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अर्चना प्रकाशन

17, दीनदयाल परिसर,
ई-2 महावीर नगर,
भोपाल (मध्यप्रदेश)- 462016
दूरभाष - 0755-4236865


 मैं भारत हूँ (काव्य संग्रह)

युवा कवि लोकेन्द्र सिंह राजपूत का पहला काव्य संग्रह हिन्दी जगत के सम्मुख प्रस्तुत हो रहा है। वह इतनी ही स्वाभाविक घटना है जितनी कि बसंतागमन पर आम्रकुंजों का बौर राशि से संभारित होने लगना या प्राची से सूर्य को मुस्कराते देख किसी गौरैया का चहक-चहक पडऩा। उनकी यह भावाभिव्यक्ति अत्यन्त सहज, सरल एवं तरल है। - श्री जगदीश तोमर, पूर्व निदेशक, प्रेमचंद सृजन पीठ, उज्जैन, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी




 

पुस्तक : मैं भारत हूँ

लेखक : लोकेन्द्र सिंह

प्रकाशक : संदर्भ प्रकाशन, जे-154, हर्षवर्धन नगर, भोपाल

मोबाइल : 9424469015

मूल्य : 200 रुपये

 



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हम असहिष्णु लोग


लोकेंद्र पत्रकारिता धर्म के निर्वाह के लिए यायावर की तरह समाज में घूमे हैं, भारत का मन पढ़ने का प्रयास वह सदैव करते रहे हैं। यह देश का दुर्भाग्य ही है कि यहां का बहुसंख्य समाज समकाल पर जो विचार करता है, उसे अभिव्यक्त करने वाले कलमकार नहीं मिल पाते और जिन बातों को यह जन मन घृणा करता है, उसे कलमबद्ध कर भारत का स्वर बताने वाली एक पूरी की पूरी 'बड़ी बिंदी गैंग' छपाई अभियान में लग जाती है। ऐसे में लेखक ने सामान्यजन के हृदय-स्वर को जिस 'स्टेथस्कोप' के माध्यम से उन्हीं के कानों तक पहुंचाने का प्रयास किया है, उस यंत्र का नाम है-'हम असहिष्णु लोग'। - डॉ. विकास दवे, निदेशक, मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी



पुस्तक : हम सहिष्णु लोग

लेखक : लोकेंद्र सिंह

पृष्ठ : 200 

मूल्य : 200 रुपये 

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल









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संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति



‘संघ दर्शन’ (अपने मन की अनुभूति) वस्तुत: सभी राष्ट्रवादियों के मन की अनुभूति है। पुस्तक में संकलित और विश्लेषित लेख संघ की दृष्टि स्पष्ट करने में सक्षम हैं। प्रारम्भ में सरसंघचालक परंपरा के आदर्श हेडगेवार जी से फलते-फूलते संघ की दृष्टि को विराट वृक्ष के रूप में देखा गया है, जिनकी प्रेरणा से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, भारतीय शिक्षण मंडल, आरोग्य भारती, विद्या भारती, विश्व हिंदू परिषद, भारतीय किसान संघ, सेवा भारती, आदि राष्ट्रहित में सक्रिय हैं। संघ को समझने और संघ की दृष्टि में हिंदुत्व की संकल्पना को सरल और अल्प शब्दों में समझाने का उदार प्रयास किया गया है।
          मेरा यह विश्वास है कि यह पुस्तक संघ के दृष्टिकोण, विचारों और संघ दर्शन समझने में सभी सुधीजन पाठकों के लिए सहायक सिद्ध होगी। - श्री जे. नन्द कुमार, अखिल भारतीय संयोजक, प्रज्ञा प्रवाह



 

पुस्तक : 'संघ दर्शन : अपने मन की अनुभूति'

