शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

मध्यप्रदेश के पर्यटन मानचित्र पर बिखरे हैं प्रकृति, वन्य जीवन, धरोहर और अध्यात्म के चटख रंग

भारत का ह्रदय ‘मध्यप्रदेश’ अपनी नैसर्गिक सुन्दरता, आध्यात्मिक ऊर्जा और समृद्ध विरासत के चलते सदियों से यात्रियों को आकर्षित करता रहा है। आत्मा को सुख देनेवाली प्रकृति, गौरव की अनुभूति करानेवाली धरोहर, रोमांच बढ़ानेवाला वन्य जीवन और विश्वास जगानेवाला अध्यात्म, इन सबका मेल मध्यप्रदेश को भारत के अन्य राज्यों से अलग पहचान देता है। इस प्रदेश में प्रत्येक श्रेणी के पर्यटकों के लिए कई चुम्बकीय स्थल हैं, जो उन्हें बरबस ही अपनी ओर खींच लेते हैं। यह प्रदेश उस बड़े ह्रदय के मेजबान की तरह है, जो किसी भी अतिथि को निराश नहीं करता है।

वैभव की इस भूमि पर पराक्रम की गाथाएं सुनाते और आसमान का मुख चूमते दुर्ग हैं। भारत का जिब्राल्टर ‘ग्वालियर का किला’, महेश्वर में लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर का राजमहल, मांडू का जहाज महल, दतिया में सतखंडा महल, रायसेन का दुर्ग, दुर्गावती का मदन महल, जलमग्न रहनेवाला रानी कमलापति का महल और गिन्नौरगढ़ सहित अनेक किले हैं, जो मध्यप्रदेश के स्थापत्य की विविधता का बखान करते हैं। देवों के चरण भी इस धरा पर पड़े हैं। उज्जैन, जहाँ योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण पढ़े। चित्रकूट, जहाँ प्रभु श्रीराम माता सीता और भ्राता लखन सहित वनवास में रहे। ओंकारेश्वर, जहाँ आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने आचार्य गोविन्द भगवत्पाद से दीक्षा ली। मध्यप्रदेश में दो ज्योतिर्लिंग- महाकाल और ओंकारेश्वर हैं। इसके साथ ही भगवान शिव ने कैलाश और काशी के बाद अमरकंटक को परिवार सहित रहने के लिए चुना है। एक ओर जहाँ द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण प्रतिवर्ष मुरैना में आकर ढ़ाई दिन रहते हैं तो वहीं ओरछा में राजा राम का शासन है। महारानी कुंवर गणेश के पीछे-पीछे श्रीराम अयोध्या से ओरछा तक चले आये थे। ओरछा राजाराम के मंदिर के लिए ही नहीं, अपितु अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है।

यहाँ करें- अमरकंटक दर्शन


मध्यप्रदेश अपने वनों के लिए भी प्रसिद्ध है। सतपुड़ा के घने जंगल का तो अद्भुत वर्णन कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता में आता ही है। चम्बल के भरकों से लेकर कटनी, उमरिया और जबलपुर से लगा शाहडार का जंगल भी रोमांचक यात्राओं का ठिकाना है। मेकल पर्वत पर सदानीरा माँ नर्मदा का उद्गम स्थल ही नहीं, अपितु वहां का सघन वन भी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। मध्यप्रदेश भारत का इकलौता राज्य है जहाँ सर्वाधिक 12 राष्ट्रीय उद्यान हैं। कान्हा, बांधवगढ़, पेंच, शिवपुरी, पन्ना और कई अन्य राष्ट्रीय उद्यान लोगों को वन्य जीवन को देखने का दुर्लभ, रोमांचपूर्ण अवसर प्रदान करते हैं। मध्यप्रदेश सफ़ेद बाघ ‘मोहन’ का ही घर नहीं है, अपितु यह रहस्य और कौतुहल बढ़ानेवाले बालक ‘मोगली’ का भी जन्मस्थान है। सर विलियम हेनरी स्लीमन ने 'एन एकाउंट ऑफ वाल्वस नरचरिंग चिल्ड्रन इन देयर डेन्स' शीर्षक से लिखे अपने एक दस्तावेज में उल्लेख किया है कि मध्यप्रदेश के सिवनी जिले के जंगल (पेंच टाइगर रिजर्व) में मोगली का घर था। वाइल्डलाइफ पर्यटन मध्यप्रदेश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विशेष पहचान दिलाता है। वन्य जीवों के संरक्षण के कारण मध्यप्रदेश के पास ‘टाइगर स्टेट’ के साथ ही 'द लेपर्ड स्टेट' और 'घड़ियाल स्टेट' का दर्जा भी है। बाघ देखने के लिए न केवल देशभर से बल्कि दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से भी लोग मध्यप्रदेश में आते हैं। भिंड और मुरैना के समीप स्थित चम्बल सफारी तो घडियाल संरक्षण का बड़ा केंद्र बन गई है। कभी डाकुओं के लिए कुख्यात रहे चम्बल के बीहड़ अब डोल्फिन के लिए प्रसिद्ध हैं। भारत में गंगा के बाद सबसे अधिक डोल्फिन चम्बल सफारी में पाए जाते हैं।

अपना वीडियो पार्क पर देखें पर्यटन स्थलों पर रोचक एवं जानकारीपरक यात्रा वृत्तांत 

जनजातीय संस्कृति से साक्षात्कार करने का अवसर भी मध्यप्रदेश देता है। मंडला, उमरिया, छिंदवाडा, बालाघाट, झाबुआ और अनूपपुर में कई स्थान हैं, जो पर्यटन के तौर पर विकसित किये गए हैं। कुछ समय के लिए दुनिया की भागम-भाग से दूर प्रकृति की गोद में सुख की अनुभूति करने के लिए तामिया और पातालकोट जैसे स्थान भी हैं, जो आम पर्यटकों से छिपे हुए हैं। वहीं, मढ़ई, तवा, परसिली, हनुमंतिया जैसे अनेक स्थल भी हैं, जिन्हें पर्यटन गतिविधियों का केंद्र बनाया जा रहा है। पर्यटकों द्वारा खोजे जा रहे नये पर्यटन स्थलों को भी व्यवस्थित करने में मध्यप्रदेश की सरकार अग्रणी है। इंदौर के समीप महू से पातालपानी-कालाकुंड तक चलनेवाली हेरिटेज ट्रेन भी सीटी बजाकर उन पर्यटकों को बुलाती है, जो प्रकृति के नजारों में खोना चाहते हैं।

सब प्रकार के पर्यटन की दृष्टि से समृद्ध मध्यप्रदेश के ऐसे अनेक स्थान हैं, जो अभी भी पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वर्तमान में यूनेस्को की ‘विश्व विरासत’ की सूची में मध्यप्रदेश के चार स्थल है- बुद्ध का सन्देश देते साँची के स्तूप, प्रागैतिहासिक सभ्यता के चिन्ह भीमबेटिका, सौंदर्य के साक्षी खजुराहो के साथ त्यागमय संस्कृति का प्रतीक ओरछा। ये चारों ही स्थान विदेशी पर्यटकों को लुभाते हैं।

मध्यप्रदेश का कोई कोना ऐसा नहीं है, जो पर्यटन की दृष्टि से मरुस्थल हो। ग्वालियर के आसपास ककनमठ, मितावली, पड़ावली, दतिया, सोनागिर, ओरछा, चंदेरी और शिवपुरी का एक ट्रेवल रूट बनता है। भोपाल के आसपास साँची, विदिशा, ग्यारसपुर, उदयगिरी की गुफाएं, भोजपुर, भीमबेटका, देलावाडी और रायसेन एक पर्यटन स्थल समूह बनता है। इंदौर को केंद्र मानकर उज्जैन, हनुमंतिया, ओंकारेश्वर, ब्रह्मपुर (बुरहानपुर), महेश्वर और मांडू का एक पर्यटन स्थल का समूह बनता है। वहीं, जबलपुर से भेड़ाघाट, बरगी, बांधवगढ़, अमरकंटक, कान्हा और पेंच जा सकते हैं। खजुराहो के साथ ओरछा, अजयगढ़, चित्रकूट, मुकुंदपुर वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी, संजय राष्ट्रीय उद्यान, मैहर और हीरों के साथ अपने जंगलों के लिए प्रसिद्ध पन्ना के पर्यटन स्थल घुमे जा सकते हैं। उधर, सतपुड़ा की रानी ‘पचमढ़ी’ के साथ मढ़ई, तवा, तामिया और पातालकोट का एक पर्यटन समूह बनता है। मध्यप्रदेश के पर्यटन, उसकी समृद्ध विरासत और गौरव का दर्शन करना है तो एक बार मध्यप्रदेश गान पढ़/सुन लेना चाहिए। वरिष्ठ साहित्यकार और पत्रकार महेश श्रीवास्तव ने इस गीत में मध्यप्रदेश की एक खूबसूरत और गौरवपूर्ण तस्वीर उतार दी है।

