भारत में प्राचीनकाल से गाय का बहुत महत्व रहा है। गाय भारतीय संस्कृति की प्रतीक होने के साथ ही अर्थव्यवस्था की धुरी भी रही है। हिन्दुओं के लिए गाय आस्था का केंद्र भी है। यही कारण रहा है कि हिन्दू विरोधी मानसिकता के लोग हिन्दुओं की भावनाओं को आहत करने और उनकी आस्था पर चोट पहुँचाने के लिए गाय की हत्या करने का घिनौना काम करते हैं। देश में एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जो गोमांस खाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। इसके पीछे उसकी मंशा उदरपूर्ति नहीं बल्कि हिन्दुओं को दु:ख पहुँचाना की रहती है। रामचंद्र गुहा जैसे बुद्धिजीवी तो मांसाहारी नहीं होने के बाद भी बीफ की प्लेट सोशल मीडिया में शेयर करते हैं, सिर्फ इसलिए ताकि गाय के प्रति श्रद्धा रखने वालों को आहत किया जा सके। केरल के कांग्रेसी चौराहे पर गाय काटकर तो कम्युनिस्ट ‘बीफ फेस्ट’ का आयोजन करके हिन्दुओं की आस्था पर सीधे चोट पहुँचाते हैं। ऐसे ही अनेक बुद्धिजीवी लोग गोमांस खाने को अपना मौलिक अधिकार समझते हैं। इलाहबाद उच्च न्यायालय ने ऐसे लोगों को आईना दिखाने का काम किया है। उच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि गोमांस खाना किसी का मौलिक अधिकार नहीं हो सकता। अपितु गो-संरक्षण को माननीय न्यायालय ने मौलिक अधिकार कहा है।
यह महत्वूर्ण प्रश्न है, जो मांसाहारी लोगों को अपने हृदय से पूछना ही चाहिए कि स्वाद और उदरपूर्ति के लिए किसी मूक प्राणी के जीवन को समाप्त करना मौलिक अधिकार हो सकता है क्या? गाय का संरक्षण करना सब प्रकार से मनुष्य के हित में है। इसलिए भी गो-हत्या पर कठोर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। गाय के संदर्भ में इलाहाबाद उच्च न्यायालय की टिप्पणी न्याय व्यवस्था में सदैव के लिए मिसाल बनने वाली है। माननीय उच्च न्यायालय ने गो हत्या के आरोपी जावेद की जमानत अर्जी को अस्वीकृत करते हुए गाय के महत्व का भली प्रकार वर्णन किया है। भारतीय शास्त्रों, पुराणों एवं धर्मग्रंथ में गाय के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए माननीय न्यायालय ने कहा कि “भारत में विभिन्न धर्मों के नेताओं और शासकों ने भी हमेशा गो संरक्षण की बात की है। भारत के संविधान के अनुच्छेद 48 में भी कहा गया है कि गाय नस्ल को संरक्षित करेगा और दुधारू एवं भूखे जानवरों सहित गो हत्या पर रोक लगाएगा। भारत के 29 राज्यों में से 24 में गो हत्या पर प्रतिबंध है”।
"जो मांसाहारी लोगों को अपने हृदय से पूछना ही चाहिए कि स्वाद और उदरपूर्ति के लिए किसी मूक प्राणी के जीवन को समाप्त करना मौलिक अधिकार हो सकता है क्या?"
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) September 3, 2021
ऐसे अनेक बुद्धिजीवी लोग जो गोमांस खाने को अपना मौलिक अधिकार समझते हैं, उन्हें माननीय उच्च न्यायालय ने आईना दिखाने का काम किया है। pic.twitter.com/MRvH2AZbTH
एक बात सबको ध्यान में रखना चाहिए कि गाय के संरक्षण का विषय सिर्फ हिन्दुओं का प्रश्न नहीं है। बल्कि सभी मत-संप्रदाय के लोगों को गो-संरक्षण के लिए आगे आना होगा। मध्यप्रदेश में रतौना आंदोलन इस बात का साक्षी है कि गो-संरक्षण के विषय पर हिन्दू-मुसलमानों ने एकसाथ होकर आंदोलन किया और अंग्रेज सरकार को तत्कालीन मध्यभारत प्रांत में घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। वर्ष 1920 के इस आंदोलन में गाय माता हिन्दू-मुस्लिम एकता का सेतु बन गई थी। मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने आगे आकर इस आंदोलन से प्रेरित होकर गोवध से दूरी बना ली थी। यहाँ तक कि कई कसाईखाने भी बंद कर दिए थे। उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय भी गोहत्या और गोमांस बिक्री पर रोक लगाने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया था। हिमाचल उच्च न्यायालय ने भी केंद्र सरकार को पूरे देश में गोहत्या और गोमांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने का सुझाव दिया था।
रतौना आंदोलन | ब्रिटिश सरकार को देखना पड़ा हार का मुंह | हिंदी पत्रकारिता की जीत
पशु की जगह 'प्राणी' शब्द का उपयोग हो तो अधिक उपयुक्त रहेगा।
जवाब देंहटाएंसादर