शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

भारतवर्ष में पैंतालीस साल, मेरी हिन्दी-यात्रा-साइजी माकिनो

 मे रा सारा जीवन हिन्दी के आधार पर ही टिका हुआ है। हिन्दी मेरी मां है। हिन्दी के प्रति मेरी जो वफादारी है, वह मुझे असत्य लिखने नहीं देती। जो कुछ मैं लिखूंगा, सच लिखूंगा। मैं सच्ची निष्ठा से हिन्दी-जापानी दोनों भाषाओं की सेवा करूंगा। सत्य की पूजा और गुणगान ही मेरे शेष जीवन का लक्ष्य है। उक्त उद्घोषणा 'हिन्दी रत्न' (शांति निकेतन - 2006) साइजी माकिनो ने अपनी पुस्तक 'भारतवर्ष में पैंतालीस साल, मेरी हिन्दी-यात्रा' के बैक कवर पर लिखी है। इस उद्घोषणा ने मुझे काफी हद तक प्रभावित किया। वैसे इस पुस्तक से मेरा गहरा लगाव है। इसके दो कारण हैं- एक, मुझे पत्रकारिता का कखग पढ़ाने वाले शिक्षक श्री जयंत तोमर के चाचाश्री डॉ. रामसिंह तोमर जी का और दूसरा, मेरी जन्मस्थली ग्वालियर का इसमें इसमें खास उल्लेख है। श्री जयंत तोमर जी ने इस पुस्तक की चर्चा करते समय कहा था कि लेखक श्री साइजी माकिनो मुरैना के पास ऐतिहासिक महत्व का स्थल है नूराबाद वहां रहे। माकिनो उनके चाचा रामसिंह जी से अक्सर जिक्र करते थे कि चंबल के बच्चे बड़े असभ्य, शैतान और परेशान करने वाले थे। इसका उल्लेख उन्होंने किताब में भी किया है। दरअसल जापानी साफतौर पर भारतीयों से भिन्न दिखते हैं। गांव के बच्चे उनके बालकों को छोटी-छोटी आंखों के चलते खूब चिढ़ाते और सताते थे। गांव के लोग उन्हें 'जापानी मास्टर' कहते थे तो वहीं गांव के ही एक संत रामदास जी महाराज उन्हें 'जापान का भगवान' बुलाते थे।
    ग्वालियर के एक सिनेमा घर में उन्होंने मीना कुमारी और अशोक कुमार द्वारा अभिनीत 'चित्रलेखा' फिल्म देखी। बाद में यहीं उन्होंने इसी नाम का श्री भगवतीचरण वर्मा का उपन्यास पढ़ा, जिसका बाद में उन्होंने जापानी में अनुवाद किया। इसका बड़ा रोचक किस्सा उन्होंने लिखा है। माकिनो ने ग्वालियर में रहकर लेखक, भ्रमणकारी, शिक्षक, डॉक्टर और जापानी कंपनी में दुभाषिए की भूमिका का निर्वहन किया। साइजी माकिनो जब चंबल से चले गए तब सिनेमा, साहित्य और समाचारों के माध्यम से उन्होंने चंबल में डाकुओं की समस्या पर चिंतन किया। इस विषय में सोचने के बाद उन्होंने वे चंबल के बारे में लिखते हैं - यद्यपि चंबल क्षेत्र भयावह स्थान, डाकुओं की शरणस्थली माना जाता है, तथापि वहां का हवा-पानी शुद्ध है। वहां के लोग सीधे-सादे और ईश्वर-भक्त हैं। चंबल अब प्रगति की राह पर अग्रसर हो रहा है। मेरी इच्छा है कि यदि मैं जिन्दा रहूं, तो और एक बार ऐसे साधना-स्थान में नये सिरे से सांस लेना चाहता हूं। साइजी भारत के विभिन्न राज्यों और शहरों में रहे। गोवा में अतिथि सत्कार के बारे में वे अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि जब पादरी भक्त घर के घर जाते हैं तो भक्त उन्हें चाय-कॉफी नहीं बल्कि बियर या वाइन पेश करते हैं। पादरी उसे निस्संकोच ग्रहण करते हैं।
भारतवर्ष में पैंतालीस साल, मेरी हिन्दी-यात्रा
- श्री साइजी माकिनो
मूल्य : 110 रुपए
प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
18, इन्स्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड, नई दिल्ली - 110032