दर्शन करें- प्रसिद्ध बटेश्वर धाम / Bateshwar Mandir / बटेश्वर मंदिर


मध्यप्रदेश घूमने का सबसे अच्छा समय –

वैसे तो मध्यप्रदेश राज्य का वर्ष के किसी भी समय दौरा किया जा सकता है। मध्य भारत में स्थित होने के कारण, मध्य प्रदेश की जलवायु आमतौर पर गर्म और शुष्क होती है। परन्तु अच्छा होगा कि अक्टूबर से मार्च के बीच मध्यप्रदेश घूमने की योजना बनायी जाए। इस दौरान यहाँ का तापमान अनुकूल होता है और बारिश के बाद कई पर्यटन स्थल अपने पूर्ण सौंदर्य के साथ उपस्थित होते हैं। प्रदेश में सर्दियों का मौसम वन्यजीव अभयारण्यों, ऐतिहासिक स्थलों, नदी घाटियों और प्राचीन मंदिरों में जाने के लिए एकदम सही है।

शनिवार, 7 सितंबर 2024

कांग्रेसी मंत्री ने स्वीकारा अवैध घुसपैठ और लव जिहाद का सच

हिमाचल प्रदेश के संजौली में मस्जिद के अवैध निर्माण, घुसपैठ और लव जिहाद की जानकारी विधानसभा के पटल पर रखते हुए कांग्रेस के मंत्री अनिरुद्ध सिंह

भारतीय राजनीति में वोटबैंक की राजनीति के चलते कांग्रेस ने सांप्रदायिक चुनौतियों को हमेशा नजरअंदाज किया है। अपितु जिसने भी अवैध घुसपैठ और लव जिहाद जैसे मुद्दों को उठाया है, कांग्रेस ने उन्हें ही सांप्रदायिक ठहराने पर जोर दिया है। जबकि होना यह चाहिए था कि कांग्रेस जैसा राजनीतिक दल समाज की इन चुनौतियों को स्वीकार करके उनके समाधान पर चर्चा करता। सच को अस्वीकार करके सेकुलरिज्म को बढ़ावा नहीं दिया जा सकता। अवैध घुसपैठ, अतिक्रमण, लव जिहाद, लैंड जिहाद जैसे मुद्दों की अनदेखी करके या उनका बचाव करके सेकुलरिज्म नहीं अपितु सांप्रदायिकता का ही पोषण होता है। जिसकी अनुभूति अब हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता एवं मंत्रीगण कर रहे हैं।

गुरुवार, 5 सितंबर 2024

फिल्मकारों की चालाकियां का उदाहरण है ‘आईसी814- द कंधार हाईजैक’

ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स पर हाल ही में जारी हुई वेबसीरीज ‘आईसी814- द कंधार हाईजैक’ को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है। दरअसल, पूरी वेबसीरीज में आतंकियों के वास्तविक नामों की जगह उनके कोडनेम का इस्तेमाल किया गया है। भारतीय वायुसेना की उड़ान संख्या-आईसी814 का हाईजैक करनेवाले आतंकियों ने अपने वास्तविक नाम एवं पहचान छिपाने के लिए बर्गर, चीफ, शंकर और भोला जैसे कोडनेम रखे थे। वेबसीरीज के निर्माता ने इस तथ्य का गलत ढंग से उपयोग करते हुए आतंकियों की पहचान इन्हीं नामों से स्थापित करने का प्रयास किया। हालांकि फिल्म के अंत में आतंकियों के वास्तविक नामों का उल्लेख किया गया है। हम सब जानते हैं कि फिल्म समाप्त होने के बाद आनेवाली जानकारियों को आमतौर पर दर्शक पढ़ते नहीं है। ऐसे में वेबसीरीज के दर्शकों के मन में यह बात बैठ जाती कि आतंकियों में हिन्दू ‘भोला’ और ‘शंकर’ भी शामिल थे। उल्लेखनीय है कि भारत में इस्लामिक आतंकवाद के बचाव में और हिन्दुओं को बदनाम करने की नीयत से ‘हिन्दू आतंकवाद’ की फर्जी अवधारणा को स्थापित करने के लिए अनेक प्रकार की साजिशें हो चुकी हैं। हिन्दुओं की छवि खराब करने की दिशा में ही फिल्म निर्माताओं की इस कलाकारी को देखना चाहिए।

बुधवार, 4 सितंबर 2024

उमेश उपाध्याय : पत्रकारिता के उजले सितारे

वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय (26 अगस्त, 1960- 1 सितंबर, 2024)

श्रद्धेय उमेश उपाध्याय जी भारतीय पत्रकारिता के उजले सितारों में से एक थे। सभी माध्यमों की पत्रकारिता में उनका एक सम्मानित स्थान था। यही कारण है कि उनके असमय निधन पर विभिन्न क्षेत्रों के पत्रकार बंधु दुःखी मन से उनके साथ बिताए अविस्मरणीय एवं प्रेरणादायी प्रसंगों का स्मरण कर रहे हैं।

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के साथ उनका गहरा और आत्मीय जुड़ाव था। विगत 14-15 वर्षों से विश्वविद्यालय को उनके अनुभव का लाभ मिल रहा था। वे विश्वविद्यालय की महापरिषद के सम्मानित सदस्य थे। विद्या परिषद एवं अन्य समितियों में भी उनके विजन का लाभ विश्वविद्यालय को मिला है। अनेक अवसरों पर विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों का प्रबोधन उन्होंने किया। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से दिए जानेवाला प्रतिष्ठित ‘गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार’ भी उन्हें प्रदान किया गया था।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

‘तिरंगा और आरएसएस’ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण

लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' को ऑनलाइन खरीदने के लिए इमेज पर क्लिक करें।

- अंकित शर्मा (लेखक आयुध मीडिया के संस्थापक सदस्य हैं।)

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा, भगवा ध्वज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को लेकर अनेक प्रकार के भ्रम फैलाए जाते हैं। यहाँ तक कहा जाता है कि आरएसएस भगवा ध्वज को मानता है इसलिए संघ के स्वयंसेवक तिरंगा का सम्मान नहीं करते हैं। प्रखर राष्ट्रभक्त संगठन के बारे में इस प्रकार की भ्रामक बातों को यूँ तो समाज स्वीकार नहीं करता है परंतु फिर भी एक वर्ग तो भ्रम में पड़ ही जाता है। समाज को भ्रमित करनेवाले झूठे नैरेटिव का तथ्यात्मक उत्तर लेखक लोकेन्द्र सिंह ने अपनी बहुचर्चित पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ के माध्यम से दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक में राष्ट्रध्वज तिरंगा, सांस्कृतिक ध्वज भगवा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अंतर्संबंधों का विश्लेषण किया है। राष्ट्रध्वज और आरएसएस के संदर्भ में कई नए तथ्य यह पुस्तक हमारे सामने लेकर आती है। यह पुस्तक हमें बताती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने कब और किन परिस्थितियों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के सम्मान में अपने प्राणों तक की आहुति दी है। इसके साथ ही यह पुस्तक राष्ट्रध्वज के निर्माण की कहानी से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य भी हमारे सामने लेकर आती है।

हम सब जानते हैं कि ध्वज, किसी भी राष्ट्र के चिंतन एवं ध्येय का प्रतीक होता है। राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्रीय  ध्वज ‘तिरंगा’ भारत की पहचान है। 1905 से ही अनेक झंडे राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किये गए। जिसके बाद संविधान सभा द्वारा 22 जुलाई, 1947 को तिरंगे को राष्ट्रध्वज के रूप में स्वीकार किया। राष्ट्रध्वज के रूप में तिरंगे का सम्मान होने के साथ ही भगवा ध्वज को भारत का सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भगवा ध्वज को अपना गुरु मानता है। भारत के ‘स्व’ से कटे हुए कुछ लोग और समूह भगवा ध्वज को नकारते हैं। साथ ही यह भ्रम भी फैलाते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तिरंगे को सम्मान नहीं देता। लेकिन ऐसा कहने वाले शायद ये नहीं जानते कि एक ध्वज का मान रखना दूसरे का निरादर करना कतई नहीं है। उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत की यह बात समझनी चाहिए, जिसमें वे कहते हैं कि स्वतंत्रता के जितने सारे प्रतीक हैं, उन सबके प्रति संघ का  स्वयंसेवक अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है।

