शुक्रवार, 2 जून 2023

‘भारत के स्वराज्य’ का उद्घोष था श्रीशिवराज्याभिषेक

स्वराज्य 350 : आज से प्रारंभ हो रहा है छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक एवं हिन्दू साम्राज्य की स्थापना का 350वाँ वर्ष



आज का दिन बहुत पावन है। आज से ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना का 350वां वर्ष प्रारंभ हो रहा है। विक्रम संवत 1731, ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी (6 जून, 1674) को स्वराज्य के प्रणेता एवं महान हिन्दू राजा श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक और हिन्दू पद पादशाही की स्थापना से भारतीय इतिहास को नयी दिशा मिली। कहते हैं कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म न होता और उन्होंने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना न की होती, तब भारत अंधकार की दिशा में बहुत आगे चला जाता। महान विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय समाज का आत्मविश्वास निचले तल पर चला गया। अपने ही देश में फिर कभी हमारा अपना शासन होगा, जो भारतीय मूल्यों से संचालित हो, लोगों ने यह कल्पना करना ही छोड़ दिया। तब शिवाजी महाराज ने कुछ वीर पराक्रमी मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की स्थापना का संकल्प लिया और अपने कृतित्व एवं विचारों से जनमानस के भीतर भी आत्मविश्वास जगाया। विषबेल की तरह फैलते मुगल शासन को रोकने और उखाड़ फेंकने का साहस शिवाजी महाराज ने दिखाया। गोविन्द सखाराम सरदेसाई अपने पुस्तक ‘द हिस्ट्री ऑफ द मराठाज-शिवाजी एंड हिज टाइम’ के वॉल्यूम-1 के पृष्ठ 97-98 पर लिखते हैं कि ‘मुस्लिम शासन में घोर अन्धकार व्याप्त था। कोई पूछताछ नहीं, कोई न्याय नहीं। अधिकारी जो मर्जी करते थे। महिलाओं के सम्मान का उल्लंघन, हिंदुओं की हत्याएं और धर्मांतरण, उनके मंदिरों को तोड़ना, गोहत्या और इसी तरह के घृणित अत्याचार उस सरकार के अधीन हो रहे थे।। निज़ाम शाह ने जिजाऊ माँ साहेब के पिता, उनके भाइयों और पुत्रों की खुलेआम हत्या कर दी। बजाजी निंबालकर को जबरन इस्लाम कबूल कराया गया। अनगिनत उदाहरण उद्धृत किए जा सकते हैं। हिन्दू सम्मानित जीवन नहीं जी सकते थे’। ऐसे दौर में मुगलों के अत्याचारी शासन के विरुद्ध शिवाजी महाराज ने ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जो भारत के ‘स्व’ पर आधारित था। उनके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध हुई। धर्म-संस्कृति फिर से पुलकित हो उठी। 

हिन्दवी स्वराज्य 350 वर्ष के बाद भी प्रासंगिक है क्योंकि वह जिन आदर्शों पर खड़ा था, वे सार्वभौगिक और कालजयी हैं। हिन्दवी स्वराज्य की चर्चा इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि संयोग से केंद्र में आज ऐसी शासन व्यवस्था है, जो भारत को उसके ‘स्व’ से परिचित कराने के लिए कृत-संकल्पित है। हिन्दवी स्वराज्य का स्मरण एवं उसका अध्ययन हमें ‘स्व’ के और अधिक समीप लेकर जाएगा। प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरदार के अनुसार, “शिवाजी के राजनीतिक आदर्श ऐसे थे कि हम उन्हें आज भी लगभग बिना किसी परिवर्तन के स्वीकार कर सकते हैं। उन्होंने अपनी प्रजा को शांति, सार्वभौमिक सहिष्णुता, सभी जातियों और पंथों के लिए समान अवसर, प्रशासन की एक लाभकारी, सक्रिय और शुद्ध प्रणाली, व्यापार को बढ़ावा देने के लिए एक नौसेना और मातृभूमि की रक्षा के लिए एक प्रशिक्षित सेना देने का लक्ष्य रखा”। यदि हम वर्तमान मोदी सरकार की शासन व्यवस्था के सिद्धाँतों को देखें, तो उसके केंद्र में भी लगभग यही विचार है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बार-बार यह उल्लेखित करते हैं कि उनकी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास’ के मंत्र को लेकर चल रही है। शिवाजी महाराज ने राज्य को ‘स्व’ का आधार देते हुए भारत केंद्रित नीतियों को बढ़ावा दिया, जैसे- फारसी और अरबी को हटाकर स्वभाषा का प्रचलन, विदेशी मुद्रा की जगह स्वराज्य की नयी मुद्रा शुरू करना, किसानों और सरकार के बीच से बहुत समय से प्रचलित आढ़ती व्यवस्था को हटाकर राजस्व संग्रह करने के लिए रैयतवाडी व्यवस्था प्रारंभ की, सीमा सुरक्षा के नये प्रबंध, विदेश नीति में बदल, राज्य व्यवस्था को सुचारू बनाने के लिए अष्टप्रधान मंडल की व्यवस्था, सैन्य सशक्तिकरण पर जोर और मुगलों की अन्य व्यवस्थाओं को ध्वस्त करके नयी व्यवस्थाएं खड़ी करना। हिन्दवी स्वराज्य की भाँति ही वर्तमान केंद्र सरकार भी मानती है कि कृषि एवं उद्योग को प्रोत्साहन देकर लोगों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सकती है। जब लोग आत्मनिर्भर होंगे, तब ही राज्य भी आत्मनिर्भर होकर प्रगति की दिशा में आगे बढ़ेगा। वर्तमान सरकार ने कृषि सुधारों के लिए आगे बढ़कर पहल की है। हालांकि कुछ लोगों की जिद के कारण सरकार को तीन ऐतिहासिक कृषि कानून वापस लेने पड़े। मुद्रा प्रबंधन में भी सरकार शिवाजी महाराज की तरह सजग है। जाली नोटों से निपटने एवं कालेधन पर चोट करने के लिए केंद्र सरकार ने विमुद्रीकरण की प्रक्रिया को अपनाया। जब एक बार फिर सरकार को लगा कि दो हजार रुपये के नोट के रूप में कालाधन जमा होने लगा है और जाली नोट की संख्या भी बढ़ रही है, तब एक बार फिर सरकार ने मुद्रा प्रबंधन के सिद्धांत का पालन करते हुए इस बड़े नोट के प्रचलन को बंद कर दिया। 

