शनिवार, 18 मार्च 2023

राज्याभिषेक के 350वें वर्ष का स्मरण जगाएगा ‘स्व’ का भाव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की ओर से शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के 350वां वर्ष प्रारंभ होने पर वक्तव्य जारी करके स्वयंसेवकों एवं समाज के सभी बंधुओं से आह्वान किया है कि इस संदर्भ में होनेवाले कार्यक्रमों में सहभागिता करें। प्रतिनिधि सभा की ओर से माननीय सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय जी होसबाले के आह्वान का अधिकतम अनुपालन होना चाहिए। राज्याभिषेक को केंद्र में रखकर जो कार्यक्रम आयोजित हों, उनमें हमें सहभागिता करने के साथ ही अपने स्तर पर भी राज्याभिषेक की घटना के महत्व को प्रकाश में लाकर, ‘स्व’ की भावना को जगाने में सहयोग करना चाहिए। समूचा देश जब स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है, तब छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की ऐतिहासिक घटना का स्मरण करना इसलिए भी प्रासंगिक होगा कि हम ‘स्वराज्य’ की संकल्पना को सही अर्थों में समझ पाएंगे। 

ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, विक्रम संवत 1731, तदनुसार ग्रेगोरियन कैलेंडर की दिनांक 6 जून 1674, बुधवार को छत्रपति शिवाजी महाराज का, स्वराज्य की राजधानी रायगढ़ में राज्याभिषेक हुआ। शिवाजी सिंहासनाधीश्वर हुए। लंबे कालखंड के बाद हिन्दू पदपादशाही की स्थापना हुई। सामर्थ्यशाली हिन्दू साम्राज्य के कारण गौरवान्भुति हुई। शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना करते समय आक्रांताओं की थोपी हुई व्यवस्थाओं को हटाकर भारत के ‘स्व’ के आधार पर नयी व्यवस्थाएं खड़ी कीं, उसी तरह वर्तमान शासन व्यवस्था को भी बची-खुची औपनिवेशिक दासता की पहचान को उखाड़कर फेंक देना चाहिए और भारत की नीतियों को ‘स्व’ का आधार देना चाहिए। 

यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत ने करवट बदली है। नये भारत ने अपने ‘स्व’ के आधार पर राष्ट्र निर्माण के पथ पर आगे बढ़ना प्रारंभ कर दिया है। प्रतीकों से लेकर नीतियों तक में ‘स्व’ परिलक्षित हो रहा है। ऐसे में छत्रपति शिवजी महाराज की जीवनयात्रा एवं उनके द्वारा स्थापित ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की संकल्पना का स्मरण अत्यंत प्रासंगिक एवं प्रेरणास्पद होगा। 

छत्रपति शिवाजी महाराज राजसी वैभव को भोगने के लिए नहीं अपितु धर्म एवं संस्कृति के रक्षा हेतु ‘स्व’ आधारित राज्य की स्थापना की। उन्होंने ‘स्वराज्य’ का विचार दिया तो यह नहीं कहा कि यह मेरा मत है, मेरी अभिलाषा है, अपितु उन्होंने यह विश्वास जगाया कि ‘स्वराज्य की स्थापना श्री की इच्छा है’। स्वराज्य स्थापना के समय अष्टप्रधान मंडल की रचना, फारसी और अरबी भाषा के शब्दों को हटाकर संस्कृतनिष्ठ एवं मराठी शब्दों के प्रचलन पर जोर देते हुए ‘राज्य व्यवहार कोश’ का निर्माण, कालगणना हेतु श्रीराजाभिषेक शक का प्रारम्भ, संस्कृत राजमुद्रा का उपयोग, तकनीक और विज्ञान में भी ‘स्व’ के आधार पर नवाचारों को प्रधानता देकर छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘स्वराज्य’ के आदर्श को प्रतिपादित किया। 

 

