शनिवार, 11 जनवरी 2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर आरएसएस के प्रचारक के विचार

पुस्तक चर्चा : बाबा साहब के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति - राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संबंध में सबने अपने-अपने दृष्टिकोण बना रखे हैं। उनके विचारों एवं व्यक्तित्व को समग्रता से देखने के प्रयास कम ही हुए हैं। बाबा साहब को लेकर राजनीतिक क्षेत्र से उठी एक बहस जब देश में चल रही है, तब एक पुस्तक ‘राष्ट्र-ऋषि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पढ़ने में आई। अर्चना प्रकाशन, भोपाल से प्रकाशित यह पुस्तक केवल 80 पृष्ठ की है लेकिन लेखक निखिलेश महेश्वरी जी ने ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयत्न बड़ी कुशलता से किया है। बाबा साहब से जोड़कर अकसर उठनेवाली बहसों के लगभग सभी मुद्दों को छूने और उन पर एक सम्यक दृष्टिकोण पाठकों के सामने रखने का कार्य लेखक ने किया है। राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाकर जिस एकात्मता के लिए बाबा साहब ने प्रयास किए, उसी एकात्मता के लिए साहित्य के धर्म का निर्वहन निखिलेश जी ने किया है। लेखक का मानना है कि बाबा साहब आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जिन्होंने समाज जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि निखिलेश महेश्वरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। आप इस समय देश के सबसे बड़े शैक्षिक संगठन विद्या भारती में मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री हैं। यह पुस्तक पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति संघ में अपार श्रद्धा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस सामाजिक समता का स्वप्न बाबा साहब ने देखा था, वह संघ की शाखा से लेकर समाज में साकार होता दिखायी देता है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति बाबा साहब से लेकर महात्मा गांधी तक कर चुके हैं।

देखिए : पत्रकारिता में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान

आरएसएस और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर :

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर सन् 1935 में पुणे में आयोजित महाराष्ट्र के पहले संघ शिक्षा वर्ग में आए थे। इस अवसर पर संघ के संस्थापक सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार से उनकी भेंट एवं चर्चा भी हुई। वे अपने व्यवसाय के निमित्त दापोली गए, तब वहाँ की शाखा पर भी गए और स्वयंसेवकों के साथ खुलेमन से चर्चा की। इसका उल्लेख भारतीय मजदूर संघ सहित अनेक सामाजिक संगठनों के संस्थापक रहे विचारक दत्तोपंत ठेंगठी ने अपनी पुस्तक ‘डॉ. अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा’ में किया है। इसके साथ ही बाबा साहब डॉ. अंबेडकर से जुड़े रहे पूर्व लोकसभा सांसद बालासाहेब सालुंके ने भी इसका उल्लेख किया है। उनके पुत्र काश्यप सालुंके ने भानुदास गायकवाड़ के साथ मिलकर बालासाहेब सालुंके के संस्मरणों एवं विचारों का संकलन किया है- ‘आमचं सायेब : दिवंगत खासदार बालासाहेब सालुंके’। इस पुस्तक के पृष्ठ 25 और 53 पर डॉ. अंबेडकर और आएसएस के संदर्भ में उपरोक्त उल्लेख आते हैं। याद रहे कि बाला साहेब सालुंके और उनके पुत्र काश्यप सालुंके का संघ से कोई संबंध नहीं है। सन् 1937 में करहाड शाखा (महाराष्ट्र) के विजयादशमी उत्सव पर बाबा साहब का भाषण हुआ। सन् 1939 में एक बार फिर बाबा साहब पुणे के संघ शिक्षा वर्ग के सायंकाल के कार्यक्रम में आए थे। सन् 1940 में भी बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर पुणे में संघ की शाखा में गए थे। यहाँ स्वयंसेवकों के समक्ष अपने विचार प्रकट किए। इस संबंध में हाल ही में विश्व संवाद केंद्र, विदर्भ ने 9 जनवरी 1940 को प्रकाशित प्रसिद्ध मराठी दैनिक समाचारपत्र ‘केसरी’ की प्रति साझा की है। इसके बाद भी उनका संघ के साथ संपर्क बना रहा। संघ पर लगे पहले प्रतिबंध को हटाने में बाबा साहब का जो सहयोग एवं परामर्श मिला, उसके प्रति धन्यवाद ज्ञापित करने के लिए तत्कालीन सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ ने सितंबर-1949 में बाबा साहब से दिल्ली में भेंट की।  इसी तरह, महात्मा गांधी ने भी निकट से संघ दर्शन किया। उन्होंने तो संघ के शिविर और शाखा में जाने का उल्लेख स्वयं ही किया है।