कल्याणकारी राज्य की स्थापना का एक और सिद्धांत है कि राजनीति में परिवारवाद के लिए स्थान नहीं होना चाहिए। जब छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘स्वराज्य’ की स्थापना की, तब उन्होंने यह स्पष्ट कर दिया था कि यह भोंसले घराने का शासन नहीं है, यह मराठा साम्राज्य भी नहीं है, यह हम सबका ‘स्वराज्य’ है। इसमें सबकी समान भागीदारी है। यह ईश्वरी की इच्छा से स्थापित ‘हिन्दू साम्राज्य’ है। इसलिए उन्होंने अपने साम्राज्य को महाराष्ट्र साम्राज्य, मराठी साम्राज्य, भोंसले साम्राज्य नाम न देकर, उसे ‘हिन्दवी साम्राज्य’ और ‘हिन्दू पद पादशाही’ कहा। मुगल साम्राज्य के ज्यादातर किलों का प्रमुख औरंगजेब का कोई रिश्तेदार ही था। जबकि हिन्दवी स्वराज्य में किलेदार की नियुक्ति की कड़ी और पारदर्शी व्यवस्था थी, तय मापदंड पर खरा उतरनेवाले व्यक्ति को ही किले की जिम्मेदारी मिलती थी। उनके राज्य के शासन में किसी के लिए अनुशासन में ढील नहीं थी। जो नियम सामान्य नागरिक के लिए थे, उनका पालन महाराज भी उतनी ही कठोरता से करते थे। अपराध करने पर उनके रिश्तेदार भी सजा और कानून से बच नहीं सकते थे। उनका शासन सही अर्थों में प्रजा का शासन था। मछुआरों से लेकर वेदशास्त्र पंडित, सभी उनके राज्यशासन में सहभागी थे। स्वराज्य में छुआछूत के लिए कोई स्थान नहीं था। पन्हाल गढ़ की घेराबंदी में नकली शिवाजी बनकर महाराज की रक्षा करनेवाले शिवा काशिद, जाति से नाई थे। अफजल खान के समर प्रसंग में शिवाजी के प्राणों की रक्षा करनेवाला जीवा महाला था। आगरा के किले में कैद के दौरान उनकी सेवा करने वाला मदारी मेहतर था। 

हिन्दवी स्वराज्य के 350वें वर्ष में जब हम उसका अध्ययन करेंगे तो एक बात स्पष्ट तौर पर दिखायी देगी कि छत्रपति शिवाजी महाराज मात्र एक व्यक्ति या राजा नहीं, वे एक विचार और एक युगप्रवर्तन के शिल्पकार थे। इसलिए जब ईस्वी सन् 1680 में शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी दुर्गदुर्गेश्वर ‘रायगढ़’ की गोद में अंतिम सांस ली, तो उनका विचार उनके साथ समाप्त नहीं हुआ। अकसर यह होता है कि कोई प्रतापी राजा अपने बाहुबल और सैन्य कौशल से बड़े साम्राज्य की स्थापना करता है लेकिन उसकी मृत्यु के बाद वह साम्राज्य ढह जाता है। शिवाजी महाराज के साथ ठीक उलटा हुआ। उनके देवलोकगमन के बाद हिन्दवी साम्राज्य का अधिक विस्तार हुआ और वह समय भी आया जब मुगलिया सल्तनत धूलि में मिल गई तथा भारतवर्ष में हिन्दवी स्वराज्य का परम पवित्र भगवा ध्वज गर्व से लहराने लगा।

छत्रपति शिवाजी महाराज के निधन के समय मुगल साम्राज्य उत्तर में काबुल प्रांत से लेकर दक्षिण में तिरुचिरापल्ली तक, पश्चिम में गुजरात तक और पूर्व में असम के बहुत बाहरी इलाके तक, , भारत के एक बड़े हिस्से पर फैला हुआ था। ऐसा कह सकते हैं कि मुगल बादशाह की हुकूमत देश के हर हिस्से में चलती थी। लेकिन 1719 में अत्याचारी औरंगज़ेब की मृत्यु के 12 वर्षों के भीतर ही मराठों ने दिल्ली में प्रवेश किया और मुगल राजधानी के मुख्य मार्गों में भगवा ध्वज लेकर पथ-संचलन साफ संदेश दे दिया कि अब भारत विदेशी आक्रांताओं के चंगुल से स्वतंत्र होकर रहेगा। 1740 तक मालवा और बुंदेलखंड पर मराठों का आधिपत्य हो गया। 1751 में उन्होंने उड़ीसा पर कब्जा कर लिया और बंगाल और बिहार पर चौथ लगाया। 1757 में उन्होंने गुजरात की राजधानी अहमदाबाद पर कब्जा कर लिया और 1758 में हम उन्हें पंजाब को अधीन करते हुए और अटक के किले पर भगवा ध्वज लहरा दिया। महादजी सिंधिया ने 1784 में दिल्ली से मुगल सल्तनत को पूरी तरह उखाड़कर फेंक दिया। 1784 से 1803 तक दिल्ली के लाल किले की प्राचीर पर हिन्दू संस्कृति का परम पवित्र ‘भगवा ध्वज’ गर्व से लहराया। अब भारत की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी हिन्दवी स्वराज्य के योद्धाओं के कंधों पर आ गई थी। इसलिए दक्षिण में तटीय क्षेत्रों को पुर्तगालियों के कब्जों से मुक्त कराना हो या फिर उत्तर में अफगानिस्तान के मैदानों से प्रवेश करनेवाले आक्रांताओं के वार झेलने हों, हिन्दू साम्राज्य की सेना ही मोर्चा लिए दिखायी देती है। हमें इस तथ्य से सबको अवगत कराना चाहिए कि अंग्रेजों के हाथों में भारत के शासन के सूत्र मुगलों से नहीं, अपितु हिन्दुओं के पराभव से पहुँचे। सन् 1803 में असई की लड़ाई के साथ ही भारत में अंग्रेजों का वर्चस्व बढ़ गया, जो तीसरे आंग्ल-मराठा युद्ध-1818 में अंग्रेजों की जीत के साथ लंबे समय तक स्थायी हो गया। स्मरण रखें कि हिन्दवी स्वराज्य पर हमला करने के लिए मुगलों ने ही अंग्रेजों को आमंत्रित किया था। 

हिन्दवी स्वराज्य का यह सामर्थ्य, उसका वैभव, उसके सिद्धांत और आदर्श, आज भी हमारे लिए प्रेरणा और पथ-प्रदर्शक हैं। इसलिए ‘स्वराज्य-350’ के स्वर्णिम अध्याय के पृष्ठ उलटने के कर्मकांड से ऊपर उठकर उसके आदर्श को धरातर पर उतारने और उसे प्रगाढ़ करने का वातावरण बनाना चाहिए। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की ओर से शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350वां वर्ष प्रारंभ होने पर वक्तव्य जारी करके स्वयंसेवकों एवं समाज के सभी बंधुओं से आह्वान किया है कि इस संदर्भ में होनेवाले कार्यक्रमों में सहभागिता करें। प्रतिनिधि सभा की ओर से माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय जी होसबाले के आह्वान का अधिकतम अनुपालन होना चाहिए। राज्याभिषेक को केंद्र में रखकर जो कार्यक्रम आयोजित हों, उनमें हमें सहभागिता करने के साथ ही अपने स्तर पर भी राज्याभिषेक की घटना के महत्व को प्रकाश में लाकर, ‘स्व’ की भावना को जगाने में सहयोग करना चाहिए। समूचा देश जब स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की ऐतिहासिक घटना का स्मरण करना इसलिए भी प्रासंगिक होगा कि हम ‘स्वराज्य’ की संकल्पना को सही अर्थों में समझ पाएंगे।

सोमवार, 29 मई 2023

नये भारत की नयी संसद

भारत की नयी संसद की पहली झलक / First Look of New Parliament Building

स्वतंत्रता के 75 वर्ष बाद भारत को अमृतकाल में उसका नया और स्वदेशी संसद भवन मिल गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब धर्मदंड ‘सेंगोल’ को नवीन संसद के लोकसभा में अध्यक्ष की आसंदी के समीप स्थापित किया तब भारत के इतिहास में दिनांक 28 मई, 2023 सदैव के लिए अंकित हो गई है। लोकसभा की आसंदी के समीप स्थापित यह सेंगोल हमारे राजनेताओं को प्रेरणा देगा। महान चोल साम्राज्य में सेंगोल को कर्तव्यपथ, सेवापथ और राष्ट्रपथ का प्रतीक माना जाता था। राजादी और आदीनम के संतों के मार्गदर्शन में यही सेंगोल सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था। यह सेंगोल भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को सौंपा गया था लेकिन उस समय इसे यथोचित सम्मान और स्थान नहीं दिया गया। बल्कि सिंगोल की प्रतिष्ठा गिराते हुए उसे आनंद भवन में बनाए गए संग्रहालय में ‘चलने में सहायक छड़ी’ के रूप में प्रदर्शित किया गया। माना कि पंडित जवाहरलाल नेहरू भारतीय परंपराओं एवं धर्म से दूरी बनाकर चलते थे, लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं होना चाहिए था कि धार्मिक, सांस्कृतिक एवं भावनात्मक महत्व के ‘सेंगोल’ की उपेक्षा इस तरह की जानी चाहिए थी।

