शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

नायकों का सम्मान


देश के प्रतिष्ठित पुरस्कारों/सम्मानों को लेकर समाज में सकारात्मक चर्चा हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विरोधी भी मन मारकर प्रशंसा करने को मजबूर हैं कि उन्होंने देश के वास्तविक नायकों को खोजकर उनका सम्मान करने की परंपरा प्रारंभ की है। सही मायने में अब पद्म पुरस्कारों को अधिक पात्र लोग मिल रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में जिन साधारण से दिखने वाले असाधारण लोगों को पद्म पुरस्कार दिए गए हैं, उससे पद्म पुरस्कारों का ही सम्मान अधिक बढ़ गया है। एक समय था जब ज्यादातर नामचीन और सत्ता के इर्द-गिर्द परिक्रमा करने वाले लोगों के हिस्से में ये पुरस्कार आते थे। सरकार 'अपने लोगों' को संतुष्ट एवं प्रसन्न करने के लिए उन्हें ये पुरस्कार देती थी। लेकिन अब दृश्य पूरी तरह बदल गया है। अपने काम से अलग पहचान बनाने वाले आम लोगों को पद्म पुरस्कार मिल रहे हैं।

  पिछले छह-सात वर्षों के पद्म पुरस्कार, देश के उन अनजान विभूतियों को समर्पित किए गए हैं, जिन्होंने समाज के उत्थान में अनुकरणीय योगदान दिया है। वे बड़े नाम नहीं हैं। उनके पास बड़ी जमा-पूंजी भी नहीं है। परंतु, उनका हौसला, सोच, काम और समर्पण बहुत बड़ा है। ये नायक किसी पुरस्कार और सम्मान की अपेक्षा किए बिना चकाचौंध से दूर रहकर चुपचाप दूसरों की जिंदगियां रोशन कर रहे हैं। किसी ने अपना सारा जीवन लगाकर प्रकृति को संवारा है, जैविक खेती को बढ़ाया है, जंगल विकसित किए हैं, देशी बीज बचाए हैं तो किसी ने परंपराओं को सहेजा है। किसी ने भारतीय लोक कला को फिर से विश्व पटल पर स्थापित किया है। साहित्य के माध्यम से समाज का प्रबोधन करने वाले नाम भी हैं। बेसहारा और अनाथ लोगों का जीवन संवारने वाले नायक हैं तो महिलाओं के स्वाभिमान की आवाज बनने वाली नायिकाएं भी हैं। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनकी सरकार की विचारधारा ने बता दिया कि उनके लिए देश का सामान्य नागरिक सबसे ऊपर है। नये भारत में जमीन पर काम करने वालों का महत्व है, जो सही मायने में भारत का निर्माण कर रहे हैं। अब पुरस्कार ऐसे लोगों से दूर हो गए हैं, जो काम कम करते थे लेकिन प्रचार प्रबंधन में कुशल थे। मोदी सरकार ने व्यक्ति की पहचान की अपेक्षा काम के महत्व को बढ़ा दिया है। याद हो, पद्म पुरस्कारों की प्रक्रिया में बदलाव का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में कहा था- "हर वर्ष पद्म पुरस्कार देने की परम्परा रही है लेकिन पिछले वर्षों में इसकी पूरी प्रक्रिया बदल गई है। अब कोई भी नागरिक किसी को भी नामांकित कर सकता है। ऑनलाइन हो जाने से पूरी प्रक्रिया पारदर्शी हो गई है"। 

पहले पुरस्कारों की घोषणा और समारोह की प्रतीक्षा कुछ विशेष लोगों को ही रहती थी। परंतु, अब देश के आम नागरिक को भी इसकी प्रतीक्षा रहती है, क्योंकि वह देश के वास्तविक नायकों को सम्मानित होते देखना चाहता है। यह बदलाव शुभ है। 

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