पुस्तक में हैं पाँच अध्याय :

बहरहाल, ‘राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ में लेखक निखिलेश महेश्वरी ने बाबा साहब के विराट व्यक्तित्व एवं उनकी विचार संपदा की चर्चा पाँच संक्षिप्त अध्यायों में की है- पृष्ठभूमि, जीवन संघर्ष, जीवन यात्रा के सहयोगी, विविध विषयों पर विचार, इस्लाम और ईसाईयत। लेखक ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि बाबा साहब किसी एक जाति या वर्ग तक सीमित नहीं थे अपितु वे संपूर्ण समाज के नायक हैं। लेखक ने लिखा भी है कि “डॉ. अंबेडकर के कार्यों के लिए संपूर्ण राष्ट्र को उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए”। बाबा साहब पर केंद्रित इस छोटी पुस्तक के बड़े महत्व को रेखांकित करते हुए बाबा साहब भीमराव अंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ के कुलाधिपति डॉ. प्रकाश सी. बरतूनिया लिखते हैं- “यह पुस्तक भारतीय समाज में जाति भेदभाव समाप्त करने तथा सामाजिक समरसता का वातावरण निर्मित कर देश की एकता और अखंडता को दृढ़ करने की दृष्टि से बहुत उपयोगी होगी”।

इस्लाम और ईसाईयत पर बाबा साहब के विचार :

पुस्तक की भाषा-शैली सहज-सरल है। लेखक तर्कों-तथ्यों के साथ अपनी बात को पाठकों तक पहुँचाने में सफल होते दिखायी देते हैं। निखिलेश जी ने कई नये प्रसंगों एवं जानकारियों को सामने लाकर, उस दिशा में गहन शोध का मार्ग प्रशस्त किया है। एक अध्याय यह स्मरण कराता है कि बाबा साहब के संघर्ष और आंदोलन में उन्हें हिन्दू समाज के सभी वर्गों का सहयोग मिला। अकसर कुछ लोग अपने छिपे हुए स्वार्थों के चलते ‘जय भीम’ के साथ ‘जय मीम’ के खोखले नारे को चिपकाने का प्रयास करते हैं। इस पुस्तक में बेबाकी से उन तथ्यों को उजागर किया गया है, जिनसे पता चलता है कि बाबा साहब इस्लाम और ईसाईयत के संबंध में किस प्रकार के विचार रखते थे। इन विचारों को यदि बाबा साहब के नाम के बिना लिखा या बोला जाए तो लोग कहेंगे कि ये किसी कट्टर हिन्दू नेता के विचार हैं। अपनी राजनीतिक जमीन बचाने के लिए जो राजनीतिक दल अचानक से अपना ‘अंबेडकर प्रेम’ प्रकट कर रहे हैं, क्या वे बाबा साहब के उन विचारों से सहमति प्रकट करेंगे जो उन्होंने इस्लाम और ईसाईयत के संबंध में व्यक्त किए हैं। नि:संदेह, वे भाग खड़े होंगे। उन्होंने अब तक बाबा साहब के विचारों पर पर्दा डालने का ही काम किया है। बाबा साहब के विचारों पर समग्रता से ने तो अध्ययन हुआ है और न होने दिया है।

लेखक निखिलेश महेश्वरी की यह पुस्तक उन सभी को पढ़नी चाहिए, जो बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन एवं विचारों के दूसरे पहलुओं को जानना चाहते हैं। याद रखें कि किसी भी महापुरुष का समग्रता से अध्ययन करना चाहिए। उनके विचारों को एक विशेष दृष्टिकोण से नहीं अपितु तत्कालीन संदर्भ और प्रसंग के साथ देखना चाहिए। 


पुस्तक : राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. भीमराव अंबेडकर

लेखक : निखिलेश महेश्वरी

पृष्ठ : 80

मूल्य : 75 रुपये (पेपरबैक)

