गुरुवार, 17 जुलाई 2014

संघ बांटता नहीं, जोड़ता है

वरिष्ठ समालोचक डॉ. विजय बहादुर सिंह 
 दे श के जाने-माने समालोचक और बुद्धिजीवी विजय बहादुर सिंह का समाज में बड़ा आदर है। हजारों लोगों की तरह मैं स्वयं भी उनका मुरीद हूं। उनकी ओजस्वी वाणी और सशक्त लेखनी सदैव समाजहित में कुछ नया रचने-करने को उद्देलित करती है। भोपाल में आयोजित मीडिया चौपाल के समापन समारोह में उन्हें पहली बार सुना था। जब वे बोल रहे थे तो सभागार में सन्नाटा खिंच गया था, मानो सभागार में उनके अलावा कोई और नहीं हो। असल में करीब दो सौ लोगों की मौजूदगी से सभागार खचाखच भरा था। लेकिन उनके शानदार और भावपूर्ण भाषण को सब मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। अपनी बात कहने और लोगों को प्रभावित करने का यह अनोखा जादू आज के दौर में कम ही देखने को मिलता है। लेकिन विजय बहादुर जी इसमें सिद्धहस्त हैं। उनके भाषण के बाद, उनके विचारों से प्रभावित होकर एक मीडियाकर्मी अपनी कुर्सी से उठकर मंच की ओर आया और विजय बहादुर सिंह के चरणों में नमन करने लगा। यह था उनके ओजपूर्ण और संवेदनाओं से भरे भाषण का असर। अपनी बात को आगे बढ़ाने से पहले यहां एक-दो बातें बता देना चाहूंगा- मीडिया चौपाल का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अनिल सौमित्र  की परिकल्पना है और जिस मीडियाकर्मी ने विद्वानों से सुशोभित सभागार में विजय बहादुर जी के चरणस्पर्श किए वह भी संघ का स्वयंसेवक था। 
          इस वाकये के बाद उद्भट विद्वान विजय बहादुर सिंह से कई बार भेंट हुई और बीच-बीच में उनको सुना-पढ़ा भी। मीडिया चौपाल में उनके भाषण को सुनकर जितनी उमंग का संचार हुआ था, मीडिया विमर्श में उनकी विशेष टिप्पणी पढ़कर उतनी ही निराशा हुई। वरिष्ठ पत्रकार, संपादक और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र पर केंद्रित मीडिया विमर्श के मार्च-२०१४ के अंक में पृष्ठ १०३ पर 'कठिन संभावनाओं के बीच शिवराज' शीर्षक से उन्होंने यह विशेष टिप्पणी लिखी है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बहाने उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है। अपनी सशक्त लेखनी से संघ की कमजोर आलोचना की है। संघ के संदर्भ में उनकी समालोचना किसी पूर्वाग्रह की चपेट में दिखी। अपनी विशेष टिप्पणी में उन्होंने संघ को कट्टर, विध्वंसक और तानाशाही परंपरा के पैरोकार के रूप में निरूपित करने की कोशिश की है। आलेख में श्री विजय बहादुर एक जगह लिखते हैं - 'अगर भाजपा के ताकतवर नायक नहीं चेते और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ रोज-रोज अधिक पावरफुल होता गया तो एक वह दुर्भाग्यपूर्ण दिन आएगा ही आएगा जब यह देश दोबारा बंटेगा और इस बार इसका अपराध और कलंक भाजपा के माथे का सबसे बड़ा ऐतिहासिक कलंक साबित होगा।' संघ के बारे में लगातार मीडिया में आने वाली नकारात्मक खबरों और नेताओं-बुद्धिजीवियों द्वारा भी लगातार संघ की निंदा किए जाने पर एक दफा वरिष्ठ प्रचारक से मैंने इसका कारण जानना चाहा। तब उन्होंने एक लाइन में इसका जवाब दिया था- 'किसी को संघ समझना है तो उसे संघ के नजदीक आना होगा। संघ को लेकर नकारात्मक टिप्पणी करने वाले लोग संघ के नजदीक आना ही नहीं चाहते तो वे कैसे संघ को समझेंगे।' उनका जवाब मुझे सच और वास्तविकता के काफी करीब लगा। दरअसल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के करीब आकर मेरी स्वयं की भी कई धारणाएं टूटी हैं। जहां तक मेरी जानकारी है विजय बहादुर जी संघ के लोगों के नजदीक रहे हैं, संघ के अनुषांगिक संगठनों के कार्यक्रमों में भी शामिल होते रहे हैं लेकिन प्रत्यक्षतौर