सोमवार, 15 अगस्त 2022

राष्ट्रध्वज तिरंगे की प्रतिष्ठा में संघ ने दिया है बलिदान

आरएसएस और तिरंगा : भाग-3

26 जनवरी 1963 को राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के समक्ष गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 3500 स्वयंसेवक.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों के मन में राष्ट्रीय प्रतीकों को लेकर किसी प्रकार का भ्रम नहीं है। राष्ट्रीय गौरव के मानबिन्दुओं के लिए संघ के कार्यकर्ताओं ने अपना बलिदान तक दिया है। राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा भी ऐसा ही एक राष्ट्रीय प्रतीक है। चूंकि संघ ‘प्रसिद्धी पराङ्मुख’ के सिद्धांत पर चला है। जो मातृभूमि के लिए अनिवार्यरूप से करणीय कार्य हैं, उसका यश क्यों लेना? संघ का कार्यकर्ता इसलिए कोई काम नहीं करता है कि उसका नाम दस्तावेजों में लिखा जाये और उसको यश मिले। अपना स्वाभाविक कर्तव्य मानकर ही वह सारा कार्य करता है। अपने योगदान के दस्तावेजीकरण के प्रति संघ की उदासीनता का लाभ संघ के विरुद्ध दुष्प्रचार करनेवाले समूहों ने उठाया और उन्होंने संघ के सन्दर्भ में नाना प्रकार के भ्रम उत्पन्न करने के प्रयास किये। इस सबके बीच, जो निश्छल लोग हैं, उन्होंने संघ की वास्तविक प्रतिमा के दर्शन किये हैं किन्तु कुछ लोग राजनीतिक दुराग्रह एवं पूर्वाग्रह के कारण संघ को लेकर भ्रमित रहते हैं। ऐसा ही एक भ्रम है कि संघ के स्वयंसेवक राष्ट्रध्वज को मान नहीं देते हैं और तिरंगा नहीं फहराते हैं। इसी भ्रम में पड़कर कांग्रेस को भी संघ के दर्शन हो गए। वर्ष 2016 में जेएनयू में देशविरोधी नारे लगने के बाद यह बात निकलकर आई कि युवा पीढ़ी में देशभक्ति का भाव जगाने के लिए सभी शिक्षा संस्थानों में राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लगाया जाना चाहिए। यह आग्रह कुछ लोगों को इतना चुभ गया कि वे आरएसएस और तिरंगे के संबंधों पर मिथ्याप्रचार करने लगे। इस मिथ्याप्रचार में फंसकर कांग्रेस ने 22 फरवरी, 2016 को मध्यप्रदेश के संघ कार्यालयों पर तिरंगा फहराने की योजना बनाई थी। कांग्रेस ने सोचा होगा कि संघ के कार्यकर्ता कार्यालय पर तिरंगा फहराने का विरोध करेंगे। तिरंगा फहराना था शिक्षा संस्थानों में लेकिन कांग्रेस निकल पड़ी संघ कार्यालयों की ओर।

रविवार, 14 अगस्त 2022

आरएसएस में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा, श्रद्धा और सम्मान

आरएसएस और तिरंगा : भाग-2

#HarGharTiranga हर घर तिरंगा अभियान के अंतर्गत नागपुर की जिलाधिकारी आर. विमला जी ने सरसंघचालक डॉ. मोहन जी भागवत से भेंटकर राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा प्रदान किया।

