मेरे गाँव की शाम | Mere Gaanv Ki Shaam | Lokendra Singh
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में
सूरज अपनी किरणें समेटे
पहाड़ के पीछे जाता होगा
शीतलता फैलाते-फैलाते
चन्दा मामा आता होगा।
नदी किनारे सांझ ढले
मोहन बंसी मधुर बजाता होगा
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
पीपल वाले कुंए पर पानी भरने
मेरी दीवानी आती होगी
चूल्हा जलाने अम्मा
जंगल से लकड़ी बहुत-सी लाती होगी
मंदिर से घंटे की आवाज सुनकर
मां घर में संझावाती करती होगी।
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
दूर हवा में धूला उड़ती देखो
चरवाहे गायों को लेकर आते होंगे
अपनी मां की बाट चाह रहे
गौत में बछड़े रम्भाते होंगे
आज के प्रदूषित वातवरण में भी
सच्चे सुख मेरे गांव में मिलते होंगे।
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
सूरज अपनी किरणें समेटे
पहाड़ के पीछे जाता होगा
शीतलता फैलाते-फैलाते
चन्दा मामा आता होगा।
नदी किनारे सांझ ढले
मोहन बंसी मधुर बजाता होगा
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
पीपल वाले कुंए पर पानी भरने
मेरी दीवानी आती होगी
चूल्हा जलाने अम्मा
जंगल से लकड़ी बहुत-सी लाती होगी
मंदिर से घंटे की आवाज सुनकर
मां घर में संझावाती करती होगी।
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
दूर हवा में धूला उड़ती देखो
चरवाहे गायों को लेकर आते होंगे
अपनी मां की बाट चाह रहे
गौत में बछड़े रम्भाते होंगे
आज के प्रदूषित वातवरण में भी
सच्चे सुख मेरे गांव में मिलते होंगे।
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)
भाई लोकेन्द्र जी आपकी कविता में अपने गाँव के लिये बडी खूबसूरत यादें व कल्पनाएं हैं । मैं भी गाँव से ही हूँ और इसे ज्यादा महसूस कर सकती हूँ । मुझे भी 85-86 में लिखी कविता याद आई है जो लगभग इसी तरह की है कुछ पंक्तियाँ यहाँ दे भी रही हूँ--
जवाब देंहटाएंआरहे पंछी घर को ,
लाँघते से अम्बर को ।
आये ज्यों देख कर ,
किसी के स्वयंवर को ।
सूरज को धीरे से,
ओट में छुपाती सी ।
पेडों की फुनगी पर,
दीप से जलाती सी ।
रूप में अकेली है ,
साँझ मेरे गाँव की ।
वाह दीदी.. बहुत सुन्दर
हटाएंsundar!!
हटाएंगाँव की खूबसूरत यादें
जवाब देंहटाएंआज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)
जवाब देंहटाएंहोता है संजय जी कभी कभी...
हटाएंखैर प्रेम बना हुआ है यही बड़ी बात है
सकारात्मक सोच का, प्रगटीकरण सटीक ।
जवाब देंहटाएंगाँव आज भी बढ़ रहे, पकड़ सभ्यता लीक ।
पकड़ सभ्यता लीक, नियत में भलमनसाहत ।
भाई चारा ठीक, सदा खुशहाली चाहत ।
किन्तु जरूरत आज, सही सरकारी नीती ।
भ्रष्टाचारी बाज, छोड़ ना पाता रीती ।।
धन्यवाद रवि जी
हटाएंआज के प्रदूषित वातवरण में भी
जवाब देंहटाएंसच्चे सुख मेरे गांव में मिलते होंगे।
शाम सुहानी आती होगी मेरे गांव में।
यकी़नन ऐसा ही होता होगा ... भावमय करते शब्दो का संगम ... बहुत ही बढिया
सदा जी यकीनन ऐसा ही होता है.. कभी आईये मेरे गाँव
हटाएंबहुत सुन्दर लोकेन्द्र जी....
जवाब देंहटाएंएक पेंटिंग की तरह लगी आपकी कविता.....
पूरा दृश्य आँखों के आगे तैर गया...
बहुत खूब.
अनु
शुक्रिया अनु जी
हटाएंबहुत ही सुंदर वर्णन ....
जवाब देंहटाएंआँखों के सामने से गुजर गए हर रंग गाँव के ...
आपकी ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ
अच्छा लगा आकर ...
अगर कभी समय हो तो मेरी भी एक रचना गाँव पर ही, आईएगा पढ़ने
http://kumarshivnath.blogspot.in/2012/05/blog-post.html
शिवनाथ जी धन्यवाद.. जल्द ही आऊंगा आपके ब्लॉग पर अभी थोड़ी सी व्यस्तता है
हटाएंlokendra ji , gaon ki yadon ko aapne badi sundarta ke sath saheja hai..... sunder kavita.
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र जी बस एक कोशिश की है
हटाएंगाँव की यादे होती ही ऐसी है कि उन्हें भुलाया ही नही जा सकता,,,
जवाब देंहटाएंबेहतरीन प्रस्तुति,,,,
RECENT POST ...: आई देश में आंधियाँ....
सच कहा धीरेन्द्र जी
हटाएंबहुत सुन्दर चित्रण अपने गाँव का लोकेन्द्र जी ! कुछ टंकण गलतियां है जैसे बजता उन्हें ठीक कर लें तो और सुन्दर बन पड़ेगी कविता !
जवाब देंहटाएंगोदियाल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद...
हटाएंएक भूला बिसरा चित्र आँखों के सामने तैरने लगा...बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहरियाली की चादर ओढे देखो मेरा गाँव
जवाब देंहटाएंझुम के बरसी बरखा रानी थिरक उठे हैं पांव
सुंदर चित्रण गाँव का
मधुर बंशी की तान का
बरगद की शीतल छांव का।
ललित जी आनंद आ गया
हटाएंगाँव याद करते ही कोई ऐसा पिटारा खुल जाता है कि फिर एक चाह कि काश वो दिन कोई लौटा दे..आपको पढ़कर कुछ यही चाह उभर आई..
जवाब देंहटाएंजी, अमृता जी.... और उस पिटारे से ढेर साड़ी चीजे निकलती हैं...
हटाएंगाँव नहीं भुला पायेंगे आप| जहां भी रहेंगे, गाँव आपके साथ ही रहता है|
जवाब देंहटाएंसच कहा संजय जी. नहीं भुला सकता... जीवन की नीव वहीँ है...
हटाएंशुक्रिया सुषमा जी
जवाब देंहटाएंगाँव की तस्वीर आँखों के सामने घूम गई. जीवन भले कहीं भी बीते गाँव में दिल बसता है. सुन्दर रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएंmere gaanv ki yad dila di...
जवाब देंहटाएंगावों में ही बसता है अपना देश...और रमता है अपना मन।
जवाब देंहटाएंसुंदर शब्द चित्र।
जवाब देंहटाएंसुन्दर गाँव, सुन्दर दृश्यावलि, सुन्दर कविता!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर गीत... चित्र सा खींच गया सम्मुख....
जवाब देंहटाएंसादर।
गांव का सुंदर चित्रण।
जवाब देंहटाएंगाँव की भावभीनी सुनहरी यादों को आँचल में समेत लिया हो जैसे और शब्दों में उतार दिया ... बहुत ही सुन्दर रचना है ...
जवाब देंहटाएंलोकेन्द्र जी क्या आपकी इस रचना को हम अपने पेज के साथ साझा कर सकते हैं।
जवाब देंहटाएंजी, अवश्य
हटाएंजहां भी साझा करें, कृपया मुझे लिंक अवश्य भेजिए
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