पर संघ में कभी नहीं गए हैं। शायद यही कारण है कि संघ को लेकर उनके मन-मस्तिष्क में तमाम पूर्वाग्रह यथावत हैं। बहरहाल, संघ ही एकमात्र ऐसा बड़ा संगठन है जो देश के विभाजन के पक्ष में कतई नहीं है। वरना कम्युनिस्ट और दूसरे संगठन-लोग तो कब से जम्मू-कश्मीर को भारत से अलग करने की फिराक में है। जम्मू-कश्मीर इस देश का अभिन्न हिस्सा है और किसी भी कीमत पर इसे अलग नहीं होने देंगे, यह दंभ तो संघ और उसके अनुषांगिक संगठन ही भरते हैं। बाकी कई तो जम्मू-कश्मीर मामले पर भारत विरोधी बयान ही देते रहते हैं। संघ ही वह संगठन है जिसके कार्यकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर को देश का अभिन्न हिस्सा साबित करने के लिए बलिदान दिया है। संघ ही है जो राष्ट्रवादी विचारधारा का संचार लोगों के हृदय में कर रहा है। संघ ही है जो देश के लिए मरने से अधिक जीने की बात करता है। वह भी संघ ही है जो लगातार समाज और राजनीति को चेताता है कि स्पष्ट राजनीतिक दृष्टिकोण न होने से भारत वर्षों से खण्ड-खण्ड हो रहा है। अब जागने का वक्त है, देश की चिंता करने का वक्त है, अब देश के और टुकड़े न हों इसके लिए संघ सब समाज से आह्वान करता है। 
केरल में भूस्खलन के दौरान राहतकार्य करते स्वयंसेवक
        संघ विध्वंसक नहीं सृजक है। समाज में ऊंच-नीच की खाई को पाटने का काम संघ कर रहा है। सामाजिक समरसता के लिए संघ और उसके अनुषांगिक संगठनों के द्वारा किए जा रहे प्रयासों से दलित मसीहा बाबा भीमराव अम्बेडकर और अहिंसा के महान पुजारी महात्मा गांधी भी प्रभावित हुए थे। छोटे कद के ताकतवर प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को संघ के अनुशासन पर इतना भरोसा था कि सन् १९६५ में पाकिस्तान से युद्ध के समय दिल्ली की यातायात व्यवस्था की महती जिम्मेदारी ही स्वयंसेवकों को सौंप दी। यही नहीं दिल्ली के अस्पतालों में गंभीर घायल अवस्था में भर्ती सैनिकों को जब रक्त की जरूरत पड़ी तो सबसे पहले संघ के स्वयंसेवकों को बुलाया गया। देश में कहीं भी आपात स्थिति आती है तो राहत और बचाव कार्य के लिए वहां सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता ही खाकी नेकर में नजर आते हैं। हाल ही में उत्तराखण्ड त्रासदी में भी संघ के स्वयंसेवकों ने पीडि़तों की तन-मन-धन से मदद की। भारत की इलेक्ट्रोनिक मीडिया के इतिहास में पहली बार संघ के काम को सकारात्मक नजरिए से प्रस्तुत किया गया। वंचित और समय के साथ पिछड़ गए समाज को मुख्यधारा में लाने के लिए संघ देश में हजारों की संख्या में नियमित रूप से सेवा और स्वावलंबन के प्रकल्प चला रहा है, बिना किसी भेदभाव के। 
         श्री विजय बहादुर अपनी टिप्पणी में एक-दो जगह यह बताने की कोशिश करते हैं कि संघ मुस्लिम विरोधी है। आज की स्थिति में यह किसी भी तरह सच नहीं दिखता। संघ की शाखाएं तो सुबह-शाम खुलेआम मैदान और पार्कों में लगती हैं। शाखाओं को देखने, उनमें शामिल होने से कोई किसी को नहीं रोकता। नजदीक से देखा और अनुभव किया हुआ ग्वालियर का एक प्रकरण मेरे ध्यान में आता है। वहां एक शाखा में मुस्लिम बच्चे आते थे, इस बात पर बच्चों के पिता और दादा में बहस होती थी। उस युवक ने अपने पिता के विचारों से इतर जाकर, बच्चों को संघ की गणवेश लाकर दी और स्वयं उन्हें शाखा में छोडऩे गया। हालांकि बाद में मुस्लिम समाज के दबाव के आगे उसे झुकना पड़ा। चम्बल के एक कस्बे भिण्ड का एक मुस्लिम युवक मेरे साथ पत्रकारिता कर रहा था, उसने मुझे बताया कि वह आरएसएस का बेहद सम्मान करता है और वह तो आरएसएस का प्रचारक बनाना चाहता था लेकिन घरवालों ने अनुमति नहीं थी। ये कुछ घटनाएं साबित करती हैं