 
    श्री साइजी ने गुरु रविन्दनाथ ठाकुर की साधना स्थली शांति निकेतन को जो चित्रण किया है वो बड़ा ही अद्भुत है। शांति निकेतन को पढ़ते हुए पाठक को प्रतीत होता है कि जैसे वह शांति निकेतन में खड़ा है और सब कुछ देख रहा है। वे लिखते हैं कि शांति निकेतन का जीवन सुबह की 'बैतालिक' से शुरू होता है। जिसमें उपनिषद के मंत्र और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का संगीत अवश्यम्भावी है। शांति निकेतन में समस्त उत्सव गान से शुरू होकर गान पर ही समाप्त होते हैं। इस पुस्तक की सहायता से आप जितना करीब से शांति निकेतन  और भारत को महसूस करते हैं उसी प्रकार जापान और उसकी कला-संस्कृति के भी दर्शन कर सकेंगे। बातों ही बातों में साइजी भारत की वर्षों पुरानी खेती पद्धति (प्राकृतिक खेती) के महत्व को भी स्पष्ट कर जाते हैं। वे भारत का बहुत सम्मान करते हैं, भारत को कई मायनों में सबसे बहुत आगेे पाते हैं। लम्बे समय के बाद साइजी माकिनो अपने देश जापान वापस गए। प्रथम जापान-यात्रा के कुछ समय बाद ही पुन: उनका जापान जाना हुआ। उस समय उन्होंने भारत और जापान में जो अन्तर अनुभव किया उसे वे लिखते हैं-
1 - विशेष चेतावनी न देने पर भी जापानी स्वयं नियमों और कर्तव्यों का पालन करते हैं। भारतीय नियमों की अवहेलना करता है और कहता है कि कोई चिन्ता नहीं, सबकुछ ठीक हो जाएगा।
2- भौतिक रूप से सम्पन्न हर जापानी जीवन को भोगने की चीज मानता है, लेकिन भारतीय हर दिन के जीवन को जीने के लिए बाजी लगाते हैं। जापानी जीते हैं केवल अपने सुख भोगने के लिए, पर भारतीय स्वयं के आनंद के लिए जीते हैं और दूसरों को भी जीने देते हैं।
3- सुख-साधन सम्पन्न सामाजिक कल्याण-व्यवस्था के कारण जापानी वृद्ध निरुत्साही और सुस्त हो गए हैं। लेकिन, भारतीय वृद्ध सादगी और मर्यादा के साथ मृत्यु का इन्तजार करते हुए जी रहे हैं।
4- जापान के लड़के अपने आपको लड़कियों जैसा कमजोर महसूस करने लग गए।
5- जापानी जहां कहीं भी रहेंगे, कीड़े-मकोड़ों, मच्छर-मक्खी से घृणा करते हैं और अपने खिड़कियां दरवाजे बंद कर लेते हैं। लेकिन, भारतीय खुली हवा में रहते हैं।
6- जापानी युवक यदि एक बार भारत भूमि पर पैर रखता है तो उसका मन मोहित हो जाता है। अनेक कष्ट और दुर्घटनाओं के कड़वे अनुभव पाने पर भी इस देश में आने के लिए इच्छुक रहता है।
    अंत में यही कहूंगा कि हो सकता है आप भारत में बड़े लम्बे समय से रह रहे हैं, लेकिन हो सकता है आप भारत को उतना नहीं जान पाए जितना कि साइजी माकिनो पैंतालीस साल के भारत प्रवास में भारत को जान पाए।

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

...यूं तो बहुत बोलते हैं 'मन'

