शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2022

रहस्य और रोमांच से भरी चंडिका गुफा

अमरकंटक दर्शन-13


अमरकंटक का यह स्थान सामान्य पर्यटकों के लिए अनदेखा-अनसुना है। बहुत जिद्दी और साहसी लोग ही यहाँ आ सकते हैं


प्रकृति की गोद में बसा अमरकंटक एक प्रसिद्ध और मन को शांति देने वाला प्राकृतिक एवं धार्मिक पर्यटन स्थल है। सबका पोषण करने वाली सदानीरा माँ नर्मदा का उद्गम स्थल होने के साथ ही यह अपने प्राकृतिक पर्यटन स्थलों एवं धार्मिक स्थलों के लिए सुविख्यात है। अमरकंटक की दुर्गम पहाडिय़ों और घने जंगलों के बीच सोनमूड़ा, फरस विनायक, भृगु का कमण्डल, धूनी पानी और चिलम पानी के साथ ही एक और महत्वपूर्ण स्थान है- चंडिका गुफा। यह स्थान रहस्य और रोमांच से भरा हुआ है। घने जंगलों में सीधे खड़े पहाड़ पर लगभग मध्य में यह गुफा कब और कैसे बनी कोई नहीं जानता? वह कौन योगी था, जो इस अत्यंत दुर्गम स्थान तक आया और यहाँ साधना की। गुफा के बाहर पत्थरों पर लिखे मंत्र भी रोमांच और कौतुहल पैदा करते हैं। ये मंत्र कब लिखे गए, यह भी कोई नहीं जानता। अमरकंटक का यह स्थान सामान्य पर्यटकों के लिए अनदेखा-अनसुना है। बहुत जिद्दी और साहसी लोग ही यहाँ आ सकते हैं। यह जोखिम भरा भी है। एक रोज हम बहुत सारा साहस बटोर कर, अनेक कठिनाईयों को पार कर इस रहस्यमयी और योगियों की तपस्थली चंडिका गुफा तक पहुँचे।

बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : बीज से वटवृक्ष

डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन शुभ संकल्प के साथ एक छोटा बीज बोया था, जो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे सामने है। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँची है, न केवल पहुँची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ संघ की पहुँच न केवल कठिन थी, बल्कि असंभव मानी जाती थी। किंतु, आज उन क्षेत्रों में भी संघ नेतृत्व की भूमिका में है। बीज से वटवृक्ष बनने की संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डॉक्टर हेडगेवार को उम्मीद थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, पंरतु उसके भीतर जीवन है। जब माली अच्छा हो और बीज में जीवटता हो, तो प्रतिकूल वातावरण भी उसके विकास में बाधा नहीं बन पाता है। भारतीय संस्कृति से पोषण पाने के कारण ही अनेक संकटों के बाद भी संघ पूरी जीवटता से आगे बढ़ता रहा। अनेक झंझावातों और तूफानों के बीच अपने कद को ऊंचा करता रहा। अनेक व्यक्तियों, विचारों और संस्थाओं ने संघ को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए, किंतु उनके सब षड्यंत्र विफल हुए। क्योंकि, संघ की जड़ों के विस्तार को समझने में वह हमेशा भूल करते रहे। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। आज भी अनेक लोग संघ को राजनीतिक चश्मे से ही देखने की कोशिश करते हैं। पिछले 90 बरस में इन लोगों ने अपना चश्मा नहीं बदला है। इसी कारण यह संघ के विराट स्वरूप का दर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। जबकि संघ इस लंबी यात्रा में समय के साथ सामंजस्य बैठाता रहा और अपनी यात्रा को दसों दिशाओं में लेकर गया।

सोमवार, 3 अक्तूबर 2022

स्वाधीनता आंदोलन में त्याग, बलिदान और साहस की प्रतीक बन गई थी मातृशक्ति

स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भूमिका | Role of women in freedom movement


प्रत्येक कालखंड में मातृशक्ति ने भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चली है अपितु अनेक अवसर पर अग्रणी भूमिका में भी रही है। आज जबकि समूचा देश भारत के स्वाधीनता आंदोलन का अमृत महोत्सव मना रहा है तब मातृशक्ति के योगदान/बलिदान का स्मरण अवश्य करना चाहिए। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के पृष्ठ पलटेंगे और मातृशक्ति की भूमिका को देखेंगे तो निश्चित ही हमारे मन गौरव की अनुभूति से भर जाएंगे। भारत के प्रत्येक हिस्से और सभी वर्गों से, महिलाओं ने स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लिया। अध्यात्म, सामाजिक, राजनीतिक क्षेत्र में सक्रिय होने के साथ ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भी महिलाएं शामिल रहीं। यानी उन्होंने ब्रिटिश शासन व्यवस्था को उखाड़ फेंकने और ‘स्व’ तंत्र की स्थापना के लिए प्रत्येक क्षेत्र से भारत के स्वर एवं उसके संघर्ष को बुलंद किया। आंदोलन के कुछ उपक्रम तो ऐसे रहे, जिनके संचालन की पूरी बागडोर मातृशक्ति के हाथ में रही। भारतीय स्वाधीनता संग्राम का एक भी अध्याय ऐसा नहीं है, जिस पर मातृशक्ति के त्याग, बलिदान और साहस की गाथाएं अंकित न हो।