पाठकों के हाथों से दूर हुआ समाचारपत्र, क्या वापस आएगा?
कोविड-19 के कारण पूरी दुनिया में फैली महामारी की चपेट में आने से मीडिया भी नहीं बच सका है। विशेषकर प्रिंट मीडिया पर कोरोना महामारी का गहरा प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। प्रिंट मीडिया पर कोरोना के प्रभाव को अलग-अलग दृष्टिकोण से देखा जा सकता है। समाचारपत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रभावित हुआ है, उनकी प्रसार संख्या में बड़ी गिरावट दर्ज हुई है, समाचारपत्रों के आकार घट गए हैं, पत्रकारों की नौकरी पर संकट आया है, संस्थानों के कार्यालयों में कार्य-संस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन हुआ है। प्रिंट मीडिया के भविष्य को लेकर भी चर्चा बहुत तेजी से चल पड़ी है। ऐसा नहीं है कि कोरोना संक्रमण के कारण लागू हुए लॉकडाउन एवं आर्थिक मंदी का प्रभाव सिर्फ प्रिंट मीडिया पर ही हुआ है, इलेक्ट्रॉनिक एवं वेब मीडिया भी इससे अछूता नहीं रहा है। इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के सामने सिर्फ आर्थिक चुनौतियां हैं, जबकि प्रिंट मीडिया के सामने तो पाठकों का भी संकट खड़ा हो गया। लोगों ने डर कर समाचारपत्र-पत्रिकाएं मंगाना बंद कर दीं। लोगों ने समाचार और अन्य पठनीय सामग्री प्राप्त करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया का रुख किया है। इसलिए यह प्रश्न अधिक गंभीर हो जाता है कि क्या भविष्य में प्रिंट मीडिया का यह पाठक वर्ग उसके पास वापस लौटेगा?
कोरोना संक्रमण के कारण जब मार्च-2020 में पहला देशव्यापी लॉकडाउन लगाया गया, तब संक्रमण से डर कर बड़ी संख्या में लोगों ने अपने घर में समाचारपत्र-पत्रिकाओं के प्रवेश को भी प्रतिबंधित कर दिया। लोगों के बीच यह भय था कि समाचारपत्र के माध्यम से भी कोरोना संक्रमण फैल सकता है। ऐसा सोचने वाले लोग बड़ी संख्या में थे। स्थिति यहाँ तक बन गई कि कोरोना महामारी से भयग्रस्त एक याचिकाकर्ता ने चेन्नई के उच्च न्यायालय में याचिका लगाई थी कि समाचारपत्रों से कोरोना वायरस फैल सकता है, इसलिए इनका प्रकाशन रोका जाए। न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए समाचारपत्रों के प्रकाशन पर रोक से मना कर दिया है। न्यायालय ने कहा कि “भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में जीवंत मीडिया का बहुत महत्व है। जीवंत मीडिया भारत जैसे किसी भी लोकतांत्रिक देश की थाती है। अतीत में आजादी की लड़ाई के दौरान इसी मीडिया ने अंग्रेजों के शासन के खिलाफ जन-जागरण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके बाद आपातकाल के समय भी समाचारपत्रों की उल्लेखनीय भूमिका रही। समाचारपत्रों के प्रकाशन पर यदि रोक लगाई जाती है तो यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत न केवल प्रकाशक और संपादक, बल्कि पाठक के भी मौलिक अधिकारों के हनन के समान होगा”। लोगों के इस भय को दूर करने के लिए लगभग सभी समाचारपत्रों ने कई बार यह सूचना प्रकाशित की कि ‘समाचारपत्र से कोरोना नहीं फैलता है। दुनिया में एक भी प्रकरण ऐसा नहीं आया है, जो समाचारपत्र के माध्यम से संक्रमित हुआ हो। यहाँ तक कि कई शोध में यह बात सामने आई है कि समाचारपत्रों की छपाई तकनीक बिल्कुल स्वच्छ एवं सुरक्षित है। वितरक सैनिटाइजेशन के मानकों का पालन कर रहे हैं। समाचारपत्र छूना सुरक्षित है। इससे कोरोना के फैलने का कोई खतरा नहीं