शनिवार, 25 नवंबर 2023

भारत के संविधान में राम-कृष्ण-बुद्ध और महावीर के चित्र

इस वीडियो ब्लॉग में आप संविधान पर अंकित राम-कृष्ण, बुद्ध और महावीर सहित भारतीय संस्कृति के विभिन्न चित्रों को देख सकते हैं

हमारा संविधान भारतीय मूल्यों की अभिव्यक्ति है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि हमारे संविधान में 'भारत की आत्मा' परिलक्षित होती है। संविधान के प्रावधान एवं तत्व भारतीय संस्कृति से जुड़ते हैं। भारतीय संस्कृति एवं परंपरा के मूल्य एवं दर्शन हमें अपने संविधान में दिखायी पड़ते हैं। भारत के संविधान की एक खूबसूरती यह भी है कि मूल प्रति पर आपको राम-कृष्ण-बुद्ध आदि से जुड़े महत्वपूर्ण प्रसंगों के सुंदर चित्र देखने को मिलते हैं। यह चित्र संविधान के प्रत्येक अध्याय के प्रारंभ में बनाये गए हैं, जैसे मौलिक अधिकारों के अध्याय से पूर्व भगवान श्रीराम, माता सीता और भाई लक्ष्मण का चित्र है।

गुरुवार, 23 नवंबर 2023

अपनी नियति की ओर बढ़ता भारत

अर्चना प्रकाशन, भोपाल की स्मारिका-2023 में प्रकाशित संपादकीय


हम अवश्य ही 1947 में ब्रिटिश उपनिवेश के चंगुल से स्वतंत्र हो गए परंतु औपनिवेशिकता से मुक्ति की ओर हमने अब जाकर अपने कदम बढ़ाए हैं। हम कह सकते हैं कि भारत नये सिरे से अपनी ‘डेस्टिनी’ (नियति) लिख रहा है। यह बात ब्रिटेन के ही सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र ‘द गार्जियन’ ने 18 मई, 2014 को अपनी संपादकीय में तब लिखा था, जब राष्ट्रीय विचार को भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ विजयश्री सौंपी थी। गार्जियन ने लिखा था कि अब सही मायने में अंग्रेजों ने भारत छोड़ा है (ब्रिटेन फाइनली लेफ्ट इंडिया)। आम चुनाव के नतीजे आने से पूर्व नरेन्द्र मोदी का विरोध करने वाला ब्रिटिश समाचार पत्र चुनाव परिणाम के बाद लिखता है कि भारत अंग्रेजियत से मुक्त हो गया है। अर्थात् एक युग के बाद भारत में सुराज आया है। भारत अब भारतीय विचार से शासित होगा। गार्जियन का यह आकलन सच साबित हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अब तक के कार्यकाल में हम देखते हैं कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों की पुनर्स्थापना की जा रही है। अर्थात् लंबे समय बाद देश में यह अवसर आया है जब सभी क्षेत्रों में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का अभ्युदय दिख रहा है। प्रत्येक क्षेत्र में सांस्कृतिक पुनर्जागरण दिखायी दे रहा है। वर्तमान में जिस विचार के हाथ में शासन के सूत्र हैं, वह भारतीयता से ओत-प्रोत है। उसके मस्तिष्क में कोई द्वंद्व नहीं, उसे अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व है। उसका विश्वास है कि जिस संस्कृति के लोग नित्य प्रार्थना में कहते हों- ‘प्राणियों में सद्भावना हो और विश्व का कल्याण हो’, समाज जीवन के विविध क्षेत्र उसी संस्कृति के मूल्यों से समृद्ध होने चाहिए। भारत का स्वदेशी समाज आज धर्म, संस्कृति, सभ्यता, भाषा के विरुद्ध स्थापित पूर्वाग्रह से मुक्त हो रहा है।

बुधवार, 1 नवंबर 2023

दिल की बात कहने में सफल रही ‘सुन रही हो न तुम…’

सुदर्शन व्यास ने लेखक एवं समीक्षक लोकेन्द्र सिंह को भेंट की अपना नया काव्य संग्रह 'सुन रही हो न तुम...'

कविता के संबंध में कहा जाता है कि यह कवि के हृदय से सहज ही बहकर निकलती है और जहाँ इसे पहुँचना चाहिए, वहाँ का रास्ता भी खुद ही बना लेती है। हृदय से हृदय का संवाद है- कविता। युवा कवि सुदर्शन व्यास के हृदय से भी कुछ कविताएं ऐसे ही अनायास बहकर निकली हैं, जिनका संग्रह ‘सुन रही हो न तुम…’ के रूप में हमारे सम्मुख है। इस संग्रह की किसी भी कविता को आप उठा लीजिए, आपको अनुभूति हो जाएगी कि कवि के शब्दों में जो नमी है, कोमल अहसास है, जो आग्रह है, विश्वास है; वह सब अनायास है। उनकी भावनाओं में कुछ भी बनावटी नहीं है। एक भी पंक्ति प्रयत्नपूर्वक नहीं लिखी है। सभी शब्द, वाक्य, उपमाएं, संज्ञाएं कच्चे-पक्के युवा प्रेम की तरह अल्हड़ और बेफिक्र हैं।