गुरुवार, 26 जून 2025

क्या आरएसएस के सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आपातकाल का समर्थन किया था?

बौद्धिक जगत में एक वर्ग ऐसा भी है जो आपातकाल की भयावहता को छिपाने और आपातकाल की क्रूरता पर चर्चा की जगह यह साबित करने में आज भी अपनी बुद्धि खपा रहा है कि ‘संघ ने आपातकाल का समर्थन किया था’। कुतर्क की भी हद होती है। ये वही लोग हैं जो पहलगाम में इस तथ्य को झुठलाने की बेशर्म कोशिश कर रहे थे कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों की हत्या नहीं की। जबकि मृतकों की परिजनों ने बिलखते हुए कहा है कि “उनके सामने ही आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हत्याएं की हैं”। बहरहाल, एक बार फिर ‘संविधान हत्या दिवस’ पर कई तथाकथित विद्वान पूर्व सरसंघचालक श्रद्धेय बाला साहब देवरस के एक पत्र को प्रसारित करके दावा कर रहे हैं कि संघ ने आपातकाल का समर्थन किया और श्रीमती इंदिरा गांधी से माफी भी मांगी। मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने किस दिव्य दृष्टि से इस पत्र को पढ़ा है। इस पत्र में एक भी स्थान पर, एक भी पंक्ति या शब्द में यह नहीं लिखा है कि संघ देश पर थोपे गए आपातकाल का समर्थन करता है। 

तथ्य तो यह है कि अपने पत्र में तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने संघ पर लगाए गए बलात प्रतिबंध के लिए सरकार को आईना दिखाया है। वे लिखते हैं कि संसद में दिए गए आपके (श्रीमती इंदिरा गांधी) भाषण और आपातकाल के समर्थन में दिए गए कारणों की सरकारी पुस्तक में संघ के संबंध में गलतफहमी पर आधारित बातें कही गईं हैं। इसी पत्र में आगे उन्होंने श्रीमती गांधी की भ्रामक धारणा को ठीक करते हुए लिखा है कि “दो-एक कमीशन की रिपोर्टों का उल्लेख करके, आपने उनसे एकाध वाक्य लेकर संघ को फसादों से जोड़ने का प्रयत्न किया है। जबकि आयोगों की जाँच में संघ निर्दोष साबित हुआ है। दंगों के मुकदमों में संघ के एक भी स्वयंसेवक या पदाधिकारी को सजा हुई हो, ऐसा एक भी उदाहरण नहीं है”। 

