गुरुवार, 26 जनवरी 2023

कर्तव्य पथ पर ‘गणतंत्र’

हम भारत के लोग अपना 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। हमारा गणतंत्र बीते 73 वर्षों में किस ओर बढ़ा है, विद्वान लोग अकसर इसकी समीक्षा/चर्चा करते रहते हैं। वैसे तो भारत के लिए गणतंत्र कोई आधुनिक व्यवस्था नहीं है। जब हम अपने इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ पलटकर देखते हैं, तो हमें भारत में गणतंत्र की समृद्ध परंपरा दिखाई देती है। फिलहाल हम अपने वर्तमान गणतंत्र की बात करें तो ध्यान आता है कि अपनी चर्चाओं में अकसर विद्वान कहते हैं कि भारत का ‘तंत्र’ अभी पूरी तरह से ‘गण’ केंद्रित नहीं हुआ है। कहीं न कहीं औपनिवेशिक मानसिकता ही हमारे तंत्र पर हावी है। परंतु पिछले दस वर्षों में जिस तरह से भारत के गणतंत्र ने करवट बदली है, उससे स्पष्टतौर पर परिलक्षित हो रहा है कि हमारा तंत्र अब गण की ओर सम्मुख हुआ है। इसलिए पिछले कुछ वर्षों में शासन स्तर पर हुए निर्णय, नीतिगत बदलाव एवं सांकेतिक व्यवस्थाएं गण की मंशा के अनुरूप दिखाई देती हैं। अब अंतरराष्ट्रीय ताकतों के दबाव में नहीं अपितु जनता के हित में नीतियां बनती हैं। हमारा शासन किसी का पिछलग्गू नहीं है, वह भारतीय दृष्टिकोण से नीतियां बना रहा है। भारत अब बैशाखियां छोड़कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चला है।

रविवार, 8 जनवरी 2023

खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती पुस्तक- ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’

‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ पुस्तक का वीडियो ब्लॉग यहाँ देखें


“खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है, यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं। यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं। खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो। यह नस्लीय बाधाओं को तोड़ने में सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली है”। अफ्रीका के गांधी कहे जानेवाले प्रसिद्ध राजनेता नेल्सन मंडेला के इस लोकप्रिय कथन के साथ मीडिया गुरु डॉ. आशीष द्विवेदी अपनी पुस्तक ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ की शुरुआत करते हैं। या कहें कि पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर इस कथन के साथ लेखक खेल की महत्ता को रेखांकित कर देते हैं और फिर विस्तार से खेल और पत्रकारिता के विविध पहलुओं पर बात करते हैं। डॉ. द्विवेदी की इस पुस्तक ने बहुत कम समय में अकादमिक क्षेत्र में अपना स्थान बना लिया है। दरअसल, इस पुस्तक से पहले हिन्दी की किसी अन्य पुस्तक में खेल पत्रकारिता पर समग्रता से बातचीत नहीं की गई।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

भारतेंदु हरिश्चंद्र का घर

आज हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता के प्रकाशस्तंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) को स्मरण करने का दिन है। पिछले वर्ष अगस्त में वाराणसी प्रवास के दौरान संयोग से उनके घर के सामने से गुजरना हुआ।

काल भैरव के दर्शन करने के लिए तेज चाल से बनारस की प्रसिद्ध गलियों से हम बढ़ते जा रहे थे। बाबा विश्वनाथ और गंगा मईया के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे तो मन आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ था। रिमझिम बारिश हो रही थी तो भीगते–बचते हुए और इधर–उधर नजर दौड़ाते हुए, अपन चल रहे थे।

चलते–चलते जैसे ही एक दीवार पर भारतेंदु हरिश्चंद्र का मोहक चित्र देखा, तो तेजी से बढ़ते कदम एकदम से ठिठक गए। मुझे कतई अंदाजा नहीं था कि यह भवन निज भाषा का अभिमान जगानेवाले साहित्यकार–पत्रकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का है। लेकिन जैसे ही चित्र के थोड़ा ऊपर देखा तो पट्टिका पर लिखा था– ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता गोलोकवासी भारतेंदु हरिश्चंद्र का निवास स्थान’। यह शिलालेख नागरी–प्रचारिणी सभा, काशी ने 1989 में लगवाया था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ ही उच्च कोटि के संपादक भी थे। उन्होंने हिन्दी की खूब सेवा की है। 35 वर्ष की अल्पायु में ही वे गोलोकवासी हो गए लेकिन उन्होंने जो सृजन किया, उसके कारण वे आज भी हमारे बीच प्रासंगिक हैं।

वे इतने प्रतिभाशाली थे कि 1868 में, केवल 18 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने पत्रिका ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशित किया। इसके बाद हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया। इसके साथ ही भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ और ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका के संपादन के माध्यम हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वाराणसी में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के भवन पर उनका चित्र / फोटो : लोकेन्द्र सिंह

वाराणसी में भारतेन्दु हरिश्चंद्र का भवन / फोटो : लोकेन्द्र सिंह