शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

कुछ तो इज्जत कर लो देश की...

भा रतीय संसद में बैठे कई लोग वाकई राजनीति के लायक नहीं हैं। उनकी हरकतें, बयानबाजी कुछ जाहिल किस्म की हैं। आचरण तो अशोभनीय है ही। गुजरात के मुख्यमंत्री और भाजपा की ओर से संभावित प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के विरोध में कुछ सांसद और नेता बिना-विचारे किसी भी हद तक गिर रहे हैं, यह देखकर आश्चर्य है और कहीं न कहीं भारतीय जनमानस में आक्रोश भी। मोदी को अमरीका का वीजा नहीं देने की अपील करने वाली दो चिट्ठियां हाल ही में सामने आई हैं। इनके कारण भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जबर्दस्त थू-थू हुई है। क्षुब्ध भारतीय नेताओं के कारण देश का स्वाभिमान गर्त में मिला जा रहा है। चिट्ठी में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा से अपील की गई है कि नरेन्द्र मोदी गुजरात दंगों के दोष से मुक्त नहीं हुए हैं। इसलिए उनको अमरीका वीजा नहीं दे, वर्तमान में मोदी के प्रति जो नीति है उसे बनाए रखा जाए। इस चिट्ठी पर १२ राजनीतिक पार्टियों के ६५ सांसदों के हस्ताक्षर हैं। इनमें कम्युनिस्ट पार्टियां, क्षेत्रीय दल और कांग्रेस तक के सांसदों के नाम शामिल हैं। इस पत्र के सूत्रधार हैं निर्दलीय सांसद मोहम्मद अदीब। अदीब की दिमाग की ही उपज थी यह डर्टी पॉलिटिक्स। हालांकि विवाद सामने आते ही ज्यादातर सांसदों ने ऐसी किसी चिट्ठी पर हस्ताक्षर करने से इनकार किया है। लेकिन अदीब इस बात पर टिके हैं कि सभी हस्ताक्षर असली हैं, लोग अब क्यूं पलट रहे हैं, यह समझ से परे है। यहां गौर करने लायक बात यह भी है कि हस्ताक्षर नहीं करने का दावा करने वाले किसी भी सांसद ने अब तक अदीब पर फर्जीवाड़े का केस दर्ज नहीं कराया है। बहरहाल हस्ताक्षर असली हों या फर्जी भारतीय राजनीति में अपरोक्ष रूप से अमरीकी हस्तक्षेप की मांग करके सांसद/सांसदों ने भारत की नाक तो कटा ही दी है। 
भारत की जनता घरेलू मामले को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने के दर्द को अच्छे से समझती है। जवाहरलाल नेहरू की गलती की सजा जम्मू-कश्मीर विवाद के रूप में हम आज तक भुगत रहे हैं। यदि नेहरू ने जम्मू-कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय पटल पर नहीं रखा होता तो संभवत: आज जम्मू-कश्मीर में कोई समस्या नहीं होती। खैर, नरेन्द्र मोदी का मसला जम्मू-कश्मीर से ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं है और न ही उसके समकक्ष  है। यह एकदम अलग मसला है, इसलिए दोनों की तुलना यहां नहीं करते हैं। लेकिन घरेलू मसलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना, भारतीय राजनीति में अमरीकी हस्तक्षेप की मांग करना पॉलिटिकली गलत है। नरेन्द्र मोदी को वीजा जारी करना या नहीं करना अमरीका का अंदरूनी मसला है। इसमें हमारे राजनेता को नहीं पडऩा चाहिए। हां, भारत सरकार को जरूर इस पर आपत्ति लेनी चाहिए कि अमरीका उसके एक लोकप्रिय नेता को वीजा क्यों नहीं जारी कर रहा? लेकिन जैसा कि स्पष्ट है कि यूपीए की सरकार में इतने साहसी लीडर शामिल नहीं हैं जो अपने सबसे करीबी विरोधी के पक्ष में कोई भी बात करें, चाहे बात देश के सम्मान की हो। अमरीका को मुंहतोड़ जवाब देने की हिम्मत तो हमारे नेताओं में तब भी नहीं होती जब अमरीकी एयरपोर्ट पर इन भारतीय राजपुरुषों के कपड़े उतरवा लिए जाते हैं।  
