मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध महाभियोग लाने का निर्णय कर कांग्रेस ने न्यायपालिका पर आखिरकार सीधा हमला कर ही दिया है। अपने इस निर्णय से कांग्रेस ने देश की जनता में ही नहीं, बल्कि अपने भीतर भी किरकिरी करा ली है। भले ही कांग्रेस ने भाजपा पर हमला करने के लिए महाभियोग को राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग किया है, किंतु इस बार यह हथकंडा कांग्रेस को भारी पड़ सकता है। जज बीएच लोया की कथित संदिग्ध मौत के मामले को खारिज करते समय सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि इस मामले की आड़ में न्यायपालिका की विश्वसनीयता और स्वतंत्रता पर प्रहार करने का प्रयास किया जा रहा है। सर्वोच्च न्यायालय का यह अंदेशा सत्य साबित हुआ।
गुरुवार, 26 अप्रैल 2018
मंगलवार, 24 अप्रैल 2018
न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा मत करो महाराज
देश में राजनीतिक विरोध का ऐसा माहौल पहले कभी नहीं देखा गया है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता के बीच अपनी राजनीतिक लड़ाई हारे हुए समस्त विपक्षी दल अब भाजपा और केंद्र सरकार को घेरने के लिए संवैधानिक संस्थाओं को भी निशाना बनाने में संकोच नहीं कर रहे हैं। जज बीएच लोया की कथित संदिग्ध मौत के मामले में जाँच की माँग को जब सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया, तो कांग्रेस सहित विपक्षी दलों एवं उनके समर्थक कथित बुद्धिजीवियों ने जिस प्रकार न्यायपालिका पर अविश्वास जताया है, वह घोर आश्चर्यजनक तो है ही, निंदनीय भी है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर अन्य प्रमुख नेताओं ने न्यायपालिका को कठघरे में खड़ा करने का प्रयत्न किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं यह माना है कि इस प्रकरण के माध्यम से न्यायपालिका की विश्वसनीयता पर हमला बोला गया है। सर्वोच्च न्यायालय का यह कथन कांग्रेस नेताओं के वक्तव्यों ने सही साबित कर दिया।
शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018
हम आलोचना कर रहे हैं या दुष्प्रचार
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लंदन प्रवास के दौरान 'भारत की बात, सबके साथ' कार्यक्रम में बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने एक प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा- 'आलोचनाएं लोकतंत्र की ब्यूटी होती है।' यह बात दरअसल, इसलिए महत्वूर्ण है, क्योंकि मोदी विरोधी जब-तब यह स्थापित करने का प्रयास करते हैं कि वर्तमान सरकार ने उनकी अभिव्यक्ति की आजादी को समाप्त कर दिया है। अब कुछ भी कहना खतरे से खाली नहीं। आलोचनाओं के लिए कोई स्थान नहीं बचा है। मोदी विरोधियों के इस प्रकार के प्रयासों के कारण ही यह प्रश्न लंदन में मोदी से पूछा गया। जबकि वास्तविकता क्या है, हम जानते हैं। जो लोग यह कह रहे हैं कि देश में आलोचना के लिए स्थान नहीं बचा है, वह लोग ही खुलकर वह सब कुछ भी बोल रहे हैं, जो आलोचना की श्रेणी में नहीं अपितु दुष्प्रचार की श्रेणी में आता है। यहाँ तक कि घृणा की श्रेणी में भी उसको शामिल किया जा सकता है।
बुधवार, 18 अप्रैल 2018
सामने आया 'भगवा आतंकवाद' का सच
'सत्य कभी पराजित नहीं होता।'
'कितने भी काले बादल हों, सूरज को अधिक समय तक ढंक नहीं सकते।'
'सच सामने आ ही जाता है।'
'न्याय में देर है, अंधेर नहीं।'
यह लोकोक्तियां बताती हैं कि सच को परास्त करने के लिए कोई कितने भी षड्यंत्र रच ले, किंतु एक दिन आता है जब सत्य की ही जीत होती है और झूठों का मुंह काला। मक्का मस्जिद बम धमाके मामले में स्वामी असीमानंद समेत सभी आरोपियों के बरी होने के बाद 'हिंदू आतंकवाद' पर रचा गया षड्यंत्र पूरी तरह उजागर हो गया है। यह देश का दुर्भाग्य है कि वोटों की खातिर एक पार्टी ने इस देश की पहचान को आतंकवाद से जोडऩे का भयंकर षड्यंत्र रचा था। विश्व में जिस 'हिंदू' की उदारता, मानवता और करुणा के उदाहरण दिए जाते हैं, उस हिंदू को सिर्फ इसलिए बदनाम करने का षड्यंत्र रचा गया ताकि अपनी राजनीतिक बिसात बची रहे, ताकि एक समुदाय का तुष्टीकरण किया जा सके। कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने 'भगवा आतंकवाद' और 'हिंदू आतंकवाद' जैसे शब्द दिए हैं। इस पर विचार किया जाना चाहिए कि आतंकवाद को धर्म और रंग से न जोडऩे की वकालत करने वाली कांग्रेस ने ही आखिर क्यों हिंदू और भगवा आतंकवाद की अवधारणा रची?
