ग्वालियर में नववर्ष के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम. |
मंगलवार, 24 मार्च 2015
अपनी जड़ों में लौटना होगा
मंगलवार, 17 मार्च 2015
जहां औंकार में विराजते हैं शिव
दे वों के देव महादेव शिव अपने नाम के अनुरूप भोले हैं। बाबा मनमौजी भी हैं। उनका निवास और भेष दुनिया को संदेश देता है कि व्यक्ति अपने सामर्थ्य को पहचाने तो फिर वह प्रत्येक परिस्थिति में सुख से रह सकता है। बेफिक्र, निश्चिंत, परम आनंद में डूबा हुआ। कैलाश शिखर के वासी भोले भण्डारी ने औंकारेश्वर में भी एक पर्वत को ही अपना ठिया बनाया है। पर्वत पवित्र 'ऊँ' के आकार का है। इसीलिए यहां शिव का नाम पड़ा है- औंकारेश्वर। भोले भण्डारी को मधुर संगीत सुनाने के लिए पर्वत के नीचे माँ नर्मदा कल-कल बहती हैं। कावेरी भी उनका साथ देती नजर आती हैं। प्रकृति भी अपने पूरे सौंदर्य के साथ मौजूद है। माँ नर्मदा के घाट पर खड़े होकर औंकारेश्वर के शिखर को निहारना अलहदा अहसास है। शिखर पर पहुंचने की तीव्र लहरें मन में उठती हैं, लेकिन मान्धाता पर्वत उन्हें पीछे धकेल देता है, कहता है- 'शिखर पर बैठना है तो जाओ पहले शिव होकर आओ।' औंकारेश्वर के प्रांगण में खड़े होकर सदानीरा माँ नर्मदा को देखना भी अद्भुत है। माँ से प्रेरणा पाकर मन गंभीर हो जाता है-'मेरा, मेरे लिए कुछ भी नहीं, सब तुम्हारे लिए है।' 'नदिया न पिए कभी अपना जल, वृक्ष न खाए कभी अपना फल' जैसा गीत याद आता है। शिव के घर से आती घंटी की आवाज, नर्मदा के आंचल से होकर आई भीगी-ठण्डी बयार, शिव की स्तुति में पक्षियों का कलरव, कुछ क्षण के लिए आपको दुनिया के तमाम बंधनों-चिंताओं-परेशानियों से दूर लेकर चला जाएगा। तो आइए, औंकारेश्वर में चर-अचर, शिव के सब भक्त आपके स्वागत के लिए तैयार हैं।
मंगलवार, 10 मार्च 2015
गुजराती पत्रकारिता में है 'खुशबू गुजरात' की
गु जराती पत्रकारिता की विशेषता है कि वे अपने अतीत को बहुत उज्ज्वल बताते हैं। उसे अपने अतीत पर गौरव है। यही कारण है कि गुजराती पत्रकारिता लम्बे समय तक परम्परागत पत्रकारिता की लकीर पर ही चलती रही है। नई सोच के कुछ अखबारों ने जब गुजरात की धरती पर कदम रखा तो परम्परावादी समाचार-पत्र और पत्रिकाओं ने भी अंगड़ाई ली है। बहरहाल, समय के साथ आ रहे बदलावों के बीच गुजराती पत्रकारिता में आज भी सौंधी 'खुशबू गुजरात' की ही है।
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