स्वदेश, ग्वालियर समूह में 17 मार्च, 2023 को प्रकाशित

गुरुवार, 16 मार्च 2023

भविष्य के भारत के लिए दिशा-संकेत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपनी स्थापना के समय से ही समाजहित में सक्रिय है। भले ही राजनीतिक दल और उनके कुछ नेता संघ के बारे में भ्रामक प्रचार करें, लेकिन समाज में संघ की जो छवि बनी है, वह राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से परे है। देश-दुनिया में जब कोरोना जैसी महामारी आई थी, तब जहाँ भी संघ के कार्यकर्ता थे, उन्होंने निर्भय होकर लोगों की सहायता की, उनका हौसला बढ़ाया। कहने का अभिप्राय यही है कि जब भी समाज को संभालने की आवश्यकता होती है, संघ के कार्यकर्ता सबसे आगे खड़े होते हैं। आज जब भौतिकता अत्यधिक तेजी से हावी हो रही है, तब भारतीय समाज को सुदृढ़ करने की चिंता हर किसी के मन में है। संघ ने इस चुनौती को स्वीकार किया है। आधुनिकता के साथ कैसे हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें, इस दिशा में संघ पहले से ही कार्य कर रहा था, अब उसकी गति बढ़ाने का निर्णय किया गया है। संघ की निर्णायक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक हरियाणा में सम्पन्न हुई है, जिसमें निर्णय लिया गया है कि संघ आगामी समय में सामाजिक परिवर्तन के पांच आयामों पर अपने कार्य को अधिक केन्द्रित करेगा। इन पांच आयामों में सामाजिक समरसता, परिवार प्रबोधन, पर्यावरण संरक्षण, स्वदेशी आचरण, नागरिक कर्तव्य सम्मिलित हैं। यह पांच आयाम अत्यधिक महत्व के हैं।

शुक्रवार, 10 मार्च 2023

‘हिन्दवी स्वराज्य’ की संकल्पना का आधार 'स्व'

 श्रीछत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती (चैत्र कृष्ण पक्ष तृतीया, 10 मार्च, 2023) प्रसंग पर विशेष

हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी दुर्गदुर्गेश्वर श्री रायगढ़ पर राजदरबार में महाराजाधिराज श्रीशिव छत्रपति की सिंहासनारूढ़ प्रतिमा / Photo : Lokendra Singh

भारतवर्ष जब दासता के मकड़जाल में फंसकर आत्मगौरव से दूर हो गया था, तब शिवाजी महाराज ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की घोषणा करके भारतीय प्रजा की आत्मचेतना को जगाया। आक्रांताओं के साथ ही तालमेल बिठाकर राजा-महाराज अपनी रियासतें चला रहे थे, तब शिवाजी महाराज ने केवल शासन के सूत्र मुगलों से अपने हाथ में लेने के लिए बिगुल नहीं फूंका था अपितु उन्होंने वास्तविक अर्थों में स्वराज्य की प्रेरणा जगायी। अकसर हम आर्तस्वर में कहते हैं कि 1947 में हमने सत्ता तो प्राप्त कर ली थी लेकिन तत्काल बाद स्वराज्य की ओर कदम नहीं बढ़ाये थे। अंग्रेजों की बनायी व्यवस्थाओं को ही हम ढोते रहे। यहाँ तक कि हम अपनी भाषा को प्रधानता नहीं दे सके। पिछले कुछ वर्षों में अवश्य ही हमने स्वराज्य की ओर कुछ कदम बढ़ाये हैं। जबकि शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के साथ ही सब प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्थाएं ‘स्व’ के आधार पर बनायी। उन्होंने जिस राज्य की स्थापना की, उसे भोंसले राज्य, कोंकण राज्य या मराठी राज्य नहीं कहा अपितु उसे उन्होंने नाम दिया ‘हिन्दवी स्वराज्य’ और जिस साम्राज्यपीठ की स्थापना की, उसे कहा- ‘हिन्दू पदपादशाही’। यानी उन्होंने स्वराज्य को स्वयं की निजी पहचान से नहीं अपितु भारत की संस्कृति से जोड़ा। इसी तरह उन्होंने कभी नहीं कहा कि हिन्दवी स्वराज्य की उनकी अपनी संकल्पना है अपितु श्रीशिव ने तो जन-जन में स्वराज्य के भाव की जाग्रति के लिए कहा- “हिन्दवी स्वराज्य ही श्रींची इच्छा”। अर्थात् यह हिन्दवी स्वराज्य की इच्छा ईश्वर की इच्छा है।

