साँची स्थित मुख्य स्तूप (स्तूप क्रमांक-1) फोटो : लोकेन्द्र सिंह/Lokendra /Singh |
जी वन में चलने वाले रोज-रोज के युद्धों से आपका मन अशांत है, आपकी आत्मा व्यथित है, आपका शरीर थका हुआ है तो बौद्ध तीर्थ सांची चले आइए आपके मन को असीम शांति मिलेगी। आत्मा अलौकिक आनंद की अनुभूति करेगी। शरीर सात्विक ऊर्जा से भर उठेगा। सांची के बौद्ध स्तूप प्रेम, शांति, विश्वास और बंधुत्व के प्रतीक हैं। मौर्य सम्राट अशोक को बौद्ध धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर एकान्त स्थल की तलाश थी। ताकि एकांत वातावरण में बौद्ध भिक्षु अध्ययन कर सकें। सांची में उनकी यह तलाश पूरी हुई। जिस पहाड़ी पर सांची के बौद्ध स्मारक मौजूद हैं उसे पुरातनकाल में बेदिसगिरि, चेतियागिरि और काकणाय सहित अन्य नामों से जाना जाता था। यह ध्यान, शोध और अध्ययन के लिए अनुकूल स्थल है। कहते हैं महान सम्राट अशोक की महारानी ने उन्हें सांची में बौद्ध स्मारक बनाने का सुझाव दिया था। महारानी सांची के निकट ही स्थित समृद्धशाली नगरी विदिशा के एक व्यापारी की पुत्री थीं। सम्राट अशोक के काल में ही बौद्ध धर्म के अध्ययन और प्रचार-प्रसार की दृष्टि से सांची कितना महत्वपूर्ण स्थल हो गया था, इसे यूं समझ सकते हैं कि सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा ने भी कुछ समय यहीं रहकर अध्ययन किया। दोनों भाई-बहन बौद्ध धर्म की शिक्षाओं के प्रचार-प्रसार के लिए सांची से ही बोधि वृक्ष की शाखा लेकर श्रीलंका गए थे। सांची के स्तूप सिर्फ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए ही श्रद्धा के केन्द्र नहीं हैं बल्कि दुनियाभर के लोगों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं। ये स्तूप आज भी भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को देश-दुनिया में पहुंचा रहे हैं। दुनिया को शांति, सह अस्तित्व और विश्व बंधुत्व की भावना के साथ रहने का संदेश दे रहे हैं।