गुरुवार, 25 मई 2023

सांस्कृतिक पुनर्जागरण के पथ पर अग्रणी भूमिका में मध्यप्रदेश

पिछले आठ-दस वर्षों का सिंहावलोकन करने पर ध्यान आता है कि यह भारत के सांस्कृतिक पुनर्जागरण का दौर है। इस अमृतकाल में भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है। अयोध्या में भव्य एवं दिव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण हो रहा है। श्रीराम ने जिस संघर्ष और धैर्य के मार्ग को चुना था, उनके भक्तों ने भी मंदिर निर्माण के लिए उसी का अनुसरण किया। अब बेहिचक सरयू के तट पर दिव्य दीपावली मनायी जाती है। केदारधाम से लेकर काशी के विश्वनाथ मंदिर और अवंतिका (उज्जैन) में बाबा महाकाल का लोक साकार रूप ले रहा है। भारत जब करवट बदल रहा है, तब मध्यप्रदेश सांस्कृतिक पुनर्जागरण की बेला में कहाँ पीछे छूट सकता है। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार भी अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने-संवारने में अग्रणी भूमिका निभा रही है। इस संदर्भ में ‘राम वन गमन पथ’ के निर्माण का निर्णय करते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जो कहा, उसे समझना चाहिए- “आज देश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के लिए हम प्रतिबद्ध हैं”। मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य संकेत करता है कि सांस्कृतिक पुनरुत्थान के इस दौर में मध्यप्रदेश चूकना नहीं चाहता है। स्वतंत्रता के समय से ही भारत को अपने सांस्कृतिक मान-बिंदुओं को संवारने का जो काम शुरू कर देना चाहिए था, वह अब जाकर शुरू हो रहा है, तो फिर अब रुकना नहीं है। श्रीसोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार के समय जो हिचक हमारे स्वतंत्र भारत के प्रारंभिक नेतृत्व ने दिखायी, उस व्यर्थ की हिचक से वर्तमान नेतृत्व मुक्त है। हमारे वर्तमान नेतृत्व को न केवल अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गौरव है अपितु वह उसके संवर्धन के लिए प्रतिबद्ध भी दिखायी देता है।

बुधवार, 24 मई 2023

हवाई जहाज से तीर्थ दर्शन : शिवराज सरकार को मिल रहा है बुजुर्गों का आशीर्वाद

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार ने अपनी महत्वपूर्ण योजना ‘मुख्यमंत्री तीर्थ दर्शन योजना’ का विस्तार करते हुए अब तीर्थयात्रियों को हवाई जहाज से यात्रा करना शुरू किया है। प्रदेश सरकार के इस नवाचारी प्रयोग को लेकर उत्साह का वातावरण है। सभी वर्गों की ओर से सरकार की सराहना की जा रही है कि सरकार ऐसे लोगों को हवाई जहाज से तीर्थयात्रा सम्पन्न करने का अवसर दे रही है, जिनके लिए तीर्थयात्रा और हवाई जहाज में बैठना, दोनों ही कठिन काम थे। पहले दो जत्थे जब हवाई जहाज से यात्रा पर गए, तब उनके चेहरे पर प्रसन्नता के जो भाव उभरकर आ रहे हैं, वे इस बात की पुष्टी करते हैं कि सरकार को इन बुजुर्गों का खूब आशीर्वाद मिल रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी का सम्मान, भारत का अभिमान

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विदेश दौरे से आए एक दृश्य ने समूचे भारत को गौरव का अवसर दे दिया। प्रधानमंत्री मोदी एफआईपीआईसी के तीसरे अधिवेशन में शामिल होने के लिए ‘पापुआ न्यू गिनी’ पहुँचे थे। यहाँ प्रधानमंत्री मोदी का सभी शासकीय प्रोटोकॉल तोड़कर स्वागत-अभिनंदन किया गया। इस देश में सूर्यास्त के बाद शासकीय स्वागत नहीं किया जाता। परंतु जब प्रधानमंत्री मोदी यहाँ पहुँचे तब न केवल शाही स्वागत किया गया अपितु पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मारापे ने तो दो कदम आगे बढ़कर प्रधानमंत्री मोदी के पैर ही छू लिए। यह अभूतपूर्व और अद्भुत घटना है, जब विश्व इतिहास में किसी राष्ट्र प्रमुख का सम्मान दूसरे देश के राष्ट्र प्रमुख ने पैर छूकर किया। इस दृश्य से जहाँ प्रत्येक भारतीय का मन गदगद है, वहीं भारत के विचार की पताका भी विश्व पटल पर थोड़ी और ऊंची हुई है। यह सम्मान केवल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का नहीं है, अपितु उनके नेतृत्व में भारत का विचार जिस तरह प्रखर होकर विश्व के सम्मुख आ रहा है, यह उस भारतीय विचार का भी सम्मान है।

रविवार, 21 मई 2023

चंदेरी सिल्क की साड़ियों के लिए ही नहीं, प्राकृतिक सौंदर्य एवं ऐतिहासिक विरासत के लिए भी प्रसिद्ध है

चंदेरी का प्रमुख पर्यटन स्थल-बादल महल / फोटो- लोकेन्द्र सिंह

मध्यप्रदेश के जिले अशोकनगर में बेतवा (बेत्रवती) एवं ओर (उर्वसी) नदियों के मध्य विंध्याचल की सुरम्य वादियों से घिरा ऐतिहासिक नगर चंदेरी और उसका दुर्ग हमारी धरोहर है। यह नगर महाभारत काल से लेकर बुंदेलों तक की विरासत को संभालकर रखे हुए है। चंदेरी न केवल अपनी समृद्धि की कहानियां सुनाता है अपितु अपनी सांस्कृतिक-धार्मिक विरासत, त्याग, प्रेम और शौर्य, समर्पण, वीरता एवं बलिदान की गाथाओं से भी पर्यटकों को गौरव की अनुभूति कराता है। वैसे तो यह छोटा-सा सुंदर शहर अपनी रेशमी साड़ियों (चंदेरी की साड़ियों) के लिए विश्व प्रसिद्ध है परंतु यहाँ का रमणीक वातावरण और स्थापत्य आपका मन मोह लेगा। सघन वन, ऊंची-नीची पहाड़ियां, तालाब, झील, झरने अविश्वसनीय रूप से चंदेरी के सौंदर्य को कई गुना बढ़ा देते हैं। चंदेरी उन सबको आमंत्रित करती है- जो प्रकृति प्रेमी हैं, जिनका मन अध्यात्म में रमता है, जो प्राचीन भवनों की दीवारों से कान लगाकर गौरव की गाथाएं सुनने में आनंदित होते हैं। चंदेरी उनको भी लुभाती है, जिन्हें कला और संस्कृति के रंग सुहाते हैं। चंदेरी किसी को निराश नहीं करती है। चैत्र-वैशाख की चटक गर्मी में भी चंदेरी ने मेरे घुमक्कड़ मन को शरद ऋतु की ठंडक-सा अहसाह कराया।

रविवार, 14 मई 2023

बस 'माँ'

माँ को समर्पित इस कविता को यहाँ सुनिए- बस माँ


सृष्टि को अभिव्यक्त करना हो

शब्दों से

खींचना हो उसका चित्र

शब्दों से

अनुभूति करना हो उसकी

शब्दों से


बेहद आसान है

सृष्टि को अभिव्यक्त करना

उसका चित्र खींचना

उसकी अनुभूति करना

शब्दों से

न्यूनतम शब्दों से

मात्र एक अक्षर से

शब्द से


कह दो, सुन लो, लिख दो

बस ‘माँ’


- लोकेन्द्र सिंह -

(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)


और कविताएं सुनने के लिए चटका लगाएं...