नरेन्द्र मोदी के वीजा के लिए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की ओर से अमरीका जाकर अपील करना भी उचित नहीं है। हालांकि राजनाथ सिंह का कहना है कि वहां के कुछ लोगों ने ही उनके सामने नरेन्द्र मोदी के अमरीकी वीजा का मसला रखा था, जिस पर उन्होंने यह कहा था कि वे इस संबंध में अमरीकी सरकार से बात करेंगे। उन्होंने ओबामा के समक्ष किसी भी रूप में नरेन्द्र मोदी के वीजा मामले को नहीं उठाया है। खैर, विवाद होने के बाद किसी भी मामले से पल्ला झाड़ लेना भारतीय राजनेताओं के व्यवहार में शामिल हो गया है। 
माकपा के वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी, भाकपा के एमपी अच्युतन और डीएमके के रामलिंगम ने चिट्ठी को फर्जी बताया है। सीताराम येचुरी ने तो इसे कट-पेस्ट का मामला बताया है। उनका कहना है कि उन्होंने कभी इस तरह के पत्र पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस तरह के पत्र पर हस्ताक्षर करना उनके चरित्र और सिद्धांत के विपरीत है। उनका स्पष्ट मत है कि घरेलू मामलों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाना ही सरासर गलत है। उधर, चिट्ठी भेजने वाले सांसद मोहम्मद अदीब का दावा है कि पत्र पर सीताराम येचुरी के हस्ताक्षर असली हैं। अब वे मुकर रहे हैं तो मुझे ऐसे लोगों पर शर्म आती है। अदीब साहब, शर्म तो देश की आवाम को तुम पर और तुम जैसे नेताओं पर आ रही है। तुम्हारी ओछी राजनीति से देश शर्मिन्दा है, आश्चर्यचकित नहीं, क्योंकि देश अब तो आए दिन ऐसी डर्टी पॉलिटिक्स से दो-चार हो रहा है। आश्चर्यचकित तो अंतरराष्ट्रीय जगत है, जो भारत को उभरते हुए शक्ति के एक ध्रुव के रूप में देखता है। स्वाभिमानी होने की जगह भारतीय नेताओं का यह पिलपिला रूप देखकर अमरीका का प्रतिष्ठित समाचार-पत्र भी आश्चर्य से लिखता है कि किसी देश के अंदरूनी मामलों में अमरीकी राष्ट्रपति से दखल देने की मांग करना अजीब है। भारतीय सांसदों की ओर से ऐसी मांग आना तो अकल्पनीय है। बहरहाल, हमारे देश के नेताओं को इतना शऊर ही नहीं है कि वे अपनी ओछी हरकतों से देश का कितना नुकसान कराते हैं। पत्र पर किसके हस्ताक्षर असली हैं और किसके फर्जी, यह तो मोहम्मद अदीब जानते होंगे या फिर जिनके हस्ताक्षर हैं वे नेतागण। लेकिन, मामला देश के स्वाभिमान से जुड़ा है इसलिए भारतीय संसद को इस मामले पर संज्ञान लेना चाहिए। पत्र पर हस्ताक्षर फर्जी हैं तो मोहम्मद अदीब के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाए। यदि हस्ताक्षर असली हैं तो ६५ सांसदों से जवाब तलब किया जाए कि इस मसले को भारतीय स्तर पर उठाने की जगह अमरीकी राष्ट्रपति के दरवाजे पर क्यों ले जाया गया? वैसे ऐसे नेताओं को नसीहत तो मिलनी ही चाहिए ताकि ये अपनी न सही देश की तो कुछ तो इज्जत कर सकें। 

शनिवार, 20 जुलाई 2013

सुनहरे पन्नों का खजाना

