सोमवार, 31 मई 2021

पुण्यश्लोक राजमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर

देखें यह वीडियो : Rajmata Devi Ahilyabai Holkar



अहिल्याबाई का जन्म 31 मई, 1725 को महाराष्ट्र के जिले अहमदनगर के चौंढ़ी ग्राम तालुका जामखेड़ा में हुआ था। उनके पिता माणकोजी शिंदे और माता सुशीलाबाई बहुत धार्मिक थे। अपने माता-पिता से ही धार्मिक और संवेदनशील होने का संस्कार अहिल्याबाई को विरासत में मिला।  

वर्ष 1733 में पुणे में हिंदू विधि-विधान से उनका विवाह श्रीमंत खण्डेराव के साथ सम्पन्न हुआ। उनको आशीर्वाद देने के लिए बाजीराव पेशवा अपने परिवार के साथ आए थे। एक साधारण परिवार की दिव्य कन्या अब इंदौर के राजमहल की रानी हो गई।

राजमाता अहिल्याबाई ने वीरांगना की भाँति कई युद्धों का भी नेतृत्व किया और शत्रुओं से मालवा की रक्षा की। वे महिला सैनिकों की टुकड़ी के साथ अग्रिम पंक्ति में रहकर मोर्चा संभालती थीं। कुछ युद्ध तो उन्होंने अपनी सूझबूझ से ही टाल दिए थे। 

राज्य एवं जन कल्याण के लिए उन्हें सदैव याद किया जाता है। उनके पास जो भी सहायता के लिए आता, कभी खाली हाथ नहीं जाता था। शिव की उपासक अहिल्याबाई ने माँ नर्मदा के तट पर स्थित महेश्वर को अपनी राजधानी बनाया। 

एक बार मैसूर राज्य में अकाल पड़ गया था, हजारों लोग भूख से मर गये। रानी ने वहाँ के कुशल बुनकरों को महेश्वर में लाकर बसाया। आज महेश्वर की साड़ी एवं हस्तशिल्प का काम दुनिया में प्रसिद्ध है। 

देवी अहिल्याबाई ने न केवल इंदौर-महेश्वर में बल्कि काशी, गया, केदारनाथ, एलोरा, मथुरा, नासिक, प्रयाग, अयोध्या, अमरकंटक सहित देश के अन्य स्थानों पर मंदिरों का निर्माण एवं जीर्णोद्धार भी कराया। महेश्वर में माँ नर्मदा के किनारे भव्य घाट तो अपनी सुंदरता के लिए बहुत प्रसिद्ध है। 

नीति-पूर्वक और उदारता से राज्य का संचालन करने वाली, सबका कल्याण चाहने वाली, शिव की महान भक्त पुण्यश्लोका अहिल्याबाई होल्कर का स्वर्गवास 1795 में हुआ। लेकिन, उनकी कीर्ति सदैव हमारे दिलों में अमर रहेगी। 

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