Lokendra Singh |
विश्व जल दिवस पर जल शक्ति अभियान की शुरुआत कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मनुष्यता एवं प्रकृति-पर्यावरण के हित में एक महत्वपूर्ण शुरुआत की है। जल संरक्षण और जल प्रबंधन एक-दूसरे के पूरक हैं। बिना जल संरक्षण किए अगर हम जल का दोहन करेंगे, तो आने वाले समय में जल संकट की समस्या उत्पन्न हो जाएगी। भारत के अनेक हिस्सों में अब हम इस संकट का सामना करने की स्थिति में आ चुके हैं। यह संभलने का समय है। यह अभियान हमें संभलने का अवसर देता है। इस अभियान को ‘कैच द रैन’ नाम दिया गया है। वर्षा जल का संचयन करना, इसका उद्देश्य है।
शहरीकरण की प्रक्रिया में एक बड़ी चूक पिछले वर्षों में हुई है कि वर्षा जल के संचयन की प्राकृतिक एवं नैसर्गिक संरचनाओं को हमने ध्वस्त कर दिया या बदहाल होने दिया। स्थिति यह है कि वर्षा जल का ज्यादातर हिस्सा बह कर शहर से बाहर चला जाता है, जबकि उसको वहाँ की भूमि में समाना चाहिए था। भू-जल स्तर को बनाए रखने में वर्षा जल का बहुत महत्व है। थोड़ी जागरूकता एवं थोड़े ही प्रयासों से हम वर्षा जल का संचयन कर सकते हैं। इसलिए इस अभियान को वर्षा जल के संचयन से जोडऩा अनुकरणीय है।
मध्यप्रदेश में अनेक स्वयंसेवी संस्थाएं एवं समाजसेवी वर्षा जल के संचयन के लिए क्रांतिकारी पहल प्रारंभ कर चुके हैं। मध्यप्रदेश के बैतूल में पर्यावरण पुरुष मोहन नागर बारिश के पानी को सहजने के लिए ग्रामवासियों के सहयोग से ‘गंगा अवतरण अभियान’ एवं ‘बोरी बंधान’ जैसे परंपरागत वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करते हैं। इन प्रयोगों के कारण जिन गाँवों में कभी जल संकट भयावह हो जाता था, आज वहाँ संग्रहित वर्षा जल का उपयोग सिंचाई के लिए भी होने लगा है। वहीं, झाबुआ में शिव गंगा अभियान के चला कर पद्मश्री महेश शर्मा ने एक लाख से अधिक जल संरचनाएं खड़ी कर दीं। दोनों ही महानुभाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से प्रेरणा लेकर पर्यावरण संरक्षण के महती अभियान में जुटे हुए हैं।
पर्यावरण पुरुष मोहन नागर के प्रयासों पर केन्द्रित फिल्म
यह ठीक बात है कि सरकार ने वर्षा जल संरक्षण की चिंता की है लेकिन यह जब तक समाज की चिंता का विषय नहीं बनेगा, तब तक वांछित लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। जल संरक्षण प्रत्येक मनुष्य का दायित्व होना चाहिए। जीवन में जल का क्या महत्व है, हमारी संस्कृति में, ऋषियों ने इसे भली प्रकार रेखांकित किया है। उन्होंने बताया है कि पृथ्वी का आधार जल और जंगल है। इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- “वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:” अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। हिन्दुओं के चार वेदों में से एक अथर्ववेद में बताया गया है कि आवास के समीप शुद्ध जलयुक्त जलाशय होना चाहिए। जल दीर्घायु प्रदायक, कल्याणकारक, सुखमय और प्राणरक्षक होता है। छान्दोग्योपनिषद् में अन्न की अपेक्षा जल को उत्कृष्ट कहा गया है। महर्षि नारद ने भी कहा है कि पृथ्वी भी मूर्तिमान जल है। अन्तरिक्ष, पर्वत, पशु-पक्षी, देव-मनुष्य, वनस्पति सभी मूर्तिमान जल ही हैं। जल ही ब्रह्मा है।
आधुनिक जीवनशैली में हम अपनी संस्कृति की सीखों को पीछे छोड़ते आए हैं, जिसके कारण आज अनेक प्रकार के संकटों का सामना कर रहे हैं। जल शक्ति अभियान के माध्यम से हमारे पास एक अवसर आया है कि हम अपनी संस्कृति के संदेशों को आत्मसात करें, दुनिया के सामने आचरण हेतु प्रस्तुत करें और प्रकृति के साथ अपने आत्मीय संबंध को पुन: प्रगाढ़ करें। याद रखें, जल का कोई विकल्प नहीं है। इसलिए इसका संरक्षण एवं संचयन अनिवार्य है।
बहुत प्रेरक फिल्म . सुन्दर आलेख
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