मंगलवार, 31 अगस्त 2021

पैरालिंपिक : हौसलों का स्वर्ण

टोक्यो ओलिंपिक-2020 के बाद अब टोक्यो पैरालिंपिक-2020 में भारतीय खिलाड़ी अपने चमक बिखेर रहे हैं। टोक्यो पैरालिंपिक में भारत के हिस्से में 31 अगस्त तक दो स्वर्ण पदक सहित 10 पदक आ चुके हैं। पैरालिंपिक में भारतीय दल ऐतिहासिक प्रदर्शन कर रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि टोक्यो ओलिंपिक-2020 में भारतीय दल ने अपने प्रदर्शन को जिस स्तर पर छोड़ा था, पैरालिंपिक में भाग ले रहे दल ने उसी ऊंचाई से अपनी विजय यात्रा शुरू की है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के अवसर पर अवनि लेखरा ने शूटिंग में और सुमित अंतिल ने जेवलिन थ्रो में भारत को स्वर्ण पदक दिलाकर इतिहास रच दिया। शूटिंग में स्वर्ण पदक जीतने के साथ ही अवनि देश की पहली महिला खिलाड़ी बन गई, जिसने ओलिंपिक या पैरालिंपिक में स्वर्ण पदक जीता हो। इसी तरह पैरालिंपिक में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीतने वाले सुमित पहले भारतीय खिलाड़ी हैं। टोक्यो ओलिंपिक में जेवलिन थ्रो में ही नीरज चौपड़ा ने भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था।

सोमवार, 16 अगस्त 2021

स्वदेशी से स्वनिर्भर


स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर सबका ध्यान एक ओर लाल किले की प्राचीर से दिए जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संबोधन पर था, तो वहीं दूसरी ओर सबकी उत्सुकता यह जानना भी थी कि इस महत्वपूर्ण प्रसंग पर विश्व के सबसे बड़े सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत क्या मार्गदर्शन देंगे? प्रधानमंत्री मोदी ने अपना संबोधन पिछले छह-सात वर्ष के विकास पर केंद्रित किया। शुरुआत में उन्होंने स्वतंत्रता के नायकों का स्मरण किया। आखिर में उन्होंने नये भारत के निर्माण के लिए अपने ही दिए नारे को और विस्तार दिया- "सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास और सबका प्रयास"। निश्चित ही कोई देश अपने सपनों को तब ही पूरा कर सकता है, जब वह सपना सबकी आँखों में बसे और सब उसको साकार करने के लिए मिलकर प्रयत्न करें। वहीं, सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने मुंबई के एक विद्यालय में ध्वजारोहण किया और इस अवसर पर उन्होंने जो कुछ कहा, उसे हमें गाँठ बांध लेना चाहिए। वही एक रास्ता है, जो हमें मजबूत बनाएगा और सामर्थ्यशाली भी। वह रास्ता है- स्वदेशी का।

सोमवार, 9 अगस्त 2021

ओलिंपिक में भारत के लिए ‘स्वर्ण’ की शुरुआत


टोक्यो ओलिंपिक में भारत के सुनहरे सफर का समापन स्वर्ण पदक के साथ हुआ। भारतीय सेना के जवान एवं खिलाड़ी नीरज चोपड़ा ने 121 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद एथलेटिक्स में पहला स्वर्ण पदक दिलाया है। भाला फेंक प्रतियोगिता में उन्होंने अपने परिश्रम से भारत के भाल को स्वर्ण से अलंकृत कर दिया। टोक्यो ओलिंपिक भारत के लिए अब तक का सबसे सफल ओलिंपिक रहा है। भारत ने एक स्वर्ण और दो रजत पदक सहित कुल 7 पदक जीते हैं। इससे पहले हमने लंदन ओलिंपिक में 6 पदक जीते थे। इस बार नीरज चोपड़ा के स्वर्ण के अलावा मीराबाई चानू ने भारोत्तोलन में रजत, कुश्ती में रवि दहिया ने रजत, कुश्ती में ही बजरंग पूनिया ने कांस्य, पीवी सिंधु ने बैडमिंटन में कांस्य और लवलिना बोरगोहेन ने मुक्केबाजी में कांस्य पदक भारत के नाम किए। हालाँकि भारत से और अधिक बेहतर प्रदर्शन की अपेक्षा थी। टोक्यो ओलिंपिक भारत के लिए अब तक का सबसे सफल ओलिंपिक रहा, इसके पीछे मोदी सरकार की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता।