बुधवार, 8 मार्च 2023

महिला सशक्तिकरण पर जोर देती शिवराज सरकार

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने महिला सशक्तिकरण के उल्लेखनीय प्रयास किए हैं, उसी शृंखला में ‘लाडली बहना योजना’ को देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की इस महत्वाकांक्षी योजना को लेकर आम नागरिकों के बीच प्रतीक्षा भी बहुत थी और चर्चा भी। बहुत से लोग ऐसे भी हैं, जो इसे आगामी चुनाव से जोड़कर देख रहे हैं। चुनावी वर्ष में सरकार कोई भी पहल करे, उसे चुनाव से जोड़कर देखा जाना स्वाभाविक ही है। परंतु यह अवश्य स्मरण रखना चाहिए कि शिवराज सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए प्रारंभ से नवाचार करती रही है। बेटियों की पढ़ाई, उनके पोषण एवं भविष्य में विवाह इत्यादि में आर्थिक सहयोग की दृष्टि से सरकार ने अनेक योजनाएं प्रारंभ की हैं। सरकारी योजनाओं से इतर भी प्रदेश में बेटियों को लेकर सामाजिक सोच में बदलाव लाने का क्रांतिकारी परिवर्तन भी शिवराज सरकार ने किया है। मुख्यमंत्री श्री चौहान अपने भाषणों में नियमित तौर पर बेटियों के प्रति समान और सम्मान का भाव रखने का आग्रह करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में बेटियों के प्रति समाज में जो सकारात्मक वातावरण दिखायी देता है, उसकी अनुभूति सब कर पा रहे हैं।

रविवार, 19 फ़रवरी 2023

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रतिदिन एक पौधा रोपने का शुभ संकल्प बना जनांदोलन

एक पौधा हम भी लगाएं

कोई एक शुभ संकल्प कैसे जनांदोलन बन जाता है, इसका सटीक उदाहरण है मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सदानीरा माँ नर्मदा की जयंती के पावन प्रसंग पर 19 फरवरी, 2021 को प्रतिदिन एक पौधा लगाने का संकल्प लिया था। किसी भी राजनेता के लिए इस प्रकार के संकल्प को प्रतिदिन निभाना कठिन होता है। मुख्यमंत्री के रूप में व्यस्तता और अधिक बढ़ जाती है। इस बात की प्रशंसा करनी होगी कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बिना चूके प्रतिदिन अपने संकल्प का पालन किया। अपने प्रवास के दौरान भी वे जहाँ रहे, वहाँ उन्होंने पौधा रोपा। अपने संकल्प के प्रति यह प्रतिबद्धता अनुकरणीय है।

