अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए नेता किस हद तक उतर आते हैं, यह देखना है तो महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही हलचल पर नजर जमा लीजिए। मराठी अस्मिता के नाम पर हिन्दी का विरोध करते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों 20 वर्ष बाद एक मंच पर आ गए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है, उस समय भी हिन्दी प्रदेश के लोगों को परेशान करना और उनके साथ मारपीट करना, ठाकरे एंड कंपनी का धंधा हो गया था। लेकिन बाद में शिवसेना के शीर्ष नेताओं को समझ आया कि हिन्दी का विरोध करके उनकी राजनीति सिमट रही है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता का स्वभाव इस प्रकार का नहीं है। कहना होगा कि हिन्दी के विस्तार में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका रही है। चाहे वह भारतीय फिल्म उद्योग हो, जिसने देश में ही नहीं अपितु दुनिया में हिन्दी का विस्तार किया या फिर साहित्य एवं राजनीतिक नेतृत्व रहा हो। महाराष्ट्र की जमीन ऐसी नहीं रही, जिसने भाषायी विवाद का पोषण किया हो। इस प्रकार की राजनीति के लिए वहाँ कतई जगह नहीं है। ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर जितना अधिक हिन्दी भाषी बंधुओं को परेशान करेंगे, उतना ही अधिक वह और उनकी राजनीति अप्रासंगिक होती जाएगी।
महाराष्ट्र की भूमि से छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा नेतृत्व निकला है, जिन्होंने समूचे राष्ट्र को एक करने कार्य किया। मराठी अस्मिता के नाम पर हिन्दी का विरोध करने वाले नासमझ नेता यह भूल जाते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने राज्य का नामकरण ‘मराठी या मराठा साम्राज्य’ नहीं किया अपितु उन्होंने उसे ‘हिन्दवी स्वराज्य’ जैसा संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करनेवाला नाम दिया। मजेदार बात यह है कि हिन्दी का विरोध करने वाले ये नेता छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम पर भी अपनी राजनीति की दुकान चलाते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि महाराज ने भारत की एकता-अखंडता के लिए अपना जीवन दिया। याद करें कि छत्रपति शिवाजी महाराज की राजमुद्रा किस भाषा में थी? उन्होंने उस समय देश को जोड़ने वाली संस्कृत भाषा में अपनी राजमुद्रा को तैयार कराया। महाराज ने भारत की भाषाओं को प्रतिष्ठित किया और विदेशी भाषाओं (अरबी-फारसी) का विरोध किया, जो भारतीय भाषाओं को निकल रही थी।
मजेदार तथ्य है कि भाषा के आधार पर अपनी राजनीति चमकानेवाले नेता तमिलनाडु से लेकर महाराष्ट्र तक हिन्दी का विरोध तो करते हैं लेकिन एक भी नेता अंग्रेजी का विरोध नहीं करता। जबकि भारतीय भाषाओं को वास्तविक खतरा अगर है तो वह अंग्रेजी से है। किंतु, ये नेता अंग्रेजी का विरोध नहीं करते। सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता जब भारतीय भाषाओं की रक्षा के लिए अंग्रेजी के प्रभुत्व को चुनौती देते हैं, तब अंग्रेजी का समर्थन करने के लिए कई नेता खड़े हो जाते हैं। अभी हाल ही में केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने जब कहा कि एक समय आएगा जब अंग्रेजी में बोलने वालों को शर्म आएगी तब विपक्ष के प्रमुख नेताओं ने अंग्रेजी की जिस तरह वकालात की थी, उससे साफ दिखायी दिया कि अभी भी कुछ लोगों का दिमाग औपनिवेशकता का दास है। अंग्रेजी की गुलामी उन्हें पसंद है, अपनी भाषा नहीं।
कोई कितना भी हिन्दी विरोध करे लेकिन सत्य यही है कि भारत में सबसे अधिक सहज संपर्क की कोई भाषा है, तो वह हिन्दी ही है। हिन्दी का यह स्थान अंग्रेजी इतने वर्षों में भी नहीं ले सकी है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन में जाने से ठाकरे बंधुओं की राजनीतिक जमीन पूरी तरह खिसक गई है। हिन्दी विरोध की यह ओछी हरकतें महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ स्थान बनाने का प्रयासभर है। उद्धव और राज ठाकरे ने अपने भाषणों में यह स्वीकार भी किया है कि वे मुम्बई नगर निगम और महाराष्ट्र की सत्ता को प्राप्त करना चाहते हैं। महाराष्ट्र सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि मराठी अस्मिता के नाम पर कानून को हाथ में लेकर यदि कोई हिन्दी बोलनेवालों को प्रताड़ित करता है, तब उनका ठीक प्रकार से इलाज हो। भारत में भाषा, जाति, पंथ इत्यादि के नाम पर किसी को प्रताड़ित करने का अधिकार किसी को नहीं दिया जा सकता।
#विश्व_हिन्दी_दिवस
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) January 10, 2021
---
“मैं कहता आया हूं कि राष्ट्र भाषा एक हो और वह हिंदी ही होनी चाहिए। हमें अपने कानों में हिंदी के ही शब्द सुनाई दें, अंग्रेजी के नहीं।” – #महात्मा_गाँधी
(11 नवंबर 1917, मुजफ्फरपुर, बिहार) pic.twitter.com/0CMBwd3d2c
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share