गुरुवार, 21 अक्टूबर 2010

भारत सरकार से छीन ली जाएगी करोड़ों की संपत्तियां

मुस्लिम सांसदों के दबाव में शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 में संसोधन स्वीकृत
 इस देश की राजनीति में घुन लग गया है। राष्ट्रहित उसने खूंटी से टांग दिए हैं। इस देश की सरकार सत्ता प्राप्त करने के लिए कुछ भी कर सकती है। अधिक समय नहीं बीता था जब केन्द्र सरकार ने कश्मीर के पत्थरबाजों और देशद्रोहियों को करोड़ों का पैकेज जारी किया। वहीं वर्षों से टेंट में जिन्दगी बर्बाद कर रहे कश्मीरी पंडि़तों के हित की चिंता आज तक किसी भी सरकार द्वारा नहीं की गई और न की जा रही है। मेरा एक ही सवाल है- क्या कश्मीरी पंडि़त इस देश के नागरिक नहीं है। अगर हैं तो फिर क्यों उनकी बेइज्जती की जाती है। वे शांत है, उनके वोट थोक में नहीं मिलेंगे इसलिए उनके हितों की चिंता किसी को नहीं, तभी उन्हें उनकी जमीन, मकान और स्वाभिमान भरी जिन्दगी नहीं लौटाने के प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। वहीं भारत का राष्ट्रीय ध्वज जलाने वाले, भारतीय सेना और पुलिस पर पत्थर व गोली बरसाने वालों को 100 करोड़ का राहत पैकेज देना, उदार कश्मीरी पंडि़तों के मुंह पर तमाचा है। इतने पर ही सरकार नहीं रुक रही है। इस देश का सत्यानाश करने के लिए बहुत आगे तक उसके कदम बढ़ते जा रहे हैं।
    एक पक्ष को तुष्ट करने के लिए सरकार कहां तक गिर सकती है उसका हालिया उदाहरण है शत्रु संपत्ति विधेयक-2010 का विरोध करना फिर उसमें मुस्लिम नेताओं के मनमाफिक संसोधन को केन्द्रीय कैबिनेट द्वारा स्वीकृति देना। कठपुतली (पपेट) प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक आयोजित की गई थी। इसमें इसी बैठक में केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रस्ताव पर शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 में संसोधन को स्वीकृति प्रदान की गई। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1968 में पाकिस्तान गए लोगों की संपत्ति को शत्रु संपत्ति घोषित किया गया था, इस संपत्ति पर अब भारत में रह रहे पाकिस्तान गए लोगों के कथित परिजन कब्जा पा सकेंगे। जबकि पाकिस्तान गए सभी लोगों को उनकी जमीन व भवनों का मुआवजा दिया जा चुका है। उसके बाद कैसे और क्यों ये कथित परिजन उस संपत्ति पर दावा कर सकते हैं और उसे प्राप्त कर सकते हैं। 
    दरअसल पाकिस्तान गए लोगों की सम्पत्ति को प्राप्त करने के लिए पहले से ही उनके कथित परिजनों द्वारा प्रयास किया जा रहा है,  क्योंकि 1968 में लागू शत्रु संपत्ति अधिनियम में कुछ खामी थी। उत्तरप्रदेश में यह प्रयास बड़े स्तर पर किए जा रहे हैं। 2005 तक ही न्यायालय में 600 मामलों की सुनवाई हो चुकी है और न्यायालय ने उन्हें वांछित शत्रु संपत्ति पर कब्जा देने के निर्देश दिए हैं। शत्रु संपत्ति हथियाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में 250 और मुम्बई उच्च न्यायालय में 500 के करीब मुकदमे लंबित हैं। मैं यहां कथित परिजन का प्रयोग कर रहा हूं, उसके पीछे कारण हैं। समय-समय पर इस बात की पुष्टि हो रही है कि बड़ी संख्या में पाकिस्तानी और बांग्लादेशी मुसलमान भारत के विभिन्न राज्यों में आकर बस जाते हैं। कुछ दिन यहां रहने के बाद सत्ता लोलुप राजनेताओं और दलालों के सहयोग से ये लोग राशन कार्ड बनवा लेते हैं, मतदाता सूची में नाम जुड़वा लेते हैं। फिर कहते हैं कि वे तो सन् 1947 से पहले से यहीं रह रहे हैं।