कि संघ कभी भी मुस्लिम विरोधी नहीं रहा है, बस उसे नजदीक से देखने की जरूरत है। संघ तो समाजकंटकों का विरोधी रहा है। संघ ही था जिसने भारत के सर्वोच्च पद (राष्ट्रपति) के लिए मिसाइल मैन के नाम से ख्यात देश के जाने-माने वैज्ञानिक एपीजे कलाम का आगे बढ़ाने पर भाजपा की पीठ थपथपाई। दरअसल, संघ ने कभी-भी मुसलमानों के लिए अपने दरवाजे बंद नहीं किए हैं। यह अलग बात है कि तमाम बुद्धिजीवियों और सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले राजनेताओं के बहकावे में आकर मुस्लिम बंधु खुद ही संघ की देहरी नहीं चढ़े। सामाजिक समरसता की बात करने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ही आखिर मुस्लिमों के लिए अलग मंच बनाना पड़ा। सांप्रदायिकता के अंधे गलियारे में भटक रहे मुस्लिमों को मुख्यधारा में लाने के लिए संघ राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच के तहत एक बड़ा आंदोलन चला रहा है। संघ के चेहरे पर कट्टरवादी छवि का मुखौटा चेंप रहे बुद्धिजीवी उसकी उदारता की गहराई को जरा समझने की कोशिश करें तो शायद उनका स्वयं का पूर्वाग्रह तो दूर होगा ही, समाज भी भ्रमित होने से बच सकेगा। 
          सरल और सहज स्वभाव के धनी विजय बहादुर सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा (जिसे संघ के लोग व्यक्ति निर्माण का कारखाना कहते हैं) से निकलकर आए कलकत्ता विश्वविद्यालय में आचार्य रहे पंडित विष्णुकांत शास्त्री, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को तो पसंद करते हैं लेकिन संघ को नहीं। वे चन्द्रगुप्त मौर्य को तो चाहते हैं लेकिन उसके निर्माता और राष्ट्रहित में स्पष्ट सोच रखने वाले चाणक्य की निंदा करते हैं।    यह तो वही बात हुई कि कठोरता के लिए नारियल की निंदा करना और उसके अन्दर के स्वादिष्ट गूदे के प्रशंसक होना। छोटे मुंह बड़ी बात होगी, मुझ जैसे अदने से लेखक के लिए साहित्य और समाज के विराट व्यक्तित्व की बात को काटना। लेकिन फिर मेरा आग्रह है वाणी और लेखनी के जादूगर से कि वे बेफिक्र रहें, जब तक संघ है तब तक न देश बंटेगा, न मिटेगा और न ही बिकेगा। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उद्देश्य देश को जोडऩा है, उसे खण्ड-खण्ड होने से बचाना है। इसी पवित्र उद्देश्य के लिए संघ प्रतिदिन तमाम व्यवधानों के बीच कर्मपथ पर आगे बढ़ रहा है। आज जब पश्चिम से आए भौतिकवाद के अंधड़ में हम आत्म विस्मृत हो रहे हैं तब संघ अपनी शाखाओं में भारत की संस्कृति, मूल्यों और दायित्वों का बोध करा रहा है। इसलिए हमें उसकी घृणा की हद तक निंदा नहीं बल्कि समालोचना करनी चाहिए ताकि वह अपने पथ से डिगे नहीं, भटके नहीं और देशहित में सही राह पर चलता रहे।  
(मीडिया विमर्श में प्रकाशित आलेख)

गुरुवार, 3 जुलाई 2014

अभूतपूर्व चुनाव का अहम दस्तावेज 'मोदी लाइव'

 सो लहवीं लोकसभा का आम चुनाव अपने आप में अनोखा था। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह पहला मामला था जब समस्त राजनीतिक दल सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ न होकर एक विपक्षी पार्टी के खिलाफ मोर्चाबंदी कर रहे थे। भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को घेरने का काम सिर्फ राजनीतिक दल ही नहीं कर रहे थे बल्कि लेखक और बुद्धिजीवी वर्ग भी निचले स्तर तक जाकर मोदी विरोधी अभियान चला रहे थे। लेकिन, कांग्रेस के भ्रष्टाचार, घोटालों-घपलों और कुनीतियों से तंग जनता ने न केवल मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया बल्कि भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व, अकल्पनीय बहुमत दिया और कांग्रेस के गले में डाल दी ऐतिहासिक हार। 