सं वेदनाएं, सरलता और सहज भाव कहानी को हृदय में गहरे तक उतारने के लिए बेहद जरूरी हैं। कहानी सरस हो, उत्सुकता जगाती हो तो फिर वह आनंदित करेगी ही। फिर भले ही वे बाल कहानियां ही क्यों न हों। स्थापित कहानीकार गिरिजा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह 'मुझे धूप चाहिए' कुछ ऐसा ही है, बिल्कुल सरस और सुरुचिकर। मुझे धूप चाहिए में आठ कहानियां शामिल हैं। इसे प्रकाशित किया है एकलव्य प्रकाशन भोपाल ने। एकलव्य बच्चों की शिक्षा और उनके विकास को लेकर काम कर रही संस्थाओं में एक बड़ा नाम है। पुस्तक ११वीं की छात्रा सौम्या शुक्ला के बेहद खूबसूरत रेखाचित्रों से सजी हुई है। कहानी की विषय वस्तु और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सौम्या ने उम्दा चित्रांकन किया है। 'मुझे धूप चाहिए' ४२ पेज की पुस्तक है, जिसे एक बैठक में पढ़ा जा सकता है। खास बात यह है कि दो वक्त की दाल-रोटी को तरसाने वाली महंगाई के दौर में इस बेहतरीन किताब के दाम बेहद कम हैं। महज २५ रुपए।
  दुनिया की खूबसूरती रिश्तों में है और रिश्ते जरूरी नहीं, इंसान-इंसान और जीव-जीव के बीच ही बने। रिश्ते तो किसी के बीच भी पनप सकते हैं। मनुष्य-जीव-जानवर-पेड़-पौधे-सूरज-धरती आदि-आदि किसी के बीच भी। जहां प्रेम और संवेदना रूपी खाद-पानी हो, वहां तो ये बांस की तरह तेजी से बढ़ते हैं। संसार के सूत्रधार की अद्भुत और अद्वितीय कृति है मां। उसके हृदय में जितना प्रेम और करुणा भरी है, उतनी तो दुनिया के सात महासागरों में पानी भी नहीं होगा। त्याग की प्रतिमूर्ति, बच्चों के लिए तमाम कष्ट सह जाना, बच्चों की परवरिश और परवाह में जिन्दगी गुजार देना मां अपना धर्म समझती है और भले से निभाती भी है। मनुष्य जाति हो या फिर जीव-जन्तु, पशु-पक्षी सबदूर मां की भूमिका समान है, उसका स्वभाव एकजैसा है, कोई भेद नहीं। गिरिजा कुलश्रेष्ठ की तीन कहानियां पूसी की वापसी, कुट्टू कहां गया और मां बड़ी खूबसूरती के साथ मां के धर्म और उसकी महानता को बयां करती हैं। इसी तरह इंतजार कहानी मां (गाय) के प्रति संतान (बछड़े) के प्रेम को बताती है। छुटपन में किसी भी बच्चे के लिए उसकी दुनिया मां ही होती है। सब उसके आसपास हों लेकिन मां दिखाई न दे तो उसका मन व्यथित रहता है। उसके लिए मां के आगे और सब गौण हैं। एक अन्य कहानी 'मीकू फंसा पिंजरे में' बाल मन की संवेदनाओं का शब्दचित्रण करती है। एक शैतान चूहे के पिंजरे में बंद होने के बाद कैसे एक छोटी-सी बच्ची का हृदय करुणा से भर जाता है। उसके हमउम्र भाई उस शैतान चूहे को कैदकर सताते हैं तो वह सुकोमल छोटी-सी बच्ची रो देती है। निरीह जीव को आजाद करने की गुहार लगाती है। 'मुझे धूप चाहिए' कहानी एक नन्हें पौधे के बड़े होने की कहानीभर नहीं है बल्कि यह एक बालक के किशोर और युवा होने की कहानी है। किसी भी क्षेत्र के स्थापित लोगों के बीच नए व्यक्ति को पैर जमाने में किस तरह की कठनाइयां आती हैं, 'मुझे धूप चाहिए' उसी बात को कहती है। सच ही तो है जैसे बड़े पेड़ों के झुरमुट में छोटे पौधे पनप नहीं पाते, कई पौधे तो अंगड़ाई लेते ही मर जाते हैं। बड़े पेड़ उन तक धूप ही नहीं पहुंचने देते। कहानी का मर्म यही है कि आपको स्थापित होना है तो जरा-से धूप के टुकड़े को पकड़ लीजिए और आगे बढ़ जाइए, बहुत से लोग विरोधकर तुम्हारा दमन करने को आतुर होंगे, बहुत से लोग निर्लज्जता से आपका उपहास उड़ाएंगे लेकिन आपको पूरे साहस और लगन से लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते जाना है। 