शनिवार, 13 मई 2023

द केरल स्टोरी : प्रतिबंध लगाकर सच को नहीं दबा पाएंगे


अपने समय के गंभीर सच को सामने लाने वाली साहसिक फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर कुछ राजनीतिक दलों, उनकी सरकारों और उनके समर्थक बुद्धिजीवियों ने एक रंग देने का प्रयास किया है जबकि यह फिल्म किसी संप्रदाय के विरुद्ध नहीं है अपितु यह तो आतंकवाद के क्रूरतम चेहरे को सामने लाने का काम कर रही है। जिस संप्रदाय से इस फिल्म को जोड़कर, फिल्म को दर्शकों तक पहुँचने से रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं, यह फिल्म उस संप्रदाय के लोगों को भी सजग करने का काम करती है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर एक तरह से स्त्रियों पर होनेवाले अमानवीय अत्याचार, एक घिनौनी मानसिकता से किए जानेवाले कन्वर्जन और आतंकवाद का पक्ष लिया है। आखिर यह सच सामने क्यों नहीं आना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात आतंकी संगठन या अन्य गिरोह किस तरह युवतियों को निशाना बना रहे हैं, कन्वर्जन कर रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं?

गुरुवार, 4 मई 2023

‘द केरल स्टोरी’ से सामने आए कई सच

लव जिहाद, कन्वर्जन, आतंकवाद और सांप्रदायिकता के मुद्दे पर बनी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर तथाकथित प्रगतिशील, मार्क्सवादी, माओवादी, लेनिनवादी और उनके साथ में तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी हो-हल्ला मचा रहे हैं। फिल्म को दर्शकों तक पहुँचने से रोकने के लिए इस वर्ग ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया है। फिल्म दर्शकों के सामने न जाए इसलिए इस पर रोक लगाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में अपील की गई। अच्छी बात यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने सभी प्रकार के कुतर्कों को रद्द करते हुए ‘द केरल स्टोरी’ पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। कुल मिलाकर फिल्म अभी आई भी नहीं है, उससे पहले ही उसने तथाकथित सेकुलर गिरोह की कलई खोलकर रख दी है। अभिव्यक्ति और सिनेमाई स्वतंत्रता का झंडाबरदार यह समूह वास्तव में असहिष्णु और तानाशाही है। यह समूह वास्तव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर नहीं अपितु उसका विरोधी है।

मंगलवार, 2 मई 2023

‘लाडली लक्ष्मी उत्सव’ : बेटियों को प्रोत्साहित करती शिवराज सरकार

भोपाल से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र 'सुबह सवेरे' में 2 मई 2023 को प्रकाशित

मध्यप्रदेश में बेटियों को लेकर एक सकारात्मक एवं भावनात्मक वातावरण बन गया है। आज मध्यप्रदेश की बेटियां खूब पढ़ रही हैं और आगे बढ़ रही हैं। प्रत्येक कार्यक्षेत्र में भी अपना योगदान दे रही हैं। खेल के मैदान हों, या जोखिम भरी एवरेस्ट की चढ़ाई, बेटियों के कदमों को अब रोका नहीं जाता अपितु उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सब सहयोगी की भूमिका में हैं। लड़ाकू विमान उड़ानेवाली पहली महिला फाइटर पायलट में भी मध्यप्रदेश की बेटी का नाम शामिल है। बेटियां अपने पग से जल, थल, नभ को नाप रही हैं। मध्यप्रदेश में यह बदलाव अचानक नहीं आया है। बेटियों के लिए बना यह वातावरण ‘संकल्प से सिद्धि’ का उदाहरण है। बेटियों के प्रति संवेदनशील मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक संकल्प लिया कि वे बेटियों को प्रोत्साहित करनेवाला वातावरण बनाएंगे। इसके लिए उनकी पहल पर 16 वर्ष पूर्व 1 अप्रैल 2007 को मध्यप्रदेश सरकार ने ‘लाडली लक्ष्मी योजना’ शुरू की। स्वयं को प्रदेश की बेटियों का ‘मामा’ घोषित करके ‘बेटी बचाओ’ का नारा दिया। मुख्यमंत्री का यह विचार इतना शक्तिशाली एवं प्रभावशाली था कि लोकप्रिय राजनेता नरेन्द्र मोदी जब प्रधानमंत्री बने, तो उन्होंने इस नारे को राष्ट्र का नारा बना दिया और ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का आह्वान किया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में मध्यप्रदेश की सरकार यहीं नहीं रुकी, अपितु बेटियों को संरक्षण और संबल देने के लिए प्रयास अनेक स्तर पर किए गए। इस सबमें अधिक महत्वपूर्ण है कि उन्होंने इस मुद्दे पर जनता से सीधे और लगातार संवाद किया। जब एक जनप्रिय राजनेता नागरिक समाज से कोई आग्रह करता है, तब उसका सुफल परिणाम आने की संभावनाएं अधिक होती हैं।

सोमवार, 1 मई 2023

अहम् से वयम् की यात्रा

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के जनप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 100वीं कड़ी पर ‘अपने मन के विचार’ आकाशवाणी, भोपाल से प्रसारित हुए

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने जनप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की 100वीं कड़ी में देशवासियों के साथ आत्मीय संवाद किया। उनके इस संबोधन में भावुकता, अपनत्व और संवेदनशीलता झलकती है। असल में ‘मन की बात’ कार्यक्रम प्रधानमंत्री मोदी के लिए बहुत महत्व रखता है, यह उनके दिल से जुड़ा हुआ कार्यक्रम है। प्रधानमंत्री मोदी के लिए यह कोई कर्मकांड नहीं है, बल्कि वे पूरी सिद्धत के साथ ‘मन की बात’ करते हैं। देशभर से ऐसी घटनाओं और व्यक्तियों को चुनते हैं, जो तपस्या की तरह समाज हित में काम कर रहे हैं। अभावों में रहकर भी देश, समाज और प्रकृति को संवारने में जुटे हुए हैं। ‘मन की बात’ के माध्यम से ऐसे लोगों का देशवासियों से परिचय कराते समय कई बार प्रधानमंत्री भावुक हुए हैं। 100वें अंक में बात करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को स्वीकार भी किया। उनका जिस प्रकार का स्वभाव और अंतःकरण है, उसके कारण यकीनन कई अवसर आते होंगे जब उनकी आंखें भर आती होंगी। उन्होंने अपने लंबे सामाजिक जीवन में वह सब देखा भी है, इसलिए उससे जुड़ना उनके लिए स्वाभाविक है।

बुधवार, 26 अप्रैल 2023

श्री रायरेश्वर : हिन्दवी स्वराज्य की प्रतिज्ञा भूमि

स्वराज्य 350 : श्री रायरेश्वर गढ़ पर वह प्राचीन एवं दिव्य शिवलिंग आज भी है, जहाँ वीर बाल शिवा ने अपने मित्रों के साथ ली ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की शपथ