होता। बल्कि समाचारपत्र से कोरोना के संबंध में सही जानकारी पाठकों को मिलती है’। इस अपील/स्पष्टीकरण के प्रकाशन और इलेक्ट्रॉनिक एवं वेब मीडिया में प्रसारण के बाद भी लोगों ने समाचारपत्र से दूरी बना ली। इलेक्ट्रॉनिक और वेब मीडिया के होने के बाद भी जो लोग समाचारों के लिए प्रिंट मीडिया पर निर्भर थे, उन्होंने भी समाचारपत्रों को छूना बंद कर दिया। वर्षों से सुबह उठकर चाय के साथ समाचारपत्र पढऩे की आदत को कोरोना संक्रमण के भय ने एक झटके में बदल दिया। इसकी पुष्टि एक मार्केट रिसर्च कंपनी की रिपोर्ट भी करती है। ‘ग्लोबल वेब इंडेक्स’ की रिपोर्ट कहती है कि दुनियाभर में ऑनलाइन न्यूज की खपत में तेजी से वृद्धि हुई है। लोग ताजा जानकारियाँ जुटाने के लिए डिजिटल माध्यमों का सबसे अधिक उपयोग कर रहे हैं। कई भारतीय मीडिया संस्थानों ने भी मार्च के तीसरे सप्ताह से ऑनलाइन ट्रैफिक (उपभोक्ताओं) में उछाल दर्ज किया था।
भारत में मार्च-2020 के पाँच-छह माह बाद यह स्थिति बनी है कि पाठकों के हाथों में अब समाचारपत्र की हार्डकॉपी की जगह ई-पेपर आ गया। पाठक समाचारपत्र पढ़ने की अपनी आदत की संतुष्टि के लिए अब ई-पेपर पर चले गए। तकनीक में दक्ष लोग समाचारपत्र को डाउनलोड कर उसकी पीडीएफ फाइल व्हाट्सएप समूहों पर प्रसारित करने लगे। यानी पहले हॉकर आपके यहाँ समाचारपत्र की प्रति दरवाजे पर छोड़ कर जाता था, तब उसकी डिजिटल कॉपी आपको व्हाट्सएप पर मिलने लगी। मीडिया संस्थानों ने समाचारपत्रों की पीडीएफ फाइल के प्रसार को गंभीरता से लिया और यह तय हुआ कि किसी भी समाचारपत्र की पीडीएफ फाइल प्रसारित करने पर दण्डात्मक कार्यवाही हो सकती है। वेब मीडिया पर बढ़ते ट्रैफिक और ई-पेपर पर क्लिक की बढ़ती संख्या ने मीडिया संस्थानों के कान खड़े कर दिए। उन्हें यह लगने लगा कि यदि पाठकों में ई-पेपर पढ़ने की आदत विकसित हो गई तब भविष्य में स्थितियां सामान्य होने के बाद भी उनकी प्रसार संख्या पूर्व स्थिति में नहीं आ पाएगी। समाचारपत्र की हार्डकॉपी ही लोग पढ़ें इसके लिए ज्यादातर मीडिया संस्थानों ने अपने समाचारपत्रों के ई-वर्जन पढ़ने के लिए सदस्यता शुल्क लेना शुरू कर दिया। जबकि कोरोना काल से पूर्व गिनती के ही समाचारपत्र थे, जो ई-पेपर पढ़ने के लिए पाठकों से शुल्क लेते थे। इसके साथ ही सुबह थोड़ी देर से ई-पेपर अपडेट/उपलब्ध कराए जाने लगे। ई-पेपर का स्क्रीनशॉट या क्लिप लेना प्रतिबंधित कर दिया गया। कुल मिलाकर यह प्रयास किए गए कि पाठक समाचारपत्र की हार्डकॉपी पर ही वापस लौटे। हालाँकि, उनके प्रयास बहुत सफल नहीं हुए। पाठक अब भी समाचारपत्रों की हार्डकॉपी लेने/छूने से बच रहा है और धीरे-धीरे ई-पेपर या वेबसाइट पर ही समाचार पढ़ने की उसकी आदत बन रही है। व्यक्तिगत बातचीत में कई लोगों ने यह स्वीकार किया है कि ई-पेपर एवं वेब पोर्टल्स पर ताजा खबरें मिलने से अब उन्हें अपनी दिनचर्या में समाचारपत्र की अनुपस्थिति खलती नहीं है। ज्यादातर लोगों ने यह भी कहा कि संभव है कि अब वे भविष्य में समाचारपत्र की हार्डकॉपी न मंगाएं। इसलिए यह माना जाने लगा है कि आगे चलकर प्रिंट संकुचित होगा जबकि इंटरनेट आधारित मीडिया का विस्तार होगा और उसके पास अधिक पाठक होंगे।