कथाकार गिरिजा कुलश्रेष्ठ का कहानी संग्रह 'मुझे धूप चाहिए' ऐसी पुस्तक है जो बच्चों को उनके जन्मदिन पर उपहार स्वरूप दी जानी चाहिए। पुस्तक क्या है यह बचपन की यादों के सुनहरे पन्नों का खजाना है। किशोरों, युवाओं और बड़ी उम्र के लोगों को भी ये कहानियां गुदगुदा कर, कुछ पलों में रुआंसा करके तो कई जगह रोमांचित कर बचपन की ओर खींच ले जाती हैं।

पुस्तक : मुझे धूप चाहिए
लेखिका : गिरिजा कुलश्रेष्ठ
मूल्य : २५ रुपए
प्रकाशक : ई-१०, शंकर नगर बीडीए कॉलोनी, 
शिवाजी नगर, भोपाल (मध्यप्रदेश) - ४६२०१६
फोन : ०७५५ - २५५०९७६, २६७१०१७

बुधवार, 10 जुलाई 2013

भाजपा के सेक्स लीडर

मध्यप्रदेश की राजनीति में कई बड़े सेक्स स्कैंडल हुए हैं, जिनके कारण ताकतवर नेताओं की राजनीति खत्म हो गई या उन्हें हाशिए पर जाना पड़ा और पार्टी की साख भी खराब हुई। संस्कारी नेताओं की फौज होने का दंभ भरने वाली भारतीय जनता पार्टी सहित अन्य सभी राजनीतिक पार्टियों में सेक्स लीडर हैं। प्रदेश में पहला सेक्स स्कैंडल संभवत: १९६९ में चर्चा में आया था, तब कांग्रेसनीत प्रदेश सरकार में श्रम मंत्री गंगाराम तिवारी एक नर्स के साथ पाए गए थे। तब से अब तक कई नेताओं के उजले पाजामे के नाड़े खुल चुके हैं। फिलहाल तो मध्यप्रदेश की राजनीति में राघवजी सीडी काण्ड से बवंडर आया हुआ है। नौकर के साथ व्यभिचार में लिप्त राघवजी की सीडी फुल स्पीड से प्रदेश में चल रही है। मोबाइल-दर-मोबाइल राघवजी की नंगई ब्लूटूथ और व्हाट्अप से शेयर कर देखी जा रही है। नौकर ने पुलिस से शिकायत में राघवजी पर गंभीर आरोप लगाए हैं। उसने कहा है कि राघवजी के एक अन्य कर्मचारी की पत्नी से भी १५ साल से शारीरिक संबंध हैं। राघवजी उस पर दबाव डालते थे कि उनकी खातिर वह गर्लफ्रेंड बनाए और शादी भी कर ले। आरोप और भी हैं। 
भाजपा के वयोवृद्ध नेता और प्रदेश सरकार में वित्तमंत्री राघवजी की घिनौनी हरकत पर भारतीय जनता पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे के सिद्धांत पर अंगुली उठाई जा रही है। ७९ वर्षीय राजनेता ने अपनी जमा पूंजी एक झटके में राजनीतिक ढलान पर चुका दी है। अपना मुंह तो काला किया ही पार्टी को भी परेशानी में डाल दिया। हालांकि राघवजी को पहले मंत्री पद से बर्खास्त करके और फिर दूसरे दिन पार्टी से निष्कासित कर भाजपा ने अपना चेहरा बचाने की कोशिश की है। इस त्वरित एक्शन से उसको अपना बचाव करने में मदद मिल रही है और आगे भी मिल सकती है। भाजपा कह सकती है पार्टी का चाल, चरित्र और चेहरा वही है जो पहले था। गलत कार्यों में लिप्त नेताओं के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं है। यही कारण है कि ५८ साल पार्टी की सेवा करने वाले राघवजी को घिनौने कृत्य पर बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। लेकिन, सवाल उठता है कि क्या पार्टी को यह कदम पहले नहीं उठा लेना चाहिए था? क्या पार्टी को अब तक राघवजी की रंगीन रातों और काले दिनों की खबर नहीं थी? दूसरे नेताओं के खाते में भी तो इस तरह के गंभीर आरोप हैं, उन्हें क्यों नहीं पार्टी से बाहर किया गया? क्या सिर्फ इसलिए कि उनकी सीडी बाहर नहीं आई है? क्या सीडी बाहर आना ही कार्रवाई के लिए जरूरी है? नेता में उच्च चारित्रिक गुणों की अपेक्षा रखने वाली भारतीय जनता पार्टी में आखिर सेक्स लीडर घुस कैसे जाते हैं? और जानकर भी क्यों पार्टी के आला नेता कार्रवाई से बचते हैं?