पुस्तक का विमोचन मेजर गौरव आर्या ने किया। देखिए यह वीडियो -

लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ हमें स्मरण कराती है कि तिरंगे के सम्मान में संघ ने तब भी आंदोलन चलाए जब सत्ताधीश जम्मू-कश्मीर में राष्ट्र की संप्रभुता को ताक पर रखकर दो प्रधान, दो विधान, दो निशान (ध्वज) स्वीकार कर चुके थे। उन परिस्थितियों में भी संघ ने विरोध करते हुए देश में एक प्रधान, एक विधान, एक निशान होने की मांग की। उन्होंने स्पष्ट किया कि एक राष्ट्र में एक ही ध्वज चलेगा, जो कि तिरंगा है। वर्ष 1942 में महात्मा गांधी के आव्हान पर हुए असहयोग आंदोलन के दौरान तिरंगा फहराते हुए स्वयंसेवकों को गोली लगने की बात हो, वर्ष 1947 में जम्मू कश्मीर में श्रीनगर की कई इमारतों पर पाकिस्तानी झंडे फहराने के विरोध में संघ के स्वयंसेवको की कार्रवाई हो, या फिर गोवा मुक्ति आन्दोलन में संघ के स्वयंसेवकों को गोली लगने के बाद भी अपने हाथ से तिरंगा न गिरने देने की घटना हो। सभी अवसरों पर संघ के कार्यकर्ताओं ने राष्ट्रध्वज के सम्मान में सर्वोच्च बलिदान देने का साहस दिखाया है। ऐसे कई महत्वपूर्ण तथ्य इस पुस्तक के माध्यम से हमारे सामने आते हैं। 

पुस्तक में यह भी उल्लेख आता है कि अपना नैरेटिव गढ़ने के लिए संघ और राष्ट्रध्वज तिरंगे को लेकर उन लोगों ने संघ के संदर्भ में अनेक भ्रांतियां फैलाईं, जिन्होंने स्वयं ही 2022 से पहले तक अपने मुख्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराया था। प्रमुख कम्युनिस्ट पार्टियों ने 2022 में पहली बार अपने पार्टी मुख्यालयों पर राष्ट्रध्वज फहराया। लेखक लोकेन्द्र सिंह ने ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर संघ और तिरंगे को लेकर फैलाये जाने वाले नैरेटिव से पर्दा उठाया है। अपनी पुस्तक में उन्होंने बड़ी ही सरलता से राष्ट्रध्वज के विकास की यात्रा में भगवा ध्वज का महत्व एवं तिरंगे के साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक के अंतर्संबंधों का विश्लेषण प्रस्तुत किया है। यह बड़ी ही रोचक पुस्तक है। 

जो भी सच जानने में रुचि रखते हैं, उन्हें ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अवश्य पढ़नी चाहिए। यह छोटी पुस्तक है। लेखक ने गागर में सागर को समेटने का प्रयास किया है, जिसमें वे सफल रहे हैं। लेखनी में सहजता और सरलता है। पुस्तक अपने पहले अध्याय से लेकर आखिरी अध्याय तक पाठकों को बांधे रखने की क्षमता रखती है। ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ का प्रकाशन राष्ट्रीय विचारों को समर्पित अर्चना प्रकाशन, भोपाल ने किया है।

स्वदेश, भोपाल में 18 अगस्त 2024 को प्रकाशित लेखक लोकेन्द्र सिंह की पुस्तक 'राष्ट्रध्वज और आरएसएस' की समीक्षा। समीक्षक हैं आयुध मीडिया के तेजतर्रार पत्रकार अंकित शर्मा।

पुस्तक : राष्ट्रध्वज और आरएसएस

लेखक : लोकेंद्र सिंह

पृष्ठ : 56

मूल्य : 70 रुपये

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल


तिरंगा और आरएसएस पर यह वीडियो शृंखला अवश्य देखिए-

भाग-1 : तो भगवा झंडा होता राष्ट्रध्वज

भाग-2 : RSS में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा

भाग-3 : तिरंगे के सम्मान में संघ ने दिया बलिदान

क्या हुआ जब आरएसएस कार्यालय में तिरंगा लेकर पहुँचे कांग्रेसी नेता

आरएसएस करता है तिरंगे का सम्मान- डॉ. मोहन भागवत

रविवार, 25 अगस्त 2024

प्रशांत जी, इतनी भी क्या जल्दी थी…

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, महाकौशल प्रांत के सह-प्रचार प्रमुख प्रशांत बाजपेयी का हृदयघात से निधन

जब से सूचना मिली है कि प्रशांत जी नहीं रहे, मन है कि विश्वास ही नहीं कर रहा है। मन थोड़ी देर सहज रहता है, फिर अचानक से ध्यान आता है कि प्रशांत जी नहीं रहे, तो बेचैनी बढ़ जाती है। फिर अगले ही क्षण इस अविश्वसनीय समाचार को ‘असत्य’ मानकर मन सहज हो जाता है। कुलमिलाकर मन मानने को तैयार नहीं है कि आज से ठीक 14 दिन बाद यानी 8 सितंबर को जिसका जन्मदिन था, वह 46 वर्ष की अल्पायु में ही हमको छोड़कर जा चुका है। जिसका हृदय धर्म, देश, समाज और मित्रों के लिए खूब धड़कता था, 24 अगस्त को अचानक से उसकी हृदय गति ही रुक गई। हृदयघात ने हम सबके ‘प्रशांत’ को छीन लिया। सोच रहा हूँ कि नियति को भी क्या सूझी होगी कि एक हँसता-खिलता फूल चट से तोड़ लिया…..

शनिवार, 17 अगस्त 2024

आंतरिक सुरक्षा को लेकर सजग है आरएसएस

“कोई पूछता है कि देश के लोग सुरक्षित क्यों हैं? तो मैं कहना चाहूँगा कि यहाँ संविधान है, लोकतंत्र है, सेना है और किस्मत से आरएसएस है”। - न्यायमूर्ति केटी थॉमस
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर पूर्व जज केटी थॉमस का बयान

सर्वोच्च न्यायालय से सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति केटी थॉमस के इस कथन के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों की देशभक्ति एवं बलिदान की कथाएं हैं। जब हम इतिहास के पृष्ठ पलटते हैं तो संघर्ष के समय में आरएसएस के कार्यकर्ता साहस के साथ मोर्चा लिए खड़े दिखाई देते हैं। स्वतंत्रता के बाद जब पहली बार पाकिस्तान ने आक्रमण किया तब, 1962 में चीन ने पीठ में छुरा घोंपा तब और उसके बाद भी जब देश पर शत्रु ने हमला किया तब, प्रत्येक अवसर पर संघ के स्वयंसेवकों ने यथासंभव देश की सुरक्षा में अपना योगदान दिया। गोवा मुक्ति आंदोलन में तो संघ ने अग्रणी भूमिका का निर्वहन किया। इस आंदोलन में उज्जैन, मध्यप्रदेश के ही एक स्वयंसेवक राजाभाऊ महाकाल ने तिरंगे की शान में सीने पर गोली खाई थी। युद्ध ही क्यों, संघ के स्वयंसेवक शेष समय में भी आंतरिक सुरक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। देश के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत आरएसएस के समविचारी संगठन अपने निहित कार्यों को संपादित करने के साथ-साथ समाज का इस प्रकार प्रबोधन करते हैं कि वहाँ अराजकतावादी ताकतें पनप नहीं पाती हैं। 

देश की सुरक्षा के लिए संघ के स्वयंसेवक सदैव तत्पर और सजग रहते हैं। बाहरी दुश्मनों से निपटने के लिए देश की सीमा पर अदम्य साहसी भारतीय सेना खड़ी है। किंतु, विदेशी ताकतें भारत को भीतर से भी तोडऩे के लिए षड्यंत्र रचती रहती हैं। ऐसे में सेना जैसा अनुशासन रखने वाले सजग नागरिकों की आवश्यकता रहती है, जो आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में देश के सुरक्षा बलों के अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध हो सकें। संघ के स्वयंसेवक शाखा में ऐसा ही अनुशासन और सजगता सीखते हैं। स्वयंसेवकों के इसी अनुशासन को आधार बना कर सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा है कि संघ के स्वयंसेवक तीन दिन में सेना के लिए तैयार हो सकते हैं। 

Statement of former judge KT Thomas on Rashtriya Swayamsevak Sangh

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सरकार और समाज दोनों को ही समय-समय पर बाहरी और भीतरी हमले के संबंध में चेताता रहा है। देश की आंतरिक सुरक्षा संघ की प्राथमिकता में शामिल है। इसलिए संघ की शीर्ष बैठकों में आंतरिक सुरक्षा के विषय पर निरंतर चर्चा होती रहती है। मुम्बई बम धमाकों (वर्ष 1993) के बाद तो संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने बाकायदा 'देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे' शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया था। अपने इस प्रस्ताव में संघ ने देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति चिंता जताई, उसे और अधिक मजबूत करने की माँग सहित पाँच प्रमुख आग्रह सरकार के समक्ष प्रस्तुत किए। इसके बाद 1994 में 'आंतरिक सुरक्षा' और 1995 में 'आंतरिक परिस्थिति' शीर्षक से प्रस्ताव पारित किया था। वर्ष 1995 के अपने प्रस्ताव में संघ ने स्वयंसेवकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से आग्रह किया कि राष्ट्रीय एकता और अपने सांस्कृतिक मूल्यों का बोध जगाकर राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत एकात्म समाज को खड़ा करने के कार्य को और भी अधिक गतिमान और बलवान बनाने के लिए पूरी शक्ति से जुट जाएं। संघ ने राष्ट्रीय सुरक्षा-1996, राष्ट्रीय सुरक्षा को चुनौती-2001, आंतरिक सुरक्षा के समक्ष चुनौतियां-2004, आतंकवाद और भारत की आंतरिक सुरक्षा-2006 प्रस्ताव पारित कर भी आंतरिक सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता एवं चिंता को प्रकट किया। इसके साथ ही अन्य प्रस्तावों में भी कहीं न कहीं संघ के नीति निर्माता समूह ने आंतरिक सुरक्षा को मुद्दे को सम्मिलित किया है। 