    शत्रु संपत्ति अधिनियम-1968 की खामियों को दूर करने और कथित परिजनों को शत्रु संपत्ति को प्राप्त करने से रोकने के लिए गृह राज्यमंत्री अजय माकन ने 2 अगस्त को लोकसभा में शत्रु संपत्ति (संसोधन एवं विधिमान्यकरण) विधेयक-2010 प्रस्तुत किया गया था। इस विधेयक के प्रस्तुत होने पर अधिकांशत: सभी दलों के मुस्लिम नेता एकजुट हो गए। उन्होंने विधेयक में संसोधन के लिए पपेट पीएम मनमोहन सिंह और इटेलियन मैम सोनिया गांधी पर दबाव बनाया। दस जनपथ के खासमखास अहमद पटेल, अल्पसंख्यक मंत्रालय के मंत्री सलमान खुर्शीद, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद के नेतृत्व में मुस्लिम सांसदों ने प्रधानमंत्री से मिलकर उनके कान में मंत्र फंूका कि यह विधेयक मुस्लिम विरोधी है। अगर यह मंजूर हो गया तो कांग्रेस के माथे पर मुस्लिम विरोधी होने का कलंक लग जाएगा और कांग्रेस थोक में मिलने वाले मुस्लिम वोटों से हाथ धो बैठेगा। यह बात मनमोहन सिंह को जम गई। परिणाम स्वरूप विधेयक में संसोधन कर दिया गया और उसे पाकिस्तान गए मुसलमानों के कथित परिजनों के मुफीद बना दिया गया। जिस पर बुधवार को पपेट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में हुई केन्द्रीय कैबिनेट की बैठक में मुहर लगा दी गई। अब स्थित अराजक हो सकती है सरकार से उन सभी ऐतिहासिक और बेशकीमती भवनों व जमीन को ये कथित परिजन छीन सकते हैं, जो अभी तक शत्रु संपत्ति थी। जबकि इनका मुआवजा पाकिस्तान गए मुसलमान पहले ही अपने साथ भारत सरकार से थैले में भर-भरकर ले जा चुके हैं।

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

बुखारी, कांग्रेस और दिग्विजय

बुखारी आतंकवादी ने संपादक को पीटा, कांग्रेस ने दिल्ली के निर्देश पर की मंत्रियों से धन उगाही और दिग्विजय सिंह शुक्र करो तुम्हारा जबड़ा नहीं टूटा... क्योंकि संघ सिमी या बुखारी नहीं
गुरुवार, 14 अक्टूबर 2010 को दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ का समापन सभी प्रकार की मीडिया के लिए प्राथमिक और प्रमुख समाचार रहा वहीं एक घटना और रही जो मीडिया और हर भारतवासी के लिए अति महत्वपूर्ण रही। जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी ने मीडिया के मुंह पर तमाचा मारा, वो भी कस के। दरअसल इमाम बुखारी अयोध्या मसले को सुप्रीम कोर्ट ले जाने की पैरवी करने के लिए नबाबों के शहर लखनऊ पहुंचे थे। वह एक पत्रकारवार्ता को संबोधित कर रहा था (किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे तो पहुंचती रहे, लेकिन मैं बुखारी के लिए किसी भी प्रकार की सम्मानीय भाषा का उपयोग नहीं करूंगा), तभी उर्दू अखबार दास्तान-ए-अवध के संपादक अब्दुल वाहिद चिश्ती ने बुखारी से एक प्रश्न पूछा। जिस पर वह भड़क गया। एक संपादक की सत्ता को ललकार बैठा। तहजीब सिखाने का ठेकेदार बदतमीजी पर उतर आया। उसकी भाषा ऐसी थी कि जैसे किसी गली के नुक्कड़ पर खड़ा होने वाला छिछोरा लौंडा बात कर रहा हो। दास्तान-ए-अवध के संपादक का सवाल इतना सा था कि सन् 1528 के खसरे में उक्त भूमि पर मालिकाना हक राजा दशरथ के नाम से है, जो अयोध्या के राजा थे। इस नाते यह जमीन उनके बेटे राम की होना स्वाभाविक है, क्यों