भारत के सबसे लम्बे चलने वाले आम चुनाव-२०१४ की तारीखों की घोषणा के पहले से लेकर परिणाम के बाद तक की प्रक्रिया पर पैनी नजर रखने वाले देश के जाने-माने चुनाव विश्लेषक संजय द्विवेदी की पुस्तक 'मोदी लाइव' इस अभूतपूर्व चुनाव का एक अहम दस्तावेज है। श्री द्विवेदी भले ही आमुख में यह लिखें - ''यह कोई गंभीर  और मुकम्मल किताब नहीं है। एक पत्रकार की सपाटबयानी है। इसे अधिकतम चुनावी नोट्स और अखबारी लेखन ही माना जा सकता है।'' लेकिन, दो दशक से पत्रकारिता और लेखन के क्षेत्र में सक्रिय संजय द्विवेदी को जानने वाले जानते हैं कि उनका राजनीतिक विश्लेषण गंभीर रहता है। वे सपाटबयानी के साथ गहरी बातें कहते हैं, जो भविष्य में सच के काफी करीब होती हैं। इसी पुस्तक के कई लेखों में उनकी गहरी राजनीतिक समझ और ईमानदार विश्लेषण से परिचित हुआ जा सकता है। २५ जनवरी को लिखे गए एक आलेख में उन्होंने संकेत दिया था- ''इस बार के चुनाव साधारण नहीं, विशेष हैं। ये चुनाव खास परिस्थियों में लड़े जा रहे हैं जब देश में सुशासन, विकास और भ्रष्टाचार मुक्ति के सवाल सबसे अहम हो चुके हैं। नरेन्द्र मोदी इस समय के नायक हैं। ऐसे में दलों की बाड़बंदी, जातियों की बाड़बंदी टूट सकती है। गठबंधनों की तंग सीमाएं टूट सकती हैं। चुनाव के बाद देश में एक ऐसी सरकार बन सकती है जिसमें गठबंधन की लाचारी, बेचारगी और दयनीयता न हो।'' चुनाव परिणाम से उनकी एक-एक बात सच साबित हुई। लम्बे समय बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत मिला। गठबंधन की अवसरवादी राजनीति से देश को राहत मिली। जात-पात और वोटबैंक की राजनीति काफी कुछ छिन्न-भिन्न हुई। अवसरवादी राजनीति के पर्याय बनते जा रहे क्षेत्रीय दलों का सफाया हो गया। राजनीतिक छुआछूत की शिकार भाजपा सही मायने में राष्ट्रीय पार्टी बनकर उभरी, दक्षिण-पूर्व में भी कमल खिला। 
कांग्रेस के भ्रष्टाचार से अधिक, समय के साथ लोकनायक बनते जा रहे नरेन्द्र मोदी के कारण यह आम चुनाव सर्वाधिक चर्चा का विषय बना। संभवत: यह नए भारत का एकमात्र चुनाव है, जिसने फिर से राजनीतिक चर्चा-बहस को घर-घर तक पहुंचाया। राजनीति के नाम से ही बिदकने वाले लोग भी सकारात्मक परिवर्तन की बात कर रहे नरेन्द्र मोदी के भाषण गौर से सुन रहे थे। सबसे अहम बात यह है कि राजनीति में रुचि रखने वाले लोगों के बीच ही नहीं युवाओं और महिलाओं के बीच भी नरेन्द्र मोदी चर्चा का केन्द्र बने। बच्चों की तोतली जुबान पर भी मोदी का नाम चढ़ा हुआ था। गुजरात से निकलकर देश के जनमानस पर यूं छा जाने के नरेन्द्र मोदी के सफर को 'मोदी लाइव' में आसानी से समझा जा सकता है। नरेन्द्र मोदी को किन-किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ा, कैसे उन्होंने विरोधियों की ओर से उछाले गए पत्थरों से मंजिल तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बनाई, कैसे अपनों से मिल रही चुनौती से पार पाई, इन सवालों के जवाब आपको मिलेंगे मोदी लाइव में। इसके साथ ही श्री द्विवेदी ने बहुत से सवाल राजनीतिक विमर्श और शोध के लिए अपनी तरफ से प्रस्तुत किए हैं। निश्चित ही उन सवालों पर भविष्य में राजनीति के विद्यार्थियों को शोध करना चाहिए और राजनीतिक विचारकों को सार्थक विमर्श। 