राघवजी के काले चेहरे को भाजपा के ही कार्यकर्ता शिवशंकर पटैरिया ने सीडी में कैद किया है। पटैरिया के मुताबिक उन्होंने राघवजी की २३ सीडी बनाई हैं। प्रदेश के अन्य नेताओं की सीडी होने का भी दावा पटैरिया ने किया है। उनका दावा है कि वे लम्बे समय से पार्टी में गंदे नेताओं की शिकायत करते रहे हैं लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होते देख उन्होंने सीडी बनाने का फैसला किया। पटैरिया के इस दावे में सच्चाई है। प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री अरविन्द मेनन, मंत्री बाबूलाल गौर, कुंवर विजय शाह, नरोत्तम मिश्रा, अजय विश्नोई, विधायक ध्रुवनारायण सिंह जैसे कई नाम शामिल हैं, जिनके खिलाफ भाजपा में ऊपर तक चारित्रिक दोष की शिकायतें पहुंची हैं। मीडिया में आए दिन ऐसे मामलों को लेकर भाजपा के कई सेक्स लीडर सुर्खियों में रहे हैं। अरविन्द मेनन के खिलाफ जबलपुर की सुशीला मिश्रा ने शोषण के आरोप लगाए हैं। इस मामले में मानवाधिकार आयोग में भी शपथ-पत्र दायर किया गया है। लेकिन, भाजपा आरोप साबित नहीं होने के बहाने अपने संगठन मंत्री को बचाने में लगी है। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का नाम भी भाजपा की ही कार्यकर्ता शगुफ्ता कबीर के साथ जोड़ा गया। शगुफ्ता कबीर के पति ने प्रेस कांफ्रेंस कर आरोप लगाया था कि गौर उनकी गृहस्थी उजाड़ रहे हैं। इसके बाद पार्टी के अंदरखाने में काफी बवाल मचा और बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। इतना सब होने के बाद भी उन्हें पार्टी से निष्कासित नहीं किया गया। विधानसभा में भी कांग्रेसी नेता महिलाओं के साथ गौर के आपत्तिजनक फोटो लहरा चुके हैं। आरटीआई कार्यकर्ता शहला मसूद मर्डर के बाद तो भाजपा के विधायक ध्रुवनारायण सिंह से लेकर सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय का नाम सेक्स संबंधों में सामने आया। तरुण विजय के शहला मसूद से करीबी संबंध उजागर हुए तो शहला-ध्रुवनारायण-जाहिदा ट्रायएंगल लव के किस्से तो प्रदेशभर में नमक-मिर्च लगाकर सुने-सुनाए जाने लगे। लेकिन, राष्ट्रीय प्रवक्ता तरुण विजय के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया गया। जबकि गंभीर सबूत होने के बावजूद ध्रुवनारायण सिंह को पार्टी से निष्कासित न करके, दिखावे के लिए उनका प्रदेश उपाध्यक्ष का पद छीन लिया गया। कामक्रीड़ा में डूबे मंदसौर के जिलाध्यक्ष कारूलाल सोनी को जरूर बाजार में सीडी आने के कारण पार्टी से चलता कर दिया गया। ऐसे में कारूलाल सोनी और राघवजी का मामला यह स्पष्ट करता है कि जब तक सीडी बाजार में नहीं आ जाती, तब तक पार्टी खूब अय्याशी की छूट देती है। यही कारण है कि करीब एक साल पहले ही इन्हीं राघवजी की महिला के साथ सीडी बनने की चर्चा जोरों पर थी लेकिन बाजार में नहीं आने के कारण भाजपा ने कोई कार्रवाई नहीं की बल्कि मामले को दबा दिया। यदि तब ही राघवजी पर कार्रवाई हो जाती तो आज भाजपा को राघवजी के कारण लज्जित नहीं होना पड़ता। 