भारत की सामाजिक परिस्थिति को देखते हुए इस बात से सहमत होना कठिन है कि प्रिंट मीडिया के विस्तार पर वर्तमान नकारात्मक प्रभाव भविष्य में भी बना रहेगा। हमें याद रखना चाहिए कि भारत में जब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का आगमन हुआ, तब भी यही कहा जा रहा था कि समाचारपत्र-पत्रिकाओं के दिन अब लदने को हैं। लेकिन, हमने देखा कि प्रिंट मीडिया के कदम ठहरे नहीं, उसका विस्तार ही हुआ। उसके बाद जब इंटरनेट आधारित मीडिया ने जोर पकड़ना शुरू किया तब फिर से उक्त प्रश्र को उठाया जाने लगा। परंतु, ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन (एबीसी) और इंडियन रीडरशिप सर्वे (आईआरएस) के आंकड़े बताते हैं कि प्रिंट मीडिया के प्रसार और पठनीयता, दोनों में तेजी से वृद्धि हो रही है। भारत में प्रिंट मीडिया की यह स्थिति तब है, जब दुनिया के अनेक देशों में प्रतिष्ठित समाचारपत्रों का प्रकाशन बंद हो रहा है। कोरोना से पहले भारत में प्रिंट मीडिया का न केवल विस्तार हो रहा था, बल्कि उसकी विश्वसनीयता भी बाकी मीडिया के अपेक्षा अधिक मजबूत हो रही थी। पूर्ण विश्वास के साथ तो नहीं, लेकिन पूर्व स्थितियों के आकलन और भारत की सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखकर यह उम्मीद अवश्य है कि समाचारपत्र पुन: अपनी स्थिति को प्राप्त होंगे और उनका प्रसार भी तेजी से बढ़ेगा। क्योंकि वेब मीडिया अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय समाचारों की भूख को तो शांत कर देते हैं लेकिन अपने आस-पास (स्थानीय) के समाचारों से पाठक अछूता रह जाता है। पाठकों को उस मात्रा में उनके शहर, गाँव, बस्ती, मोहल्ले के समाचार वेब मीडिया पर नहीं मिल रहे, जो उन्हें स्थानीय समाचारपत्र उपलब्ध कराते हैं।
वर्तमान परिस्थिति में प्रिंट मीडिया को सहायता करने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों को महत्वपूर्ण कदम उठाने चाहिए। प्रत्येक परिस्थिति में समाज को जागरूक करने में समाचारपत्र-पत्रिकाओं की महत्वपूर्ण एवं प्रभावी भूमिका रहती है। हमने कोरोना काल में भी यह अनुभव किया है कि पत्रकारों ने अपना जीवन दांव पर लगाकर सही सूचनाएं नागरिकों तक पहुँचाने में सराहनीय भूमिका का निर्वाह किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से प्रिंट मीडिया के प्रमुखों से बात कर समाचारपत्रों की इस भूमिका की प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि “प्रिंट मीडिया का नेटवर्क पूरे भारत में है। यह शहरों एवं गांवों में फैला हुआ है। यह मीडिया को इस चुनौती (कोरोना संक्रमण) से लडऩे और सूक्ष्म स्तर पर इसके बारे में सही जानकारी फैलाने के लिए अधिक महत्वपूर्ण बनाता है”। प्रधानमंत्री मोदी ने जब प्रिंट मीडिया के प्रमुखों से बात की, तब निश्चित ही उन्होंने उनकी समस्याएं भी जानी होंगी। उन्हें सहायता का आश्वास भी दिया होगा। सरकार का सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय भी मीडिया की वर्तमान स्थिति का अध्ययन कर रहा होगा। बहरहाल, प्रिंट मीडिया को सहयोग करने के संबंध में विचार करते समय सरकार को यह बात आवश्यक रूप से ध्यान रखनी चाहिए कि उसकी प्राथमिकता में छोटे और मझले, भारतीय भाषाई, क्षेत्रीय समाचारपत्र-पत्रिकाएं भी शामिल हों। बड़े मीडिया संस्थान फिर भी अपने अस्तित्व की लड़ाई स्वयं लड़ लेंगे, लेकिन मझले संस्थानों के सामने अस्तित्व का बड़ा प्रश्न खड़ा है। प्रिंट मीडिया को बचाने के लिए मझले संस्थानों की चिंता सर्वोपरि होनी चाहिए।
(यह आलेख अभिधा बुक्स, दिल्ली से वर्ष 2021 में प्रकाशित डॉ. शैलेन्द्र राकेश की पुस्तक 'कोरोना वाली दुनिया' में शामिल है।)