शनिवार, 23 अप्रैल 2016

वैचारिक महाकुम्भ साबित होगा सिंहस्थ-2016

महापर्व कुम्भ 'सिंहस्थ' से इस बार 'वैचारिक कुम्भ' की परिपाटी शुरू होगी। प्रदेश सरकार को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि उसने कुम्भ के धार्मिक महात्म्य के साथ सामाजिक स्वरूप को पुनर्जीवित करने का प्रण लिया है। भारत के स्वर्णिम इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि देश और समाज को सन्मार्ग पर लाने के लिए हमारे मनीषी कुम्भ का उपयोग करते थे। समय के अनुसार समाज को किन बातों को अपनाना चाहिए और किन बातों को त्याग देना चाहिए, कुम्भ में इस संबंध में विमर्श किया जाता था। समाज में मूल्य और धर्म (कर्तव्य) की हानि तो नहीं हो रही, इस दिशा में ऋषि, महर्षि, संत-महात्मा गहन मंथन करते थे। इस वैचारिक मंथन से ही अमृत की बूंदें निकलती थीं, जो समाज को पुष्ट करती थीं। देशभर से कुम्भ में आने वाले लोग इन अमृत की बूंदों को लेकर समाज में जाते थे। इस तरह कुम्भ समाज में मूल्य और धर्म की स्थापना के लिए विमर्श केन्द्र थे।

शुक्रवार, 22 अप्रैल 2016

विश्व का अनूठा धार्मिक महापर्व कुम्भ


मेषराशिगते सूर्ये सिंहराशौ बृहस्पतौ।
उज्जयिन्यां भवेत्कुम्भ: सर्वसौख्य विवर्धन:।।
अर्थात् - सूर्य मेष राशि में एवं बृहस्पति सिंह राशि में जब आते हैं, तब उज्जयिनी (उज्जैन) में सभी के लिए सुखदायक कुम्भयोग आता है। चूंकि बृहस्पति सिंह राशि पर रहते हैं इसलिए सिंहस्थ कुम्भयोग के नाम से यह प्रसिद्ध है।
आज चैत्र शुक्ल पूर्णिमा का वह सुअवसर है जब महाकाल की नगरी उज्जयिनी में सिंहस्थ कुम्भ महापर्व शुरू होगा। भारत के चार कुम्भ पर्वों में उज्जैन का कुम्भ 'सिंहस्थ कुम्भ महापर्व' कहलाता है। प्राचीन ग्रन्थों में कुरुक्षेत्र से गया को दस गुना, प्रयाग को दस गुना और गया को काशी से दस गुना पवित्र बताया गया है, लेकिन कुशस्थली अर्थात उज्जैन को गया से भी दस गुना पवित्र कहा गया है। कहते हैं कि प्राचीन काल में हिमालय के समीप क्षीरोद नामक समुद्र तट पर देवताओं तथा दानवों ने एकत्र होकर फल प्राप्ति के लिए समुद्र-मन्थन किया। मन्थन में चौदह रत्न निकले। सबसे आखिर में अमृत का कुम्भ अर्थात घड़ा सबसे अन्त में निकला। दानवों से अमृत की रक्षा करने के लिए देवता जयन्त अमृत के कलश को लेकर आकाश में उड़ गए। अमृत-कलश को लेकर देवताओं और दानवों में 12 दिन तक संघर्ष चला। छीना-झपटी में कुम्भ से अमृत की बूँदें छलक कर जिन स्थानों पर गिरीं, वे हैं प्रयाग, हरिद्वार, नासिक तथा उज्जैन। इन चारों स्थानों पर जिस-जिस समय अमृत गिरा उस समय सूर्य, चन्द्र, गुरु आदि ग्रह-नक्षत्रों तथा अन्य योगों की स्थिति भी उन्हीं स्थितियों के आने पर प्रत्येक स्थान पर यह कुम्भ पर्व मनाये जाने लगे।