पुणे की दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 82 किलोमीटर की दूरी पर, रोहिडखोरे की भोर तहसील में, सह्याद्रि की सुरम्य वादियों के बीच, समुद्र तल से लगभग 4694 फीट ऊंचाई पर घने जंगलों में श्री रायरेश्वर गढ़ स्थित है। यह हिन्दवी स्वराज्य का दुर्ग नहीं है, परंतु सह्याद्रि की यही वह पवित्र पहाड़ी है, जो हिन्दवी स्वराज्य के शुभ संकल्प की साक्षी बनी। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में सांय-सांय करती हवा पर कान धरा जाए तो आज भी वीर बालक शिवा की प्रतिज्ञा की वह गूंज सुनी जा सकती है, जिसने धर्मद्रोही मुगलिया सल्तनत को उखाड़ फेंक दिया था। श्री रायरेश्वर के विस्तृत पहाड़ पर वह प्राचीन शिवालय आज भी है, जहाँ एक किशोर ने अपने कुछ मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की शपथ ली, जिसकी कल्पना करना भी उस समय कठिन था। मुगलिया सल्तनत के अत्याचारों के चलते हिन्दू आत्म विस्मृत हो चला था। उसके मन में यह विचार ही आना बंद हो गया था कि यह भारत भूमि उसकी अपनी है। वह यहाँ मुगलों की चाकरी क्यों कर रहे हैं? देश में गो-ब्राह्मण, स्त्रियां और धर्म सुरक्षित नहीं रह गया था। हिन्दू समाज को इस अंधकार से बाहर निकालने और उसके मन में एक बार फिर आत्मगौरव की भावना जगाने का संकल्प शिवाजी महाराज ने लिया था। श्री रायरेश्वर में शंभुमहादेव के सामने कसम खाने की रोहिड़खोरे में पुरानी परिपाटी थी। हम कह सकते हैं कि हिन्दवी स्वराज्य की संकल्पना का यहीं प्रथम उद्घोष हुआ।

रविवार, 23 अप्रैल 2023

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ताकत हैं ‘अनादिश्री’

चंदेरी में अनादिश्री के साथ लोकेन्द्र सिंह

यदि आपको प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रभाव, उनकी लोकप्रियता, उनके प्रति जन-विश्वास और निश्छल श्रद्धा की अनुभूति करनी है, तब आपको ग्वालियर के ‘अनादिश्री’ से मिलना चाहिए। अनादि से मिलकर आप अभिभूत हो जाएंगे। सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी चिंता स्तुत्य एवं अनुकरणीय है। अनादि स्वयं सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारी से जूझ रहे हैं लेकिन देश-समाज के प्रति उतने ही या कहें उससे अधिक चिंतित और जागरूक रहते हैं, जितना की कोई शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति रहता है। सामाजिक परिवर्तन के लिए जो भी आह्वान प्रधानमंत्री मोदी ने किया है, उसे अनादि ने मूक होकर भी बुलंद आवाज दी है। कोविड-19 के दौरान जब प्रधानमंत्री मोदी ने घर पर रहने और कोरोना रोधी दिशा-निर्देशों का पालन करने का आग्रह किया तब अनादि ने उन सभी को व्यक्तिगत रूप से संदेश भेजे, जो उनके व्हाट्सएप की सूची में थे। जल संरक्षण और स्वच्छता के प्रति भी प्रधानमंत्री मोदी के आग्रह को अनादि आगे बढ़ाते रहते हैं। स्वच्छता का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इस पर उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर भी महत्वपूर्ण संदेश साझा किया है।

गुरुवार, 20 अप्रैल 2023

पर्यावरण को वैश्विक मुद्दा बनाने का प्रधानमंत्री का आह्वान अनुकरणीय

भारत सहित समूची दुनिया में पर्यावरण संरक्षण को लेकर विमर्श भी बन गया है और उसके अनुरूप कुछ प्रयास भी प्रारंभ हुए हैं। विश्व पटल पर पर्यावरण को लेकर गंभीरता का निर्माण करने में भारत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने प्रभावशाली वैश्विक मंचों से पर्यावरण संरक्षण के प्रति प्रगत एवं प्रगतिशील देशों का न केवल ध्यान आकर्षित किया है अपितु जिम्मेदारी का अहसास भी कराया है। बीते दिन भी जब वे विश्व बैंक द्वारा आयोजित विश्व नेताओं के एक आभासी सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे, तब भी उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के मुद्दे को उठाया। अपने उद्बोधन में उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को व्यापक जनांदोलन बनाने का आह्वान किया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने विभिन्न देशों के शासन-प्रशासन से नहीं अपितु सीधे नागरिकों से आह्वान किया है कि वे व्यक्तिगत रूप से अपने रोजमर्या के जीवन में बदलाव लाकर पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी निभाएं।

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

तमिलनाडु में आरएसएस को रोकने की चाल असफल

RSS route marches at 45 places in Tamil Nadu


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को रोकने का सपना देखनेवाली ताकतों को एक बार फिर मुंह की खानी पड़ी है। तमिलनाडु सरकार अतार्किक बहाने बनाकर आरएसएस के पथ संचलनों पर रोक लगाने के प्रयास कर रही थी। संघ ने राज्य सरकार के पक्षपाती और लोकतंत्र विरोधी निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार के निर्णय को पलट दिया और संघ को पथ संचलन निकालने की अनुमति दे दी। परंतु एन–केन–प्रकारेण संघ को रोकने के लिए तैयार बैठी सरकार कहां उच्च न्यायालय के निर्णय को मानती। सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। लेकिन तमिलनाडु सरकार को यहां भी मुंह की खानी पड़ी। हैरानी होती है कि एक ओर विभिन्न राजनीतिक दल संविधान और लोकतंत्र की बात करते हैं लेकिन व्यवहार ठीक उल्टा करते हैं। हिन्दू और राष्ट्रीय विचार के संगठनों का प्रश्न आने पर तथाकथित सेकुलर समूह किसी तानाशाही की तरह व्यवहार करते दिखाई देते हैं। कई बार तो यही लगने लगता है कि इनके दिखाने के दांत अलग है और खाने के दांत अलग हैं। इन सभी का मूल स्वभाव अलोकतांत्रिक ही है, जो विभिन्न अवसरों पर प्रकट होता रहता है।

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2023

बाबा साहेब के लिए सामाजिक न्याय का माध्यम थी पत्रकारिता

‘मूक’ समाज को आवाज देकर बने ‘नायक’


बाबा साहेब डॉ. भीमराव रामजी अम्बेडकर का व्यक्तित्व बहुआयामी, व्यापक एवं विस्तृत है। उन्हें हम उच्च कोटि के अर्थशास्त्री, कानूनविद, संविधान निर्माता, ध्येय निष्ठ राजनेता और सामाजिक क्रांति एवं समरसता के अग्रदूत के रूप में जानते हैं। सामाजिक न्याय के लिए उनके संघर्ष से हम सब परिचित हैं। बाबा साहेब ने समाज में व्याप्त जातिभेद, ऊंच-नीच और छुआछूत को समाप्त कर समता और बंधुत्व का भाव लाने के लिए अपना जीवन लगा दिया। वंचितों, शोषितों एवं महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने के लिए बाबा साहेब ने अलग-अलग स्तर पर जागरूकता आंदोलन चलाए। अपने इन आंदोलनों एवं वंचित वर्ग की आवाज को बृहद् समाज तक पहुँचाने के लिए उन्होंने पत्रकारिता को भी साधन के रूप में अपनाया। उनके ध्येय निष्ठ, वैचारिक और आदर्श पत्रकार-संपादक व्यक्तित्व की जानकारी अपेक्षाकृत बहुत कम लोगों को है। बाबा साहेब ने भारतीय पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान दिया है। पत्रकारिता के सामने कुछ लक्ष्य एवं ध्येय प्रस्तुत किए। पत्रकारिता कैसे वंचित समाज को सामाजिक न्याय दिला सकती है, यह यशस्वी भूमिका बाबा साहेब ने निभाई है। बाबा साहेब ने वर्षों से ‘मूक’ समाज को अपने समाचारपत्रों के माध्यम से आवाज देकर ‘मूकनायक’ होने का गौरव अर्जित किया है।

