मंगलवार, 16 नवंबर 2021

भारतीय मूल्यों एवं संस्कृति से जोड़ता है ‘जनजाति गौरव दिवस’

भारत सरकार ने भारत माता के महान बेटे बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को ‘जनजाति गौरव दिवस’ के रूप में मान्यता देकर प्रशंसनीय कार्य किया है। जनजाति समुदाय के इस बेटे ने भारत की सांस्कृतिक एवं भौगोलिक स्वतंत्रता के लिए महान संघर्ष किया और बलिदान दिया। अपनी धरती की रक्षा के लिए उन्होंने विदेशी ताकतों के साथ जिस ढंग से संघर्ष किया, उसके कारण समूचा जनजाति समाज उन्हें अपना भगवान मानने लगा। उन्हें ‘धरती आबा’ कहा गया। भगवान बिरसा मुंडा न केवल भारतीय जनजाति समुदाय के प्रेरणास्रोत हैं बल्कि उनका व्यक्तित्व हम सबको गौरव की अनुभूति कराता है। इसलिए उनकी जयंती सही मायने में ‘गौरव दिवस’ है।

 

विदेशी ताकतें आज भी जनजाति समाज को भारतीय संस्कृति से काटने के लिए षड्यंत्र चला रही हैं। भगवान बिरसा की प्रेरणा से जनजाति समुदाय के अनेक व्यक्ति उन सब षड्यंत्रों का न केवल सामना कर रहे हैं बल्कि उसके प्रति अपने समाज को जागरूक भी कर रहे हैं। ऐसा ही एक षड्यंत्र तथाकथित ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के नाम पर प्रारंभ हुआ था। गैर-भाजपा सरकारों ने जनजाति समाज के विरुद्ध संचालित इस वैश्विक षड्यंत्र को पोषित करने का काम किया। परंतु, भारतीय मूल्यों की पैरोकारी करने वाली भाजपा ने इस षड्यंत्र को उजागर करने का काम तो किया ही, साथ ही जनजाति समाज को उसके गौरव से जोडऩे का श्रेष्ठ कार्य ‘जनजाति गौरव दिवस’ की घोषणा करके किया। मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस निर्णय को केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का साथ भी मिला। पूर्व में भी शिवराज सरकार की योजनाओं एवं निर्णयों को केंद्र सरकार ने आगे बढ़ाया है। अगस्त में मध्यप्रदेश स्तर पर घोषित हुए ‘जनजाति गौरव दिवस’ को अब केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर घोषित कर दिया है। यानी मध्यप्रदेश की पहल अब पूरे देश में पहुँच गई है। 

यहाँ उल्लेख करना उचित होगा कि भारत में सक्रिय ‘ब्रेकिंग इंडिया ब्रिगेड’ लंबे समय से 9 अगस्त को ‘आदिवासी दिवस’ के रूप में भारत की जनजाति से जोडऩे का छल कर रही थी। जबकि इस दिन का संबंध न तो भारत के जनजाति समाज से है और न ही यह दिन गौरव की अनुभूति कराने वाला है। बल्कि यह हो दु:खद त्रासदी की शुरुआत का दिन है। ब्रिटिस सेना ने अमेरिका के मूल निवासियों का नरसंहार किया। बाद में, उसके अपराध बोध से मुक्त होने के लिए ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपल्स डे’ (International Day of the World's Indigenous Peoples) के रूप में 9 अगस्त को चुना गया। यहाँ यह भी ध्यान रखें कि वैश्विक षड्यंत्र के अंतर्गत ही ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपल्स डे’ का अनुवाद ‘विश्व आदिवासी दिवस’ के रूप में किया गया है। वास्तविकता यह है कि संयुक्त राष्ट्र ने अब तक ‘इंडिजिनियस पीपल’ (indigenous people) की स्पष्ट परिभाषा तक नहीं की है। यही कारण है कि जब 1989 में विश्व मजदूर संगठन द्वारा ‘राइट्स ऑफ इंडिजिनस पीपल’ कन्वेन्शन क्रमांक-169 घोषित किया गया, तब उसे विश्व के 189 में से केवल 22 देशों ने ही स्वीकार किया। इसका मुख्य कारण ‘इंडिजिनस पीपल’ शब्द की परिभाषा को स्पष्ट नहीं करना ही था। 

स्पष्ट है कि एक भ्रामक स्थापना का उपयोग भारत में जनजाति समाज को तोडऩे के लिए किया जा रहा था। राष्ट्रीय विचार की सरकारों के प्रयास से यह भ्रम टूट गया है और जनजाति समुदाय अपने वास्तविक गौरव से जुड़ रहा है। किसी का नरसंहार भारत के संवेदनशील समाज के लिए ‘उत्सव’ का दिन नहीं हो सकता। ‘वर्ल्ड इंडिजिनियस पीपल डे’ को उसी रूप में स्मरण किया जाना चाहिए, जिस अपराध बोध के कारण उसकी शुरुआत हुई। जो अमेरिकी इंडिजिनियस पीपल्स के नरसंहार के दोषी हैं, उन्हें इस दिन क्षमा मांगनी चाहिए। 

यात्री कृपया ध्यान दें- अब हबीबगंज रेलवे स्टेशन की जगह रानी कमलापति रेलवे स्टेशन (Rani kamlapati Railway Station Code-RKMP)

बहरहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल में ‘जनजाति गौरव दिवस’ के अवसर पर एक और महत्वपूर्ण कार्य किया, जो जनजाति के गौरव की अनुभूति कराता है और इतिहास की एक महान नायिका का स्मरण कराता है। 15 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ने जिस विश्व स्तरीय सुविधाओं वाले रेलवे स्टेशन का लोकार्पण किया, उसका नामकरण ‘हबीबगंज रेलवे स्टेशन’ की जगह भोपाल की अंतिम हिन्दू गोंड शासक रानी कमलापति के नाम पर किया गया है। यह निर्णय भी भारतीय समाज को उसकी मूल पहचान से जोडऩे वाला है। स्मरण रखें कि भोपाल सहित समूचे मध्यप्रदेश के नागरिक बंधु लंबे समय से हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम बदलने की माँग कर रहे थे। अपने इस निर्णय से मध्यप्रदेश और केंद्र सरकार ने नागरिकों की भावनाओं का सम्मान भी किया है। भारतीय मनों को गौरव की अनुभूति कराने वाले इस प्रकार के निर्णयों का खुलकर स्वागत किया जाना चाहिए।

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