रविवार, 19 जुलाई 2020

लव जिहाद की सच्ची कहानियों का दस्तावेज है 'एक मुखौटा ऐसा भी'

डॉ. वंदना गांधी
समाजशास्त्र की शिक्षिका हैं। समाज में चल रही गतिविधियों और उनके पीछे के एजेंडे को वह बहुत बारीक से समझती हैं। जब उन्होंने प्रेम की आड़ में चल रहे 'लव जिहाद' की नब्ज टटोलने की कोशिश की तो उनका सामना ऐसे सच से पड़ा, जो बहुत डरावना है। अपने कहानी संग्रह 'एक मुखौटा ऐसा भी' में उन्होंने 15 सच्ची कहानियों के माध्यम से यह बताने का प्रयास किया है कि कैसे प्रेम का मुखौटा लगा कर हिंदू युवतियों को निशाना बनाया जा रहा है। उनका जीवन बर्बाद किया जा रहा है। इनमें छह कहानियां मध्यप्रदेश की हैं और शेष भारत के विभिन्न हिस्सों से ली गई हैं। लेखिका का कहना है कि वह कई परिवारों और पीडि़त युवतियों से प्रत्यक्ष मिली हैं और उनके दर्द को समझने का प्रयास किया है। 
          धरती पर सबसे अधिक पवित्र कुछ है तो वह प्रेम है। प्रेम के सभी रूप मनुष्य के जीवन को सुंदर बनाते हैं। यह शाश्वत सत्य है कि जिसको किसी प्रकार जीतना संभव न हो, उसे प्रेम जीता जा सकता है। प्रेम में एक-दूसरे पर अटूट भरोसा हो जाता है। इस अटूट भरोसे के कारण ही कई बार प्रेम के मुखौटे के पीछे छिपी घिनौनी सूरत को हम देख नहीं पाते हैं। जब यह मुखौटा हटता है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। कहानीकार डॉ. वंदना गांधी की पुस्तक निश्चित ही बहुत देर होने से पहले ऐसे घिनौने चेहरों से मुखौटे नौंचने का कार्य करेगी। उनकी यह पुस्तक हिंदू युवतियों को सावधान करती है कि उन्हें जरा एक बार अच्छे से पड़ताल करनी चाहिए कि वह जिसे प्रेम समझ रही हैं, वह वास्तव में प्रेम ही है या कुछ और। 
         डॉ. वंदना गांधी की यह कहानियां बताती है कि यह सिर्फ प्रेम में धोखे की दास्तां मात्र नहीं है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को छिन्न करने वाला पूरा एक षड्यंत्र है। अब यह कोई छिपा हुआ षड्यंत्र नहीं है कि हिंदू युवतियों का धर्मांतरण करने के लिए सुनियोजित ढंग से 'लव जिहाद' शुरू किया गया है। तथाकथित प्रगतिशील बंधु इसे भाजपा और आरएसएस का राजनीतिक एजेंडा कह कर खारिज कर सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा या आरएसएस से भी पहले 'लव जिहाद' शब्द का उपयोग वर्ष 2009 में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने किया था। केरल हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति केटी शंकरन ने