मंगलवार, 4 अप्रैल 2023

माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता में राष्ट्रीयता और संस्कृति

कर्मवीर संपादक माखनलाल चतुर्वेदी | Makhanlal Chaturvedi | कलम के योद्धा

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। उन्होंने साहित्य और पत्रकारिता, दोनों को स्वतंत्रता आंदोलन में जन-जागरण का माध्यम बनाया। वैसे तो दादा माखनलाल का मुख्य क्षेत्र साहित्य ही रहा, किंतु एक लेख प्रतियोगिता उनको पत्रकारिता में खींच कर ले आई। मध्यप्रदेश के महान हिंदी प्रेमी स्वतंत्रता सेनानी पंडित माधवराव सप्रे समाचार पत्र 'हिंदी केसरी' का प्रकाशन कर रहे थे। हिंदी केसरी ने 'राष्ट्रीय आंदोलन और बहिष्कार' विषय पर लेख प्रतियोगिता आयोजित की। इस लेख प्रतियोगिता में माखनलाल जी ने हिस्सा लिया और प्रथम स्थान प्राप्त किया। आलेख इतना प्रभावी और सधा हुआ था कि पंडित माधवराव सप्रे माखनलाल जी से मिलने के लिए स्वयं नागपुर से खण्डवा पहुंच गए। इस मुलाकात ने ही पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता की नींव डाली। सप्रे जी ने माखनलाल जी को लिखते रहने के लिए प्रेरित किया। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व कुलपति अच्युतानंद मिश्र लिखते हैं- “इन दोनों महापुरुषों के मिलन ने न केवल महाकोशल, मध्यभारत, छत्तीसगढ़, बुंदेलखंड एवं विदर्भ को बल्कि सम्पूर्ण देश की हिंदी पत्रकारिता और हिंदी पाठकों को राष्ट्रीयता के रंग में रंग दिया।”  दादा ने तीन समाचार पत्रों; प्रभा, कर्मवीर और प्रताप, का संपादन किया।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

‘धर्मवीर’ छत्रपति शंभू राजे के शौर्य और बलिदान की कहानी सुनाता है उनका समाधि स्थल

स्वराज्य 350सुनिये, श्रीशंभू छत्रपति महाराज (संभाजी महाराज) की मानवंदना

पुणे के समीप वढू में छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र एवं उनके उत्तराधिकारी छत्रपति शंभूराजे का समाधि स्थल है। यह स्थान छत्रपति शंभूराजे के बलिदान की कहानी सुनाता है। उनका जीवन हिन्दवी स्वराज्य के विस्तार और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए समर्पित रहा है। शंभूराजे अतुलित बलशाली थे। कहते हैं कि उनके पराक्रम से औरंगजेब परेशान हो गया था और उसने कसम खायी थी कि जब तक शंभूराजे पकड़े नहीं जाएंगे, वह सिर पर पगड़ी नहीं पहनेगा। परंतु शंभूराजे को आमने-सामने की लड़ाई में परास्त करके पकड़ना मुश्किल था। इसलिए औरंगजेब सब प्रकार के छल-बल का उपयोग कर रहा था। अंतत: औरंगजेब की एक साजिश सफल हुई और छत्रपति शंभूराजे एवं उनके मित्र कवि कलश उसकी गिरफ्त में आ गए। 

वढू स्थित छत्रपति शंभूराजे का समाधि स्थल / फोटो : लोकेन्द्र सिंह

औरंगजेब ने शंभूराजे को कैद करके अकल्पनीय और अमानवीय यातनाएं दीं। औरंगजेब ने जिस प्रकार की क्रूरता दिखाई, उसकी अपेक्षा एक मनुष्य से नहीं की जा सकती। कोई राक्षस ही उतना नृशंस हो सकता था। इतिहासकारों ने दर्ज किया है कि शंभूराजे की जुबान काट दी गई, उनके शरीर की खाल उतार ली गई, आँखें फोड़ दी थी। औरंगजेब इतने पर ही नहीं रुका, उसने शंभूराजे के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करवाकर नदी में फिंकवा दिए थे।

शनिवार, 18 मार्च 2023

राज्याभिषेक के 350वें वर्ष का स्मरण जगाएगा ‘स्व’ का भाव

स्वराज्य 350


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की ओर से शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350वां वर्ष प्रारंभ होने पर वक्तव्य जारी करके स्वयंसेवकों एवं समाज के सभी बंधुओं से आह्वान किया है कि इस संदर्भ में होनेवाले कार्यक्रमों में सहभागिता करें। प्रतिनिधि सभा की ओर से माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय जी होसबाले के आह्वान का अधिकतम अनुपालन होना चाहिए। राज्याभिषेक को केंद्र में रखकर जो कार्यक्रम आयोजित हों, उनमें हमें सहभागिता करने के साथ ही अपने स्तर पर भी राज्याभिषेक की घटना के महत्व को प्रकाश में लाकर, ‘स्व’ की भावना को जगाने में सहयोग करना चाहिए। समूचा देश जब स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की ऐतिहासिक घटना का स्मरण करना इसलिए भी प्रासंगिक होगा कि हम ‘स्वराज्य’ की संकल्पना को सही अर्थों में समझ पाएंगे।

गुरुवार, 16 मार्च 2023

भविष्य के भारत के लिए दिशा-संकेत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही समाजहित में सक्रिय है। भले ही राजनीतिक दल और उनके कुछ नेता संघ के बारे में भ्रामक प्रचार करें, लेकिन समाज में संघ की जो छवि बनी है, वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे है। देश-दुनिया में जब कोरोना जैसी महामारी आई थी, तब जहाँ भी संघ के कार्यकर्ता थे, उन्होंने निर्भय होकर लोगों की सहायता की, उनका हौसला बढ़ाया। कहने का अभिप्राय यही है कि जब भी समाज को संभालने की आवश्यकता होती है, संघ के कार्यकर्ता सबसे आगे खड़े होते हैं। आज जब भौतिकता अत्यधिक तेजी से हावी हो रही है, तब भारतीय समाज को सुदृढ़ करने की चिंता हर किसी के मन में है। संघ ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। आधुनिकता के साथ कैसे हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, इस दिशा में संघ पहले से ही कार्य कर रहा था, अब उसकी गति बढ़ाने का निर्णय किया गया है। संघ की निर्णायक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक हरियाणा में सम्पन्न हुई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि संघ आगामी समय में सामाजिक परिवर्तन के पांच आयामों पर अपने कार्य को अधिक केन्द्रित करेगा। इन पांच आयामों में सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण, नागरिक कर्तव्य सम्मिलित हैं। यह पांच आयाम अत्यधिक महत्व के हैं।

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

‘हिन्दवी स्वराज्य’ की संकल्पना का आधार 'स्व'