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल

बुधवार, 8 जनवरी 2025

घर-घर दीप जलाएं… आओ, एक और दीपावली मनाएं

प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ


एक वर्ष पहले पौष शुक्ल द्वादशी (22 जनवरी, 2024) को भारतवासियों ने त्रेतायुग के बाद एक बार फिर अपने आराध्य भगवान श्रीराम के स्वागत में घर-घर दीप जलाए थे। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में जब श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब प्रत्येक रामभक्त की आँखों से नेह की धारा बह रही थी। आखिर रामभक्त भाव-विभोर हों भी क्यों नहीं, लगभग 500 वर्षों की प्रतीक्षा एवं संघर्ष के बाद जन्मभूमि में उल्लासपूर्वक श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। यह दिन भारत के लिए अविस्मरणीय है। प्रत्येक भारतवासी का मन था कि श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को उत्सव की परंपरा में शामिल कर दिया जाए। जैसे रावण का वध करके प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना को हमने दीपोत्सव के रूप में त्रेतायुग से आज तक अपनी स्मृति में संजोकर रखा है, उसी तरह श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव को भी ‘दीपावली’ की भाँति ही मनाया जाए। पौष शुक्ल द्वादशी को प्रत्येक हिन्दू घर रोशन हो और देहरी-मुडेर पर दीपों की मालिका जगमगाए।

पिछले वर्ष मन में विचार आया था कि पौष शुक्ल द्वादशी को हम 'राम दीपावली' के रूप में प्रतिवर्ष मनाएं। कैलेंडर पर 22 जनवरी के साथ त्योहार का उल्लेख न देखकर बिटिया ने पूछा था कि- “हमने कल जो त्योहार मनाया, दीप जलाए, रोशनी की। यहां उसके बारे में कहां लिखा है?” तब मैंने हर्षित मन से उसे बताया कि- “अब जो कैलेंडर छपकर आयेंगे, उन पर लिखा होगा ‘राम दीपावली’। परंतु उसे भी हमें 22 जनवरी को नहीं, पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ही इसी उत्साह से मानना है”। मन की यह कामना ईश्वर की कृपा से पूरी हो रही है। यह मेरे लिए व्यक्तिगत तौर पर भी आनंद की बात है।

यह आनंद की बात है कि करोड़ों रामभक्तों के हृदय की पुकार श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास तक पहुँच गई। निश्चित ही यह भी राम की लीला होगी। न्यास ने निर्णय लिया है कि श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ को ‘प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव’ के नाम से भव्य रूप में मनाया जाएगा। राम मंदिर में 11 जनवरी से शुरू होने वाला यह महोत्सव तीन दिन तक चलेगा। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास ने महोत्सव की तैयारियां शुरू कर दी हैं। न्यास के महामंत्री चंपत राय ने तीन दिवसीय महोत्सव के विविध कार्यक्रमों एवं अनुष्ठानों की विस्तृत जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि प्राण-प्रतिष्ठा के कार्यक्रम 5 स्थलों पर चलेंगे।

महामंत्री चंपत राय ने बताया कि हिंदू कैलेंडर के मुताबिक श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा पौष शुक्ल द्वादशी (22 जनवरी 2024) को की गई थी। इसलिए उसकी वर्षगाँठ हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ही पौष शुक्ल द्वादशी को मनायी जाएगी। 2025 में यह तिथि आंग्ल कैलेंडर के अनुसार 11 जनवरी को है। कार्यक्रम में उन संत-महात्माओं और गृहस्थों को आमंत्रित किया जा रहा है जिन्हें प्राण-प्रतिष्ठा में नहीं बुलाया जा सका था। इसका दायित्व अखिल भारतीय धर्माचार्य संपर्क प्रमुख अशोक तिवारी को सौंपा गया है।

यज्ञ मंडप के कार्यक्रम -

शुक्ल यजुर्वेद माध्यान्दिनी शाखा के 40 अध्यायों के 1975 मंत्रों से अग्नि देवता को आहुति प्रदान की जाएगी, 11 वैदिक मंत्रोच्चार करेंगे।

होम देने का कार्य प्रातः काल 8 से 11 बजे तक और अपराह्न 2 से 5 बजे तक होगा।

श्रीराम मंत्र का जप यज्ञ भी इसी कालखंड में दो सत्रों में होगा। छह लाख मंत्र जप किया जाएगा।

रामरक्षा स्त्रोत, हनुमान चालीसा, पुरुष सूक्त, श्रीसूक्त, आदित्यहृदय स्तोत्र, अथर्वशीर्ष आदि के पारायण भी होंगे।