न मुसलमान इसे हिन्दू समाज को दे दें। वैसे भी हिन्दुओं ने बहुत सी मस्जिदों के लिए जगह दी है। एक और प्रश्न था-क्या इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट लेने की आपकी राय से मुल्क के सारे मुसलमान इत्तेफाक रखते हैं? इन प्रश्नों को सुनते ही बुखारी अपने रंग में दिखे। वैसे मुझे नहीं लगता ये इतने कठोर प्रश्न थे कि बुखारी को अपनी औकात पर उतरने के लिए मजबूर होना पड़। इसके बाद तो दिल्ली जामा मस्जिद के शाही इमाम बुखारी संपादक को जान से मारने की धमकी देते हुए कहता है- चोप बैठ जा, नहीं तो वहीं आकर नाप दूंगा। खामोश बैठ जा, चुपचाप...... तेरे जैसे 36 फिरते हैं मेरे आगे-पीछे........ बदमाश कहीं का, एजेंट..... इतना ही नहीं बुखारी का मन इससे भी नहीं भरा। उसने संपादक के साथ हाथापाई की। बुखारी ने अपने शागिर्दों को कहा-मार दो साले को... वरना ये नासूर बन जाएगा, अपन लोगों के लिए। यह सुनते ही बुखारी के शागिर्द टूट पड़े संपादक अब्दुल वाहिद पर।
    घटना के बाद सारे पत्रकार एकजुट होकर बुखारी से पूछते हैं- आपको एक पत्रकार को मारने का हक किसने दिया। बुखारी इस पर कहते हैं-मारूंगा, तुम कर क्या लोगे। यह है महान बुखारी। वैसे बुखारी के इस कृत्य पर चौकने की कतई जरूरत नहीं। इस तरह की हरकतें करना इन महाशय की फितरत बन चुका है। सन् 2006 में भी इसने प्रधानमंत्री निवास के सामने पत्रकारों के साथ मारपीट की थी। आपको एक बात और बता देना चाहूंगा कि यह वही बुखारी है जिसने जामा मस्जिद से हजारों लोगों की भीड़ के सामने भारतीय सरकार और व्यवस्था को चुनौती देते हुए कहा था- मैं हूं सबसे बड़ा आतंकवादी। अगर है किसी में दम तो करे मुझे गिरफ्तार। उस समय सारे बुद्विजीवी और कथित सेक्युलर अपनी-अपनी मांद में छुप कर बैठ गए। किसी ने कागद कारे नहीं किए। मुझे उन लोगों पर आज भी पूरा यकीन है। वे या तो बुखारी के इस कृत्य को उचित सिद्ध करने के लिए कलम रगड़ेंगे या फिर खामोश रह कर किसी और मुद्दे की ओर ध्यान खींचेंगे, लेकिन वे एक शब्द लिखकर भी इमाम बुखारी और उसकी मानसिकता का विरोध नहीं करेंगे।
-       आज की एक और घटना अधिक चर्चित रही। वह है कांग्रेस की सुपर मैम सोनिया गांधी की वर्धा रैली के लिए धन उगाही की। इस घटना का खुलासा बड़ा रोचक रहा। दरअसल किसी आयोजन के समाप्त होने के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष माणिक राव ठाकरे और पूर्व मंत्री सतीस चतुर्वेदी निश्चिंत बैठ गुफ्तगूं में मशगूल हो गए। दोनों वर्धा रैली में किस-से कितना पैसा वसूला गया, इस पर चर्चा कर रहे थे। अहा! किस्मत, तभी किसी कैमरे में दोनों रिकॉर्ड (यह कोई स्टिंग ऑपरेशन नहीं था) हो गए। माणिक राव पूर्व मंत्री सतीस से कह रहे थे कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पहले तो पैसे देने से ना-नुकुर कर रहा था, लेकिन बाद में दो करोड़ ले ही लिया। बाकी मंत्रियों से दस-दस लाख रुपया लिया गया है। इस मसले पर दोनों की काफी देर तक बात चली। सब कुछ कैमरे में कैद हो गया और खबरिया चैनलों के माध्यम से जनता के सामने आ गया। सब साफ है, लेकिन फिर भी कोई कांग्रेसी स्वीकार नहीं कर रहा कि रैली के लिए कांग्रेस धन उगाही करती है। रैली के लिए करोड़ और लाख-लाख रुपए की वसूली के निर्देश दिल्ली से आए थे, यह दोनों की बातचीत से स्पष्ट हुआ। हमारे प्रदेश के बयान वीर दिग्विजय सिंह इतना ही कह सके कि कांग्रेस में रैली व अन्य आयोजनों के नाम पर धन उगाही नहीं होती, जबकि सबूत हिन्दोस्तान की सारी जनता के सामने था। घटना के बाद बड़े सवाल पीछे छूट गए कि इतना पैसा मंत्रियों के पास आता कहां से है? जनता सवाल भी जानती है और जवाब भी, लेकिन बाजी जब जनता के हाथ होती है तो वह भूल जाती है अपना कर्तव्य।