 स्वराज्य 350श्रीछत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती (चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया, 10 मार्च, 2023) प्रसंग पर विशेष

हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी दुर्गदुर्गेश्वर श्री रायगढ़ पर राजदरबार में महाराजाधिराज श्रीशिव छत्रपति की सिंहासनारूढ़ प्रतिमा / Photo : Lokendra Singh

भारतवर्ष जब दासता के मकड़जाल में फंसकर आत्मगौरव से दूर हो गया था, तब शिवाजी महाराज ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की घोषणा करके भारतीय प्रजा की आत्मचेतना को जगाया। आक्रांताओं के साथ ही तालमेल बिठाकर राजा-महाराज अपनी रियासतें चला रहे थे, तब शिवाजी महाराज ने केवल शासन के सूत्र मुगलों से अपने हाथ में लेने के लिए बिगुल नहीं फूंका था अपितु उन्होंने वास्तविक अर्थों में स्वराज्य की प्रेरणा जगायी। अकसर हम आर्तस्वर में कहते हैं कि 1947 में हमने सत्ता तो प्राप्त कर ली थी लेकिन तत्काल बाद स्वराज्य की ओर कदम नहीं बढ़ाये थे। अंग्रेजों की बनायी व्यवस्थाओं को ही हम ढोते रहे। यहाँ तक कि हम अपनी भाषा को प्रधानता नहीं दे सके। पिछले कुछ वर्षों में अवश्य ही हमने स्वराज्य की ओर कुछ कदम बढ़ाये हैं। जबकि शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के साथ ही सब प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्थाएं ‘स्व’ के आधार पर बनायी। उन्होंने जिस राज्य की स्थापना की, उसे भोंसले राज्य, कोंकण राज्य या मराठी राज्य नहीं कहा अपितु उसे उन्होंने नाम दिया ‘हिन्दवी स्वराज्य’ और जिस साम्राज्यपीठ की स्थापना की, उसे कहा- ‘हिन्दू पदपादशाही’। यानी उन्होंने स्वराज्य को स्वयं की निजी पहचान से नहीं अपितु भारत की संस्कृति से जोड़ा। इसी तरह उन्होंने कभी नहीं कहा कि हिन्दवी स्वराज्य की उनकी अपनी संकल्पना है अपितु श्रीशिव ने तो जन-जन में स्वराज्य के भाव की जाग्रति के लिए कहा- “हिन्दवी स्वराज्य ही श्रींची इच्छा”। अर्थात् यह हिन्दवी स्वराज्य की इच्छा ईश्वर की इच्छा है।

बुधवार, 8 मार्च 2023

महिला सशक्तिकरण पर जोर देती शिवराज सरकार

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने महिला सशक्तिकरण के उल्लेखनीय प्रयास किए हैं, उसी शृंखला में ‘लाडली बहना योजना’ को देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर आम नागरिकों के बीच प्रतीक्षा भी बहुत थी और चर्चा भी। बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो इसे आगामी चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। चुनावी वर्ष में सरकार कोई भी पहल करे, उसे चुनाव से जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक ही है। परंतु यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि शिवराज सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए प्रारंभ से नवाचार करती रही है। बेटियों की पढ़ाई, उनके पोषण एवं भविष्य में विवाह इत्यादि में आर्थिक सहयोग की दृष्टि से सरकार ने अनेक योजनाएं प्रारंभ की हैं। सरकारी योजनाओं से इतर भी प्रदेश में बेटियों को लेकर सामाजिक सोच में बदलाव लाने का क्रांतिकारी परिवर्तन भी शिवराज सरकार ने किया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान अपने भाषणों में नियमित तौर पर बेटियों के प्रति समान और सम्मान का भाव रखने का आग्रह करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में बेटियों के प्रति समाज में जो सकारात्मक वातावरण दिखायी देता है, उसकी अनुभूति सब कर पा रहे हैं।

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रतिदिन एक पौधा रोपने का शुभ संकल्प बना जनांदोलन

एक पौधा हम भी लगाएं

कोई एक शुभ संकल्प कैसे जनांदोलन बन जाता है, इसका सटीक उदाहरण है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सदानीरा माँ नर्मदा की जयंती के पावन प्रसंग पर 19 फरवरी, 2021 को प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प लिया था। किसी भी राजनेता के लिए इस प्रकार के संकल्प को प्रतिदिन निभाना कठिन होता है। मुख्यमंत्री के रूप में व्यस्तता और अधिक बढ़ जाती है। इस बात की प्रशंसा करनी होगी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिना चूके प्रतिदिन अपने संकल्प का पालन किया। अपने प्रवास के दौरान भी वे जहाँ रहे, वहाँ उन्होंने पौधा रोपा। अपने संकल्प के प्रति यह प्रतिबद्धता अनुकरणीय है।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

अर्जुन के रथ से लड़ाकू विमान पर महाबली हनुमान


बेंगलुरु में चल रहे एयरो इंडिया शो में प्रदर्शित भारत के नए सुपरसोनिक फाइटर ट्रेनर एयरक्राफ्ट ‘एचएलएफटी-42’ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। दरअसल, इस आधुनिक लड़ाकू प्रशिक्षक विमान की पूंछ पर महाबली पवनपुत्र हनुमानजी अंकित हैं। निश्चित ही यह आनंद की बात है कि भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है। विमान का डिजाइन बनानेवालों के मन अवश्य ही भारत बोध से भरे हुए होंगे। वर्तमान केंद्र सरकार भी भारतीयता से ओतप्रोत नवाचारों का स्वागत करती है। भारतीयता को उसके सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में उसे कोई संकोच नहीं, अपितु आनंद ही होता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में विगत आठ–नौ वर्षों में ऐसा वातावरण बना है, जो ‘भारत के विचार’ को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमें स्मरण करना चाहिए धर्मयुद्ध ‘महाभारत’ के रण में अर्जुन जिस रथ पर सवार थे, उस पर भी ध्वज के साथ महावीर हनुमानजी विराजित थे। संभव है कि लड़ाकू विमान की अभिकल्पना अर्जुन के रथ से प्रेरित हो।

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

एक ही है गांधीजी और आरएसएस का ‘हिन्दुत्व’

पुस्तक चर्चा – ‘हिन्दुत्व और गांधी’


