आरएसएस और तिरंगा : भाग-3
26 जनवरी 1963 को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के समक्ष गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 3500 स्वयंसेवक. |
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के मन में राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर किसी प्रकार का भ्रम नहीं है। राष्ट्रीय गौरव के मानबिन्दुओं के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना बलिदान तक दिया है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी ऐसा ही एक राष्ट्रीय प्रतीक है। चूंकि संघ ‘प्रसिद्धी पराङ्मुख’ के सिद्धांत पर चला है। जो मातृभूमि के लिए अनिवार्यरूप से करणीय कार्य हैं, उसका यश क्यों लेना? संघ का कार्यकर्ता इसलिए कोई काम नहीं करता है कि उसका नाम दस्तावेजों में लिखा जाये और उसको यश मिले। अपना स्वाभाविक कर्तव्य मानकर ही वह सारा कार्य करता है। अपने योगदान के दस्तावेजीकरण के प्रति संघ की उदासीनता का लाभ संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार करनेवाले समूहों ने उठाया और उन्होंने संघ के सन्दर्भ में नाना प्रकार के भ्रम उत्पन्न करने के प्रयास किये। इस सबके बीच, जो निश्छल लोग हैं, उन्होंने संघ की वास्तविक प्रतिमा के दर्शन किये हैं किन्तु कुछ लोग राजनीतिक दुराग्रह एवं पूर्वाग्रह के कारण संघ को लेकर भ्रमित रहते हैं। ऐसा ही एक भ्रम है कि संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रध्वज को मान नहीं देते हैं और तिरंगा नहीं फहराते हैं। इसी भ्रम में पड़कर कांग्रेस को भी संघ के दर्शन हो गए। वर्ष 2016 में जेएनयू में देशविरोधी नारे लगने के बाद यह बात निकलकर आई कि युवा पीढ़ी में देशभक्ति का भाव जगाने के लिए सभी शिक्षा संस्थानों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लगाया जाना चाहिए। यह आग्रह कुछ लोगों को इतना चुभ गया कि वे आरएसएस और तिरंगे के संबंधों पर मिथ्याप्रचार करने लगे। इस मिथ्याप्रचार में फंसकर कांग्रेस ने 22 फरवरी, 2016 को मध्यप्रदेश के संघ कार्यालयों पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई थी। कांग्रेस ने सोचा होगा कि संघ के कार्यकर्ता कार्यालय पर तिरंगा फहराने का विरोध करेंगे। तिरंगा फहराना था शिक्षा संस्थानों में लेकिन कांग्रेस निकल पड़ी संघ कार्यालयों की ओर।