    वहीं बयानवीर दिग्विजय सिंह ने एक और अनर्गल बयान जारी किया है कि संघ पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई से पैसा लेता है। उनका कहना है कि उनके पास सबूत हैं। वे एक माह में सब दूध का दूध और पानी का पानी कर देंगे। दिग्विजय आपके पास तो इस बात के भी सबूत थे कि संघ पार्टी में अवैध हथियार बनते हैं, बम बनाए जाते हैं, लेकिन आप आज तक वो सबूत पेश नहीं कर पाए। दरअसल दिग्विजय को सच या तो पचता नहीं है या दिखता नहीं है। उनकी पार्टी का महान कारनामे की वीडियो फुटेज टीवी चैनल पर चल रही थी, तब भी राजा साहब कह रहे थे कि कांग्रेस धन उगाही नहीं करती। क्या दिग्विजय को इतना बड़ा सबूत नहीं दिखा। खैर मैं तो बड़ी बेसब्री से एक माह बीतने का इंतजार कर रहा हूं, जब राजा साहब एक बड़ा खुलासा करेंगे।  मैंने इससे पूर्व के लेख में लिखा था कि संभवत: राहुल के कान दिग्गी ने ही भरे होंगे या फिर अपने लिए लिखा भाषण राहुल से पढ़वा दिया होगा। तभी राहुल बाबा बिना ज्ञान के संघ की तुलना सिमी से कर गए थे। उसके बाद राहुल के बचाव में दिग्विजय बड़े जोर-शोर से जुटे हैं और संघ को सिमी जैसा बताने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। दिग्गी शुक्र करो संघ इमाम बुखारी या सिमी जैसा नहीं है.... देखा होगा इमाम ने तो एक सामान्य सवाल पूछने पर ही एक उर्दू अखबार के संपादक का मुंह तोड़ दिया।

गुरुवार, 7 अक्टूबर 2010

राष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी एक से दिखे बाबा को

राहुल चले दिग्विजय के नक्शेकदम पर, कहा संघ और सिमी एक जैसे

रा हुल 'बाबा' ने बुधवार को मध्यप्रदेश के प्रवास पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और सिमी की तुलना करते हुए दोनों को एक समान ठहरा दिया। हर किसी को राहुल की बुद्धि पर तरस आ रहा है। जाहिर है मुझे भी आ रहा है। उनके बयान को सुनकर लगा वाकई बाबा विदेश से पढ़कर आए हैं, उन्होंने देश का इतिहास अभी ठीक से नहीं पढ़ा। उन्हें थोड़ा आराम करना चाहिए और ढंग से भारत के इतिहास का अध्ययन करना चाहिए।  या फिर लगता है कि अपनी मां की तरह उनकी भी हिन्दी बहुत खराब है। राष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी में अंतर नहीं समझ पाए होंगे। अक्टूबर एक से तीन तक मैं भोपाल प्रवास पर था। उसी दौरान भाजपा के एक कार्यकर्ता से राहुल को लेकर बातचीत हुई। मैंने उनसे कहा कि वे पश्चिम बंगाल गए थे, वहां उन्होंने वामपंथियों का झंड़ा उखाडऩे की बात कही। कहा कि वामपंथियों ने बंगाल की जनता को धोखे में रखा। लम्बे समय से उनका एकछत्र शासन बंगाल में है, लेकिन उन्होंने बंगाल में कलकत्ता के अलावा कहीं विकास नहीं किया। तब वामपंथियों ने बाबा को करारा जवाब दिया कि राहुल के खानदान ने तो भारत में वर्षों से शासन किया है। उनका खानदान भारत तो क्या एक दिल्ली को भी नहीं चमका पाए। इस पर राहुल दुम दबाए घिघयाने से दिखे, उनसे इसका जवाब देते न बना। अब राहुल मध्यप्रदेश में आ रहे हैं। तब उन भाजपा कार्यकर्ता ने कहा आपको क्या लगता है वह यहां कुछ उल्टा-पुल्टा बयान जारी करके नहीं जाएंगे। मैंने कहा बयान जारी करना ही तो राजनीति है, लेकिन मैंने राहुल से इस बयान की कल्पना भी नहीं की थी।