मुस्लिम लड़के और हिंदू युवती की शादी के मामले की सुनवाई करते समय कहा था कि देश में लव जिहाद चल रहा है। बाद में, केरल से चर्चा में आए लव जिहाद के मामले देश के कई हिस्सों से भी सामने आए, जो स्पष्टतौर पर न्यायमूर्ति केटी शंकरन के कहे को सत्य सिद्ध करते हैं। यह पुस्तक भी लव जिहाद की ऐसी कहानियां का संग्रह है। पुस्तक यह स्पष्ट करती है कि यह किसी का राजनीतिक एजेंडा हो या न हो, किंतु यह एक सामाजिक संकट जरूर है। इस पर राजनीतिक बहस कम और सामाजिक दृष्टि से विमर्श अधिक होना चाहिए। 
          मुस्लिम समाज भी कोरी कल्पना कह कर 'लव जिहाद' नकार नहीं सकता। यथार्थ में क्या है? यह भी मुस्लिम समाज को देखना होगा। घटनाएं और मुस्लिम समाज का व्यवहार तो यही बयां करता है कि मुस्लिम समाज का कट्टरपंथी धड़ा 'लव जिहाद' की अवधारणा पर काम तो कर रहा है। वरना क्या कारण है कि मुस्लिम युवक से विवाह करने वाली प्रत्येक लड़की को इस्लाम कबूल करना पड़ता है? मुस्लिम लड़का क्यों नहीं हिंदू धर्म अपनाता? यह कैसा प्रेम है कि हिंदू लड़की को ही अपने धर्म का त्याग करना पड़ता है? हिंदू लड़की के सामने इस्लाम अपनाने के अलावा कोई रास्ता नहीं छोडऩा, लव जिहाद नहीं तो क्या है? यह तो स्पष्टतौर पर धर्मांतरण का तरीका है। ज्यादातर मामलों में यह भी देखने में आता है कि युवक अपनी मजहबी पहचान छिपा कर हिंदू लड़की से मुलाकात बढ़ाता है। झूठ की बुनियाद पर बनाया गया संबंध प्रेम कतई नहीं हो सकता। 
          पुस्तक 'एक मुखौटा ऐसा भी' निश्चित तौर पर अपने उद्देश्य को पूरा करने में सफल होगी। एक षड्यंत्र के विरुद्ध जागरूकता लाने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध होगी। डॉ. गांधी कहती हैं कि लव जिहाद की खौफनाक हकीकत सामने लाकर उन्हें बहुत संतोष है। यह किताब कॉलेज छात्राओं के लिए गीता साबित होगी। हर युवती को इस किताब को जरूर पढऩा चाहिए। अर्चना प्रकाशन को साधुवाद कि उसने ऐसे विषय पर पुस्तक प्रकाशित करने का साहस दिखाया, जिस पर दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति हो रही है। इस संबंध में अर्चना प्रकाशन के ट्रस्टी ओमप्रकाश गुप्ता कहते हैं कि लव जेहाद की सच्ची घटनाओं पर देश में यह पहली किताब है। इस किताब में उन युवतियों की पीड़ा को उजागर किया गया है, जो गलत कदम उठाने के बाद अब पछता रहीं हैं। दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में विमोचित इस कृति ने पर्याप्त चर्चा प्राप्त की है।

