रविवार, 30 जनवरी 2022

हंगामा नहीं, सत्यान्वेषण कीजिये

Lokendra Singh / लोकेन्द्र सिंह

पत्रकारिता के संबंध में कुछ विद्वानों ने यह भ्रम पैदा कर दिया है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में वह विपक्ष है। जिस प्रकार विपक्ष ने हंगामा करने और प्रश्न उछालकर भाग खड़े होने को ही अपना कर्तव्य समझ लिया है, ठीक उसी प्रकार कुछ पत्रकारों ने भी सनसनी पैदा करना ही पत्रकारिता का धर्म समझ लिया है। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की विराट भूमिका से हटाकर न जाने क्यों पत्रकारिता को हंगामाखेज विपक्ष बनाने का प्रयत्न किया जा रहा है? यह अवश्य है कि लोकतंत्र में संतुलन बनाए रखने के लिए चारों स्तम्भों को परस्पर एक-दूसरे की निगरानी करनी है। पत्रकारिता को भी सत्ता के कामकाज की समीक्षा करनी है और उसको आईना दिखाना है। हम पत्रकारिता की इस भूमिका को देखते हैं, तब हमें वह हंगामाखेज नहीं अपितु समाधानमूलक दिखाई देती है। भारतीय दृष्टिकोण से जब हम संचार की परंपरा को देखते हैं, तब प्रत्येक कालखंड में संचार का प्रत्येक स्वरूप लोकहितकारी दिखाई देता है। संचार का उद्देश्य समस्याओं का समाधान देना रहा है।

बुधवार, 12 जनवरी 2022

भारत भक्ति से भरा मन है ‘स्वामी विवेकानंद’


स्वामी विवेकानंद ऐसे संन्यासी हैं, जिन्होंने हिमालय की कंदराओं में जाकर स्वयं के मोक्ष के प्रयास नहीं किये बल्कि भारत के उत्थान के लिए अपना जीवन खपा दिया। विश्व धर्म सम्मलेन के मंच से दुनिया को भारत के ‘स्व’ से परिचित कराने का सामर्थ्य स्वामी विवेकानंद में ही था, क्योंकि विवेकानंद अपनी मातृभूमि भारत से असीम प्रेम करते थे। भारत और उसकी उदात्त संस्कृति के प्रति उनकी अनन्य श्रद्धा थी। समाज में ऐसे अनेक लोग हैं जो स्वामी जी या फिर अन्य महान आत्माओं के जीवन से प्रेरणा लेकर भारत की सेवा का संकल्प लेते हैं। रामजी की गिलहरी के भांति वे भी भारत निर्माण के पुनीत कार्य में अपना योगदान देना चाहते हैं। परन्तु भारत को जानते नहीं, इसलिए उनका गिलहरी योगदान भी ठीक दिशा में नहीं होता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक, चिन्तक एवं वर्तमान में सह-सरकार्यवाह डॉ. मनमोहन वैद्य अक्सर कहते हैं कि “भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ”। भारत के निर्माण में जो भी कोई अपना योगदान देना चाहता है, उसे पहले इन बातों को अपने जीवन में उतरना होगा। भारत को मानेंगे नहीं, तो उसकी विरासत पर विश्वास और गौरव नहीं होगा। भारत को जानेंगे नहीं तो उसके लिए क्या करना है, क्या करने की आवश्यकता है, यह ध्यान ही नहीं आएगा। भारत के बनेंगे नहीं तो बाहरी मन से भारत को कैसे बना पाएंगे? भारत को बनाना है तो भारत का भक्त बनना होगा। उसके प्रति अगाध श्रद्धा मन में उत्पन्न करनी होगी। स्वामी विवेकानंद भारत माता के ऐसे ही बेटे थे, जो उनके एक-एक धूलि कण को चन्दन की तरह माथे पर लपेटते थे। उनके लिए भारत का कंकर-कंकर शंकर था। उन्होंने स्वयं कहा है- “पश्चिम में आने से पहले मैं भारत से केवल प्रेम करता था, परंतु अब (विदेश से लौटते समय) मुझे प्रतीत होता है कि भारत की धूलि तक मेरे लिए पवित्र है, भारत की हवा तक मेरे लिए पावन है, भारत अब मेरे लिए पुण्यभूमि है, तीर्थ स्थान है”।

शनिवार, 8 जनवरी 2022

सूर्य नमस्कार का मूर्खतापूर्ण विरोध

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के निर्णय एवं प्रस्ताव स्पष्ट करते हैं कि मुस्लिम समुदाय को पिछड़ा रखने एवं उसमें सांप्रदायिक कट्टरता को बढ़ावा देने में इस संस्था की बड़ी भूमिका है। अपनी सांप्रदायिक सोच एवं प्रस्तावों के कारण यह संस्था विवादों में रहती है। पिछले दिनों भारत में पाकिस्तान के घोर सांप्रदायिक ‘ईशनिंदा कानून’ को भारत में लागू करने की माँग करके मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड विवादों में रहा था। उस समय देशभर में इस सांप्रदायिक माँग का विरोध किया गया। लेकिन उसके बाद भी बोर्ड ने अपनी सोच को बदला नहीं है। अब बोर्ड ने सूर्य नमस्कार का विरोध करके जता दिया है कि उसे कथित ‘गंगा-जमुनी संस्कृति’ से उसको कोई लेना-देना नहीं है। सबको मिलकर ऐसी कट्टर और संकीर्ण विचारों का विरोध करना चाहिए। इस तरह के विचारों को हतोत्साहित करना सभी समुदायों के हित में है।