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी, मनमोहन मौन
 भा रत के प्रधानमंत्री 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर ऐसे चुप हैं जैसे गुड़ खाए बैठे हों। मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी प्रधानमंत्री और पीएमओ पर टिप्पणी कर जवाब मांगा है। खैर कोई भी जवाब मांगे हमारे पीएम मनमोहन तो अपने मन की भी नहीं सुनते वे तो सिर्फ और सिर्फ अपनी सुपर बॉस सोनिया गांधी की ही सुनते हैं। उनका इशारा जब तक नहीं होगा वे यूं ही मुंह में गुड़  दबाए बैठे रहेंगे। सुप्रीम कोर्ट जवाब मांगे, विपक्ष चीखे-चिल्लाए और चाहे तो जनता भी हिसाब मांगे, मनमोहन नहीं बोलने वाले। आपको यहां बता दूं पीएम मनमोहन यूं चुप नहीं रहते। वे बहुत बोलते हैं।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर आज चुप, तब जोर से बोले थे
    कुछ माह पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी गोदामों में सड़ रहे गेहूं को गरीब जनता में बांटने के लिए सरकार को आदेश दिया था। यही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जो 2 जी स्पेक्ट्रम घोटले पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर खामोश बैठे हैं, तब सुप्रीम कोर्ट को नसीहत दे रहे थे कि उसे नीति निर्धारण के मामलों में नहीं पडऩा चाहिए। सरकार के मामले में दखल देने की बजाय अपने कामों पर कोर्ट को ध्यान देना चाहिए।
मनमोहन की टोपी में खरगोश
    भारत के स्वर्ग कश्मीर को अलगाववादियों ने नरक बना रखा है। बीते कुछ समय से कश्मीर में खूब उत्पात मचाया जा रहा है। सब ओर से कश्मीर समस्या के समाधान की बात उठ रही थी, तब भी पीएम बोले। क्या बोले इस पर गौर करें- 'कश्मीर समस्या को लेकर देश को धैर्य दिखाना होगा। 63 वर्षों से इस समस्या का हल निकालने का प्रयास हो रहा है। इस समय मेरे हाथ में कोई समाधान नहीं, हम प्रयत्न कर रहे हैं। टोपी से खरगोश निकालना संभव नहीं।' कश्मीर समस्या के समाधान पर जनता को देश के प्रधानमंत्री से किसी उचित जवाब की आस थी तब हमारे पीएम ने जवाब तो दिया, लेकिन किस स्तर का।
मैं कोई जादूगर या भविष्यवक्ता तो नहीं
    भारत की गरीब और मध्यमवर्ग को इस सरकार ने कुछ दिया है तो वह है बेतहाशा बढ़ती महंगाई। महंगाई डायन से पीडि़त जनता ने जब-जब सरकार से पूछा कि उसे बढ़ती महंगाई से कब राहत मिलेगी। तब-तब पीएम मनमोहन ने जिम्मेदार बयान देने की बजाय जनता के सवाल की तौहीन की। महंगाई कब कम होगी इस सवाल पर उन्होंने आश्चर्य भरे जवाब दिया। कभी उन्होंने कहा कि मेरे पास कोई जादू की छड़ी तो है नहीं कि छड़ी घुमाओ और महंगाई कम। कभी कहा कि मैं कोई भविष्यवक्ता भी नहीं कि बता दूं कब महंगाई कम होगी। देश के ईमानदार छवि वाले प्रधानमंत्री और विख्यात अर्थशास्त्री जनता के सबसे बड़े सवाल का जवाब इस तरह देते हैं।
    मुझे और देश की जनता को आश्चर्य हो रहा है कि इतने बड़बोले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह घोटाले पर क्यों चुप हैं। सुप्रीम कोर्ट ने जवाब मांगा है तब भी शांत है, आखिर बात क्या है? इसका पता तो तभी चलेगा जब तक हमारे-तुम्हारे 'मन' बोलेंगे नहीं। सुप्रीम कोर्ट के बाद विपक्ष ने भी प्रधानमंत्री को घेरने की तैयारी कर ली है। भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी ने प्रधानमंत्री और पीएमओ पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को आजाद भारत के इतिहास में शर्मनाक करार दिया है। वहीं उन्होंने भ्रष्ट्राचार पर प्रधानमंत्री की चुप्पी पर आश्चर्य व्यक्त किया है। माकपा के नेता सीताराम येचुरी ने प्रधानमंत्री पर आरोप लगाया कि मनमोहन को सारे मामले की जानकारी 2008 से थी। इतना ही नहीं येचुरी ने और राज्यसभा सांसद राजीव चंद्रशेखर ने भी प्रधानमंत्री को कई बार पत्र लिखा था। वहीं जनता पार्टी के सुब्रमण्यम स्वामी तो लगातार मामले की जांच के लिए प्रधानमंत्री से अनुरोध करते रहे, लेकिन मनमोहन के कान पर जूं तक नहीं रेंगी, क्यों? इसके अलावा भाजपा नेता और पत्रकार अरुण शौरी ने एक टीवी चैनल पर खुलासा करते हुए कहा कि सीबीआई को 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले की पूरी जानकारी है। सीबीआई को पता है कि घोटाले का पैसा संभालने वाला शख्स कौन है, लेकिन सीबीआई उससे पूछताछ क्यों नहीं कर रही, इस पर उन्होंने भी आश्चर्य जताया। मतलब हर कोई बेताब है मनमोहन की आवाज सुनने को... मनमोहन सबकी आवाज सुन रहे हो तो बोलो... बोलो 'मन' बोलो...