महात्मा गांधी की हत्या के संबंध में कई लोग आज भी झूठ बोलते हैं और गांधीजी की हत्या के आरोप संघ पर लगाते हैं। कांग्रेस के नेता राहुल गांधी इसी प्रकार का बयान देने के कारण मुकदमें का सामना कर रहे हैं। उस समय श्रीमती इंदिरा गांधी ने भी सरदार पटेल के एक पत्र का उल्लेख कर संघ पर गांधीजी की हत्या के मिथ्यारोप दोहराए। इस संबंध में बहुत कुशलता से श्रीमती इंदिरा गांधी की जानकारी पर व्यंग्यपूर्ण ढंग से बाला साहेब देवरस ने अपने इसी पत्र में सवाल उठाया है। उन्होंने लिखा है- “महात्मा गांधी की हत्या के संदर्भ में आपने सरदार पटेलजी के एक पत्र का उल्लेख किया है। श्री पटेल गृहमंत्री थे और सरकारी नीति का समर्थन करने के लिए उनका वैसा पत्र लिखना स्वाभाविक था। किन्तु उनके पत्रों की प्रकाशित पुस्तक में प्रधानमंत्री (पंडित जवाहरलाल नेहरू) को लिखा एक पत्र भी है। जिसमें महात्मा गांधीजी की हत्या से संघ का कुछ भी संबंध न होने का विश्वास उन्होंने प्रकट किया है। वह पत्र आपकी जानकारी में शायद नहीं आया है”। उल्लेखनीय है कि पंडित जवाहरलाल नेहरू जब बार-बार गृहमंत्री सरदार पटेल को पत्र लिखकर दबाव बना रहे थे कि संघ पर क्या कार्रवाई हुई, तब पंडित नेहरू की जिज्ञासा को शांत करने के लिए सरदार पटेल पत्र (27 फरवरी, 1948) में लिखते हैं कि गांधी जी की हत्या के सम्बन्ध में चल रही कार्यवाही से मैं पूरी तरह अवगत रहता हूं। सभी अभियुक्त पकड़े गए हैं तथा उन्होंने अपनी गतिविधियों के सम्बन्ध में लम्बे-लम्बे बयान दिए हैं। उनके बयानों से स्पष्ट है कि यह षड्यंत्र दिल्ली में नहीं रचा गया। वहां का कोई भी व्यक्ति षड्यंत्र में शामिल नहीं है। षड्यंत्र के केन्द्र बम्बई, पूना, अहमदनगर तथा ग्वालियर रहे हैं। यह बात भी असंदिग्ध रूप से उभर कर सामने आयी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इससे कतई सम्बद्ध नहीं है। यह षड्यंत्र हिन्दू सभा के एक कट्टरपंथी समूह ने रचा था। यह भी स्पष्ट हो गया है कि मात्र 10 लोगों द्वारा रचा गया यह षड्यंत्र था और उन्होंने ही इसे पूरा किया। इनमें से दो को छोड़ सब पकड़े जा चुके हैं। 

श्रीमती गांधी द्वारा संघ को फासिस्ट संगठन कहने का विरोध भी सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने जताया है। यहाँ उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का नजदीक से दर्शन करने के बाद लोकनायक जयप्रकाश नारायण की धारणा भी बदल गई थी। पहले वह भी इस भ्रम का शिकार थे कि संघ फासिस्ट संगठन है। संघ को समझने के बाद जयप्रकाश नारायण ने सार्वजनिक रूप से कहा था कि “यदि संघ फासिस्ट है तो जाओ दुनिया से कह दो कि जयप्रकाश नारायण भी फासिस्ट है”। अपने इस पत्र में फासिस्ट संगठनों के स्वरूप एवं कार्यविधि के बारे में उल्लेख करते हुए देवरस जी ने श्रीमती गांधी को समझाने का प्रयास किया है कि संघ की विचारधारा हिन्दुओं की आध्यात्मिक परंपरा पर आधारित है। संघ को फासिस्ट कहना सर्वथा अनुचित है।

संभवत: उन दिनों श्रीमती गांधी ने अपने भाषणों में देश में अफवाहें फैलाने के लिए संघ को दोष दिया होगा। इस पर देवरस जी श्रीमती गांधी को आईना दिखाते हैं कि अफवाहें फैलाने के लिए संघ नहीं अपितु आपकी सरकार जिम्मेदार है, जिसने प्रेस पर सेंसरशिप थोप दी है। जब मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, तब सच्चाई की जगह अफवाहें ही फैलती हैं। यानी यहाँ उन्होंने संकेत रूप में श्रीमती इंदिरा गांधी को बताया है कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट दिया है। मीडिया पर सेंसरशिप लगाकर सही समाचारों से जनता को वंचित कर दिया गया है। 

देवरस जी ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के बारे में अपमानजनक टिप्पणियां करने के लिए श्रीमती गांधी की आलोचना भी इसी पत्र में की है। उन्होंने लिखा है कि “श्री जयप्रकाश जी को सीआईए का एजेंट, सरमायेदारों का साथी, देशद्रोही कहना, यह ठीक नहीं, यह अनुचित है। वे भी देशभक्त हैं। आपके भाषणों में भी अनेक बार ऐसे विचार कहे गए हैं”। यहाँ देवरस जी साफतौर पर श्रीमती गांधी को कह रहे हैं कि जयप्रकाश नारायण देशभक्त हैं, उन्हें सीआईए का एजेंट एवं देशद्रोही कहकर आप उनका अपमान करती रही हैं, यह गलत बात है। उस दौर में श्रीमती गांधी को इस तरह कहना बहुत साहस की बात थी। मजेदार बात है कि इसके बाद भी आज कुछ विद्वान दावा कर रहे हैं कि बाला साहब देवरस आपातकाल लगाने के लिए श्रीमती गांधी की प्रशंसा एवं समर्थन कर रहे थे। यह सब पढ़ने के बाद ऐसे विद्वानों की बुद्धि पर आश्चर्य ही होता है।