पुस्तक : एक मुखौटा ऐसा भी (लव जिहाद पर केंद्रित कहानी संग्रह) 
लेखक : डॉ. वंदना गांधी
मूल्य : 80 रुपये (पेपरबैक)
पृष्ठ : 86
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, 
17, दीनदयाल परिसर, ई-2, महावीर नगर, भोपाल
दूरभाष – 0755-2420551

गुरुवार, 16 जुलाई 2020

प्रोपोगंडा विशेषज्ञ कम्युनिस्ट ओली


कम्युनिस्ट नेता एवं नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत के संदर्भ में अपने विवादास्पद एवं हास्यास्पद बयानों के लिए अब हद पार चुके हैं। अपने बयानों एवं व्यवहार से वह लगातार भारत-नेपाल के संबंधों में खटास पैदा करने की की कोशिश कर रहे हैं। यह सब वे किसके इशारे पर कर रहे हैं, यह कोई अबूझ पहेली नहीं रह गई है। भगवान श्रीराम के जन्मस्थान के विषय में दिए गए अपने अतार्किक, अप्रमाणिक और हास्यास्पद बयान के लिए नेपाल के प्रधानमंत्री ओली घर में ही घिर गए हैं। उनके अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म उत्तरप्रदेश स्थित अयोध्या में नहीं हुआ, बल्कि नेपाल के बीरगंज स्थित एक गाँव में हुआ। नेपाल का यह गाँव ही वास्तविक अयोध्या है। तीर्थनगरी अयोध्या और भगवान श्रीराम के बारे में नेपाल के प्रधानमंत्री ओली का बयान इस हद तक तथ्यहीन है कि उनकी सोच-समझ पर गंभीर प्रश्न उठाए जा रहे हैं। नेपाल के बुद्धिजीवी, पूर्व प्रधानमंत्री, पूर्व उपप्रधानमंत्री तक ओली के इस बयान पर तंज कसा है और उनकी वास्तविक मंशा पर प्रश्न उठाए हैं। अपने इस बयान को लेकर वे हास्य के पात्र बन गए हैं। स्थिति यह बन गई कि नेपाल के विदेश मंत्रालय को सफाई देनी पड़ गई है।  
           ओली लगातार भारत-नेपाल के संबंधों को बिगाडऩे का प्रयत्न कर रहे हैं। कभी वे भारत पर कोरोना संक्रमण का आरोप लगाते हैं, तो कभी कहते हैं कि भारत सरकार उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने की कोशिश कर रही है। कभी भारतीय क्षेत्रों पर नेपाल का दावा करते हैं। नेपाल का नया मानचित्र भी संसद में पारित कराते हैं, जिसको लेकर दोनों देशों के संबंध बिगड़ सकते हैं। उनका यह बयान भी उसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। भारत सरकार की सराहना की जानी चाहिए कि उसने ओली की ऊल-जलूल हरकतों के बाद भी संयम रखा हुआ है। यह धैर्य और संयम ही दोनों देशों के लिए आवश्यक है। 
          एक तथ्य यह भी है कि भगवान श्रीराम के संदर्भ में सर्वाधिक अपप्रचार कम्युनिस्टों ने ही किया है। श्रीरामजन्मभूमि आंदोलन के राष्ट्रव्यापी स्वरूप लेने के बाद से ही भारत के कम्युनिस्टों ने भगवान श्रीराम के अस्तित्व पर ही प्रश्न उठाने शुरू कर दिए थे। फर्जी तथ्यों के आधार पर पर्चे लिखे गए, किताबें लिखी गईं, विमर्श खड़े किए गए। श्रीराम को काल्पनिक सिद्ध करने की पुरजोर कोशिशें हुईं। लेकिन, अब तो सर्वोच्च न्यायालय में भी लंबी बहस और तथ्यों-तर्कों के आधार पर सिद्ध हो गया कि उत्तरप्रदेश की अयोध्या ही भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है। वहाँ अब भव्य श्रीराम मंदिर बनेगा। मोदी सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय आते ही मंदिर निर्माण की प्रक्रिया भी तेज कर दी है। 
          नेपाल के प्रधानमंत्री ओली भूल गए कि भारत-नेपाल की सांस्कृतिक विरासत एक ही है। श्रीराम का मान-सम्मान एवं उनके प्रति आस्था नेपाल में भी उतनी ही है, जितनी भारत में। नेपाल की जनता उन्हीं श्रीराम को पूजती है जिनका जन्म सरयू किनारे बसी प्राचीन नगरी अयोध्या में हुआ और विवाह जनकपुर की सीता से हुआ। इसलिए नेपाल में भी उनकी इस हास्यास्पद खोज का विरोध सामान्य जनमानस ने किया है।

वीडियो देखें : भगवान श्रीराम के जन्म पर नेपाल के कम्युनिस्ट नेता और प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बयान का विश्लेषण