सोमवार, 18 अप्रैल 2016

'संघ मुक्त भारत' संभव नहीं नीतीश बाबू

शरद यादव और दूसरे नेताओं को दरकिनार करते हुए जदयू के अध्यक्ष बने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश बाबू आजकल बड़ा सपना देख रहे हैं। उनकी नजर 2019 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है। हालांकि नीतीश कुमार कहते हैं कि प्रधानमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा, यह जनता तय करेगी। यह 'मन-मन भावे, मुडी हिलावे' वाली स्थिति है। यानी कोई व्यक्ति संकोचवश किसी पद/वस्तु के लिए कह तो नहीं पाता, लेकिन मन ही मन उसे पाना चाहता है और उसी उधेड़बुन में लगा रहता है। नीतीश कुमार भी यथासंभव अपने अनुकूल वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें मालूम है कि तीसरे मोर्चे का गठन करने का प्रयास उनसे पहले भी कई दिग्गज कर चुके हैं, लेकिन निज स्वार्थों के कारण उनके प्रयास सफल नहीं हो पाए। इसलिए नीतीश कुमार साल 2019 आते-आते अलग तरह की रणनीति अपनाकर भाजपा विरोधी दलों का नेतृत्व करना चाहते हैं। वह जानते हैं कि भाजपा की ताकत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी वैचारिक पृष्ठभूमि है। वह यह भी जानते हैं कि भाजपा विरोधी पार्टियां भाजपा से कहीं अधिक संघ से भय खाती हैं। खासकर वामपंथी दल और कांग्रेस अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी भाजपा से कहीं अधिक संघ को घेरने का प्रयास करते हैं। नीतीश कुमार को यह अहसास हो रहा है कि भाजपा विरोधी दलों को संघ का हौव्वा दिखाकर अपने पाले में लाया जा सकता है। यही कारण है कि भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक नारे 'कांग्रेस मुक्त भारत' से प्रेरित होकर नीतीश कुमार ने 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया है।

रविवार, 17 अप्रैल 2016

आरक्षण पर नीतीश कुमार की राजनीति समाज और संविधान विरोधी

आरक्षण पर दो बयान आए हैं, जिनके गहरे निहितार्थ हैं। यह बयान हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और सांसद चिराग पासवान के। चूँकि देश में पिछले कुछ समय से आरक्षण का मुद्दा ज्वलंत है। इसलिए दोनों बयानों पर विमर्श महत्त्वपूर्ण है। आश्चर्य की बात है कि इन दोनों ही बयानों पर मीडिया में अजीब-सी खामोशी देखी गई है। जबकि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर से आए बयानों पर मीडिया ने किस तरह का राग अलापा था, सबने देखा-सुना। हमें यह मानना होगा कि आरक्षण पर राजनीतिक और सामाजिक विमर्श को सही दिशा देने में मीडिया चूक रहा है। खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया का आचरण राजनीतिक दलों की तरह है। जिस तरह कुछ राजनेता आरक्षण का मुद्दा उठाकर अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने की कोशिश कर रहे हैं। ठीक उसी प्रकार, समाचार वाहिनियाँ (न्यूज चैनल्स) उसी समय आरक्षण का विषय उठाती हैं, जब उसमें उन्हें टीआरपी दिखाई देती है। टीआरपी से पैदा होने वाले अर्थ की चाह में समाचार वाहिनियाँ अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से भी मुँह फेर लेती हैं। आरक्षण ऐसा मसला है, जिसे व्यक्तिगत स्वार्थ की नजर से देखने से बचना होगा। क्योंकि, यह सामाजिक समानता और विभेद दोनों का कारण बनता है। सकारात्मक ढंग से बात करेंगे तब यह सामाजिक समानता का विषय बनता है। जब सनसनीखेज बनाकर प्रस्तुत करेंगे, तब यह समाज में विभेद पैदा करने का कारण बनता है।

