कोयल की कूक सुनी है।
नीम के आंचल से
चारों ओर ठण्डी हवा चली है।
बादल गरजा है
बिजली कड़की है
नृत्यरत मोर देखने
भीड़ बहुत उमड़ी है।
बाजे ताल, मृदंग
शंख ध्वनि पड़ी सुनाई है।
बीती काली रात
नई सुबह आई है।
चिडिय़ों ने कलरव से
मातृवंदना गाई है।
सूरज की किरणें
भारत मां के चरण छूने आईं हैं।
हिमालय मां का
मुकुट बना हुआ है।
सागर की लहरें
चरण पखारने आई हैं।
भारत तेरे अतीत की
गौरव गाथा ऋषि-मुनियों ने गाई है।
मां यशोज्ञान गाएगा जग सारा
ऐसी तेरी महिमा अग-जग में छाई है।
बाजे ताल मृदंग
शंख ध्वनि पड़ी सुनाई है
बीती काली रात नई सुबह आई है।
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- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)