उ त्तराखण्ड में चल रही राजनीतिक उठा-पटक का हाल-फिलहाल नतीजा यह रहा कि वहाँ पहली बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। अभी आगे की कहानी और लिखी जानी है। उत्तराखण्ड में आगे की पटकथा कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने हिसाब से लिख रही हैं। इस सियासत का आगे का सीन क्या है? इस बारे में अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है। राजनीतिक गलियारों से लेकर देशभर में यह सवाल खड़ा किया जा रहा है कि उत्तराखण्ड में राष्ट्रपति शासन के लिए दोषी कौन है? एक ओर कांग्रेस और उससे सहानुभूति रखने वाले लोग भाजपा को दोष दे रहे हैं। वहीं, भाजपा और उसके साथ खड़े लोगों का मत है कि राष्ट्रपति शासन के लिए कांग्रेस का नेतृत्व दोषी है।
मंगलवार, 29 मार्च 2016
सोमवार, 28 मार्च 2016
इस भीड़ से देश को बचाना होगा
दि ल्ली की घटना ने हर किसी का दिल दहला दिया है। मामूली बात पर किस तरह भीड़ ने एक इंसान की जान ले ली। जैसे भीड़ में शामिल बड़ों और छोटों, सब पर हैवानियत उतर आई थी। किसी के भीतर का इंसान नहीं जागा। आश्चर्यजनक! एक माँ का भी कलेजा नहीं कांपा। कैसे वह मासूम बच्चे के सामने उसके पिता को पीटने के लिए अपने बेटे को उकसा रही थी। आखिर डॉक्टर पंकज नारंग की गलती क्या थी? उसने ऐसा क्या कर दिया था कि अपनी जान गंवानी पड़ी? इस तरह के कुछ सवाल हैं, जो हर उस आदमी को झकझोर रहे हैं, जिस तक यह खबर पहुंच रही है। बांग्लादेश पर भारत की शानदार जीत की खुशी में देश की राजधानी में अपने घर के सामने पिता-पुत्र क्रिकेट खेल रहे थे। बॉल सड़क पर चली जाती है। आठ साल का बच्चा बॉल ढूंढऩे के लिए सड़क पर पहुंचता है। एक ओर से सनसनाती हुई बाइक आती है। बच्चा दुर्घटना होने से बाल-बाल बचता है। यह देख पिता का बौखलाना स्वाभाविक था। उसने बाइक सवार युवक नासिर को फटकार लगाई। दोनों के बीच कहा-सुनी हो गई। आखिर डॉक्टर ने ही बड़प्पन दिखाते हुए माफी माँगी और विवाद खत्म करने को कहा। लेकिन, नासिर अपने घर गया और 25-30 लोगों की भीड़ के साथ लौटा। भीड़ के इरादे नेक नहीं थे। उसने डॉ. पंकज नारंग को उनके घर से खींचकर बाहर निकाला और बेरहमी से सबके सामने पीट-पीटकर मार डाला। मदद के लिए आए पंकज के रिश्तेदार को भी अधमरा कर दिया।
कांग्रेस का कन्हैया प्रेम
कां ग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के हालिया बयान और व्यवहार से देश अचम्भित है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, जिनके पास बुद्धिजीवी होने का भी तमगा है, ऐसे शशि थरूर क्या सोचकर देशद्रोह के आरोपी और एक औसत वामपंथी छात्र कन्हैया कुमार की तुलना शहीद भगत सिंह से करते हैं? पूर्व केन्द्रीय मंत्री शशि थरूर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के परिसर में जाते हैं, वहाँ वामपंथी शिक्षकों और छात्रों को खुश करने के फेर में देश के लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले शहीद भगत सिंह का अपमान कर बैठते हैं। कितने दुर्भाग्य की बात है कि शशि थरूर ने बेहद निंदनीय बयानबाजी भगत सिंह के शहादत दिवस से महज तीन दिन पूर्व की। जब देश शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को नम आँखों से याद करता