शुक्रवार, 29 सितंबर 2023

देश का सबसे ‘स्मार्ट राज्य’ है मध्यप्रदेश

किसी समय में मध्यप्रदेश की छवि एक बीमारू और पिछड़े राज्य की थी। पिछले 15-20 वर्षों में मध्यप्रदेश अपनी उस छवि से बाहर निकलकर विकसित एवं समृद्ध प्रदेश के रूप में स्थापित हो गया है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि प्रदेश की प्रगति में और उसका वातावरण बदलने में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एवं उनकी सरकार की नीतियों की भूमिका प्रमुख है। प्रदेश के हिस्से आ रहे विभिन्न प्रकार के राष्ट्रीय पुरस्कार इस बात के साक्षी हैं कि अब मध्यप्रदेश पिछड़ा और बीमारू राज्य नहीं, अपितु विकास पथ पर नये कीर्तिमान रचनेवाला प्रदेश है। स्वच्छ भारत अभियान की रैंकिंग में उत्साह बढ़ानेवाली सफलताएं प्राप्त करने के बाद अब प्रदेश ने स्मार्ट सिटी से संबंधित विभिन्न श्रेणियों में पुरस्कार प्राप्त करके अपनी प्रतिष्ठा को और बढ़ाया है। देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर में आयोजित स्मार्ट सिटी कान्क्लेव में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु ने जब स्मार्ट सिटी से संबंधित दो श्रेणियों के पुरस्कारों की घोषणा की तो मध्यप्रदेश ने बाजी मार ली। इंदौर को देश की सबसे स्मार्ट सिटी होने का पुरस्कार मिला, वहीं मध्यप्रदेश को देश का सबसे स्मार्ट राज्य होने का सम्मान मिला है। यानी दो मुख्य श्रेणियों में शीर्ष पर मध्यप्रदेश चमक रहा है। इसके साथ ही अपनी विरासत को सहेजने के मामले में भोपाल को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ है।

शनिवार, 23 सितंबर 2023

आरएसएस के विचार से परिचित कराती ‘संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति’


- डॉ. मयंक चतुर्वेदी

लेखक लोकेन्‍द्र सिंह की पुस्‍तक ‘संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति’ को आप राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ को समझने का एक आवश्‍यक और सरल दस्तावेज़ समझ सकते हैं। वैसे तो संघ के कार्य और उसे समझने के लिए आपको अनेक पुस्‍तकें बाजार में मिल जाएंगी किंतु लोकेन्‍द्र सिंह के लेखन की जो विशेषता विषय के सरलीकरण की है, वह हर उस पाठक के मन को संतुष्टि प्रदान करने का कार्य करती है, जिसे किसी भी विषय को सरल और सीधे-सीधे समझने की आदत है। लोकेन्‍द्र सिंह की पुस्‍तक पढ़ते समय आपको हिन्‍दी साहित्य के बड़े विद्वान आचार्य रामचंद्र शुक्ल की लिखी यह बात अवश्‍य याद आएगी- “लेखक अपने मन की प्रवृत्ति के अनुसार स्वच्छंद गति से इधर-उधर फूटी हुई सूत्र शाखाओं पर विचरता चलता है। यही उसकी अर्थ सम्बन्धी व्यक्तिगत विशेषता है। अर्थ-संबंध-सूत्रों की टेढ़ी-मेढ़ी रेखाएँ ही भिन्न-भिन्न लेखकों के दृष्टि-पथ को निर्दिष्ट करती हैं। एक ही बात को लेकर किसी का मन किसी सम्बन्ध-सूत्र पर दौड़ता है, किसी का किसी पर। इसी का नाम है एक ही बात को भिन्न दृष्टियों से देखना। व्यक्तिगत विशेषता का मूल आधार यही है”। इसी तरह से  ‘हिन्दी साहित्य कोश’ कहता है कि “लेखक बिना किसी संकोच के अपने पाठकों को अपने जीवन-अनुभव सुनाता है और उन्हें आत्मीयता के साथ उनमें भाग लेने के लिए आमंत्रित करता है। उसकी यह घनिष्ठता जितनी सच्ची और सघन होगी, उसका लेखन पाठकों पर उतना ही सीधा और तीव्र असर करेगा”। वस्‍तुत: इन दो अर्थों की कसौटी पर बात यहां लोकेन्‍द्र सिंह के लेखन को लेकर की जाए तो उनकी यह पुस्‍तक पूरी तरह से अपने साथ न्‍याय करती हुई देखाई देती है। संघ पर लिखी अब तक की अनेक किताबों के बीच यह पुस्‍तक आपको अनेक भाव-विचारों के बीच गोते लगाते हुए इस तरह से संघ समझा देती है कि आप पूरी पुस्‍तक पढ़ जाते हैं और लगता है कि अभी तो बहुत थोड़ा ही हमने पढ़ा है। काश, लोकेन्‍द्र सिंह ने आगे भी इसका विस्‍तार किया होता!