यदि हम मध्यप्रदेश के संदर्भ में देखें तो संघ के समविचारी संगठनों के प्रयास के कारण ही यहाँ अराजक एवं विभाजनकारी ताकतें सक्रिय नहीं हो पाईं। प्रदेश के कुछ हिस्सों नक्सलियों के प्रभाव में आए, किंतु नक्सली उन हिस्सों को पूरी तरह से लाल गलियारे में परिवर्तित नहीं कर पाए। क्योंकि, उन क्षेत्रों के नागरिकों के बीच संघ का काम पहले से उपस्थित था और जहाँ नहीं था, वहाँ संघ ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। संघकार्य से उन क्षेत्रों के नागरिकों में अपने राष्ट्रभक्ति की भावना प्रकट हुई और वह नक्सलियों के जाल में नहीं फंस पाए। मध्यप्रदेश में संघ की उपस्थिति को मजबूत माना जाता है। यहाँ शहरी क्षेत्रों में ही नहीं, अपितु सुदूर वनवासी क्षेत्रों में भी संघ प्रत्यक्ष एवं समविचारी संगठनों के माध्यम से समाज हित में कार्य कर रहा है। शिक्षा एवं स्वावलंबन के लिए वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन वनवासी समाज के बीच में काम कर रहे हैं। विश्व हिंदू परिषद भी सामाजिक कार्यों के माध्यम से इन क्षेत्रों में सक्रिय है। यह जान लेना जरूरी होगा कि वनवासी समाज के बीच समाजकंटक ताकतें पूरी ताकत के साथ सक्रिय हैं। यह ताकतें समाज को बांटने के लिए हर प्रकार के षड्यंत्र रच रही हैं। वनवासियों को हिंदू समाज से तोडऩे और उन्हें अपने ही मूल के प्रति विद्रोही बनाने का दुष्चक्र भी देश विरोधी ताकतें रचती हैं। किंतु, वनवासी कल्याण आश्रम और सेवा भारती जैसे संगठन अपने सेवाकार्यों से वनवासी समाज को अपना बना लेते हैं और उनके मन में कोई भ्रम ही उत्पन्न नहीं होने देते। जो वनवासी बंधु समाजकंटकों के संपर्क में आ भी जाते हैं, उनका भी मन बदलने में देर नहीं लगती। संघ अपने निस्वार्थ सेवाकार्यों से उन्हें जागरूक कर रहा है। वनवासी कल्याण आश्रम और सेवाभारती सुदूर क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। उनके प्रयास से ऐसे क्षेत्रों में विद्यालय प्रारंभ हुए हैं, जहाँ सरकार भी शिक्षा का उजियारा लेकर नहीं पहुंच सकी। पूर्ण एवं एकल विद्यालयों के माध्यम से संघ के स्वयंसेवक बच्चों को शिक्षित ही नहीं कर रहे, अपितु उनको संस्कार भी देने का कार्य करते हैं। उनको राष्ट्रीय स्वाभिमान से भी जोड़ते हैं।

मध्यप्रदेश एक समय में आतंकवादी संगठन स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का जाल भी फैल गया था। परंतु, सिमी का काम मध्यप्रदेश में चल नहीं सका। मध्यप्रदेश के जाग्रत समाज ने सिमी का भण्डा फोड़ दिया और राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित सरकार ने आतंकी संगठन को प्रतिबंधित करने में कतई देर नहीं लगाई। संघ के स्वयंसेवक लगातार सरकार को चेता रहे थे कि प्रदेश में स्टूडेंट मूवमेंट के नाम पर आतंकी संगठन खड़ा हो रहा है। बाद में, जब आतंकी बम धमाकों में सिमी की संल्पितता उजागर हुई, तो संघ की चेतावनी सबको स्मरण हुई। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सिर्फ आंतरिक सुरक्षा पर चिंता ही व्यक्त नहीं करता है, अपितु उसके स्वयंसेवक सदैव देश की सुरक्षा के लिए चौकन्ने रहते हैं। जिन क्षेत्रों में संघ का कार्य प्रभावी ढंग से चलता है, वहाँ समाज जाग्रत रहता है। उन क्षेत्रों में ऐसी स्थिति कतई नहीं रहती कि लोगों को अपने पड़ोस की भी जानकारी न हो। बल्कि, उन क्षेत्रों में लोगों का आपस में आत्मीय संपर्क एवं संवाद रहता है। इस कारण वहाँ समाज के बीच कोई भी संदिग्ध व्यक्ति या गतिविधि छिप नहीं सकती। संघ का मानना है कि देश की अखण्डता के लिए आवश्यक है कि देश भीतर से भी मजबूत हो। देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित हो और यह सब संभव है, समाज के जाग्रत एवं संगठित रहने से। इसलिए संघ का जो समाज संगठन का कार्य है, वह भी आंतरिक सुरक्षा में अप्रत्यक्ष रूप से सहायक सिद्ध होता है।

15 अगस्त 2024 को स्वदेश भोपाल में प्रकाशित- देश की रक्षा के लिए तत्पर संघ

रविवार, 4 अगस्त 2024

जीवित, जाग्रत क्रांति पुरुष हैं हिन्दवी स्वराज्य के दुर्ग

- पुरु शर्मा 

यात्राएं हमेशा रुचिकर होती हैं। उनका अपना लोक, चरित्र और व्यवहार होता है। यात्रा अपरिचय को परिचय में बदलती है, अज्ञात को ज्ञात में। यायावरी का यही गुण लेखक तथा उसके लेखन को समृद्ध करता है, उसे पैना बनाता है। उद्देश्यपूर्ण यात्राएं सदैव सार्थक सर्जन का आह्वान करती हैं। चलने से चेतना और बहने से पानी निर्मल होता है। कल्पना के पंखों पर सवार मन जाने कहां-कहां उड़ता फिरता है। अगर कोलंबस, वास्को डिगामा, मेगास्थनीज आदि ने यात्राएं न की होतीं तो अमेरिका को कौन जानता, भारत का इतिहास क्या होता? अमृतलाल वेगड़ जी ने नर्मदा यात्रा न की होती तो क्या यात्रा-साहित्य नर्मदा माई की अविरलता और प्रवाहशीलता से परिचित हो पाता?

यात्राओं ने हमेशा साहित्य, समाज, संस्कृति और वैचारिकी को मांजा है, पुष्ट तथा समृद्ध किया है। पैरों में पंख बांधकर उड़ते रामवृक्ष बेनीपुरी हों या यायावरी को याद करते अज्ञेय, 'अजंता की ओर' संघबद्ध कला-कलाप को निहारते जानकीवल्लभ शास्त्री और 'स्मरण को पाथेय बनने दो' की पुकार लगाते विष्णुकांत शास्त्री, सभी ने अपनी यात्राओं में जीवन के नए सूत्रों को खोजा। 

देखिए- युवा पत्रकार कृष्ण मुरारी अटल के साथ 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन' पर विशेष चर्चा


बुधवार, 31 जुलाई 2024

बरेली में हिन्दू युवक की पीट-पीटकर हत्या पर सेकुलर बिरादरी में खामोशी

साभार : पाञ्चजन्य / Panchjanya

भारत में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने में अपने आप को सेकुलर एवं प्रगतिशील कहनेवाले वर्ग की प्रमुख भूमिका है। जिस प्रकार से एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर हिन्दू समाज के प्रति अभियान चलाए जाते हैं और मुस्लिम समाज को भड़काने एवं हिन्दुओं के विरुद्ध खड़ा करने का प्रयास किए जाते हैं, उसके आधार पर कहा जा सकता है कि वास्तव में सेकुलर वर्ग ही सांप्रदायिक है। सेकुलर बिरादरी के कारण जिस प्रकार का नकारात्मक वातावरण बना है, उसके कारण से हिन्दुओं पर लगातार हमले बढ़ रहे हैं। अभी हाल में उत्तरप्रदेश के बरेली जिले के गाँव गौसगंज में मुस्लिम समुदाय ने हिन्दू समुदाय पर पथराव कर दिया, लोगों को घेरकर पीटा गया और तोड़फोड़ की गई। असामाजिक तत्वों की यह भीड़ गाँव के युवक तेजराम को घसीटकर मस्जिद में ले गए और वहाँ उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी। दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समूचा सेकुलर वर्ग तेजराम की मॉब लिंचिंग पर मुंह में दही जमाकर बैठा हुआ है। 

आखिर क्या कारण हैं कि मुस्लिम बंधुओं के साथ होनेवाली ऐसी ही घटना पर हो-हल्ला मचानेवाले हिन्दुओं की मॉब लिंचिंग पर खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं? जिस समय में मुस्लिम भीड़ मस्जिद में तेजराम की पीट-पीटकर हत्या कर रही थी, उसी वक्त यह सेकुलर वर्ग कांवड़ियों द्वारा तोड़-फोड़ की एक-दो घटनाओं को आधार बनाकर समूचे कांवड़ियों और हिन्दुओं को बदनाम करने में लगे हुए हैं। यह किस तरह का चयनित दृष्टिकोण है? इसे सेकुलर बिरादरी के लेखकों एवं पत्रकारों का दोगला आचरण क्यों नहीं माना जाना चाहिए? इसे सांप्रदायिकता का पोषण करनेवाली प्रवृत्ति क्यों नहीं मानी जानी चाहिए?