पुस्तक के पहले ही लेख 'भागवत, भाजपा और मोदी!' में श्री द्विवेदी उन तमाम विश्लेषकों का ध्यान दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन के सफल प्रयोग की ओर दिलाते हैं, जिसके कारण भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय मिली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक खास नजरिए से देखने वाले बुद्धिजीवी सदैव उसका गलत मूल्यांकन करते हैं। इस सच को सबको स्वीकार करना होगा कि आरएसएस राजनीतिक संगठन नहीं है लेकिन जब बात देश की आती है तो राजनीतिक परिवर्तन के लिए भी वह चुप रहकर काम करता है। लोकनायक जेपी के नेतृत्व में व्यवस्था परिवर्तन के लिए खड़ा किया गया आंदोलन हो या फिर आपातकाल के खिलाफ संघर्ष, आम समाज की नजर में संघ की भूमिका किसी से छिपी नहीं है। बावजूद इसके देश के तमाम तथाकथित बड़े साहित्यकार, इतिहासकार और बुद्धिजीवी संघ की भूमिका और ताकत को नजरंदाज ही नहीं करते बल्कि उसकी गलत व्याख्या करते हैं। श्री द्विवेदी अपने इसी लेख में बताते हैं कि किस तरह संघ ने 'मोदी प्रयोग' को सफल बनाया। वे लिखते हैं - ''संघ के क्षेत्र प्रचारकों ने अपने-अपने राज्यों में तगड़ी व्यूह रचना की और माइक्रो मॉनीटरिंग से एक अभूतपूर्व वातावरण का सृजन किया। चुनाव में मतदान प्रतिशत बढ़ाने और शत प्रतिशत मतदान के लिए संपर्क का तानाबाना रचा गया।'' संघ के इस प्रयास का खुले दिल से स्वागत करना चाहिए कि दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र के महायज्ञ की तैयारी की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठाने वाले चुनाव आयोग के अलावा आरएसएस ही एकमात्र ऐसा संगठन था जिसने अपनी पूरी ताकत मतदान प्रतिशत बढ़ाने में झोंक रखी थी। पुस्तक का आखिरी लेख भी संघ को समझने में काफी मदद करता है। वरिष्ठ पत्रकार भुवनेश तोमर ने इस बात का जिक्र बातचीत के दौरान किया था कि इस आम चुनाव में संघ की भूमिका का सही विश्लेषण किसी ने किया है तो वे संजय द्विवेदी ही हैं। वे बताते हैं कि यह संघ की ही तैयारी थी कि उत्तरप्रदेश में उम्मीद से अधिक अच्छा प्रदर्शन भाजपा ने किया। 
'मोदी लाइव' २१ आलेखों का संग्रह है। हर एक आलेख चुनाव से जुड़ी अलग-अलग जिज्ञासाओं का समाधान है। चुनाव के दौरान की परिस्थितियों का बयान करते आलेखों में मीडिया गुरु संजय द्विवेदी ने नरेन्द्र मोदी के नाम पर बौद्धिक प्रलाप कर रहे बुद्धिजीवियों के चयनित दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने ऐसे लेखकों को 'सुपारी लेखक' बताया है। लेखक ने लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक तरीके से एक व्यक्ति के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाने वाले यूआर अनंतमूर्ति, अशोक वाजपेयी, नामवर सिंह, के. सच्चिदानंद और प्रभात पटनायक जैसे स्वयंभू बुद्धिजीवियों को आड़े हाथ लिया है। मोदी का भय दिखाकर सदैव से मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति करने वालों की हकीकत बयान की है। श्री द्विवेदी ने अपने एक आलेख में बताया है कि कैसे कांग्रेस सहित अन्य दल मुस्लिमों का अपनी राजनीतिक दुकान चलाने के लिए इस्तेमाल करते आए हैं। इसके अलावा इस अभूतपूर्व आम चुनाव में मीडिया की भूमिका, चुनाव से पहले अंगड़ाई लेने वाले तीसरे मोर्चे का वजूद, राष्ट्रीय दलों की स्थिति, परिवारवाद और अवसरवाद की राजनीति को समझने का मौका 'मोदी लाइव' में संग्रहित श्री द्विवेदी के चुनिंदा आलेख उपलब्ध कराते हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने ७० पृष्ठों की बड़ी महत्वपूर्ण पुस्तक 'मोदी लाइव' की भूमिका लिखी है। 'मीडिया विमर्श' ने ३० मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस के मौके पर पुस्तक को प्रकाशित किया है। इसका आवरण शिल्पा अग्रवाल ने तैयार किया है। 
पुस्तक : मोदी लाइव
लेखक : संजय द्विवेदी
मूल्य : २५ रुपये
पृष्ठ : ७० 
प्रकाशक : मीडिया विमर्श
एम.आई.जी.-३७, हाऊसिंग बोर्ड कॉलोनी
कचना, रायपुर (छत्तीसगढ़)-४९२००१
ईमेल : mediavimarsh@gmail.com