    संघ मेरे अध्ययन का प्रिय विषय रहा है। आज तक मुझे संघ और सिमी में कोई समानता नहीं दिखी। इससे पूर्व एक पोस्ट में मैंने लिखा था कि ग्वालियर में संघ की शाखाओं में मुस्लिम युवा और बच्चे आते हैं। इसके अलावा संघ के पथ संचलन पर मुस्लिम बंधु फूल भी बरसाते हैं। इससे तात्पर्य है कि संघ कट्टरवादी या मुस्लिम विरोधी नहीं है। राहुल के बयान से तो यह भी लगता है कि उन्हें इस बात की भी जानकारी न होगी कि संघ के नेतृत्व में एक राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच का गठन भी किया गया है। जिससे हजारों राष्ट्रवादी मुस्लिमों का जुड़ाव है। जबकि सिमी के साथ यह सब नहीं है। वह स्पष्टतौर पर इस्लामिक कट्टरपंथी संगठन है। जो इस्लामिक मत के प्रचार-प्रसार की आड़ में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता रहा है। ऐसे में वैचारिक स्तर पर भी कैसे संघ और सिमी राहुल को एक जैसे लगे यह समझ से परे है।

    राहुल बाबा से पूर्व संघ पर निशाना साधने के लिए उन्होंने एक बंदे को तैनात किया हुआ है। संघ आतंकवादी संगठन है, उसके कार्यालयों में बम बनते हैं, पिस्टल और कट्टे बनते हैं। इस तरह के बयान देने के लिए कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह की नियुक्ति की हुई है। इसलिए संघ की इस तरह से व्याख्या अन्य कांग्रेसी कभी नहीं करते। बाबा ने यह कमाल कर दिखाया। बाबा ने यह बयान भोपाल में दिया। मुझे एक शंका है। कहीं दिग्विजय सिंह ने अपना भाषण उन्हें तो नहीं रटा दिया। क्योंकि जब राहुल के बयान की चौतरफा निंदा हुई तो उनके बचाव में सबसे पहले दिग्विजय ही कूदे। खैर जो भी हुआ हो। यह तो साफ हो गया कि राहुल की समझ और विचार शक्ति अभी कमजोर है। वे अक्सर भाषण देते समय अपने परिवार की गौरव गाथा सुनाते रहते हैं। मेरे पिता ने फलां काम कराया, फलां विचार दिया। इस बार उन्होंने यह नहीं कहा कि जिस संघ को वे सिमी जैसा बता रहे हैं। उनके ही खानदान के पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संघ को राष्ट्रवादी संगठन मानते हुए कई मौकों पर आमंत्रित किया। 1962 में चीनी आक्रमण में संघ ने सेना और सरकारी तंत्र की जिस तरह मदद की उससे प्रभावित होकर पंडित नेहरू ने 26 जनवरी 1963 के गणतंत्र दिवस समारोह में सम्मिलित होने के लिए संघ को आमंत्रित किया और उनके आमंत्रण पर संघ के 300 स्वयं सेवकों ने पूर्ण गणवेश में दिल्ली परेड में भाग लिया। कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा विरोध होने पर नेहरू ने कहा था कि उन्होंने देशभक्त नागरिकों को परेड में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था। अर्थात् नेहरू की नजरों में संघ देशभक्त है और राहुल की नजरों में आतंकवादी संगठन सिमी जैसा। इनके परिवार की भी बात छोड़ दें तो इस देश के महान नेताओं ने संघ के प्रति पूर्ण निष्ठा जताई है। उन नेताओं के आगे आज के ये नेता जो संघ के संबंध में अनर्गल बयान जारी करते हैं बिल्ली का गू भी नहीं है।