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

देशभर में समान नागरिक संहिता की आवश्यकता पर जनता की ओर से माँग उठ ही रही थी कि अब न्यायालय ने भी इस आशय की टिप्पणी की है। तीन तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई करते समय मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने समान नागरिक संहिता का पक्ष लेते हुए टिप्पणी की है कि “समय आ गया है कि अब देश समान नागरिक संहिता की आवश्यकता को समझे। समाज में आज भी आस्था और विश्वास के नाम पर कई कट्टरपंथी, अंधविश्वासी और अति-रूढ़िवादी प्रथाएं प्रचलित हैं। इससे अंधविश्वास और बुरी प्रथा पर रोक लगेगी”। समान नागरिक संहिता पर इससे बड़ी टिप्पणी नहीं हो सकती। न्यायालय की ओर से कहा जा रहा है कि देश को यह बात समझनी चाहिए कि समान नागरिक संहिता की माँग किसी संप्रदाय विशेष के विरुद्ध नहीं है अपितु यह तो सच्चे अर्थों में ‘सेकुलर स्टेट’ की पहचान है।

सोमवार, 29 जुलाई 2024

‘सरकार की सनक’ का शिकार न हों देशभक्त संगठन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और शासकीय कर्मचारियों के संबंध में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने की महत्वपूर्ण टिप्पणियां, भविष्य में संघ के विरोध में इस प्रकार का कदम न उठाए कोई सरकार


RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने हटाया प्रतिबंध

पिछले दिनों 9 जुलाई को केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों को राष्ट्रीय स्वयंसवेक संघ की गतिविधियों में शामिल होने से रोकने वाले 58 वर्ष पुराने प्रतिबंध को समाप्त कर किया। इसके बाद से देश में एक बहस प्रारंभ हो गई। कांग्रेस से लेकर कई विपक्षी दलों को यह बात चुभ रही है। इसी बीच, मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणियां की हैं, जिन्हें सबको जानना चाहिए। उच्च न्यायालय की यह टिप्पणियां इसलिए भी सबके ध्यान में आनी चाहिए ताकि भविष्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके जैसे किसी भी देशभक्त संगठन को सरकारें अपनी सनक और नापसंदगी का शिकार न बनाएं। न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि सरकार को अपनी चूक का अहसास करने में पाँच दशक से अधिक का समय लग गया। यह गलती भी सरकार के ध्यान में तब आई, जब इस संबंध में एक याचिका न्यायालय में आई और न्यायालय ने सरकार से इस प्रतिबंध पर प्रश्न पूछे। चूँकि केंद्र में राष्ट्रीयता का पोषण करनेवाली विचारधारा की सरकार है, इसलिए जैसे ही उसके ध्यान में यह मामला आया तो उसने 9 जुलाई को तत्काल प्रभाव से कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए इस प्रतिबंध को समाप्त कर दिया।

बुधवार, 24 जुलाई 2024

न्यायालयों में पहले ही अपने घुटने छिलवा चुका था लोकतंत्र विरोधी प्रतिबंध

सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को मोदी सरकार ने हटाया, सरकार ने की सरकारी कर्मचारियों के मौलिक अधिकार की रक्षा

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में कर्मचारियों के शामिल होने पर लगे प्रतिबंध को हटाकर नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा की है। अब कर्मचारी संघ की गतिविधियों में सामान्य नागरिकों की भाँति शामिल हो सकेंगे। नि:संदेह, सरकार का यह निर्णय लोकतंत्र और संविधान की भावना को मजबूत करनेवाला है। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार देता है कि वह विविध सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक संगठनों में शामिल हो सके। एक सामान्य नागरिक की भाँति यह अधिकार कर्मचारियों को भी प्राप्त है कि अपने कार्यालयीन समय के बाद सामाजिक गतिविधियों का हिस्सा हो सकते हैं। परंतु, लोकतंत्र और संविधान की मूल भावना को कमजोर करते हुए तत्कालीन सरकार ने 58 वर्ष पहले 1966 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गतिविधियों में सरकारी कर्मचारियों के भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया था। इतना ही नहीं, सरकारी कर्मचारी के आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने पर उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई का विधान भी रखा गया था। यह एक प्रकार से राष्ट्रीय विचार के प्रति झुकाव रखनेवाले लोगों को हतोत्साहित करने का प्रयास ही था।

देखिए यह वीडियो- RSS के कार्यक्रमों में शामिल हो सकते हैं सरकारी कर्मचारी, मोदी सरकार ने हटाया प्रतिबंध

इस तानाशाही एवं द्वेषपूर्ण निर्णय का उत्तर संघ ने तो कभी नहीं दिया लेकिन समाज ने अवश्य ही आईना दिखाने का कार्य किया। संघ को दबाने एवं समाप्त करने के लिए अनेक प्रयत्न किए हैं। इस आदेश के अतिरिक्त तीन बार पूर्ण प्रतिबंध भी लगाया। संघ की छवि खराब करने के लिए बड़े-बड़े नेताओं की ओर से मिथ्या प्रचार भी किया गया। अपने समर्थक बुद्धिजीवियों से पुस्तकें भी लिखवायी गईं। लेकिन संघ विरोधियों के ये सब प्रयास विफल ही रहे। निस्वार्थ भाव से देश और समाज के लिए कार्य करनेवाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को कोई रोक नहीं सका। अपनी 99 वर्ष की यात्रा में संघ ने लगातार प्रगति एवं विस्तार ही किया है। अपने विचार, आचरण एवं सेवाकार्यों से संघ ने समाज का विश्वास जीता, जिसके कारण समाज सदैव संघ के साथ खड़ा रहा।

मंगलवार, 16 जुलाई 2024

जनांदोलन बना प्रधानमंत्री मोदी का आह्वान- ‘एक पेड़ माँ के नाम’

मध्यप्रदेश के इंदौर ने स्वच्छता के बाद अब पौधरोपण में बनाया विश्व कीर्तिमान, एक दिन में लगाए 12 लाख 65 हजार पौधे

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के आवासीय परिसर 'माखनपुरम' में हमने भी 'एक पेड़ माँ के नाम' अभियान के अंतर्गत पौधरोपण किया

देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह ताकत है कि जब भी वे नागरिकों से किसी प्रकार का आह्वान करते हैं तो वह जनांदोलन में परिवर्तित हो जाता है। एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी के ‘एक पेड़ माँ के नाम’ का आह्वान करते ही देशभर में लोग उत्साहित होकर पौधरोपण कर रहे हैं। पौधरोपण के मामले में मध्यप्रदेश ने एक बार फिर सर्वाधिक पौधे रोपने का कीर्तिमान रचा है। स्वच्छता के मामले में देश में प्रथम स्थान पर रहकर मध्यप्रदेश का मान बढ़ानेवाले इंदौर ने 12 लाख 65 हजार पौधे रोपकर बड़ा संदेश अन्य शहरों को दिया है। इंदौर में जनसंख्या घनत्व अत्यधिक शहर है। इसे व्यावसायिक दृष्टि से ‘मिनी मुम्बई’ भी कहा जाता है। इसलिए जब यह प्रश्न आया कि इंदौर जैसे शहर में 51 लाख पौधे कहाँ लगाए जा सकेंगे, तब प्रदेश सरकार में मंत्री एवं इंदौर के लोकप्रिय राजनेता कैलाश विजयवर्गीय ने शहरवासियों के नाम एक सार्वजनिक पत्र लिखा और आग्रह किया कि संकल्प में शक्ति हो तो कुछ भी संभव है। इंदौरवासियों ने अपने संकल्प को सिद्ध करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह की उपस्थिति में 24 घंटे में 12 लाख 65 हजार पौधे रोपकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में कीर्तिमान दर्ज करा दिया। इससे पहले एक दिन में सबसे अधिक पेड़ लगाने की उपलब्धि असम के पास थी। असम में एक दिन में 9 लाख 21 हजार पौधे एक दिन में रोपे थे।

गुरुवार, 11 जुलाई 2024

कन्वर्जन पर उच्च न्यायालय की चिंता

“उत्तरप्रदेश में भोले-भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा। अगर ऐसे ही धर्मांतरण (कन्वर्जन) जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी”। - इलाहाबाद उच्च न्यायालय