है, तब कांग्रेस के नेता शहीदों के व्यक्तित्व को बहुत छोटा दिखाने की कोशिश करते हैं। एक अतार्किक और निर्लज्ज राजनीतिक विमर्श को हवा देते हैं? आखिर शशि थरूर एक देशद्रोह के आरोपी की तुलना भगत सिंह से करके क्या साबित करना चाहते हैं? उनकी इस 'बुद्धिजीवी टाइप हरकत' से समूचे देश में आक्रोश है। सब दूर उनकी निंदा हो रही है। स्वयं कांग्रेस के कई नेताओं ने थरूर के बयान से पल्ला झाड़ लिया है। लेकिन, क्या सिर्फ पल्ला झाड़ लेने से कांग्रेस की छवि सुधर जाएगी? यह इसलिए संभव नहीं है क्योंकि एक तरफ कांग्रेस यह कहती है कि वह देशद्रोहियों के साथ नहीं है जबकि वहीं कांग्रेस के नेताओं के व्यवहार और बयानों से साबित होता है कि वह देशद्रोहियों की हिमायती हैं। कांग्रेस गलत स्टैंड लेने के कारण बुरी तरह फंस गई है।
आरक्षण पर संघ के विचार को समझना होगा
पि छले कुछ समय से आरक्षण का मुद्दा देश में गरमाया हुआ है। बीते साल अगस्त में गुजरात के पटेलों ने आरक्षण की मांग की। अभी फरवरी में हरियाणा के जाटों ने हंगामा खड़ा कर दिया। आरक्षण को लेकर दोनों समुदायों ने उग्र प्रदर्शन किया। आरक्षण की आग में पहले गुजरात जला और इस बार हरियाणा। आरक्षण की इस आग से दोनों प्रदेश ही नहीं, बल्कि समूचा देश ही झुलस-सा गया है। आरक्षण की मांग पर पटेलों और जाटों, दोनों को ही शेष समाज का समर्थन हासिल नहीं हो सका। मोटे तौर पर उसके दो कारण हैं। पहला, आरक्षण की मांग के लिए दोनों ने हिंसक रास्ते का चुनाव किया। दूसरा, शेष समाज यह नहीं समझ पा रहा है कि पटेलों और जाटों को आरक्षण क्यों चाहिए? गुजरात में पटेल और हरियाणा में जाट सक्षम और सम्पन्न वर्ग से आते हैं। आखिर सम्पन्न वर्ग भी आरक्षण की वैशाखी क्यों थामना चाह रहे हैं? उनकी मांग से पिछड़े और सवर्ण दोनों ही बेचैन हैं। दोनों वर्ग इस तरह की मांग को अपने हितों पर कुठाराघात की तरह देखते हैं। सम्पन्न वर्गों द्वारा आरक्षण की मांग करने से समाज में परस्पर अविश्वास और तनाव की स्थिति निर्मित हो रही है। समाज के प्रत्येक वर्ग के बीच समरसता लाने के प्रयास में जुटा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इस बात को गहरे से समझता है। यही कारण है कि संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक के बाद जब प्रेसवार्ता में सरकार्यवाह भैयाजी जोशी से प्रश्न किया गया कि आरक्षण पर संघ का क्या एजेंडा है? तब भैयाजी जोशी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि दलितों और पिछड़ों को जातीय आधार पर मिलने वाले आरक्षण को संघ न्यायोचित मानता है। लेकिन, यदि सम्पन्न वर्ग आरक्षण की मांग करता है तो यह सही संकेत नहीं है। बीते कुछ समय में सम्पन्न वर्गों द्वारा आरक्षण मांगने के कारण समाज में जिस तरह का विमर्श खड़ा हो रहा है, जिस तरह एक-दूसरे के प्रति वैमनस्यता का भाव बढ़ रहा है, जिस तरह से एक-दूसरे के प्रति अविश्वास गहरा रहा है, उससे संघ चिंतित है। समाज में गहराती दरारों से उत्पन्न हुई यही चिंता सरकार्यवाह के बयान में परिलक्षित होती दिखाई देती है।
मंगलवार, 22 मार्च 2016
'बड़बोले' नेताओं को प्रधानमंत्री की नसीहत