    1965 में पाकिस्तान ने आक्रमण किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री व प्रात: पूज्य लाल बहादुर शास्त्री जी ने सर्वदलीय बैठक बुलाई। जिसमें संघ के सर संघचालक श्री गुरुजी को टेलीफोन कर आमंत्रित किया। पाकिस्तान के साथ 22 दिन युद्ध चला। इस दौरान दिल्ली में यातायात नियंत्रण का सारा काम राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को सौंपा गया। इतना ही नहीं जब भी आवश्यकता पड़ती दिल्ली सरकार तुरंत संघ कार्यालय फोन करती थी। युद्ध आरंभ होने के दिन से स्वयं सेवक प्रतिदिन दिल्ली अस्पताल जाते और घायल सैनिकों की सेवा करते व रक्तदान करते। यह संघ की देश भक्ति का उदाहरण है।
    1934 में जब प्रात: स्मरणीय गांधी जी वर्धा में 1500 स्वयं सेवकों का शिविर देखने पहुंचे तो उन्हें यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि अश्पृश्यता का विचार रखना तो दूर वे एक-दूसरे की जाति तक नहीं जानते। इस घटना को उल्लेख गांधी जी जब-तब करते रहे। 1939 में डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर पूना में संघ शिक्षा वर्ग देखने पहुंचे। वहां उन्होंने डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार (संघ के स्थापक) से पूछा कि क्या शिविर में कोई अस्पृश्य भी है तो उत्तर मिला कि शिविर में न तो 'स्पृश्य' है और न ही 'अस्पृश्य'। यह उदाहरण है सामाजिक समरसता के। जो संघ के प्रयासों से संभव हुआ।
    वैसे सिमी की वकालात तो इटालियन मैम यानि राहुल बाबा की माताजी सोनिया गांधी भी कर चुकी हैं। मार्च 2002 और जून 2002 में संसद में भाषण देते हुए सोनिया गांधी ने सिमी पर प्रतिबंध लगाने के लिए एनडीए सरकार के कदम का जोरदार विरोध किया। सोनिया की वकालात के बाद कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने 2005 में प्रतिबंध की अवधि बीत जाने के बाद चुप्पी साध ली, लेकिन उसे फरवरी 2006 में फिर से प्रतिबंध लगाना पड़ा। इसी कांग्रेस की महाराष्ट्र सरकार ने 11 जुलाई 2006 को हुए मुंबई धमाकों में सिमी का हाथ माना और करीब 200 सिमी के आतंकियों को गिरफ्तार किया। सिमी के कार्यकर्ताओं को समय-समय पर राष्ट्रविरोधी हिंसक गतिविधियों में संलिप्त पाया गया है।
क्या है सिमी
    स्टूडेन्ट्स इस्लामिक मूवमेन्ट ऑफ इण्डिया (सिमी) की स्थापना 1977 में अमरीका के एक विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा प्राप्त प्राध्यापक मोहम्मद अहमदुल्लाह सिद्दीकी ने की थी। वह अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पत्रकारिता और जनसंचार में प्राध्यापक था। सिमी हिंसक घटनाओं तथा मुस्लिम युवाओं की जिंदगी बर्बाद करने वाला धार्मिक कटट्रता को पोषित करने वाला गिरोह है। संगठन की स्थापना का उद्देश्य इस्लाम का प्रचार-प्रसार करना बतलाया गया। लेकिन इसकी आड़ में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम दिया गया।
दुनिया भर के आतंकी संगठनों से मिलती रही सिमी को मदद-
-वल्र्ड असेम्बल ऑफ मुस्लिम यूथ, रियाद
  • इंटरनेशनल इस्लामिक फेडरेशन ऑफ स्टूडेंट ऑर्गनाइजेशन, कुवैत
  • जमात-ए-इस्लाम, पाकिस्तान
  • इस्लामी छात्र शिविर, बांग्लादेश
  • हिज उल मुजाहिदीन
  • आईएसआई, पाकिस्तानी गुप्तचर संस्था
  • लश्कर-ए-तोएयबा
  • जैश-ए-मोहम्मद
  • हरकत उल जेहाद अल इस्लाम, बांग्लादेश