्या पर वैसी ही बेशर्म चुप्पी साध रखी है, जैसी अब से लगभग 30 साल पहले कश्मीरी पंडितों के नरसंहार पर साध रखी थी।
इन बेशर्मों को बॉलीवुड की तेजतर्रार अभिनेत्री कंगना रनौत ने आड़े हाथ लिया है। सोशल मीडिया पर जारे किये गए वीडियो सन्देश में कंगना के दर्द और पीड़ा को सुनिये और महसूस कीजिये।
मैंने अनुभव किया है कि हिंदुओं पर होने वाले अत्याचार के विरोध में बोलने वाले लोग बॉलीवुड में बहुत कम हैं। पिछले 5-6 वर्षों में कुछ लोग आगे आये हैं। हालाँकि अब भी बॉलीवुड में कश्मीरी पंडितों की त्रासदी पर भी वे ही बोलते हैं, जिन्होंने स्वयं या उनके परिवार ने जेहाद झेला है। अशोक पंडित और अनुपम खेर प्रमुख नाम हैं, जो प्रमुखता से कश्मीरी पंडितों के साथ खड़े दिखते हैं। अनुपम खेर और अशोक पंडित ने भी अजय पंडित की हत्या पर दुःख और पीड़ा व्यक्त की है।
कश्मीर में हिंदुओं की हत्या का यह चक्र अब रुकना चाहिए। सरपंच अजय पंडित का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए।
कश्मीरियत को फिर से जिंदा करने का समय आ गया है। हम केंद्र सरकार से अपील करते हैं कि कश्मीर में हिंदुओं को बसाने के काम में तेजी लाये। उन्हें पर्याप्त सुरक्षा और योजना के साथ वापिस कश्मीर में बसाया जाए। उनके घर, दुकान और खेत-खलियान लौटाये जाएं।
हम लोकतंत्र के सिपाही अजय पंडित के बलिदान, उनके सपने और हौसले को नमन करते हुए उनकी उस शेरनी बेटी को भी प्रणाम करते हैं, जिसने कह दिया है कि वह अजय पंडित की बेटी है, किसी से डरती नहीं। यहीं रहेगी कश्मीर में और हत्यारी मानसिकता का डटकर सामना करेगी...