लेखक : लोकेंद्र सिंह

मूल्य : 160 रुपये 

प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन, भोपाल 





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देश कठपुतलियों के हाथ में


लेखक की चिंतन शैली इस कदर जबरदस्त है कि उन्होंने अपने एक लेख में पहले ही पूर्वानुमान लगा लिया था कि अगर भाजपा नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो संभावना है कि मोदी के प्रधानमंत्री पद की घोषणा होते ही नीतीश कुमार राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) से नाता तोड़ लेंगे। उक्त बात महज़ कुछ दिनों के बाद अक्षरश: सत्य सिद्ध हुई। उम्मीद ही वरन् यकीन है कि पुस्तक 'देश कठपुतलियों के हाथ में' पाठकों के मानस पटल पर गहरा प्रभाव डालेगी, राजनीति को नजदीक से समझाने और उसके गंदे वातावरण से सचेत करने की दृष्टि से बेहद उपयोगी सिद्ध होगी। - श्री नीरज चौधरी, पत्रकार
मूल्य : 150 रूपये 
प्रकाशक : स्पंदन, भोपाल 



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हिन्दी पत्रकारिता एवं विमर्श




माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय की ओर से 30 मई से 6 जून, 2020 तक आयोजित ‘हिन्दी पत्रकारिता सप्ताह’ व्याख्यानमाला में हुए अथिति विद्वानों के भाषणों का संकलन
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राष्ट्रवाद और मीडिया



राष्ट्रवाद सदैव से चर्चा एवं आकर्षण का विषय रहा है। आज के परिदृश्य में तो यह और अधिक चर्चित है। सब जानना चाहते हैं कि आखिर राष्ट्रवाद क्या है? राष्ट्रवाद पर इतनी बहस क्यों होती है? क्यों कुछ लोग राष्ट्रवाद का विरोध करते हैं? राष्ट्रवाद और मीडिया के बीच क्या संबंध है? राष्ट्रवाद के अध्येयता डॉ. सौरभ मालवीय एवं लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘राष्ट्रवाद और मीडिया’ ने इन सब प्रश्नों के उत्तर देने का यथासंभव प्रयास किया है। यह पुस्तक सर्वथा उचित समय पर प्रकाशित हुई है। विशेषकर इस पुस्तक के माध्यम से ‘राष्ट्रवादी पत्रकारिता’ को भली प्रकार समझा जा सकता है। - सुरेश हिंदुस्थानी, पत्रकार


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 रतौना आन्दोलन : हिन्दू-मुस्लिम एकता का सेतुबंध



भारत में पत्रकारिता का एक गौरवशाली इतिहास है। समाज जागरण से लेकर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध स्वतंत्रता की चेतना जगाने में पत्रकारों एवं समाचारपत्रों ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। भारत में पत्रकारिता के विजयी प्रसंगों में से एक है-‘रतौना आन्दोलन’। गो-संरक्षण के जुड़ा यह आन्दोलन वर्ष 1920 में मध्यप्रदेश के सागर जिले के समीप रतौना नामक स्थान से शुरू हुआ, जिसे प्रखर संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के कलम ने शीघ्र ही राष्ट्रव्यापी आन्दोलन में परिवर्तित कर दिया। पत्रकारिता के सशक्त भूमिका के कारण यह आन्दोलन अपने परिणाम को प्राप्त कर सका। तत्कालीन मध्यभारत प्रान्त में अंग्रेजों को पहले बार पराजय का सामना करना पड़ा। ब्रिटिश सरकार को अपने निर्णय को वापस लेना पड़ा। जिस जगह प्रतिमाह ढाई लाख गोवंश के क़त्ल की योजना थी, आज वहां गोवंश की नस्ल सुधार का बड़ा केंद्र है। जहाँ गोवंश के खून की नदी बहनी थी, वहां आज इतना दुग्ध उत्पादन हो रहा है कि आस-पास के लोग शुद्ध दूध पी रहे हैं। इस सम्पूर्ण विवरण को हमारे सामने लेकर आती है, पुस्तक ‘रतौना आन्दोलन : हिन्दू-मुस्लिम एकता का सेतुबंध’। - डॉ. गजेन्द्र सिंह अवास्या, सहायक प्राध्यापक, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय 

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