भारत में अभारतीय ताकतें हिन्दू समाज को लक्षित करके कन्वर्जन का बड़ा रैकेट चला रही हैं। ईसाई मिशनरीज हों या फिर कट्टरपंथी इस्लामिक संस्थाएं, अपने-अपने मत का प्रसार करने के लिए कन्वर्जन की प्रक्रिया को अपनाती हैं। इनके निशाने पर हिन्दू समाज के भोले-भाले समुदाय रहते हैं। ये संस्थाएं हिन्दुओं को विभिन्न प्रकार के बरगलाकर या धोखे में रखकर कन्वर्जन को अंजाम देते हैं। लंबे समय से राष्ट्रीय विचार के संगठन कन्वर्जन के गंभीर खतरे की ओर समाज और सरकार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास करते आए हैं। अभी तक उनकी चिंता का उपहास उड़ाया जाता था। यह भी सुनियोजित ढंग से किया जाता है ताकि कन्वर्जन के मुद्दे पर समाज में गंभीर विमर्श खड़ा न हो जाए। लेकिन अब तो कन्वर्जन के गंभीर खतरे को लेकर न्यायालय ने भी अपनी चिंता जाहिर कर दी है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कन्वर्जन पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है- “उत्तरप्रदेश में भोले-भाले गरीबों को गुमराह कर ईसाई बनाया जा रहा। अगर ऐसे ही धर्मांतरण (कन्वर्जन) जारी रहा तो एक दिन भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या अल्पसंख्यक हो जाएगी”।

गुरुवार, 20 जून 2024

नियती से भेंट का दिन ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’

श्री रायगड दुर्ग पर छत्रपति शिवाजी महाराज की मानवंदना करते सूर्या फाउंडेशन के युवा

आज का दिन बहुत पावन है। आज से ठीक 350 वर्ष पूर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी, विक्रम संवत 1731 को (तद्नुसार 6 जून, 1674) छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना की थी। स्वराज्य के प्रणेता एवं महान हिन्दू राजा श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक और हिन्दू पद पादशाही की स्थापना से भारतीय इतिहास को नयी दिशा मिली। कहते हैं कि यदि छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म न होता और उन्होंने हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना न की होती, तब भारत अंधकार की दिशा में बहुत आगे चला जाता। महान विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद भारतीय समाज का आत्मविश्वास निचले तल पर चला गया। अपने ही देश में फिर कभी हमारा अपना शासन होगा, जो भारतीय मूल्यों से संचालित हो, लोगों ने यह कल्पना करना ही छोड़ दिया। तब शिवाजी महाराज ने कुछ पराक्रमी मित्रों के साथ ‘स्वराज्य’ की स्थापना का संकल्प लिया और अपने कृतित्व एवं विचारों से जनमानस के भीतर भी आत्मविश्वास जगाया। गोविन्द सखाराम सरदेसाई ‘द हिस्ट्री ऑफ द मराठाज-शिवाजी एंड हिज टाइम’ में लिखते हैं कि “मुस्लिम शासन में घोर अन्धकार व्याप्त था। कोई पूछताछ नहीं, कोई न्याय नहीं। अधिकारी जो मर्जी करते थे। महिलाओं के सम्मान का उल्लंघन, हिंदुओं की हत्याएं और धर्मांतरण, उनके मंदिरों को तोड़ना, गोहत्या और इसी तरह के घृणित अत्याचार उस सरकार के अधीन हो रहे थे। निज़ाम शाह ने जिजाऊ माँ साहेब के पिता, उनके भाइयों और पुत्रों की खुलेआम हत्या कर दी। बजाजी निंबालकर को जबरन इस्लाम कबूल कराया गया। अनगिनत उदाहरण उद्धृत किए जा सकते हैं। हिन्दू सम्मानित जीवन नहीं जी सकते थे”। ऐसे दौर में मुगलों के अत्याचारी शासन के विरुद्ध शिवाजी महाराज ने ऐसे साम्राज्य की स्थापना की जो भारत के ‘स्व’ पर आधारित था। उनके शासन में प्रजा सुखी और समृद्ध हुई। धर्म-संस्कृति फिर से पुलकित हो उठी।

रविवार, 14 अप्रैल 2024

भाषा के प्रति अंबेडकर का राष्ट्रीय दृष्टिकोण

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर और उनकी पत्रकारिता

बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर के लिए भाषा का प्रश्न भी राष्ट्रीय महत्व का था। उनकी मातृभाषा मराठी थी। अपनी मातृभाषा पर उनका जितना अधिकार था, वैसा ही अधिकार अंग्रेजी पर भी था। इसके अलावा बाबा साहेब संस्कृत, हिंदी, पर्शियन, पाली, गुजराती, जर्मन, फारसी और फ्रेंच भाषाओं के भी विद्वान थे। मराठी भाषी होने के बाद भी बाबा साहेब जब राष्ट्रीय भाषा के संबंध में विचार करते थे, तब वे सहज ही हिन्दी और संस्कृत के समर्थन में खड़े हो जाते थे। महाराष्ट्र के अस्पृश्य बंधुओं से संवाद करना था, तब उन्होंने मराठी भाषा में समाचारपत्रों का प्रकाशन किया। जबकि उस समय के ज्यादातर बड़े नेता अपने समाचारपत्र अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित कर रहे थे। बाबा साहेब भी अंग्रेजी में समाचारपत्र प्रकाशित कर सकते थे, अंग्रेजी में उनकी अद्भुत दक्षता थी। परंतु, भारतीय भाषाओं के प्रति सम्मान और अपने लोगों से अपनी भाषा में संवाद करने के विचार ने उन्हें मराठी में समाचारपत्र प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया होगा। यदि बाबा साहेब ने अंग्रेजी में समाचारपत्रों का प्रकाशन किया होता, तब संभव है कि वे वर्षों से ‘मूक’ समाज के ‘नायक’ न बन पाते और न ही उनके हृदय में स्वाभिमान का भाव जगा पाते। वहीं, जब उनके सामने राष्ट्रभाषा का प्रश्न आया, तब उन्होंने अपनी मातृभाषा की ओर नहीं देखा, वे भाषा के प्रश्न पर भावुक नहीं हुए, बल्कि तार्किकता के साथ उन्होंने हिन्दी और संस्कृत को राष्ट्रभाषा के रूप में देखा।

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा

राष्ट्रीय उद्देश्य और आध्यात्मिक अधिष्ठान पर केंद्रित है छत्रपति शिवाजी महाराज का 'हिन्दवी स्वराज्य' : हेमंत मुक्तिबोध

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता श्री हेमंत मुक्तिबोध ने कहा कि छत्रपति शिवाजी महाराज और समर्थ रामदास ने उस समय के हिंदू समाज के भीतर आत्मविश्वास जगाया। याद रखें कि यह सत्ता प्राप्ति के लिए संघर्ष नहीं था। यह भारत के ‘स्व’ को स्थापित करने के लिए किया गया राष्ट्रीय संघर्ष था। उनके संघर्ष का राष्ट्रीय उद्देश्य था और अध्यात्म उसका अधिष्ठान था। इसलिए उस समय के समाज में विश्वास जगा कि यह राजा साधारण नहीं है। ‘हे हिंदवी स्वराज्य व्हावे, ही तर श्रींची इच्छा यात’ शिवाजी महाराज का यह वाक्य विश्व के महान भाषणों से भी बढ़कर है। पुस्तक चर्चा का यह कार्यक्रम विश्व संवाद केंद्र के मामाजी माणिकचंद्र वाजपेयी सभागार में हुआ। इस अवसर पर साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मध्य भारत प्रांत के संघचालक श्री अशोक पांडेय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है-

हिन्दवी स्वराज्य दर्शन पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है। चित्र पर क्लिक करके पुस्तक खरीदें

श्री मुक्तिबोध ने कहा कि लोकेंद्र सिंह ने इस जीवंतता के साथ पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ को लिखा है कि हम भी पढ़ते–पढ़ते छत्रपति शिवाजी महाराज के दुर्गों का भ्रमण करते हैं। एक–एक प्रसंग और घटना का जीवंत वर्णन उन्होंने किया है। यात्रा वृत्तांत में दर्शन की दृष्टि, मन की आंखों और विवेक–बुद्धि के साथ देखते हैं तो कुछ प्रेरणा देनेवाला और सकारात्मक साहित्य का सृजन होता है। लोकेंद्र सिंह ने शिवाजी महाराज के किलों को केवल सामान्य पर्यटक के तौर पर नहीं देखा है, उन्होंने विवेक बुद्धि के साथ दुर्गों का दर्शन किया हैं। उन्होंने कहा कि किलों का महत्व इतना नहीं है, जितना उनमें रहने वालों का महत्व है। शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की स्थापना में किलों को जीता, संधि में किले हारे और फिर किलों को प्राप्त करने के लिए संधि तोड़ी। पुस्तक में सिंहगढ़ की कथा भी आती है। जिस किले को प्राप्त करने में तानाजी मालूसरे का बलिदान हुआ। अपने साथी के बलिदान पर छत्रपति ने कहा था– “गढ़ आला लेकिन सिंह गेला”।

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर’ को साकार करने में सफल रहे रणदीप हुड्डा