शनिवार, 16 अप्रैल 2016

बाबा साहब पर समग्र चिंतन से डरतीं विचारधाराएं

 जि स समय दुनिया में आधुनिक भारत के निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर को 'वैश्विक आदर्श' के रूप में मान्यता मिल रही है। संयुक्त राष्ट्र में बाबा साहब की जयंती मनाई जा रही है और कहा जा रहा है कि उनके सपनों को पूरा करने के लिए सबको भारत के साथ मिलकर चलना होगा। लेकिन, विडम्बना देखिए कि उसी समय महामानव को लेकर भारत में संकीर्ण राजनीति का प्रदर्शन किया जा रहा है। अम्बेडकर हमारे हैं, उनके नहीं। हम असली अम्बेडकरवादी, वे नकली अम्बेडकरवादी। हम अम्बेडकर को जीते हैं, वे अम्बेडकर को ओढऩा चाहते हैं। जिनको आरोपित किया जा रहा है, सिर्फ उन्हीं को छोड़कर कोई भी यह नहीं कह रहा कि बाबा साहब सबके हैं। डॉ. अम्बेडकर को समग्र रूप से याद करने पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को निशाना क्यों बनाया जा रहा है। जबकि संघ और भाजपा को इस बात का श्रेय दिया जाना चाहिए था कि उन्होंने डॉ. भीमराव अम्बेडकर को उचित स्थान दिलाने के लिए एक विमर्श खड़ा कर दिया है।

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

नीतीश कुमार का अध्यक्ष बनना

 बि हार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब जनता दल (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी हो गए हैं। यानी जदयू में अब घोषित तौर पर शक्ति केन्द्र एक ही हो गया है। नीतीश कुमार की मंशा तो राष्ट्रीय नेता बनने की है। वह खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार भी मानते हैं। लेकिन, उनका व्यवहार क्षेत्रीय क्षत्रपों की तरह ही दिख रहा  है। क्षेत्रीय दलों के नेता अपने दोनों हाथों में लड्डू रखते हैं। पार्टी/संगठन में अपना एकछत्र राज्य चाहते हैं। नीतीश कुमार के जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने को इसी तौर पर देखा जा सकता है। एक पैर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर और दूसरा पैर पार्टी अध्यक्ष की कुर्सी पर। यह बात सही है कि संस्थापक अध्यक्ष शरद यादव को चौथा कार्यकाल दिया जाना उचित नहीं होता। पार्टी का संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता है। पिछली मर्तबा जब शरद यादव की तीसरी बार जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हुई थी, तब भी संविधान में संशोधन करना पड़ा है। यदि एक बार फिर से शरद यादव के लिए पार्टी के संविधान में संशोधन करना पड़ता, तब उसे भी व्यक्ति पूजा ही माना जाता। लेकिन, नीतीश कुमार के जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से भी कोई सकारात्मक संदेश देश में गया है, ऐसा नहीं है। नीतीश कुमार वर्तमान में बिहार के मुख्यमंत्री हैं। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद स्वीकार करके उन्होंने 'एक व्यक्ति-एक पद' के सिद्धांत की अवहेलना की है। हालांकि नीतीश कुमार का नाम शरद यादव ने ही राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित किया था। भारतीय राजनीति और खासकर क्षेत्रीय दलों की राजनीति में किस लोकतांत्रिक प्रक्रिया से नाम प्रस्तावित किए जाते हैं, यह दीगर सवाल है। इस बात को समझने के लिए जरा सोचिए कि शरद यादव के सामने विकल्प भी क्या था?