राष्ट्रीय विचारधारा का विरोधी बुद्धिजीवी वर्ग अक्सर एक झूठ को समवेत स्वर में दोहराता रहता है– आरएसएस ने राष्ट्रध्वज तिरंगा का विरोध किया। संघ भगवा झंडे को तिरंगे से ऊपर मानता है। आरएसएस ने कभी अपने कार्यालयों पर तिरंगा नहीं फहराया। इस तरह के और भी मिथ्यारोप यह समूह लगाता है। हालांकि, इस संदर्भ में उनके पास कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं है। वे एक–दो बयानों और घटनाओं के आधार पर अपने झूठ को सच के रंग से रंगने की कोशिशें करते हैं। जबकि जो भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से परिचित है, वह जानता है कि इन खोखले झूठों का कोई आधार नहीं। संघ के लिए राष्ट्रध्वज तिरंगा ही नहीं अपितु सभी राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान सर्वोपरि है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने ‘भविष्य का भारत : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का दृष्टिकोण’ शीर्षक से दिल्ली में आयोजित तीन दिवसीय व्याख्यानमाला में पहले ही दिन यानी 17 सितम्बर, 2018 को कहा- “स्वतंत्रता के जितने सारे प्रतीक हैं, उन सबके प्रति संघ का स्वयंसेवक अत्यंत श्रद्धा और सम्मान के साथ समर्पित रहा है। इससे दूसरी बात संघ में नहीं चल सकती”। इस अवसर पर उन्होंने एक महत्वपूर्ण प्रसंग भी सुनाया। फैजपुर के कांग्रेस अधिवेशन में 80 फीट ऊँचा ध्वज स्तंभ पर कांग्रेस अध्यक्ष पंडित जवाहरलाल नेहरू ने तिरंगा झंडा (चरखा युक्त) फहराया। जब उन्होंने झंडा फहराया तो यह बीच में अटक गया। ऊंचे पोल पर चढ़कर उसे सुलझाने का साहस किसी का नहीं था। किशन सिंह राजपूत नाम का तरुण स्वयंसेवक भीड़ में से दौड़ा, वह सर-सर उस खंभे पर चढ़ गया, उसने रस्सियों की गुत्थी सुलझाई। ध्वज को ऊपर पहुंचाकर नीचे आ गया। स्वाभाविक ही लोगों ने उसको कंधे पर लिया और नेहरू जी के पास ले गये। नेहरू जी ने उसकी पीठ थपथपाई और कहा कि तुम आओ शाम को खुले अधिवेशन में तुम्हारा अभिनंदन करेंगे। लेकिन फिर कुछ नेता आए और कहा कि उसको मत बुलाओ वह शाखा में जाता है। बाद में जब संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार जी को पता चला तो उन्होंने उस स्वयंसेवक का अभिनंदन किया। यह एक घटनाक्रम बताता है कि तिरंगे के जन्म के साथ ही संघ का स्वयंसेवक उसके सम्मान के साथ जुड़ गया था।

‘संघ और तिरंगे’ के सन्दर्भ में जो भी मिथ्याप्रचार किया गया है, उसके मूल में वे कम्युनिस्ट हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद सात दशक बाद तक अपने पार्टी कार्यालयों पर राष्ट्रध्वज नहीं फहराया। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने 2021 में पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाने और पार्टी कार्यालय में तिरंगा फहराने का निर्णय लिया। कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत की स्वतंत्रता को अस्वीकार करते हुए नारा दिया था- ‘ये आजादी झूठी है’। जरा सोचिये, किन लोगों ने अपनी सच्चाई छिपाने के लिए राष्ट्रभक्त संगठन के सन्दर्भ में दुष्प्रचार किया?

शनिवार, 13 अगस्त 2022

ध्वज समिति की अनुशंसा, भगवा रंग का हो राष्ट्र ध्वज

आरएसएस और तिरंगा : भाग-1

#HarGharTiranga #LokendraSingh

ध्वज किसी भी राष्ट्र के चिंतन और ध्येय का प्रतीक तथा स्फूर्ति का केंद्र होता है। ध्वज, आक्रमण के समय में पराक्रम का, संघर्ष के समय में धैर्य का और अनुकूल समय में उद्यम की प्रेरणा देता है। इसलिए सदियों से ध्वज हमारे साथ रहा है। इतिहास में जाकर देखते हैं तो हमें ध्यान आता है कि लोगों को गौरव की अनुभूति कराने के लिए कोई न कोई ध्वज हमेशा रहा है। भारत के सन्दर्भ में देखें तो यहाँ की सांस्कृतिक पहचान ‘भगवा’ रंग का ध्वज रहा है। आज भी दुनिया में भगवा रंग भारत की संस्कृति का प्रतीक है। अर्थात सांस्कृतिक पताका भगवा ध्वज है। वहीं, राजनीतिक रूप से विश्व पटल पर राष्ट्र ध्वज ‘तिरंगा’ भारत की पहचान है।