प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के समापन समारोह में पार्टी के 'बड़बोले' नेताओं को नसीहत दी है। प्रधानमंत्री को यह नसीहत इसलिए देनी पड़ी है, क्योंकि हाल के कुछ समय में अनावश्यक बयानबाजी के कारण बेकार के विवाद खड़े हुए हैं। प्रधानमंत्री ने अपने नेताओं को ताकीद किया है कि मीडिया खोजते हुए आपके पास इसलिए नहीं आ रही है कि आप बहुत महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं, बल्कि उन्हें 'हैडलाइन' चाहिए। भारतीय जनता पार्टी के 'बड़बोले' नेताओं को प्रधानमंत्री के इस संदेश पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। क्योंकि, यह बहुत हद तक सत्य है कि कांग्रेस की बदहाली के पीछे भ्रष्टाचार और कुशासन के साथ-साथ कहीं न कहीं कांग्रेसी नेताओं के विवादित बयानबाजी भी प्रमुख कारण है। एक तो जनता पहले से ही अनेक समस्याओं से परेशान रहती है, ऊपर से नेताओं की अनर्गल बयानबाजी। स्वाभाविक तौर पर जनता में सरकार के प्रति आक्रोश जन्म लेता है। जरा गौर कीजिए कि यूपीए के समय में वरिष्ठ सांसदों और मंत्रियों की बयानबाजी का स्तर क्या था और उसके प्रत्युत्तर में जनता के आक्रोश को भी याद कीजिए? भाजपा के नेता कांग्रेस के हाल से सबक नहीं ले सकते तो कम से कम अपने मुखिया का कहा ही मान लें।
सोमवार, 14 मार्च 2016
विश्व संस्कृति महोत्सव : विरोध के पीछे क्षुद्र मानसिकता
वि घ्न संतोषियों के अनेक प्रकार के कुप्रचार के बावजूद अपने पूरे वैभव और गौरव के साथ यमुना के तट पर विश्व संस्कृति महोत्सव सम्पन्न हो गया। अभूतपूर्व सांस्कृतिक आयोजन में शामिल होने आए करीब 122 देशों के प्रतिनिधि निश्चित ही भारतीय धर्म, सांस्कृतिक एकता, शांति और अहिंसा का संदेश लेकर लौटे होंगे। आध्यात्मिक गुरु श्रीश्री रविशंकर महाराज और उनकी संस्था आर्ट ऑफ लिविंग की सराहना की जानी चाहिए कि उन्होंने दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों को यमुना के तीर एकत्र कर भारत को उनका नेतृत्व करने का अवसर दिया। हमें यह खुले दिल से स्वीकार करना चाहिए कि इस महोत्सव ने भारत को विश्व में गौरव दिलाने का काम किया है। भारत की सांस्कृतिक विविधता और उनके बीच अनूठी एकता का संदेश भी दुनिया में गया है। भारत ने लम्बे समय तक विश्वगुरु की भूमिका का निर्वाहन किया है। विश्व संस्कृति का नेतृत्व करने की भारत की उसी क्षमता का प्रदर्शन दिल्ली में यमुना किनारे हुआ। लेकिन, क्षुद्र मानसिकता के लोगों ने न केवल इस महत्वपूर्ण आयोजन को बदनाम करने का षड्यंत्र रचा, बल्कि इसे रद्द तक कराने की कोशिशें कीं।
शनिवार, 5 मार्च 2016
राजनीतिक चालाकी से भरा भाषण
दे शद्रोह के आरोपी और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को छह माह की अंतरिम जमानत मिलने पर वामपंथी विचारधारा के अनुयायियों में काफी उत्साह है। कन्हैया के जेल से बाहर आने पर वामपंथियों और उसके समर्थकों ने 'होली-दीवाली' सब एकसाथ मना ली। गुरुवार रात को जेएनयू परिसर में कन्हैया कुमार के भाषण के बाद उसके समर्थक गुब्बारे हो गए हैं। सब यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि कन्हैया को देश से नहीं बल्कि देश में आजादी चाहिए। वह तो भुखमरी, गरीबी, अव्यवस्था से आजादी मांग रहा है। अभिव्यक्ति की आजादी चाहिए। खुद को वैज्ञानिक सोच का बताने वाले