शुक्रवार, 12 नवंबर 2010

कांग्रेस को लगी मिर्ची

सुदर्शन के बयान से तिलबिला गए सोनिया भक्त
सोनिया के खिलाफ सुदर्शन बयान पर राष्ट्रद्रोह का मामला दर्ज करने की मांग, गिलानी और अरुंधती के देश के खिलाफ बयान पर चुप्पी क्या जायज है? कांग्रेस ने संघ पर आतंकवादी होने का आरोप लगाया तब कुछ नहीं, कांग्रेस ने संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का एजेंट होने का आरोप लगाया तब तो कांग्रेसजनों को खूब मजा आ रहा था, अपनी बारी आई तो दर्द होने लगा। दरअसल कांग्रेसी इस नौटंकी से भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी यूपीए सरकार से देश की जनता का ध्यान हटाना चाहते हैं।
 क हावत है जाके पांव न फटी बिमाई, वो का जाने पीर पराई। यह कहावत सोनिया गांधी को लेकर पूर्व सर संघचालक के. सुदर्शन के बयान पर कांग्रेस की बौखलाहट पर सटीक बैठती है। सुदर्शन जी ने सोनिया पर सीआईए का एजेंट होने का आरोप क्या लगाया, सोनिया के चरण चाटुकारों को मिर्ची लग गई। सबसे पहले तो यह साफ कर दूं कि मैं संघ के पूर्व सर संघचालक के. सुदर्शन के बयान को उचित नहीं मानता। मेरा मानना है सबूत हाथ में हो तब बात की जाए। सुदर्शन ने जो किया वही तो कांग्रेस इतने सालों से संघ के खिलाफ कर रही थी। कांग्रेस ने तो बाकायदा कुछ लोगों को काम सौंप रखा था कि संघ के खिलाफ मौके-बेमौके कुछ न कुछ बोलते रहो, करते रहो ताकि कांग्रेस का एक वोट बैंक मजबूत होता रहेगा। मध्यप्रदेश के कुटिल राजनीतिज्ञ दिग्विजय का तो जब भी मुंह खुलता है वे संघ को आतंकवादी संगठन ठहराने से पीछे नहीं हटते, साबित आज तक नहीं कर पाए। पी. चिदंबरम पवित्र भगवा रंग को आतंकवादी रंग घोषित कर देते हैं। इन्हीं सोनिया गांधी के सुपुत्र राहुल गांधी संघ की तुलना एक आतंकवादी संगठन सिमी से कर देते हैं। कांग्रेस का हर आम-ओ-खास नेता संघ को गरियाता रहा। उस पर आतंकवादी होने का आरोप लगाता रहा, संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ताओं को आईएसआई का एजेंट होने का आरोप लगाता रहा तब कांग्रेस चुप रही। कहीं किसी को दर्द नहीं हुआ, जब खुद की पार्टी की एक नेता पर आरोप लगा तो असहनीय पीढ़ा हो उठी।
    हांलाकि संघ ने इस बयान से किनारा कर लिया है और इसे के. सुदर्शन का व्यक्तिगत बयान बताया है। लेकिन, वोटों की राजनीति चमकाने और सोनिया की कृपा के लिए लालायित रहने वाले नेताओं की ओर से तमाम तरह के बयान आने लगे। वे इस मौके को कैसे भी नहीं छोडऩा चाहते। क्योंकि उन्हें देश की जनता का ध्यान भ्रष्टाचार में फंसी कांग्रेस से हटाना है। कांग्रेस के प्रवक्ता जनार्दन द्विवेदी ने कहा कांग्रेस के कार्यकर्ता कुछ भी कर सकते हैं इसकी जिम्मेवारी संघ की होगी। संघ, भाजपा (भाजपा को जबरन घसीट लिया) और सुदर्शन सोनिया से माफी मांगे। वहीं कांग्रेस की आतंकवादी चेहरे जगदीश टाइटलर ने तो वही पुराना राग अलापा संघ पर प्रतिबंध लगाने का। इतना ही नहीं तो कई बड़े वाले चाटुकारों ने सोनिया को देश की एकता का प्रतीक मान लिया। इसलिए के. सुदर्शन के बयान को देश की एकता-अखण्डता को नुकसान पहुंचाने वाला बता दिया। इन लोगों ने सुदर्शन पर राष्ट्रद्रोह का मुकद्मा दर्ज करने की मांग की है।  ....