भारत के ‘स्व’ से कटे हुए कुछ लोगों एवं विचार समूहों को ‘भगवा’ से दिक्कत होती है। इसलिए वे भगवा ध्वज को नकारते हैं। परन्तु उनके नकारने से भारत की सांस्कृतिक पहचान को भुलाया तो नहीं जा सकता है। राष्ट्रध्वज के रूप में ‘तिरंगा’ को संविधान द्वारा 22 जुलाई, 1947 को स्वीकार किया गया। उससे पहले विश्व में भारत की पहचान का प्रतीक ‘भगवा’ ही था। स्वहतंत्रता संग्राम के बीच एक राजनैतिक ध्व ज की आवश्यकता अनुभव होने लगी। क्रांतिकारियों से लेकर अन्य स्वतंत्रतासेनानियों एवं राजनेताओं ने 1906 से 1929 तक अपनी-अपनी कल्पना एवं दृष्टि के अनुसार समय-समय पर अनेक झंडों को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में प्रस्तुत किया गया। इन्हीं में वर्तमान राष्ट्र ध्वज तिरंगे आविर्भाव हुआ। स्वतंत्रता आन्दोलन का साझा मंच बन चुकी कांग्रेस ने 2 अप्रैल, 1931 को करांची में आयोजित कार्यसमिति की बैठक में राष्ट्रीय ध्वज के विषय में समग्र रूप से विचार करने, तीन रंग के ध्वज को लेकर की गईं आपत्तियों पर विचार करने और सर्वस्वीकार्य ध्वज के सम्बन्ध में सुझाव देने के लिए सात सदस्यों की एक समिति बनाई। समिति के सदस्य थे- सरदार वल्लभ भाई पटेल, पं. जवाहरलाल नेहरू, डा. पट्टाभि सीतारमैया, डा. ना.सु. हर्डीकर, आचार्य काका कालेलकर, मास्टर तारा सिंह और मौलाना आजाद।

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

गोवा मुक्ति आन्दोलन में तिरंगा थामे बलिदान हुए आरएसएस के प्रचारक राजाभाऊ महाकाल

इस वर्ष शहडोल में आयोजित संघ शिक्षा वर्ग ‘द्वितीय वर्ष’ में स्वतंत्रता आंदोलन के बलिदानी राजाभाऊ महाकाल को केंद्रीय पात्र बनाकर गोवा मुक्ति आंदोलन पर एक लघु नाटिका लिखी और उसका निर्देशन भी किया। यह छोटी-सी नाटिका सबको खूब पसंद आई। 

आज सुबह स्वदेश में राजाभाऊ महाकाल पर भूपेन्द्र भारतीय जी का आलेख पढ़ा। मन प्रसन्न हो गया। कुछ नई जानकारी भी हाथ लगी। मैं कितने दिन से लिखने की सोच रहा था। अब उन पर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाऊंगा। 

एक गांधीवादी सज्जन मिले थे कुछ समय पूर्व। कम्युनिस्टों की संगत का थोड़ा बहुत असर था। मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर का निधन हुआ था। उनकी श्रद्धांजलि सभा में जा रहे थे तो मैंने कहा कि बाबूलाल गौर स्वतंत्रता सेनानी थे, गोवा मुक्ति आंदोलन में शामिल हुए थे। आरएसएस के लोगों ने गोवा मुक्ति आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। 