मंगलवार, 14 फ़रवरी 2023

अर्जुन के रथ से लड़ाकू विमान पर महाबली हनुमान


बेंगलुरु में चल रहे एयरो इंडिया शो में प्रदर्शित भारत के नए सुपरसोनिक फाइटर ट्रेनर एयरक्राफ्ट ‘एचएलएफटी-42’ ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा है। दरअसल, इस आधुनिक लड़ाकू प्रशिक्षक विमान की पूंछ पर महाबली पवनपुत्र हनुमानजी अंकित हैं। निश्चित ही यह आनंद की बात है कि भारत अपने ‘स्व’ की ओर बढ़ रहा है। विमान का डिजाइन बनानेवालों के मन अवश्य ही भारत बोध से भरे हुए होंगे। वर्तमान केंद्र सरकार भी भारतीयता से ओतप्रोत नवाचारों का स्वागत करती है। भारतीयता को उसके सांस्कृतिक प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त करने में उसे कोई संकोच नहीं, अपितु आनंद ही होता है। मोदी सरकार के कार्यकाल में विगत आठ–नौ वर्षों में ऐसा वातावरण बना है, जो ‘भारत के विचार’ को प्रदर्शित करने के लिए प्रोत्साहित करता है। हमें स्मरण करना चाहिए धर्मयुद्ध ‘महाभारत’ के रण में अर्जुन जिस रथ पर सवार थे, उस पर भी ध्वज के साथ महावीर हनुमानजी विराजित थे। संभव है कि लड़ाकू विमान की अभिकल्पना अर्जुन के रथ से प्रेरित हो।

शुक्रवार, 10 फ़रवरी 2023

एक ही है गांधीजी और आरएसएस का ‘हिन्दुत्व’

पुस्तक चर्चा – ‘हिन्दुत्व और गांधी’


कुछ लोग मेरे इस कथन से असहमत हो सकते हैं कि “गांधीजी का जीवन हिंदुत्व में रचा–बसा था”। असहमतियों का सम्मान है लेकिन यह सत्य है कि महात्मा गांधी के जीवन को हिंदुत्व से अलग करके नहीं देखा जा सकता। आज जो कम्युनिस्ट यह भ्रम पैदा करने की साजिश रचते हैं कि गांधीजी का हिन्दुत्व अलग था और हिन्दू संगठनों का हिन्दुत्व अलग है, एक दौर तक यही कम्युनिस्ट गांधीजी को सांप्रदायिक हिन्दूवादी नेता के रूप में लक्षित करते थे। कम्युनिस्टों के साथ ही उस समय की अन्य हिन्दू विरोधी ताकतें भी गांधीजी को ‘हिन्दुओं के नेता’ के तौर पर देखती थीं। हिन्दुत्व के प्रतिनिधि/प्रचारक होने के कारण महात्मा गांधी की आलोचना करने में कट्टरपंथी मुस्लिम और कम्युनिस्ट अग्रणी थे। विडम्बना देखिए कि आज यही ताकतें गांधीवाद का चोला ओढ़कर हिन्दू धर्म और राष्ट्रीय विचार पर हमला करने के लिए पूज्य महात्मा का उपयोग एक हथियार की तरह कर रही हैं। ऐसे समय में वरिष्ठ पत्रकार मनोज जोशी इतिहास के सागर में गोता लगाकर अपनी पुस्तक ‘हिन्दुत्व और गांधी’ में ऐसे तथ्य सामने रखते हैं, जिनसे यह ‘शरारती विमर्श’ खोखला दिखने लगता है। यह सर्वमान्य है कि हिन्दुओं का सबसे बड़ा संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ है। इसलिए हिन्दू धर्म पर हमलावर रहनेवाली ताकतें ‘आरएसएस’ को भी अपने निशाने पर रखती हैं। ‘हिन्दुत्व’ पर समाज को भ्रमित करने की साजिशों में यह स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है कि ‘संघ का हिन्दुत्व’ वह हिन्दुत्व नहीं है जो ‘गांधीजी का हिन्दुत्व’ है। दोनों अलग-अलग हैं। जबकि ऐसा है नहीं। हिन्दुत्व एक ही है, चाहे वह आरएसएस का हो या फिर महात्मा गांधी का। यदि अलग-अलग होता, तब ये ताकतें पूर्व में महात्मा गांधी पर हमलावर नहीं होतीं। उस दौर में हिन्दुत्व के सबसे बड़े प्रतिनिधि के तौर पर उन्हें गांधीजी दिखाई दिए तो उन्होंने गांधी पर हमला किया और अब जब आरएसएस इस भूमिका में है, तो ये सांप्रदायिक एवं फासीवादी ताकतें आरएसएस पर हमलावर हैं।