बस यहीं मुझे आपत्ती है, बाकी सब अपनी जगह है। संघ के खिलाफ अनर्गल बयानबाजी करने वाले दिग्विजय, हिन्दुओं के पवित्र रंग को आतंक का प्रतीक घोषित करने वाले चिदंबरम और सिमी से संघ की तुलना करने वाले राहुल के खिलाफ कांग्रेस खामोश रही और मात्र एक सोनिया पर आरोप लगा तो इतना हो-हल्ला। ...और जिन सोनिया गांधी के लिए कांग्रेसी नाटक कर रहे हैं, वे भी कम वाचाल नहीं है। भाजपा के स्टार नेता नरेन्द्र मोदी (जिन्होंने गुजरात में कांग्रेस को धूल चटा रखी है) को 'मौत का सौदागर' कहा था। तब कांग्रेसी कहां चले गए थे? चलो इन्हें छोड़ो, ये तो उसके अपने हैं, फिर इन्होंने तो संघ और हिन्दुओं का ही तो अपमान किया है। कांग्रेस की कृपा तो उन पर भी रहती है जो खुलकर भारत विरोध करते हैं। कांग्रेस की नाक के नीचे दिल्ली में अलगाववादी नेता गिलानी और अरुंधती देश विरोधी प्रोपोगंडा फैलाते हैं, कांग्रेस मुंह सिलकर बैठी रही, जबकि इस देश की आम जनता ने इनके खिलाफ राष्ट्रद्रोह के तहत कार्रवाई की मांग की। लेकिन लगता है कांग्रेस ने सोनिया को इस देश से ऊपर मान लिया है। तभी तो राष्ट्रविरोधी बातें करने वालों पर कांग्रेस का अमृत बरसता है। कश्मीर में राष्ट्रध्वज और सेना को गाली-गलौज करने वालों को यही यूपीए सरकार 100 करोड़ का राहत पैकेज जारी करती है। वहीं एक सुदर्शन का एक कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के खिलाफ बयान देशद्रोह की कैटेगरी में आ जाता है। धन्य है ऐसी चाटुकारिता।
    अंत में एक बार फिर के. सुदर्शन के बयान पर लौटता हूं। उनके बयान से वाकई संघ ने अखिल भारतीय स्तर पर धरने से जो बढ़त हासिल की थी उसे खो दिया है। अगर सुदर्शन जी के पास सबूत हैं तो उनको जनता के सामने पेश करें। बयानबाजी करके कांग्रेस की कैटेगिरी में आने की कोशिश क्यों? सुदर्शन जी ने जो भी कहा फिलहाल तो वह आरोप ही हैं, लेकिन उनके बयानों पर निश्चित तौर पर शोध की जरूरत है। मेरा तो यह मानना शुरू से ही रहा है कि सोनिया गांधी (एंटोनिया माइनो) भी स्वयं शोध का विषय है, जबकि भारतीयों ने खासकर कांग्रेस ने जल्द ही सोनिया को सिरमाथे बिठा लिया। यह सत्य है कि उन्होंने अपनी जन्मतिथि की गलत जानकारी दी, यह भी सत्य की कि उनके पिता स्टेफानो माइनो ने एक नाजी सेना में काम किया और इसी कारण वे द्वितीय विश्व युद्ध के वक्त रूस के युद्धबंदी रहे। साथ ही सोनिया के बारे में यह भी सभी जानते हैं कि सोनिया ने भारत की नागरिकता बहुत दिन बाद सोच-विचार के बाद ली। इस बात पर भी शोध की आवश्यकता है कि क्या वाकई सोनिया के दखल की वजह से ही इंदिरा गांधी का सुरक्षाकर्मी नहीं बदला जा सका था, जबकि जिसने इंदिरा को गोली मारी उसे हटाए जाने की प्रक्रिया चल रही थी। इंदिरा को तत्काल राममनोहर लोहिया अस्पताल में क्यों नहीं ले जाया गया, एम्स क्यों ले गए। सोनिया गांधी के विषय में समय-समय पर किसी न किसी ने कुछ न कुछ विवादास्पद लिखा है। भाजपा के दीनानाथ मिश्र ने 'सोनिया का सच' लिखा। वहीं डॉ. सुब्रह्मणयम स्वामी ने भी उन पर विस्तृत शोध लिखा है। फिलहाल कांग्रेस द्वारा जो नाटक-नौटंकी चल रही है इसका उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ भष्ट्राचार की खाई में फंसी यूपीए सरकार को संघ की पूंछ पकड़कर पार लगाना है। खैर जो भी चल रहा है उससे यह तो स्पष्ट होता जा रहा है कि देश की राजनीति की दिशा क्या है?

