देखें वीडियो: Manjil Ki Talash Me | मंजिल की तलाश में | Lokendra Singh
मंजिल की तलाश में
जब निकला था
तब कुछ न था पास में
न थी जमीं और न आसमां था
बस सपने बहुत थे आंख में
अब तो...
मिल गया है रास्ता
पैर जमाना सीख रहा हूं
शिखर को जो छूना है।
चलता रहा मीलों
एक आस में भूखा-प्यासा
दर-दर घूमा खानाबदोश-सा
न तो दर मिला, न दरवेश कोई
पर उम्मीद की लौ बुझने न दी मैंने
अब तो...
दिया भी है, बाती भी
बस, प्रदीप्त होना सीख रहा हूं
जहां को रोशन जो करना है।
मुकाम बनाना है एक
इस जहां में
कब, कहां और कैसे
न जानता था, न किसी ने बताया
बस, सहयात्रियों से सीखता रहा
अब तो...
चांद-तारे हैं साथ में
टिमटिमाना सीख रहा हूं
क्षितिज पर जो चमकना है।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)