स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर रणदीप हुड्डा ने बेहतरीन फिल्म बनाई है। सच कहूं तो यह फिल्म से कहीं अधिक है। सिनेमा का पर्दा जब रोशन होता है तो आपको इतिहास के उस हिस्से में ले जाता है, जिसको साजिश के तहत अंधकार में रखा गया। भारत की स्वतंत्रता के लिए हमारे नायकों ने क्या कीमत चुकाई है, यह आपको फिल्म के पहले फ्रेम से लेकर आखिरी फ्रेम तक में दिखेगा। अच्छी बात यह है कि रणदीप हुड्डा ने उन सब प्रश्नों पर भी बेबाकी से बात की है, जिनको लेकर कम्युनिस्ट तानाशाह लेनिन–स्टालिन की औलादें भारत माता के सच्चे सपूत की छवि पर आघात करती हैं। कथित माफीनामे से लेकर 60 रुपए पेंशन तक, प्रत्येक प्रश्न का उत्तर फिल्म में दिया गया है। वीर सावरकर जन्मजात देशभक्त थे। चाफेकर बंधुओं के बलिदान पर किशोरवय में ही वीर सावरकर ने अपनी कुलदेवी अष्टभुजा भवानी के सामने भारत की स्वतंत्रता का संकल्प लिया। अपने संकल्प को साकार करने के लिए किशोरवय में ही ‘मित्र मेला’ जैसा संगठन प्रारंभ किया। क्रांतिकारी संगठन ‘अभिनव भारत’ की नींव रखी। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। अंग्रेजों को उनकी ही भाषा में उत्तर देने के लिए लंदन जाकर वकालत की पढ़ाई की। हालांकि क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण अंग्रेजों ने उन्हें डिग्री नहीं दी। ब्रिटिश शासन के घर ‘लंदन’ में किस प्रकार वीर सावरकर ने अंग्रेजों को चुनौती दी, इसकी झलक भी फिल्म में दिखाई देती है। नि:संदेह, वीर सावरकर के महान व्यक्तित्व के संबंध में फिल्म न्याय करने में सफल हुई है।

गुरुवार, 28 मार्च 2024

छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्थापित किया 'स्वदेशी' का महत्व

 छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर विशेष

छत्रपति शिवाजी महाराज समाधि स्थल, रायगड दुर्ग / फोटो- लोकेन्द्र सिंह

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म शिवनेरी दुर्ग में फाल्गुन मास (अमावस्यांत) कृष्ण पक्ष तृतीया को संवत्सर 1551 में हुआ। ग्रेगोरियन कैलेंडर में यह दिनांक 19 फरवरी, 1630 होती है। चूँकि छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन ‘स्व’ की स्थापना को समर्पित रहा, इसलिए सही अर्थों में उनकी जयंती भारतीय पंचाग के अनुसार मनायी जानी चाहिए। स्मरण रहे कि चारों ओर जब पराधीनता का गहन अंधकार छाया था, तब छत्रपति शिवाजी महाराज प्रखर सूर्य की भाँति हिन्दुस्तान के आसमान पर चमके थे। ‘हिन्दवी स्वराज्य’ की स्थापना करके उन्होंने वह करके दिखा दिया, जिसकी कल्पना करना भी उस समय कठिन था। शिवाजी महाराज ऐसे नायक हैं, जिन्होंने मुगलों और पुर्तगीज से लेकर अंग्रेजों तक, स्वराज्य के लिए युद्ध किया। भारत के बड़े भू-भाग को आक्रांताओं के चंगुल से मुक्त कराकर, वहाँ ‘स्वराज्य’ का विस्तार किया। जन-जन के मन में ‘स्वराज्य’ का भाव जगाकर शिवाजी महाराज ने समाज को आत्मदैन्य की परिस्थिति से बाहर निकाला। ‘स्वराज्य’ के प्रति समाज को जागृत करने के साथ ही उन्होंने ऐसे राज्य की नींव रखी, जो भारतीय जीवनमूल्यों से ओतप्रोत था। शिवाजी महाराज ने हिन्दवी स्वराज्य की व्यवस्थाएं खड़ी करते समय ‘स्व’ को उनके मूल में रखा। ‘स्व’ पर आधारित व्यवस्थाओं से वास्तविक ‘स्वराज्य’ को स्थापित किया जा सकता है।

सुनिए, छत्रपति शिवाजी महाराज पर बुद्धिजीवियों के विचार

मंगलवार, 19 मार्च 2024

राम मंदिर और संघ : समाज के लिए दृष्टिबोध है प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव- ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ 

भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से जब समूचा देश अभिभूत है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित करके समाज के सामने बड़ा लक्ष्य प्रस्तुत किया है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, उसका आग्रह इस प्रस्ताव में है। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण बन गया है, उसको पुष्ट करने की प्रेरणा संघ ने नागरिकों को दी है। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। नि:संदेह यही सच है। कहना होगा कि भारत की ‘नियति से भेंट’ अब जाकर हुई है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने ‘स्व’ को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। समाज में दिख रहा यह परिवर्तन ‘स्व’ की ओर भारत की यात्रा का द्योतक है। यह यात्रा भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुकूल हो, यह जिम्मेदारी भारतीयों की है। भारतीय समाज मंदिर निर्माण को ही अपने संघर्ष का उद्देश्य मानकर संतोष न कर ले, इसलिए संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

गुरुवार, 14 मार्च 2024

सच का सामना करने की है दम तो देखिए- बस्तर : द नक्सल स्टोरी

कम्युनिस्टों की हिंसक एवं क्रूर विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है सुदीप्तो सेन की फिल्म 

‘द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से एक और आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है। भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है। लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की। जबकि सच क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है। फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती हैं। फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है। जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए। जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है। फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं। यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे। 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए। यह फिल्म अधिक से अधिक लोगों को देखनी एवं दिखायी जानी चाहिए। सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है। हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है। अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेबसीरीज लेकर आएं।

सोमवार, 11 मार्च 2024

मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही थे प्रो. कमल दीक्षित

प्रो. कमल दीक्षित की पुस्तक- मूल्यानुगत मीडिया : संभावना एवं चुनौतियां


बाल सुलभ मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव खेलती रहती थी। मानो उनका ‘कमल मुख’ निश्छल हँसी का स्थायी घर हो। कई दिनों से माथे पर नाचनेवाला तनाव भी उनसे मिलने भर से न जाने कहाँ छिटक जाता था। उनका सान्निध्य जैसे किसी साधु की संगति। उनके लिए कहा जाता है कि वे पत्रकारिता की चलती-फिरती पाठशाला थे। उनकी पाठशाला में व्यावसायिकता से कहीं बढ़कर मूल्यों की पत्रकारिता के पाठ थे। ‘व्यावहारिकता’ के शोर में जब ‘सिद्धांतों’ को अनसुना करने का सहूलियत भरी राह पकड़ी जा रही हो, तब मूल्यों की बात कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। मूल्य, सिद्धांत एवं व्यवहार के ये पाठ प्रो. दीक्षित के लिए केवल सैद्धांतिक नहीं थे अपितु उन्होंने इन पाठों को स्वयं जीकर सिद्ध किया था। इसलिए जब वे मूल्यानुगत मीडिया के लिए आग्रह करते थे, तो उसे अनसुना नहीं किया जाता था। इसलिए जब वे पत्रकारिता में मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयासों की नींव रखते हैं, तो उस पर अंधकार में राह दिखानेवाले ‘दीप स्तम्भ’ के निर्माण की संभावना स्पष्ट दिखाई देती थी।

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित होगा उज्जैन-इंदौर संभाग, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सराहनीय निर्णय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

आत्मविश्वास से भरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले- अबकी बार 400 पार

अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री को देश की जनता पर विश्वास है कि इस बार पहले की अपेक्षा जनता की ओर से उन्हें और अधिक बड़ा जनादेश मिलेगा। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रत्येक पंक्ति इस आत्मविश्वास को व्यक्त करती है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे वर्तमान समय में बना देश का वातावरण है। अयोध्या में श्रीरामलला का मंदिर निर्माण ने जिस प्रकार की ऊर्जा का संचार समूचे देश में किया है, वह अचंभित करनेवाला है। देश में चल रही रामलहर को देखकर कोई भी बता सकता है कि भारत का समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए लोकसभा चुनाव का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

अयोध्या धाम में श्रीरामलला के दर्शन

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पाँच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। हालांकि, हमारे लिए तो प्रत्येक धार्मिक स्थल श्रद्धा का केंद्र है। भारत के शहर-शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग पहुँचते हैं। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी, उज्जैन, द्वारिका, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि ऐसे स्थान हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में पहुँचते हैं अपितु विदेशी और भारतीय मूल के नागरिक श्रद्धा के साथ आते हैं। पिछले आठ-दस वर्षों में भारत के धार्मिक पर्यटन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल धार्मिक स्थलों को पुनर्विकसित कराया है, अपितु आगे बढ़कर धार्मिक पर्यटन का प्रचार-प्रसार भी किया है। जिसके परिणाम हमें धार्मिक पर्यटन में हो रही वृद्धि के रूप में दिखायी देते हैं। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के कुल पर्यटन में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है।