दक्षिणी प्रार्थना मंडप -

नित्य अपराह्न 3 से 5 बजे तक भगवान को राग सेवा प्रस्तुत की जाएगी।

मंदिर प्रांगण -

तीनों दिन सायंकाल 6 से 9 बजे रात्रि तक रामलला के सम्मुख बधाई गान होगा।

यात्री सुविधा केंद्र -

यात्री सुविधा केंद्र के प्रथम तल पर 3 दिवसीय संगीतमय मानस पाठ होगा।

अंगद टीला पर -

अपराह्न 2 से 3:30 बजे तक रामकथा और अपराह्न 3:30 से 5 बजे तक प्रभु श्रीराम के जीवन पर प्रवचन होंगे।

तीनों दिन सायंकाल 5:30 से 7:30 बजे तक भिन्न-भिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे।

अंगद टीला के समस्त कार्यक्रमों में आमजन आमंत्रित है।

प्रतिष्ठा द्वादशी (11 जनवरी, 2025) को प्रातः काल से प्रसाद वितरण होगा।

तीन दिनों तक राम मय रहेगी अयोध्या -

न्यास के महामंत्री चंपत राय ने बताया कि देश के ख्याति प्राप्त भजन गायक रामलला की स्तुति करेंगे। 11 से 13 जनवरी तक एक बार फिर से अयोध्या् को धार्मिक अनुष्ठा नों, वैदिक मंत्रों, भजन कीर्तन और हनुमान चालीसा के पाठ से शोधित किया जाएगा। 11 जनवरी को पौष शुक्ल द्वादशी के दिन श्रीरामलला का विशेष अभिषेक और आरती की जाएगी। यह पूजा दोपहर 12:20 बजे होगी, जो श्रीरामलला की प्रतिष्ठा के समय के अनुरूप है।

हम क्या कर सकते हैं- 

‘प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव’ के अवसर पर सब तो अयोध्या धाम नहीं जाएंगे। ऐसे में हम कैसे अपने आराध्य भगवान श्रीराम का स्वागत कर सकते हैं। हम जैसे दीपावली पर अपने घरों को सजाते हैं, वैसे ही 11 जनवरी को हमें अपने घरों को रोशन करना है। दरवाजे-आंगन में रंगोली सजानी है। रसोईघर में पकवान पकने चाहिए। शाम को भगवान श्रीराम की आरती या रामरक्षा स्रोत का पाठ कर सकते हैं। दीपक जलाकर प्रभु श्रीराम का स्वागत कर सकते हैं। एक-दूसरे को इस नयी दीपावली की शुभकामनाएं एवं बधाइयां दे सकते हैं। ऐसा लगे कि भारत में एक बार फिर से दीपावली मनायी जा रही है। यह उत्सव हमें हिन्दुओं के 500 वर्षों के पुरुषार्थ और सौभाग्य से मिला है। इसलिए इस उत्सव को आनंद के साथ मनाने की एक परंपरा शुरू होनी चाहिए।

अयोध्या धाम स्थिति श्रीराम जन्मभूमि मंदिर। सभी चित्र श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के सोशल मीडिया से साभार प्राप्त।

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

पत्रकार सुरक्षित होंगे, तभी बचेगा लोकतंत्र

छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकार के हत्यारों को मिले कड़ी सजा

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता एवं पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। कहना होगा कि किसी भी देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है। भारत में भी पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी हत्या कर दी जाती है। हालिया घटना छतीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर से जुड़ी हुई है। हत्या के बाद उनके शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से प्लास्टर कर दिया गया। मुकेश की हत्या के पीछे एक रिपोर्ट को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह रिपोर्ट घटिया सड़क निर्माण की पोल खोलने से संबंधित है। पत्रकार मुकेश की रिपोर्ट के अनुसार, ठेकेदार सुरेश चंद्राकार ने मिरतुर से गंगालूर के बीच सड़क बनाने का ठेका लिया था, लेकिन सड़क अधूरी बनने के बाद भी प्रशासन ने 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया। इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। इसी मामले को स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्रकार ने उजागर किया था। उनकी खोजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद सड़क निर्माण की परियोजना पर छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच बैठा दी थी। पूरी आशंका है कि इसी कारण ठेकेदारों ने मुकेश को अपने निशाने पर ले लिया। मामले में मुख्य आरोपी सहित चार लोग पकड़े गए हैं।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