ग्वालियर की कथा कहती 'गोपाचल गाथा'

 मैं  ग्वालियर नगर में ही पैदा हुआ और यहां की माटी में ही खेल-कूद कर बढ़ा हुआ हूं। यहां कि आबा-ओ-हवा मुझे बड़ा ही सुकून देती है। जब से होश संभाला ग्वालियर को निरंतर बदलते देखा। उसके बारे में पढ़ा-सुना। रियासत काल की कल्पना के चित्र मस्तिष्क में खिंचे, लेकिन ग्वालियर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार व सरल हृदय श्री जगदीश जी तोमर की 'गोपाचल गाथा' ने जो दृश्य उपस्थित किए वे अद्भुत रहे। गोपाचल गाथा पढऩे के बाद लगा कि मैं अपने ग्वालियर से कितना अनजान था। ग्वालियर को समझना है या उसके बारे में जानना है तो मैं एक ही पुस्तक का नाम लूंगा वो है 'गोपाचल गाथा'। पुस्तक 'ग्वालियर : प्राचीन भारत की सांस्कृतिक धड़कन' से शुरू होकर परिशिष्ट पर जाकर खत्म होती है। इसी बीच में ग्वालियर का समग्र समाहित है। जिसमें ग्वालियर किले की निमार्ण कथा का खूबसूरत चित्रण हैं। इस पर अधिपत्य के लिए जो संघर्ष हुआ उसका बेजोड़ चित्रण श्री तोमर ने किया है। ग्वालियर के पाल से लेकर सिंधिया वंश के राजाओं के शौर्य व पराक्रम का जिक्र है तो अत्याचारी और विधर्मी मुगलों के अत्याचार का भी सटीक वर्णन हैं। मुगलों ने यहां भी उन्हीं करतूतों को अन्जाम दिया जो पूरे भारतवर्ष को झेलनी पड़ी हैं। ग्वालियर में जैसे ही मुगलों की सल्तनत कायम हुई उन्होंने मंदिरों को ज़मीदोज कर दिया, किले की दीवारों पर उकेरी गईं जैन पंथ के आराध्यों की मूर्तियों को छिन्न-भिन्न कर दिया, शिवजी की विशाल पिण्ड़ी (कोटेश्वर महादेव) को किले से नीचे फिंकवा दिया गया इसके अलावा जगह-जगह इस्लाम की मान्यताओं को दरकिनार कर मस्जिदें तामील करा दी गईं।
गोपाचल गाथा, ग्वालियर का राजनैतिक-सांस्कृतिक सफरनामा
- श्री जगदीश तोमर, वर्तमान में प्रेमचंद सृजनपीठ के निदेशक
मूल्य : 450 रुपए
       प्रकाशन :                             प्रकाशन
मनोज श्रीवास्तव, आयुक्त, जनसंपर्क, मध्यप्रदेश, भोपाल

    'गोपाचल गाथा' में मुगलों से अपने सतीत्व की रक्षा करने के लिए रानियों का जौहर और प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में वीर-वीरांगनाओं की शहादत भी मार्मिक वर्णन किया गया। ग्वालियर के सांस्कृतिक इतिहास का तो लाजवाब रेखाचित्र खींचा है श्री जगदीश जी ने। संगीत, साहित्य-परंपरा, चित्रकला और मूर्तिकला साथ ही पत्रकारिता आरंभ एवं उन्नयन का भी खूब बखान किया है। पुस्तक में कोहिनूर कथा का बड़ा रोचक चित्रण है। कोहिनूर दुनिया का सबसे कीमती हीरा है। कभी उसका वजन लगभग साढ़े तीन तोला था। उसके दो टुकड़े हो चुके हैं। उसकी कहानी भारत से आरंभ होती है, किन्तु अब वह इंग्लैंड़ में है। यह सब तो मैं जानता था। नहीं जानता था तो कि कभी ग्वालियर भी इस नायाब हीरे का मालिक रहा। कोहिनूर ग्वालियर के तोमरवंशी राजाओं के पास लगभग 90 वर्ष रहा। एक बार 1437 ई. में मालवा के सुल्तान होशंगशाह ने ग्वालियर पर आक्रमण किया और वह ग्वालियर नरेश डूंगरेन्द्र सिंह तोमर के हाथों परास्त हो गया। ग्वालियर की सेना ने उसे गिरफ्तार कर लिया। तब वह महाराजा डूंगरेन्द्र सिंह को कोहिनूर भेंट में देकर उनकी गिरफ्त से मुक्त हो सका। वह हीरा 1437 से 1523 ई. तक ग्वालियर के तोमर शासकों के पास रहा। फिर कैसे वह मुगलों के हाथ गया और उनके हाथ से अंग्रेजों के हाथ पहुंचा इसकी रोचक कथा का शानदार चित्रण है गोपाचल गाथा में। इसके साथ ही पुस्तक में आपको ग्वालियर के गौरव महान विभूतियों के बारे में भी जानने को मिलेगा। श्री जगदीश जी तोमर ने अपनी पुस्तक में ग्वालियर के इतिहास पुरुषों के साथ ही वर्तमान में साहित्य सेवा में लगे साहित्य सेवियों का भी समुचित उल्लेख किया है। ग्वालियर की पत्रकारिता भी विस्तार से प्रकाश डाला है।

