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एक महत्वपूर्ण प्रयास केंद्र में भाजपानीत सरकार के आने के बाद से प्रारंभ हुआ है, जिसकी चर्चा व्यापक स्तर पर नहीं हुई है। केंद्र सरकार के लक्षित प्रयासों के कारण 2014 के बाद से 42 मूर्तियों को विदेशों से वापस लाया गया है। ये मूर्तियां पुरातात्विक महत्व की हैं और भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करती हैं। संस्कृति मंत्रालय एवं विदेश मंत्रालय के संयुक्त प्रयास भारत की विरासत के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता को भी प्रकट करते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष ही लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को वापिस लाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की थी। लगभग 107 वर्ष पहले वाराणसी के मंदिर से चुराई गई माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा को कनाडा की ‘यूनिवर्सिटी ऑफ रिजायना’ के ‘मैकेंजी आर्ट गैलरी’ में रख दिया गया था। कला एवं सौंदर्य की दृष्टि से उत्क्रष्ट इस प्रतिमा को केंद्र सरकार कनाडा से वापस प्राप्त करने में सफल रही। केंद्र सरकार की ओर से 11 नवम्बर को उत्तरप्रदेश सरकार को यह प्रतिमा सौंपी गई। आगे हम सबने देखा कि उत्तरप्रदेश सरकार ने बहुत ही गरिमामयी आयोजन के साथ प्रतिमा को उसके मूल स्थान पर स्थापित कर दिया। नये भारत में यह एक सुखद परिवर्तन दिखाई दे रहा है कि सरकारें अब निसंकोच अपनी विरासत की पुनर्स्थापना कर रही हैं।
स्मरण रखें कि जो लोग/व्यवस्थाएं अपनी विरासत के प्रति सचेत रहते हैं और गौरव के भाव से भरे रहते हैं, वे बाकी क्षेत्रों में भी प्रगति करते हैं। सांस्कृतिक विरासत के प्रति संवेदनशील मन बताते हैं कि उनके लिए ‘राष्ट्र सबसे पहले’ है। वह अपने राष्ट्र के स्वाभिमान को सबसे ऊपर रखते हैं। वहीं, सांस्कृतिक विरासत के प्रति उदासीनता अपने मूल्यों एवं पहचान के प्रति लापरवाह प्रवृत्ति को रेखांकित करती है। उत्तरप्रदेश की सरकार ने माँ अन्नपूर्णा की प्रतिमा की पुनस्र्थापना के लिए भव्य यात्रा निकालने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह यात्रा विभिन्न शहरों एवं गाँवों से होकर गुजरी। सभी जगह प्रतिमा का स्वागत एवं वंदन किया गया। एकादशी के शुभ अवसर पर 15 नवम्बर को वाराणसी में बाबा विश्वनाथ दरबार परिसर में धार्मिक अनुष्ठान के साथ माँ अन्नपूर्णा की मोहक प्रतिमा को स्थापित किया गया।
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यह पूरा कार्यक्रम 2014 के बाद से विरासत को सहेजने के प्रयासों की ओर ध्यान दिलाता है। एक तो यात्रा के बहाने आम समाज को ध्यान आएगा कि भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना के लिए पिछले वर्षों में भाजपा सरकार ने किस स्तर पर जाकर प्रयास किए हैं। वहीं, दूसरी ओर प्रतिमा को इस तरह भव्यता के साथ स्थापित करने से कई विपक्षी राजनीतिक दलों एवं तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवियों के पेट में मरोड़ उठी है, जिसके कारण भी राष्ट्रीय विमर्श में विरासत को सहेजने के सरकार के प्रयासों की चर्चा स्वत: हो रही है। यानी अपने कार्य को जनता के बीच बताने का जो काम सरकार को करना चाहिए था, वह विपक्ष और उसके सहयोगी बुद्धिजीवी कर सकते हैं।
यह देखना चाहिए कि एक ओर कांग्रेस के नेता हिन्दुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हराम जैसे आतंकी संगठनों से कर रहे हैं, मुगल आक्रांताओं की जय-जयकार कर रहे हैं तथा जय श्रीराम का जयकारा लगाने वाले रामभक्तों को कालनेमि राक्षस बता रहे हैं, तब भाजपा सरकार हिन्दू संस्कृति एवं विरासत को सहेजने का काम गौरव की अनुभूति के साथ कर रही है। यह संभव है कि 2014 से पूर्व पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व की प्रतिमाओं की वापसी के लक्षित प्रयास इसलिए भी नहीं हुए होंगे क्योंकि यह सीधे तौर पर हिन्दू धर्म से जुड़ा मामला है। बहरहाल, अब दृश्य बदल गया है। केंद्र की सरकार हिन्दू या कहें भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुडऩे और उन्हें सिंचित करने में कतई संकोच नहीं करती है। इसलिए सरकार की ओर से विदेशों से भारतीय विरासत की वापसी के गंभीर प्रयास हो रहे हैं, जिसके प्रभावी परिणाम भी सामने आ रहे हैं।
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