आक्रांता और लुटेरा ही था गजनवी

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को बताया लुटेरा

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को आक्रमणकारी और डाकू-लुटेरा बताकर खलबली मचा दी है। आसिफ ने समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि “महमूद गजनवी आता था और लूटमार करके वापस चला जाता था। हालांकि, हमारे यहाँ उसे हीरो के तौर पर चित्रित किया जाता है, लेकिन मैं उसे हीरो नहीं मानता”। उनके बयान को पाकिस्तान में ‘एंटी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के दूसरे बड़े नेता रक्षा मंत्री के बयान को ‘भारतीय सोच’ बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान महमूद गजनवी को अपना आदर्श मानता है। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों को गजनवी का नाम दिया है। हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना बिल्कुल ठीक है क्योंकि जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ लूट-मार की थी, तब पाकिस्तान नाम का अस्तित्व ही नहीं था। भले ही पाकिस्तान इतिहास को झुठलाए लेकिन यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान का साझा इतिहास है। वह इतिहास बताता है कि पाकिस्तान के लिए भी महमूद गजनवी एक लुटेरा ही था।

रविवार, 5 जनवरी 2025

अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत राम

देखें यह वीडियो- इंडोनेशिया से लेकर कंबोडिया तक और थाईलैंड से तुर्किस्तान तक ‘सिय राम मय सब जग जानी’


मानव देह में भगवान श्रीराम ने जिन शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना की, वे सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। इसलिए राम केवल भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में आराध्य हैं। जीवन की अलग-अलग भूमिकाओं में मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श राम ने प्रस्तुत किया है। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है- “मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है? उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ”। इस प्रसंग से ही स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में राम के नाम की महिमा क्यों है? क्यों दुनियाभर में उन्हें पढ़ा और पूजा जाता है। राम का जीवन मर्यादा सिखाता है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व का भाव जगाता है। राम का संदेश मनुष्य को देवत्व की ओर लेकर जाता है। संपूर्ण विश्व में रामराज्य की अवधारणा साकार हो, मूल्य आधारित समाज व्यवस्था निर्मित हो, इसलिए सब अपने यहाँ राम का चरित्र लेकर गए हैं। भारत के स्वाभिमान श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखायी पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भाँति यहाँ भी कण-कण में राम व्याप्त हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रामायण का मंचन इंडोनेशिया में किया जाता है। इंडोनेशिया के मुस्लिम भगवान राम को अपना नायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

धर्म की सीख

धार्मिक कहानियां सिखाती हैं जीने की कला


AI द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र

सार्थक और देवकी का परिवार बहुत धार्मिक है। उनके माता-पिता अकसर श्री रामचरितमानस और श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। एक दिन सार्थक और देवकी अपनी माँ के पास बैठे थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी कि मम्मी और पापा धार्मिक किताबें क्यों पढ़ते रहते हैं। एक ही प्रकार की पुस्तक को बार-बार पढ़ने से क्या होता है? दरअसल, सार्थक और देवकी को धर्म-अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की उतनी अधिक जानकारी नहीं थी क्योंकि वे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहाँ के पाठ्यक्रम में भी भारत की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।

पंचिंग बैग नहीं है हिन्दू धर्म

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने दिए सनातन विरोध बयान

तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल और नेताओं ने हिन्दू धर्म को पंचिंग बैग समझ लिया है। अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और एक खास वोटबैंक को खुश करने के लिए अकसर तथाकथित सेकुलर नेता हिन्दू धर्म को लक्षित करके विवादित बयानबाजी करते रहते हैं। कोई सनातन धर्म की तुलना डेंगू से करता है तो कभी सनातन के समूल नाश पर सेमिनार कराए जाते हैं। कभी संसद में जोश में आकर कह दिया जाता है कि “जो लोग अपने आपको हिन्दू कहते हैं, वो चौबीस घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा; नफरत, नफरत, नफरत; असत्य, असत्य, असत्य कहते हैं”। अब केरल के मुख्यमंत्री एवं कम्युनिस्ट नेता पिनराई विजयन ने सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करके हिन्दू विरोध की मानसिकता को प्रकट किया है। उनकी टिप्पणी बताती हैं कि सनातन धर्म के संबंध में उनकी समझ बहुत उथली है और उन्होंने जानबूझकर हिन्दू धर्म को निशाना बनाने का प्रयास किया है। यही कारण है कि कि मुख्यमंत्री विजयन की टिप्पणियों का विरोध न केवल भारतीय जनता पार्टी कर रही है अपितु कांग्रेस ने भी विरोध किया है। हालांकि, विश्व हिन्दू परिषद ने विपक्षी दल में शामिल सभी राजनीतिक दलों की सोच पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि कांग्रेस के नेताओं की ओर से जो विरोध दर्ज कराया जा रहा है, वह गोल-मोल है।