सोमवार, 1 नवंबर 2010

लक्ष्मी-गणेश या विक्टोरिया-पंचम

सोने-चांदी के सिक्के और दीपावली पूजन

 भा रत का सबसे बड़ा त्योहार है दीपावली। हर कोई देवी लक्ष्मी को प्रसन्न कर उनका स्नेह चाहता है। इसी जद्दोजहद में व्यक्ति अनेकों जतन करता है धन की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी को। पूजन के दौरान कोई गुलाब के तो कोई कमल के फूलों से उनका आसन सजाता है। घी-तेल के दिए जलाए जाते हैं। इस तरह के अनेक प्रयत्न बड़े ही उल्लास के साथ होते हैं। एक खास बात देखी है मैंने। दीपावली के अवसर पर अधिकांश लोग चांदी या सोने का सिक्का खरीदते हैं। जिसे बाद में देवी के पूजन में रखा जाता है। इन सिक्कों पर कुछेक बरस पहले तक ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया और जॉर्ज पंचम के चित्र मुद्रित हुआ करते थे। दीपावली पर सर्राफ विशेष रूप से विक्टोरिया और पंचम के सिक्के बनवाते थे। जिनकी कीमत वजन के हिसाब से अलग-अलग रहती थी। मेरे गांव में अधिकतर सभी लोग ये सिक्के शहर से खरीद कर लाते और देवी पूजन में रखते। विक्टोरिया का चित्र मुद्रित होने के कारण इस सिक्के का नाम भी विक्टोरिया पड़ गया। गांव में कई लोग ऐसे हैं जिनके पास बहुत अधिक संख्या में विक्टोरिया जमा हो गए। संकट के वक्त कई लोगों के काम आई यह जमा पूंजी। इसी बात को ध्यान में रखकर इसे खरीदने पर जोर रहता था कि इस बहाने घर में सोना-चांदी के रूप में बचत जमा हो जाएगी।
    अंग्रेजो की गुलामी से आजाद होने के बाद भी कई वर्षों तक हमारे देश के टकसाल में सोने-चांदी के ही नहीं अन्य सिक्कों पर भी रानी विक्टोरिया और जॉर्ज पंचम के चित्र मुद्रित होते रहे। उपरोक्त विवरण के आधार पर मैं इस ओर सबका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं कि किस तरह से हमारा स्वाभिमान सोया पड़ा है। हम आज भी मानसिक रूप से गुलामी को भोग रहे हैं। हम देवी लक्ष्मी के पूजन के साथ उस सिक्के को रखते हैं जिस पर ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया या जॉर्ज पंचम का चित्र मुद्रित रहता है। वैसे अब परिवर्तन आया है। वर्तमान में दीपावली पूजन के लिए जो सिक्के गढ़े जा रहे हैं उन पर देवी लक्ष्मी और प्रथम पूज्य श्री गणेश जी की छवि मुद्रित की जा रही है, लेकिन आज भी विक्टोरिया और जॉर्ज पंचम की छवि वाले सिक्के भी प्रचलन में हैं क्योंकि कई लोग उन्हें ही शुद्ध सिक्का मानते हैं।
सिक्कों का लम्बा इतिहास