मंगलवार, 10 अप्रैल 2018
जाएं तो जाएं कहाँ
पाकिस्तान में हिंदुओं का जबरन मतांतरण
पाकिस्तान के लोग आज भी यह सिद्ध करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे कि कि उन्होंने भारत के टुकड़े 'मुस्लिमों के लिए अलग देश' के नाम पर किए थे। पाकिस्तान की माँग के साथ यह कहा गया था कि हिंदू और मुसलमान, दो अलग मुल्क हैं, यह एकसाथ नहीं रह सकते। किंतु, भारत ने उस अवधारणा को झूठ सिद्ध किया। भारत में मुसलमान न केवल सुख से हैं, बल्कि तरक्की भी कर रहे हैं। उनकी आबादी भी बड़ी है। भारत में उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता है। वह अपने हक के लिए आवाज भी बुलंद कर लेते हैं। पाकिस्तान में स्थिति ठीक उलट है। इस्लाम के नाम पर बने 'पाकिस्तान' में गैर-मुस्लिमों के लिए कोई सम्मान एवं स्थान नहीं है। विभाजन के बाद से वहाँ हिंदुओं की जनसंख्या बढऩे की जगह लगातार खतरनाक ढंग से कम होती गई है। अपने अधिकारों की बात करना तो दूर की बात है, हिंदू वहाँ अपने जीवन के लिए ही संघर्ष कर रहा है। हिंदुओं के लिए तो पाकिस्तान एक तरह से नर्क हो गया है। उनके सामने तीन ही विकल्प हैं- एक, पाकिस्तान में रहना है तो अपना धर्म छोड़ कर इस्लाम कबूल करना होगा। दो, मुस्लिम नहीं बने तब बलात् धर्मांतरण के लिए तैयार रहो या मर जाओ। दोयम दर्जे का जीवनयापन करो। तीन, अपने धर्म एवं स्वाभिमान को बचाने के लिए पाकिस्तान छोड़ दो।
शनिवार, 7 अप्रैल 2018
चीन में 'अभिव्यक्ति' को रत्तीभर जगह नहीं
कम्युनिस्ट विचारधारा के विचारक एवं समर्थक उन सब राज्यों/देशों में अभिव्यक्ति की आजादी के झंडाबरदार बनते हैं, जहाँ उनकी सत्ता नहीं है। किंतु, जहाँ कम्युनिस्टों की सत्ता है, वहाँ वह अभिव्यक्ति की आजादी को पूरी तरह कुचल देते हैं। विशेषकर, कम्युनिस्ट विचारधारा और सरकार के विरुद्ध वह एक भी आवाज सहन नहीं कर सकते। कम्युनिस्ट विचार भीतर से तानाशाही है। जिस प्रकार तानाशाह अपनी, अपने निर्णयों और अपनी सत्ता के विरुद्ध आलोचना के स्वरों को दण्डित करते हैं, उसी तरह कम्युनिस्ट शासन व्यवस्था में आलोचकों के लिए कठोर दण्ड की व्यवस्था रहती है। ऐसा करके कम्युनिस्ट लोगों के बीच में भय का वातावरण बनाने का कार्य करते हैं, ताकि उनके विरुद्ध माहौल न बन सके। हालाँकि, यह संभव नहीं है। एक न एक दिन लोगों का आक्रोश फूटता है। अवसर आने पर जनशक्ति अपना काम कर देती है। क्योंकि, अपने विचार और मंतव्य को अभिव्यक्त करने की विशेष दक्षता ईश्वर ने मनुष्य को दी है। ईश्वर प्रदत्त व्यवस्था को आखिर अनैतिक ढंग से कब तक दबाया जा सकता है। भारत में इसका उदाहरण देखना हो तो त्रिपुरा सबसे ताजा मामला है।
रविवार, 1 अप्रैल 2018
जल रहा बंगाल, बंसी बजा रहीं ममता
पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति के कारण सांप्रदायिक हालात खतरे के निशान तक पहुँच गए हैं। पिछले दिनों में भले ही ममता बनर्जी पूजा-पाठ में शामिल होती हुई और मंदिर की परिक्रम लगाती हुई दिखाई दी हों, परंतु अब भी उनके लिए हिंदू प्राथमिकता में नहीं हैं। चार वर्ष में राजनीतिक परिदृश्य बदला है। अब हिंदू भी राजनीतिक एकजुटता दिखा रहे हैं। इस एकजुटता से डर कर ममता बनर्जी ने कुछ दिन से मस्जिद-दरगाह की गली के साथ मंदिर का मार्ग भी पकड़ लिया है। हालाँकि, पश्चिम बंगाल के हालात और तृणमूल कांग्रेस सरकार की नीति को देखकर स्पष्ट समझा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दिखावे के लिए भगवा चूनर ओढ़ी है। यदि वास्तव में उन्हें हिंदू समाज की चिंता होती तो पश्चिम बंगाल में हिंदू बिना किसी बाधा के अपने धार्मिक कार्यक्रम सम्पन्न कर पा रहे होते। बंगाल की सरकार की प्राथमिकता में हिंदू समाज होता, तो रामनवमी के जुलूस पर पत्थर और बम नहीं फेंके जाते।
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