मेरा इतना कहते ही अचानक से भड़क गए– "अरे तुम लोग जबरदस्ती करते हो। गोवा मुक्ति आंदोलन तो पूरी तरह से समाजवादियों का आंदोलन था"। 

मैंने मुस्कुराते हुए कहा– "हां, समाजवादियों की प्रमुख भूमिका थी। हम कहां इनकार करते हैं। हमारी आदत नहीं किसी के योगदान को अनदेखा करने और अस्वीकार करने की। परंतु संघवालों ने गोवा मुक्ति आंदोलन में हिस्सा भी लिया और बलिदान भी दिया है। इसी कारण राम मनोहर लोहिया सहित अनेक समाजवादी नेता आरएसएस के प्रति अच्छा भाव रखने लगे थे"। 

तथ्य सामने रखे तो वे और चिढ़ गए– "अरे यार तुम रहने दो"। उन्होंने वही घिसा–पिटा डायलॉग मारा– "कोई एक नाम बता दो, जो शामिल हुआ हो"। 

मैंने थोड़ा और मुस्कुराते हुए कहा– "एक तो यही (बाबूलाल गौर) दिवंगत हो गए, जिनकी श्रद्धांजलि सभा में हम बैठे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने उन्हें इसके लिए सम्मानित भी किया था। दूसरे, यहाँ (भोपाल) से लगभग 200 किलोमीटर दूर उज्जैन के राजाभाऊ महाकाल थे, जिनका बलिदान वहीं गोवा में हुआ। तिरंगा लेकर चल रहे थे। पुर्तगालियों ने गोली मार दी"। 

"कुछ भी कहानी सुना रहे हो"। उनको अभी भी विश्वास नहीं हुआ। होता भी कैसे, क्योंकि उनकी पढ़ा–लिखी ही अलग ढंग से हुई थी। और फिर जरूरी थोड़े है कि कोई दुनियाभर की जानकारी प्राप्त कर लिया हो। 

"अच्छा एक काम करो। आप स्वयं उज्जैन जाकर पड़ताल कर लो। महाकाल जी के परिवार से मिल आना। शहर में भी अनेक लोग बता देंगे। यह भी पता कर लेना कि आरएसएस में उनके पास क्या जिम्मेदारी थी? वे संघ के प्रचारक थे"। मैंने उन्हें आत्मसंतुष्टि करने का पूरा अवसर दिया। वे अब बिल्कुल चुप हो गए। परंतु माने अभी भी नहीं थे। 

मैंने थोड़ा और आनंद लेने के लिए कह दिए– "आप कहो तो मैं चार्टर्ड बस के टिकट करा देता हूं। सुबह जाकर शाम तक वापस आ जाइएगा"।



गुरुवार, 4 अगस्त 2022

देशाभिमान जगायेगा ‘हर घर तिरंगा’

भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर देश में ‘स्वाधीनता का अमृत महोत्सव’ का वातावरण है। सभी देशवासी इस अवसर पर स्वाधीनता के अपने नायकों को याद कर रहे हैं। ऐसे में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने देशवासियों को गौरव की अनुभूति कराने और राष्ट्रभक्ति से जोड़ने के लिए ‘हर घर तिरंगा’ अभियान का आह्वान कर दिया है। अमृत महोत्सव के तहत 11 अगस्त से ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की शुरुआत की जा रही है, जिसमें सभी लोग अपने घर पर तिरंगा लगाएंगे। निश्चित ही यह अभियान हमारे मन में देशाभिमान जगायेगा। इस तरह के आह्वान और अभियान का परिणाम यह होता है कि लोग अपने इतिहास, गौरव और राष्ट्रीय अस्मिता से जुड़ते हैं। जैसे अमृत महोत्सव के कारण बहुत से गुमनाम नायकों की कीर्ति गाथाएं हमारे सामने आयीं, ऐसे ही हर घर तिरंगा के कारण हम राष्ट्रध्वज के इतिहास से जुड़ रहे हैं।