बुधवार, 24 जनवरी 2024

श्रीरामलला का चित्र ही बन गया संपादकीय

 “रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां”

22 जनवरी, 2024 को दैनिक समाचारपत्र स्वदेश, भोपाल समूह ने अपने संपादकीय में शब्दों के स्थान श्रीरामलला का चित्र प्रकाशित किया है

‘स्वदेश’ ने श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर अपनी संपादकीय में प्रयोग करके इतिहास रच दिया। ‘स्वदेश’ ने 23 जनवरी, 2024 के संस्करण में संपादकीय के स्थान पर ‘रामलला’ का चित्र प्रकाशित किया है। यह अनूठा प्रयोग है। भारतीय पत्रकारिता में इससे पहले ऐसा प्रयोग कभी नहीं हुआ। यह पहली बार है, जब संपादकीय में शब्दों का स्थान एक चित्र ने ले लिया। वैसे भी कहा जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है। परंतु, स्वदेश ने संपादकीय पर जो चित्र प्रकाशित किया, उसकी महिमा हजार शब्दों से कहीं अधिक है। यह कोई साधारण चित्र नहीं है। इस चित्र में तो समूची सृष्टि समाई हुई है। यह तो संसार का सार है।

मंगलवार, 23 जनवरी 2024

राम दीपावली

कैलेंडर में 22 जनवरी पर अंगुली रखते हुए आज सुबह–सुबह बिटिया ने पूछा– “22 तारीख के नीचे कुछ लिखा क्यों नहीं है?”

उसके प्रश्न के मूल को समझे बिना मैंने उत्तर दिया– “लिखा तो है– द्वादशी”। चूंकि भारतीय कालगणना को लेकर बात चल रही थी, इसलिए यह उत्तर मैंने दिया।

अपने प्रश्न का उत्तर न पाकर, उसने फिर से आश्चर्य के भाव के साथ कहा– “हमने कल जो त्योहार मनाया, दीप जलाए, रोशनी की। यहां उसके बारे में कहां लिखा है?”

मैंने हर्षित मन से उसे बताया– “अब जो कैलेंडर छपकर आयेंगे, उन पर लिखा होगा ‘राम दीपावली’। परंतु उसे भी हमें 22 जनवरी को नहीं, पौष मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को ही इसी उत्साह से मानना है”।

“मतलब, अब हम दो बार दीवाली मनाएंगे। फटाखे चलाएंगे और मिठाई भी खायेंगे। जय हो रामलला की”। उसका उत्साह देखते ही बन रहा था। अभी उसे पता नहीं कि अयोध्या धाम में भगवान श्रीराम का मंदिर बनने का क्या महत्व है? कितना बड़ा संघर्ष इस राम दीपावली के लिए रहा है? मैं उसे पूरी राम कहानी बताऊंगा। भारत के प्राण, उत्साह और विश्वास से परिचित कराऊंगा।

उसे यह जानना ही चाहिए कि ‘राम दीपावली’ मनाने का यह सौभाग्य हमें यूं ही प्राप्त नहीं हो गया है। इसके पीछे 500 वर्ष का संघर्ष, कठिन तपस्या और हजारों रामभक्तों का बलिदान है...

श्री अयोध्या धाम में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का आनंद प्रकट करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर राम ज्योति जलाकर मनाई राम दीपावली

शनिवार, 13 जनवरी 2024

शंकराचार्यों का आशीर्वाद


यह देखना भी अपने आप में आश्चर्यजनक है कि जिन्हें धर्म में ही विश्वास नहीं, वे रामलला के नये विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उत्सव में प्रमुख चार पीठों के शंकराचार्यों की उपस्थिति को लेकर चिंतित हो रहे हैं। उन्हें इस बात की चिंता हो रही है कि प्राण प्रतिष्ठा में हिन्दू धर्म शास्त्रों का अनुपालन किया जा रहा है या नहीं? दरअसल, यह उनकी चिंता नहीं अपितु रामकाज में अड़ंगे लगाने की प्रवृत्ति है। किसी को यह बात नहीं भूलना चाहिए कि देश में एक वर्ग ऐसा रहा है, जिसने अपने समूचे राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक सामर्थ्य का उपयोग श्रीराम मंदिर के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न करने के लिए किया है। उनकी ओर से यहाँ तक कहा गया कि यह कौन सत्यापित करेगा कि राम इसी भूमि पर पैदा हुए? यहाँ कभी राम मंदिर था ही नहीं, यह कुतर्क भी आया ही। जबकि श्रीराम मंदिर को ध्वस्त करनेवाली नापाक ताकतों ने गर्वोन्मति के साथ यह स्वीकार किया है कि उन्होंने हिन्दुओं की आस्था को ध्वस्त करके उसी के अवशेषों पर मस्जिद तामीर करायी। सर्वोच्च न्यायालय तक में यह हलफनामा दायर किया गया कि राम काल्पनिक हैं। श्रीराम मंदिर का निर्णय समय पर नहीं आए इसके लिए वकीलों ऐसी फौज उतारी गई, जो न्यायालय में मामले को अटकाती-भटकाती रही। अब जरा सोचिए कि श्रीराम मंदिर को लेकर इस प्रकार के विचार रखनेवाली ताकतें भला क्यों मंदिर से जुड़ा महत्वपूर्ण उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने देंगी।

शुक्रवार, 12 जनवरी 2024

हिन्दवी स्वराज्य की आधार स्तम्भ - जिजाऊ माँ साहेब

जिजाऊ मां साहेब की जयंती पौष मास की पूर्णिमा को आती है , ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार 12 जनवरी को जिजाऊ मां साहेब की जयंती मनायी जाती है

जिजाऊ माँ साहेब समाधि स्थल, पाचाड़ में श्रीशिव छत्रपति दुर्ग दर्शन यात्रा

हिन्दवी स्वराज्य के जो आधार स्तम्भ हैं, उनमें से एक है- राजमाता जिजाऊ माँ साहेब। उनके बिना हिन्दवी स्वराज्य के महान विचार का साकार होना संभव नहीं था। बाल शिवा के मन में स्वराज्य का बीज उन्होंने ही रोपा। उस बीज को उचित खाद-पानी एवं वातावरण मिले, इसकी भी चिंता उन्होंने की। रामायण-महाभारत और भारतीय आख्यानों की कहानियां सुनाकर माँ जिजाऊ ने शिवाजी के व्यक्तित्व को गढ़ा। वे ही शिवाजी महाराज की प्रथम गुरु भी थीं। प्रतिकूल परिस्थितियों में और अनेक प्रकार के झंझावातों का सामना करते हुए तेजस्विनी माता ने शिवाजी महाराज को वीरता, साहस, निर्भय, धर्मनिष्ठा, दयालुता, संवेदनशीलता और स्वतंत्रता के संस्कार दिए। जिजाऊ माँ साहेब के वात्सल की छांव का ही आशीष था कि कंटकाकीर्ण मार्ग पर भी शिवाजी महाराज मुर्झाये नहीं अपितु हीरे की तरह चमक उठे।

सोमवार, 8 जनवरी 2024

भारत ने मालदीव को दिखाया आईना

भारत के खूबसूरत पर्यटन स्थल लक्षद्वीप में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कोई भी कदम बहुत सोच-विचारकर उठाते हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी लक्षद्वीप में समुद्री किनारों पर यूँ ही टहलने नहीं गए थे। जो लोग उस समय समुद्र किनारे प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीरों को देखकर हँसी-ठिठोली कर रहे थे, उन्हें अब जाकर यह समझ आया है कि प्रधानमंत्री मोदी ने इन तस्वीरों के माध्यम से मालदीव को आईना दिखाने का काम किया है। लक्षद्वीप के समुद्री तट पर प्रधानमंत्री मोदी का चहलकदमी करना मालदीप के कुछ नेताओं को इतना अधिक चुभ गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और भारत के संदर्भ में अशोभनीय टिप्पणी कर दीं। भारत के नागरिकों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपने देश और प्रधानमंत्री के अपमान पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मालदीव तक उसकी धमक सुनायी पड़ी। परिणामस्वरूप, ओछी टिप्पणी करनेवाली मालदीव की महिला मंत्री मरियम शिउना को कैबिनेट से निलंबित कर दिया गया है। समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, शिउना के अलावा दो और मंत्रियों माल्शा शरीफ और अब्दुल्ला महजूम माजिद को भी निलंबित कर दिया गया। वहीं, मालदीव सरकार के प्रवक्ता इब्राहिम खलील को सफाई देनी पड़ गई। उनकी ओर से कहा गया है कि भारत के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट्स के हवाले से जो कुछ चल रहा है, उसके बारे में हमारी सरकार अपना रुख साफ कर चुकी है। विदेश मंत्रालय ने भी बयान जारी किया है। भारत के बारे में टिप्पणी करने वाले सभी सरकारी अधिकारियों को तत्काल निलंबित किया जा रहा है।