तथाकथित प्रगतिशील इस तरह की अतार्किक बहस भी शुरू कर सकते हैं, यह गजब की बात है। यदि अभिव्यक्ति की आजादी नहीं होती तब क्या कन्हैया कुमार जेल से छूटकर जेएनयू में मजमा जुटाकर प्रधानमंत्री को कोस सकते थे? या फिर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उन्हें वही 'देशविरोधी नारे' लगाने की आजादी चाहिए। भुखमरी, गरीबी और अव्यवस्था से तो सबको आजादी चाहिए। यह सवाल दो साल पहले सत्ता में आई एनडीए सरकार की अपेक्षा करीब 60 साल शासन में रही कांग्रेस से पूछा जाना अधिक व्यवहारिक होता।
शुक्रवार, 4 मार्च 2016
पर उपदेश कुशल बहुतेरे
स्व यं के व्यवहार में आदर्श को उतारना जितना कठिन होता है, दूसरों को उपदेश देना उतना ही आसान। दूसरों को ज्ञान देने का यह कार्य मनुष्य वर्षों से करता चला आ रहा है। वर्तमान में इस प्रवृत्ति ने अपना वृहद रूप धर लिया है। मनुष्यों के इस व्यवहार को देखकर तुलसीदास जी ने बहुत पहले ही कह दिया था- 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे, जे आचरहिं ते नर न घनेरे।' उर्दू के जानकारों ने इसी बात को कुछ इस तरह कहा- 'औरों को नसीहत, खुद मियां फजीहत।' प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुरुवार को इस लोकोक्ति का उपयोग लोकसभा में दिए अपने भाषण में किया। उन्होंने बिना नाम लिए राहुल गांधी के लिए इस लोकोक्ति का उपयोग किया। गौरतलब है कि एक दिन पूर्व ही कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री और उनकी सरकार पर हास्य-व्यंग्य की शैली में हमला बोला था। मनरेगा योजना के लिए बजट में अधिक पैसे का प्रावधान करने पर राहुल ने तंज कसते हुए कहा कि यह तो कांग्रेस की योजना थी, जिसे मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले कोसते रहते थे। इसी तरह उन्होंने कालेधन पर वित्तमंत्री की योजना को 'फेयर एण्ड लवली' योजना बता दिया था। प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडिया' पर भी सवाल खड़े किए।
बुधवार, 2 मार्च 2016
संसद में हंगामा.... विशेषाधिकार!
सं सद में मंगलवार को वही सब हुआ, जिसका अंदेशा देश को पहले से था। हंगामा और सिर्फ हंगामा। मानो हंगामा खड़ा करना ही हमारा मकसद हो गया हो। किसी भी मुद्दे पर संसद को ठप किया जा सकता है। इस बार विशेषाधिकार पर हंगामा काटा जाना लगभग तय लग रहा है। गौरतलब है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मुद्दे पर मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी द्वारा संसद में की गयी टिप्पणियों पर एकजुट विपक्ष ने विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव दिया था। विपक्षी दलों का कहना था कि स्मृति ईरानी ने संसद में पांच जगह गलत तथ्य पेश किए और उन्होंने जानबूझकर सदन को गुमराह किया। जबकि भाजपा की ओर से कहा गया है कि मंत्री ने जो भी तथ्य रखे वह आधिकारिक हैं। मंत्री ने हैदराबाद पुलिस की कार्रवाई के आधार पर तथ्य प्रस्तुत किए थे। लेकिन, विपक्ष भाजपा के तर्क से संतुष्ट और सहमत नहीं हुआ। जेडीयू सांसद केसी त्यागी और केटीएस तुलसी ने शनिवार को ही नोटिस दे दिया था। बाद में, लेफ्ट और कांग्रेस की ओर से भी नोटिस दिया गया।
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