इसी तरह, इस पत्र में बाला साहब देवरस जी ने श्रीमती इंदिरा गांधी को यह भी समझाने का प्रयास किया है कि संघ मुस्लिम और ईसाईयों के खिलाफ नहीं है। इस्लाम और ईसाई संप्रदाय के संबंध में कही गई कुछेक बातों को आधार बनाकर यदि संघ को सांप्रदायिक या मुस्लिम एवं ईसाई विरोधी ठहराया जा सकता है, तब महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के संदर्भ में क्या मत है? क्योंकि महात्मा गांधी ने भी कहा है- “मुस्लिम इज अ बुली एण्ड हिंदू इज अ कावर्ड”। इसी प्रकार, पंडित जवाहरलाल नेहरू अधिकांश मुस्लिमों का समर्थन प्राप्त मुस्लिम लीग की आलोचना करते हैं। उन्होंने श्रीमती गांधी को स्पष्ट लिखा है कि संघ के पूर्व सरसंघचालक श्रीगुरुजी ने कभी भी मुस्लिम धर्म, पैगम्बर या कुरान और ईसाई धर्म, ईसा मसीह या बाइबिल, इनका कभी विरोध नहीं किया है। एक तरह से सरसंघचालक श्री देवरस जी ने श्रीमती इंदिरा गांधी को चुनौती दी है कि यदि आप एक-दो स्थानों पर मुस्लिमों एवं ईसाइयों की वृत्ति की आलोचना के आधार पर संघ को सांप्रदायिक मानती हैं, तब महात्मा गांधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू के संदर्भ में भी अपने दृष्टिकोण को बदल लेना चाहिए। 

पत्र के आखिरी हिस्से में सरसंघचालक देवरस जी ने स्पष्ट रूप से श्रीमती इंदिरा गांधी को लिखा है कि संघ के संबंध में उनकी धारणाएं दूषित पूर्वाग्रह पर आधारित है। संघ पर लगाया गया प्रतिबंध गलत है। यह एक प्रकार से साँप के बहाने भूमि पीटने जैसा है। यहाँ देवरस जी किसी प्रकार से संघ से प्रतिबंध हटाने के लिए याचना नहीं कर रहे हैं बल्कि वे कह रहे हैं कि संघ के संबंध में सरकार और प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी की धारणा दूषित विचारों पर आधारित है। उन्होंने लिखा है कि आप प्रत्यक्ष वस्तुस्थिति को जानें, दूषित पूर्वाग्रह छोड़ें, संघ के संबंध में उचित धारणा बनाएं, स्थानबद्ध किए गए संघ के हजारों लोगों को मुक्त करें और संघ पर लगे निर्बंधों को दूर करें। 

मैंने बहुत ध्यानपूर्वक यह पत्र कई बार पढ़ा है और उसे समझने की कोशिश की है। मुझे कहीं भी लिखा नहीं दिखा कि “संघ आपातकाल का समर्थन करता है”। अपितु, संवाद कुशलता का प्रदर्शन करते हुए तत्कालीन सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने श्रीमती इंदिरा गांधी की जानकारी को दुरुस्त किया है और उनकी समझ पर व्यंग्य किए हैं। श्रीमती गांधी को ऐसे लोगों से घिरा हुआ बताया है, जो उन्हें गलत और दूषित जानकारियां देते हैं। यानी एक प्रकार से उन्हें भ्रम के वातावरण में रखा जाता है।

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