रविवार, 17 सितंबर 2023

तमाशबीन नहीं, हमें है जागृत समाज की आवश्यकता


देश के विभिन्न हिस्सों से सामने आनेवाली कुछ घटनाओं को लेकर सामाजिक एवं राजनीतिक नेतृत्व को चिंतित होना चाहिए। ये घटनाएं सामान्य नहीं हैं, इनमें गंभीर आशंकाएं छिपी हैं। इन स्थितियों को बदले बिना हम अपने देश को आगे नहीं ले जा सकेंगे। दिल्ली में साहिल नाम का लड़का नृशंसता से 16 वर्ष की नाबालिग लड़की की हत्या कर देता है। इस घटना ने देश का झकझोर दिया था। इस घटना का विश्लेषण करते समय केवल हत्या करने के वहसी तौर-तरीके तक सीमित नहीं रहना चाहिए बल्कि इस घटना का सबसे डरावना पक्ष यह है कि साहिल जब किशोरी पर चाकुओं से वार कर रहा था, उसके सिर को पत्थर से कुचल रहा था तब इस सबसे वहाँ खड़े लोगों पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। लोग बहुत ही सहजता से यह सब होते हुए न केवल देख रहे थे, बल्कि वहाँ से ऐसे गुजर रहे थे कि जैसे सबकुछ सामान्य है। इसे समाज की संवेदनहीनता कहें या कायरता।

गुरुवार, 14 सितंबर 2023

हिन्दी की दुनिया में सबका स्वागत


विश्व में करीब तीन हजार भाषाएं हैं। इनमें से हिन्दी ऐसी भाषा है, जिसे मातृभाषा के रूप में बोलने वाले दुनिया में दूसरे स्थान पर हैं। मातृभाषा की दृष्टि से पहले स्थान पर चीनी है। बहुभाषी भारत के हिन्दी भाषी राज्यों की जनसंख्या 46 करोड़ से अधिक है। 2011 की जनगणना के मुताबिक भारत की 1.2 अरब जनसंख्या में से 41.03 प्रतिशत की मातृभाषा हिन्दी है। हिन्दी को दूसरी भाषा के तौर पर उपयोग करने वाले अन्य भारतीयों को मिला लिया जाए तो देश के लगभग 75 प्रतिशत लोग हिन्दी बोल सकते हैं। भारत के इन 75 प्रतिशत हिन्दी भाषियों सहित पूरी दुनिया में लगभग 80 करोड़ लोग ऐसे हैं जो इसे बोल या समझ सकते हैं। भारत के अलावा हिन्दी को नेपाल, मॉरिशस, फिजी, सूरीनाम, यूगांडा, दक्षिण अफ्रीका, कैरिबियन देशों, ट्रिनिदाद एवं टोबेगो और कनाडा आदि में बोलने वालों की अच्छी खासी संख्या है। इसके अलावा इंग्लैंड, अमेरिका, मध्य एशिया में भी इसे बोलने और समझने वाले लोग बड़ी संख्या में हैं।