देवी लक्ष्मी के अंकनयुक्त सिक्कों का प्रचलन अभी का नहीं है। सैंकड़ों वर्षों पहले से राजा-महाराजा ने भी अपने सिक्कों पर लक्ष्मी की विभिन्न मुद्राओं के अंकन की परम्परा विकसित की थी। इतिहासवेत्ताओं ने यह तो स्पष्ट नहीं किया है कि किस राजा ने इस परंपरा का श्रीगणेश किया, लेकिन अब तक लक्ष्मी के अंकनयुक्त जो सबसे पुराने सिक्के प्राप्त हुए हैं, वे तीसरी सदी ईसा पूर्व के हैं। प्राप्त सिक्के कौशाम्बी के शासक विशाखदेव और शिवदत्त के हैं। सोने के इन सिक्कों पर देवी लक्ष्मी खड़ी मुद्रा में अंकित हैं और दोनों ओर से दो हाथी उन्हें स्नान करा रहे हैं। ईसा पूर्व पहली सदी के अयोध्या नरेश वासुदेव के सिक्के पर भी देवी लक्ष्मी का चित्र मुद्रित है। पांचाल नरेश भद्रघोष, मथुरा के राजा राजुबुल, शोडास और विष्णुगुप्त के सिक्कों पर भी कमल पर बैठी एक देवी प्रदर्शित हैं। जिन्हें कई इतिहासविद हालांकि लक्ष्मी नहीं अपितु गौरी या दुर्गा मानते हैं। उपरोक्त प्रसंग में गुप्तकाल (319 ईस्वी से 550 ईस्वी) का योगदान उल्लेखनीय है। लक्ष्मी के अंकनयुक्त सिक्के इस काल में बहुत मिलते हैं। गुप्तवंश के शासक वैष्णव पंथ के उपासक थे। चूंकि लक्ष्मी विष्णुप्रिया हैं। संभवत: यही कारण रहा कि इस काल के देवी लक्ष्मी के अंकनयुक्त सिक्के बहुतायत में थे। चंद्रगुप्त प्रथम ने सन् 319 ईस्वी में एक सोने का सिक्का ढलवाया था। सिक्के के एक पट पर चंद्रगुप्त अपनी रानी कुमार देवी (जो बेहद खूबसूरत थीं) के साथ अंकित हैं वहीं दूसरे पट पर सिंह पर सवार लक्ष्मी अंकित हैं। इसके बाद समुद्रगुप्त ने अपने शासन में सोने के छह प्रकार के सिक्के चलाए। इसमें ध्वजधारी मुद्रा पर एक ओर गुप्त राजाओं का राजचिह्न 'गरुड़ध्वज' और दूसरी ओर सिंहासन पर विराजमान लक्ष्मी अंकित हैं। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य (375 ई. से सन् 415 ई.) ने सोने-चांदी के अलावा तांबे के सिक्के भी ढलवाए। जिन पर सिंहासन पर सुशोभित लक्ष्मी चित्रित हैं और नीचे श्री विक्रम: लिखा है। कुमार गुप्त (415 ई. से 455 ई.) ने अपने सिक्कों पर लक्ष्मी का चित्रण करवाया। स्कंदगुप्त (455 ई. से 467 ई.) के भी दो सिक्के प्राप्त होते हैं। एक सिक्के पर एक ओर धुनषवाण लिए राजा और दूसरी ओर पद्मासन पर लक्ष्मी को अंकित किया गया है। सिक्के पर श्री विक्रम: की तरह ही श्री स्कंदगुप्त: लिखा गया है। वहीं दूसरे सिक्के पर राजा को कुछ प्रदान करते हुए लक्ष्मी का चित्रण हैं।
    गुप्त काल के बाद महाराष्ट्र और आंद्र प्रदेश के सातवाहन वंश के ब्राह्मण, राजाओं, दक्षिण भारत के चालुक्य नरेश विनयादित्य और कश्मीर के हूण शासक तोरमाण, यशोवर्मन और क्षेमेंद्रगुप्त के सिक्कों पर भी लक्ष्मी का अंकन है। इसके अलावा राजपूत काल में यह परंपरा प्रचलन में रही। इस दौरान मध्यभारत के चेदिवंश के शासक गांगेयदेव ने अपने राज्य के सिक्कों पर सुखासन मुद्रा में बैठी चार हाथों वाली देवी लक्ष्मी  का अंकन कराया। बुंदेलखण्ड के चंदेल शासक कीर्तिवर्धन के चांदी के सिक्कों पर भी लक्ष्मी की सुंदर व कलात्मक मूर्ति का अंकन है।