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

भारत को जानो, भारत को मानो

 भा रत को समझने और जानने वाले व्यक्ति को भारत माता की जय बोलने में न तो कोई संकोच होता है, न उसे किसी बाहरी दबाव की जरूरत होती है। वह भारत से प्रेम करता है, इसलिए भारत की जय बोलता है। 'भारत माता के जयकारे' से जिन महानुभावों के पेट में दर्द हो रहा है, दरअसल उसमें उनका कोई दोष नहीं है। बीते समय में उनको 'दूषित बौद्धिक भोजन' कराया गया है। इसलिए उन्हें समस्या है। 'भारत माता की जय' बोलने में यूँ तो विवाद जैसा कोई विषय होना नहीं चाहिए। लेकिन, 'उल्टी धारा' के कुछ लोगों ने इस पर भी देश में वितंडावाद खड़ा कर दिया है। दरअसल, यह लोग 'भारत के विचार' को ठीक प्रकार से समझ नहीं पाए हैं। कुछ के सवाल तो बेहद हास्यास्पद हैं- भारत माता है, पिता है या राष्ट्रपुरुष? भारत माता की जय बोलना सांप्रदायिक है। कुछ लोगों का धर्म इसकी इजाजत नहीं देता, फिर क्यों भारत माता की जय बोलना चाहिए? क्या कहीं संविधान में लिखा है? टीवी के एक पत्रकार ने बड़ा लम्बा-चौड़ा पत्र लिखकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री से पूछा है कि वह कब, कहाँ और कैसे भारत माता की जय बोलें? भैया एक बात बताओ, क्या उनके कहने से आप बोलेंगे, जैसा वह कहेंगे वैसा बोलोगे? नहीं न। फिर काहे बौद्धिक प्रलाप कर रहे हैं? आत्मचिंतन कीजिए। इस पूरे वितंडावाद के पीछे दो प्रमुख बातें हैं। एक, हम भारत के विचार को ठीक से जानते नहीं। दूसरी, हम किसी की मानते नहीं।

गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

शिक्षा संस्थानों में 'भारत विरोध' के पीछे किसका षड्यंत्र है?

 ज वाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगे 'भारत विरोधी' नारों को देश भूल भी नहीं पाया था कि श्रीनगर स्थित राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआईटी) में भारत विरोधी छात्रों के तुष्टीकरण और भारत के समर्थन में तिरंगा फहरा रहे छात्रों की पिटाई का मामला सामने आ गया है। पहले हैदराबाद, फिर जेएनयू, जाधवपुर विश्वविद्यालय और अब श्रीनगर के एनआईटी से 'भारत विरोध' की आवाजें आ रही हैं। देश समझ नहीं पा रहा है कि आखिर हमारे शिक्षा संस्थानों में चल क्या रहा है? देश के प्रमुख शिक्षा संस्थानों में भारत विरोध के यह पाठ कब से पढ़ाए जा रहे थे? पूर्ववर्ती सरकारें क्यों आँख मूँदकर बैठी हुई थीं? सवाल शिक्षकों से भी है कि उनकी भूमिका क्या है? क्या शिक्षक भी इस कुपाठ में शामिल हैं? यकीनन इन घटनाओं के सामने आने से देश चिंतत है कि आखिर हमारे शिक्षा संस्थानों में किस तरह का नेतृत्व तैयार हो रहा है? केन्द्र और राज्य सरकारों को तत्काल अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर भारत विरोध की इन आवाजों से निपटने के पुख्ता इंतजाम करना चाहिए। शिक्षकों को भी अपनी भूमिका के साथ न्याय करना चाहिए और उन्हें आगे आकर युवा पीढ़ी को देशप्रेम का पाठ पढ़ाना चाहिए।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2016

एकात्म मानवदर्शन पर आगे बढ़े 'हैप्पीनेस' मंत्रालय

 खु शहाल मंत्रालय (मिनिस्टरी ऑफ हैप्पीनेस) बनाने की मध्यप्रदेश सरकार की घोषणा एक सराहनीय और सार्थक पहल है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इसकी घोषणा करते हुए कहा है कि विकास दर से ही सबकुछ नहीं होता है। अपार धन-दौलत वाले लोग भी आत्महत्या कर रहे हैं, अवसाद से ग्रस्त हैं, तनाव में हैं। प्रदेश सरकार इस मंत्रालय की मदद से लोगों के जीवन में समृद्धि के साथ-साथ खुशहाली लाने का प्रयास करेगी। सरकार ने भरोसे के साथ कहा है कि यह मंत्रालय जल्द ही अस्तित्व में आ जाएगा। यदि ऐसा होता है तब मध्यप्रदेश देश में पहला राज्य होगा, जहाँ खुशहाल मंत्रालय होगा। गौरतलब है कि विश्व में भूटान पहला देश है जहाँ ग्रोस डोमेस्टिक प्रोडक्ट (सकल घरेलू उत्पादन) की जगह ग्रोस हैप्पीनेस इंडेक्स (सकल घरेलू सूचकांक) के आधार पर सरकार की नीतियां तय होती हैं।