बुधवार, 15 जुलाई 2020

मंदिर तोड़ने की जेहादी मानसिकता

पाकिस्तान हिंदुओं सहित अन्य अल्पसंख्यकों के लिए नरक बन गया है। वहाँ हिंदू समाज, उनके व्यावसायिक संस्थान एवं धार्मिक स्थलों पर कट्टरपंथियों के हमले जारी हैं। सरकार आतंकी एवं कट्टरपपंथी गुटों के सामने पूरी तरह घुटने टेक चुकी है। इमरान खान की सरकार ने राजधानी इस्लामाबाद में जिस बहुप्रतीक्षित पहले श्रीकृष्ण मंदिर को बनने के लिए आर्थिक सहायता देने की स्वीकृति दी थी, उसे इस्लामिक कट्टरपंथियों ने बनने से पहले ही ढहा दिया है। मंदिर की नींव को तोडऩे वालों पर कार्रवाई करने की जगह सरकार चुप्पी साधकर बैठक गई है। बल्कि इमरान सरकार ने मुस्लिम कट्टरपंथियों के फतवे के आगे घुटने टेकते हुए मंदिर के निर्माण पर ही रोक लगा दी। पाकिस्तान सरकार ने अब मंदिर के संबंध में इस्लामिक ऑइडियॉलजी काउंसिल से सलाह लेने का फैसला किया है। यह इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान में सरकार कट्टरपंथियों के हाथ की कठपुतली बन चुकी है। वह अल्पसंख्यकों के हित में स्व-विवेक से कोई निर्णय नहीं ले सकती है। सरकार के निर्णयों पर आतंकी गिरोहों एवं कट्टरपंथी गुटों की पहरेदारी है। 
          कट्टरपंथियों ने श्रीकृष्ण मंदिर की नींव को ढहाने के साथ यह भी चेतावनी और संकेत दिए हैं कि पाकिस्तान में हिंदुओं के मंदिर स्वीकार नहीं हैं। यदि मंदिर बनाने के प्रयास किए तो उसके परिणाम भुगतने के लिए हिंदुओं को तैयार रहना चाहिए। सामने आ रही जानकारियों के अनुसार मंदिर की नींव को ध्वस्त कर कट्टरपंथियों ने वहाँ नमाज पढऩा भी शुरू कर दिया है। उनका यह कृत्य मुगलकाल में भारत आए उन आक्रांताओं एवं धर्मांध कट्टरपंथियों की याद दिलाता है, जिन्होंने संपूर्ण भारत (आज का पाकिस्तान भी शामिल) में न केवल मंदिरों को ध्वस्त किया, बल्कि वहाँ तथाकथित मस्जिदें भी तामीर करा दीं। भारत में भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में बाबर मस्जिद, मथुरा में श्रीकृष्ण मंदिर परिसर की तथाकथित मस्जिद और भगवान शिव की भूमि काशी में तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद इसके सबसे बड़े और जीवंत उदाहरण हैं। संपूर्ण भारत में इस्लामिक धर्मांधता के चलते आक्रांताओं एवं कट्टरपंथियों की भीड़ ने अनेक मंदिर ध्वस्त किये थे, जिनकी चर्चा भी आज नहीं होती है। 90 के दशक में जम्मू-कश्मीर राज्य की कश्मीर घाटी को हिंदू विहीन करने के बाद वहाँ भी यह कृत्य दोहराए गए। आज जम्मू-कश्मीर के अनेक प्रसिद्ध मंदिर जर्जर अवस्था में हैं, वहीं अनेक मंदिरों के तो अवशेष भी नहीं बचे हैं। 
          बँटवारे के बाद से ही पाकिस्तान में भी हिंदू समाज और मंदिरों पर हमले प्रारंभ हो गए थे। पाकिस्तान में ज्यादातर मंदिर बंद हैं। वहाँ किसी प्रकार की धार्मिक पूजा-अर्चना करना संभव नहीं है। इस मंदिर की आधारशिला रखने वाले पाकिस्तान के मानवाधिकारों के संसदीय सचिव लाल चंद्र माल्ही ने बताया कि वर्ष 1947 से पहले इस्लामाबाद और उससे सटे हुए इलाकों में कई हिंदू मंदिर थे। लेकिन, कट्टरपंथियों के कारण अब यह उपयोग में नहीं है। कई मंदिरों पर ताले लगा दिए गए हैं और कई मंदिरों को ध्वस्त कर दिया गया है। पाकिस्तान में घटा यह घटनाक्रम इस्लामिक कट्टरता का उदाहरण है। यह इस बात का भी उदाहरण है कि वहाँ हिंदुओं एवं अल्पसंख्यकों की स्थिति ठीक नहीं। हिंदू और अन्य अल्पसंख्यकों पर होने वाले धार्मिक अत्याचारों को संज्ञान में लेकर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को पाकिस्तान पर दबाव बनाना चाहिए।