सोमवार, 2 अगस्त 2021

मध्यप्रदेश में टीके का कुशल प्रबंधन


देश के कई राज्यों में कुप्रबंधन की वजह से कोरोनारोधी टीका बर्बाद हो रहा है, वहीं मध्यप्रदेश टीकाकरण में एक के बाद एक कीर्तिमान बना रहा है। जब समूचे देश में 21 जून से कोरोनारोधी टीकाकरण अभियान के रूप में शुरू हुआ था, तब मध्यप्रदेश में पहले दिन ही यानी 21 जून को मात्र 10 घंटे में लगभग 16 लाख 95 हजार लोगों को टीका लगाने का इतिहास रचा गया। उस दिन मध्यप्रदेश टीकाकरण में देश के अन्य सभी राज्यों से बहुत आगे खड़ा था। इतना ही नहीं, अभी तक एक दिन में इतनी संख्या में दुनिया के किसी भी शहर में टीकाकरण नहीं हुआ है। मध्यप्रदेश की इस उपलब्धि को वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया है। उसके बाद भी मध्यप्रदेश टीकाकरण में लगातार रिकॉर्ड बनाता रहा। अब एक बार फिर मध्यप्रदेश के टीकाकरण के कुशल प्रबंधन एवं संचालन की चर्चा देश में हो रही है। मध्यप्रदेश में अब तक चार करोड़ से अधिक लोगों को टीका लगाया जा चुका है। इसमें लगभग ढाई करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें पहला टीका लगाया जा चुका है और 50 लाख से अधिक लोगों को दूसरा टीका भी लगाया जा चुका है।

रविवार, 1 अगस्त 2021

भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का प्रयास है ‘भारत-बोध’

देखें, डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक 'भारत बोध' की चर्चा


भारत में लेखकों, साहित्यकारों एवं इतिहासकारों का एक ऐसा वर्ग रहा है, जिसने समाज को ‘भारत बोध’ से दूर ले जाने का प्रयास किया। उन्होंने पश्चिम की दृष्टि से भारत को देखा और अपने लेखन में वैसे ही प्रस्तुत किया। उन्होंने इस प्रकार के विमर्श खड़े किए, जिनसे उपजे भ्रम के वातावरण में भारतीय समाज अपने मूल स्वरूप को विस्मृत करने की दिशा में बढ़ गया। अपनी लेखनी एवं मेधा का उपयोग इस वर्ग ने देश को उसकी मूल संस्कृति से काटने के लिए किया। परंतु, भारत की वास्तविक पहचान को मिटा देना इतना आसान कार्य भी नहीं है। अनेक राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आक्रमणों के बाद भी भारत अपनी पहचान के साथ उन्नत हिमालय की तरह खड़ा हुआ है। थोड़ी-बहुत जो धुंध छा गई थी, उसे हटाने का प्रयास भारतीयता से ओतप्रोत लेखक वर्ग कर ही रहा है। पत्रकारिता के प्राध्यापक एवं लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की नयी पुस्तक ‘भारत बोध’ भारत को भारतीय दृष्टि से देखने के प्रयासों में महत्वपूर्ण प्रयास है। डॉ. मालवीय ने अपनी पुस्तक में 41 आलेखों के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक धारा के कुछ आयामों को प्रस्तुत किया है। भारत की संस्कृति, त्योहार एवं उनकी अवधारणा, रीति-रिवाजों में सामाजिक एवं राष्ट्रीय बोध, पर्यावरण एवं प्रकृति के प्रति भारतीय मानस और भारत में राष्ट्र की संकल्पना जैसे समसामयिक विमर्श के अनेक बिन्दुओं पर उनके विचारों का निर्मल प्रवाह दिखाई देता है। 