असल में पार्टी संगठन को सब जानकारी रहती है कि कौन सेक्स लीडर है। लेकिन, कार्रवाई करने वाले नेताओं के पाजामे के नाड़े भी उतने ही ढीले हैं। उनका नाड़ा भी किसी ने थाम रखा है, ऐसे में खुद के नंगे होने का भी डर रहता है। यही कारण है कि आला नेता भी सब हकीकत जानकर भी चुप रहते हैं। लेकिन भाजपा को खुद को कांग्रेस या कांग्रेस से भी गया बीता होने से बचाना है तो कठोर नियम बनाने होंगे। औरों से अलग दिखने की धारणा को साबित करने के लिए गंदगी तो रोकनी ही होगी। नेता-कार्यकर्ता के खिलाफ शुरुआती शिकायतों की पार्टी स्तर पर ही जांच करा लेनी चाहिए। शिकायतें सही पाए जाने पर तालाब गंदा हो, कमल मुरझाए उससे पहले ही सड़ी मछली को बाहर फेंक देना चाहिए। इसका असर यह होगा कि बीमार मानसिकता और नैतिक रूप से पतित नेता भाजपा में आने की सोच ही नहीं सकेंगे क्योंकि उन्हें ध्यान रहेगा कि भाजपा औरों से अलग है। यहां गंदे काम पर राजनीतिक करियर किसी भी मोड़ पर चौपट होने में देर नहीं लगेगी। राघवजी प्रकरण से भाजपा को सबक लेना चाहिए कि नेता का जनाधार, लोकप्रियता, सीट जिताऊ क्षमता और धन की नदी बहाने की काबिलियत के आधार पर कार्रवाई में पक्षपात न हो, देर न हो, इसकी भी पार्टी स्तर पर चर्चा की जाने की जरूरत है। नेता कोई भी हो कठोर नियम पूरी कठोरता से लागू किया जाए। 
गंदगी कहां से आ रही है : समस्या सिर्फ राजनीति की ही नहीं है। आम समाज भी सेक्स और पैसे के पीछे अंधे घोड़े की तरह भाग रहा है। उसी समाज के बीच से नेता चुनकर राजनीति में आ रहे हैं। हालांकि राजनीति में प्रवेश के समय सभी नेता सात्विक, चारित्रिक और सेवाभावी छवि का मुखौटा लगाए रहते हैं लेकिन सत्ता पाते ही औकात पर आ जाते हैं। चूंकि राजनेता मीडिया की निगाहों में रहते हैं इसलिए उनके सेक्स शौक के चर्चे आम आदमी की तुलना में बेहद चर्चित हो जाते हैं। यूं भी राजनेताओं से आम नागरिक की तरह व्यवहार की अपेक्षा नहीं की जाती है। असल में समाज के नेता की भूमिका में बने रहने के लिए तपस्वी जीवन जरूरी है। लोकतांत्रिक राजनीति के विकास और विस्तार के लिए भी चरित्रवान लोगों का होना बुनियादी शर्त है। चूंकि भाजपा से जनमानस की अधिक अपेक्षाएं हैं, समाज भाजपा को भारतीय मूल्यों के प्रतिनिधि के रूप में देखता है, भाजपा की छवि राष्ट्रवादी पार्टी की है, ऐसे में भाजपा के बड़े लीडरान को इस मसले पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।