“देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत का गरीब सपने देख सकता है और उसे पूरा भी कर सकता है"
देश की पहली अनुसूचित जनजाति महिला राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मु ने शपथ ली तो संसद भवन का केंद्रीय कक्ष तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इस अवसर पर उनकी सरलता-सहजता के दर्शन समूचे देश ने किये। बहुत ही सहजता के साथ उन्होंने अपना वक्तव्य हिन्दी में दिया। राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मु का यह पहला उद्बोधन लम्बे समय तक याद रखा जायेगा। प्रेरणा से भरे हुए इस उद्बोधन को बार-बार पढ़ा और सुना जाना चाहिए। उनका यह उद्बोधन भारत के प्रत्येक सामान्य नागरिक के मन में सपनों के दीप जलाता है। राष्ट्रपति ने अपने पहले उद्बोधन में महत्वपूर्ण सन्देश दिया है- “देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर मेरा निर्वाचन इस बात का सबूत है कि भारत का गरीब सपने देख सकता है और उसे पूरा भी कर सकता है। मैंने अपनी जीवन यात्रा ओडिशा के एक छोटे से आदिवासी गांव से शुरू की थी। मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं, वहां मेरे लिए प्रारंभिक शिक्षा हासिल करना भी सपने जैसा था लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली अपने गांव की पहली व्यक्ति थी”।