लेखक डॉ. सौरभ मालवीय ने अपनी पीएचडी ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ जैसे महत्वपूर्ण विषय पर की है। संभवत: यही कारण रहा होगा कि उनके लेखों से गुजरने पर गहन अध्ययन की अनुभूति होती है। भारतीय वांग्मय से सूत्र और प्रसंग लेकर डॉ. मालवीय ने अपनी बातों को आधार दिया है। राष्ट्र, संस्कृति, पर्यावरण और मीडिया जैसे विषयों पर भी जब उन्होंने लेखन किया है, तो उनको समझने एवं समझाने के लिए लेखक ने भारतीय वांग्मय के पृष्ठ ही पलट कर देखे हैं। संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रवाद को समझने के लिए उन्होंने पाश्चात्य विद्वानों एवं पाश्चात्य दृष्टि की अपेक्षा भारतीय मनीषियों के चिंतन को श्रेष्ठ माना है। यही सही भी है। भारत के संदर्भ में जब बात आए, तब हमें अपने पुरखों को अवश्य पढऩा चाहिए कि आखिर उन्होंने भारत की व्याख्या किस तरह की है? उनका भारत बोध क्या था? ‘भारत की अवधारणा’ को समझाते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह-सरकार्यवाह एवं विचारक डॉ. मनमोहन वैद्य कहते हैं कि “भारत को समझने के लिए चार बिन्दुओं पर ध्यान देने की जरूरत है। सबसे पहले भारत को मानो, फिर भारत को जानो, उसके बाद भारत के बनो और सबसे आखिर में भारत को बनाओ”। लेखक डॉ. सौरभ मालवीय की पुस्तक ‘भारत बोध’ इन चार चरणों से होकर गुजरती है। इसलिए यह पुस्तक हमें भारत की वास्तविक पहचान के निकट ले जाने के प्रयास में सफल होती दिखती है। 

वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने ठीक ही लिखा है कि “डॉ. मालवीय ने इस पुस्तक हेतु अपने जिन निबंधों का चयन किया है, वे सभी भारत की सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और ऐतिहासिक विरासत की पहचान को सुनिश्चित और संस्थापित करने वाले हैं”। पुस्तक के संदर्भ में एक और बात महत्वपूर्ण है कि इसमें शामिल लेखों की भाषा सहज, सरल और सरस है। भाषा की सरलता के कारण आज की युवा पीढ़ी भी पुस्तक में शामिल विषयों की गहराई में उतर पाएगी। आलेखों में प्रस्तुत विचारों में भी एक प्रवाह है, जो पाठकों को बांधे रखने में सफल रहेगा। 

‘भारत बोध’ का प्रकाशन यश पब्लिकेशंस, दिल्ली ने किया है। पुस्तक में 176 पृष्ठ हैं और मूल्य 220 रुपये है। पुस्तक के संदर्भ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बिहार क्षेत्र के प्रचारक सूबेदार जी और वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. अरुण कुमार भगत ने महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिन्हें पुस्तक में शामिल किया गया है। ‘भारत बोध’ की प्रस्तावना भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने लिखी है, जिन्होंने स्वयं भी ‘भारत बोध’ के संदर्भ में विपुल लेखन किया है। बहरहाल, डॉ. सौरभ मालवीय की यह पुस्तक भारत को भारतीय दृष्टि से देखने का महत्वपूर्ण प्रयास है। उनका यह प्रयास भारत की वास्तविक संकल्पना को समाज तक पहुँचाने में सफल हो, ऐसी कामना है। इसके साथ ही यह पुस्तक इस दिशा में चल रहे विमर्श में एक महत्वपूर्ण हस्तक्षेप है। 

पुस्तक : भारत बोध

लेखक : डॉ. सौरभ मालवीय

पृष्ठ : 176

मूल्य : 220 रुपये (पेपरबैक)

प्रकाशक : यश पब्लिकेशंस,

1/10753, गली नं. 3, सुभाष पार्क, 

नवीन शाहदरा, दिल्ली-32

स्वदेश, भोपाल समूह में प्रकाशित 'भारत बोध' की समीक्षा-लोकेन्द्र सिंह