कुछ लोग मेरे इस कथन से असहमत हो सकते हैं कि “गांधीजी का जीवन हिंदुत्व में रचा–बसा था”। असहमतियों का सम्मान है लेकिन यह सत्य है कि महात्मा गांधी के जीवन को हिंदुत्व से अलग करके नहीं देखा जा सकता। आज जो कम्युनिस्ट यह भ्रम पैदा करने की साजिश रचते हैं कि गांधीजी का हिन्दुत्व अलग था और हिन्दू संगठनों का हिन्दुत्व अलग है, एक दौर तक यही कम्युनिस्ट गांधीजी को सांप्रदायिक हिन्दूवादी नेता के रूप में लक्षित करते थे। कम्युनिस्टों के साथ ही उस समय की अन्य हिन्दू विरोधी ताकतें भी गांधीजी को ‘हिन्दुओं के नेता’ के तौर पर देखती थीं। हिन्दुत्व के प्रतिनिधि/प्रचारक होने के कारण महात्मा गांधी की आलोचना करने में कट्टरपंथी मुस्लिम और कम्युनिस्ट अग्रणी थे। विडम्बना देखिए कि आज यही ताकतें गांधीवाद का चोला ओढ़कर हिन्दू धर्म और राष्ट्रीय विचार पर हमला करने के लिए पूज्य महात्मा का उपयोग एक हथियार की तरह कर रही हैं। ऐसे समय में वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी इतिहास के सागर में गोता लगाकर अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व और गांधी’ में ऐसे तथ्य सामने रखते हैं, जिनसे यह ‘शरारती विमर्श’ खोखला दिखने लगता है। यह सर्वमान्य है कि हिन्दुओं का सबसे बड़ा संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ है। इसलिए हिन्दू धर्म पर हमलावर रहनेवाली ताकतें ‘आरएसएस’ को भी अपने निशाने पर रखती हैं। ‘हिन्दुत्व’ पर समाज को भ्रमित करने की साजिशों में यह स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि ‘संघ का हिन्दुत्व’ वह हिन्दुत्व नहीं है जो ‘गांधीजी का हिन्दुत्व’ है। दोनों अलग-अलग हैं। जबकि ऐसा है नहीं। हिन्दुत्व एक ही है, चाहे वह आरएसएस का हो या फिर महात्मा गांधी का। यदि अलग-अलग होता, तब ये ताकतें पूर्व में महात्मा गांधी पर हमलावर नहीं होतीं। उस दौर में हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें गांधीजी दिखाई दिए तो उन्होंने गांधी पर हमला किया और अब जब आरएसएस इस भूमिका में है, तो ये सांप्रदायिक एवं फासीवादी ताकतें आरएसएस पर हमलावर हैं।

गुरुवार, 26 जनवरी 2023

कर्तव्य पथ पर ‘गणतंत्र’

हम भारत के लोग अपना 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं। हमारा गणतंत्र बीते 73 वर्षों में किस ओर बढ़ा है, विद्वान लोग अकसर इसकी समीक्षा/चर्चा करते रहते हैं। वैसे तो भारत के लिए गणतंत्र कोई आधुनिक व्यवस्था नहीं है। जब हम अपने इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ पलटकर देखते हैं, तो हमें भारत में गणतंत्र की समृद्ध परंपरा दिखाई देती है। फिलहाल हम अपने वर्तमान गणतंत्र की बात करें तो ध्यान आता है कि अपनी चर्चाओं में अकसर विद्वान कहते हैं कि भारत का ‘तंत्र’ अभी पूरी तरह से ‘गण’ केंद्रित नहीं हुआ है। कहीं न कहीं औपनिवेशिक मानसिकता ही हमारे तंत्र पर हावी है। परंतु पिछले दस वर्षों में जिस तरह से भारत के गणतंत्र ने करवट बदली है, उससे स्पष्टतौर पर परिलक्षित हो रहा है कि हमारा तंत्र अब गण की ओर सम्मुख हुआ है। इसलिए पिछले कुछ वर्षों में शासन स्तर पर हुए निर्णय, नीतिगत बदलाव एवं सांकेतिक व्यवस्थाएं गण की मंशा के अनुरूप दिखाई देती हैं। अब अंतरराष्ट्रीय ताकतों के दबाव में नहीं अपितु जनता के हित में नीतियां बनती हैं। हमारा शासन किसी का पिछलग्गू नहीं है, वह भारतीय दृष्टिकोण से नीतियां बना रहा है। भारत अब बैशाखियां छोड़कर आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ चला है।

रविवार, 8 जनवरी 2023

खेल पत्रकारिता की बारीकियां सिखाती पुस्तक- ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’

‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ पुस्तक का वीडियो ब्लॉग यहाँ देखें


“खेल में दुनिया को बदलने की शक्ति है, प्रेरणा देने की शक्ति है, यह लोगों को एकजुट रखने की शक्ति रखता है, जो बहुत कम लोग करते हैं। यह युवाओं के लिए एक ऐसी भाषा में बात करता है, जिसे वे समझते हैं। खेल वहाँ भी आशा पैदा कर सकता है, जहाँ सिर्फ निराशा हो। यह नस्लीय बाधाओं को तोड़ने में सरकार की तुलना में अधिक शक्तिशाली है”। अफ्रीका के गांधी कहे जानेवाले प्रसिद्ध राजनेता नेल्सन मंडेला के इस लोकप्रिय कथन के साथ मीडिया गुरु डॉ. आशीष द्विवेदी अपनी पुस्तक ‘खेल पत्रकारिता के आयाम’ की शुरुआत करते हैं। या कहें कि पुस्तक के पहले ही पृष्ठ पर इस कथन के साथ लेखक खेल की महत्ता को रेखांकित कर देते हैं और फिर विस्तार से खेल और पत्रकारिता के विविध पहलुओं पर बात करते हैं। डॉ. द्विवेदी की इस पुस्तक ने बहुत कम समय में अकादमिक क्षेत्र में अपना स्थान बना लिया है। दरअसल, इस पुस्तक से पहले हिन्दी की किसी अन्य पुस्तक में खेल पत्रकारिता पर समग्रता से बातचीत नहीं की गई।

शुक्रवार, 6 जनवरी 2023

भारतेंदु हरिश्चंद्र का घर

आज हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता के प्रकाशस्तंभ भारतेंदु हरिश्चंद्र (9 सितंबर 1850-6 जनवरी 1885) को स्मरण करने का दिन है। पिछले वर्ष अगस्त में वाराणसी प्रवास के दौरान संयोग से उनके घर के सामने से गुजरना हुआ।

काल भैरव के दर्शन करने के लिए तेज चाल से बनारस की प्रसिद्ध गलियों से हम बढ़ते जा रहे थे। बाबा विश्वनाथ और गंगा मईया के दर्शन करके आगे बढ़ रहे थे तो मन आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ था। रिमझिम बारिश हो रही थी तो भीगते–बचते हुए और इधर–उधर नजर दौड़ाते हुए, अपन चल रहे थे।

चलते–चलते जैसे ही एक दीवार पर भारतेंदु हरिश्चंद्र का मोहक चित्र देखा, तो तेजी से बढ़ते कदम एकदम से ठिठक गए। मुझे कतई अंदाजा नहीं था कि यह भवन निज भाषा का अभिमान जगानेवाले साहित्यकार–पत्रकार भारतेंदु हरिश्चंद्र का है। लेकिन जैसे ही चित्र के थोड़ा ऊपर देखा तो पट्टिका पर लिखा था– ‘आधुनिक हिन्दी साहित्य के जन्मदाता गोलोकवासी भारतेंदु हरिश्चंद्र का निवास स्थान’। यह शिलालेख नागरी–प्रचारिणी सभा, काशी ने 1989 में लगवाया था।

भारतेंदु हरिश्चंद्र श्रेष्ठ साहित्यकार होने के साथ ही उच्च कोटि के संपादक भी थे। उन्होंने हिन्दी की खूब सेवा की है। 35 वर्ष की अल्पायु में ही वे गोलोकवासी हो गए लेकिन उन्होंने जो सृजन किया, उसके कारण वे आज भी हमारे बीच प्रासंगिक हैं।

वे इतने प्रतिभाशाली थे कि 1868 में, केवल 18 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने पत्रिका ‘कवि वचन सुधा’ का प्रकाशित किया। इसके बाद हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया। इसके साथ ही भारतेंदु हरिश्चंद्र ने ‘हरिश्चंद्र चंद्रिका’ और ‘बाला बोधिनी’ पत्रिका के संपादन के माध्यम हिन्दी भाषा के प्रचार प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

वाराणसी में भारतेन्दु हरिश्चंद्र के भवन पर उनका चित्र / फोटो : लोकेन्द्र सिंह

वाराणसी में भारतेन्दु हरिश्चंद्र का भवन / फोटो : लोकेन्द्र सिंह