क भी रूस की ताकत का प्रतीक रहे कम्युनिस्ट लीडर ब्लादिमिर लेनिन की प्रतिमाएं भी लोग बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं। हाल ही में मंगोलिया की राजधानी उलान बटोर में क्रेन की मदद से ब्रॉन्ज से बनी लेनिन की विशालकाय प्रतिमा हटा दी गई। लेनिन को मंगोलिया में (दुनियाभर में भी) दमन और हत्याओं का कारण माना जाता है। २०वीं शताब्दी में मंगोलिया कम्युनिस्ट शासन के तहत रहा। इस दौरान लेनिन ने मंगोलिया का भारी दमन और शोषण किया। लेनिन के बाद सोवियत तानाशाह जोसेफ स्टालिन के शासन में भी यहां के लोगों का जमकर उत्पीडऩ किया गया। मंगोलिया जाति ने शोषण के प्रतीक (लेनिन) का अपने देश की गलियों और चौराहों से सफाया कर दिया। यूं तो मंगोल जाति भी खूंखार मानी जाती रही है। इसका इतिहास भी रक्तरंजित है। लेकिन, यह शुभ संकेत है कि इस देश ने अन्य देशों को भी गर्व से खड़े होने की प्रेरणा दी है। गुलामी और शोषण के प्रतीकों को उखाड़ फेंकने का संदेश दिया है। यह देखने की बात है कि इस राह पर कौन-कौन बढ़ता है।
मंगोल साम्राज्य की स्थापना १२०६ में क्रूर और अधर्मी लुटेरे चंगेज खान ने की थी। मंगोल को ही अरबी में मुगल कहते हैं। चंगेज खान के वंशजों ने भारतवासियों पर बहुत अत्याचार किए थे। स्वयं को दूसरा चंगेज खान मानने वाला तैमूर लंग एक तरह से राक्षस था। उसने दुनिया को लूटने की चाह में लाखों लोगों की हत्या की। तैमूर भारत लूटने भी आया था, तब उसने दिल्ली को सुल्तान विहीन कर दिया था। चंगेज खान और तैमूर लंग का वंशज ही था बाबर। आक्रांता बाबर भी अपने दादा-नानाओं की तरह वहशी था। उसने भारत की अस्मिता पर वार किया। बाबर के आदेश पर भारत के जन-जन के मन में बसने वाले राम का मंदिर ध्वस्त कर दिया गया। मंदिर की नींव पर ही मस्जिद बना दी गई। जिसे बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। इस कलंक को धोने का प्रयास कुछ राष्ट्रभक्तों ने किया तो बवंडर खड़ा हो गया जो आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। खैर बात मंगोलिया की करते हैं। मंगोलिया खानाबदोशों ने यहां-वहां से आकर बसाया था। जिसे विधिवत रूप से साम्राज्य का रूप खूंखार और बर्बर चंगेज खान ने दिया था। बाद के वर्षों में मंगोलिया इस्लामिक राष्ट्र हो गया। बौद्ध धर्म भी मंगोलिया तक पहुंचा। फिलहाल मंगोलिया में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या अधिक है। मंगोलिया में वामपंथियों के शासनकाल में सन् १९२४ के आसपास करीब ३० हजार बौद्धों को कत्ल कर दिया गया था। इस तरह की कत्लोगारत के लिए कम्युनिज्म जाना जाता है। रूस में स्टालिन, रूमानिया में चासेस्क्यू, पोलैंड में जारू जेलोस्की, हंगरी में ग्रांज, पूर्वी जर्मनी में होनेकर, चेकोस्लोवाकिया में ह्यूसांक, बुल्गारिया में जिकोव और चीन में माओ-त्से-तुंग जैसे अधिनायकवादों ने भारी नरसंहार कर आतंक का राज किया। कम्युनिज्म का आर्विभाव १९१७ में रूस की बोल्शेविक क्रांति के साथ हुआ। लेकिन, कम्युनिज्म के प्रति लोगों का आकर्षण इसी शताब्दी में खत्म हो गया। रूस में ही १९९१ में व्यापक भ्रष्टाचार और देशव्यापी भुखमरी के बीच कम्युनिज्म ने दम तोड़ दिया। रूस में कम्युनिज्म के पैरोकारों की क्या स्थिति वहां की जनता ने की होगी उसे इस बात से समझें। कम्युनिस्ट शासन ने तंग हो चुकी जनता ने रूस में लेनिन और स्टालिन के शवों को भी बुरी तरह पीटा था। बाद में यहां लेनिनग्राद का नाम पुन: सेंट पीटर्सबर्ग और स्टालिनग्राद का नाम वोल्गोग्राद कर दिया था। कम्युनिस्टों के कारनामों से काले पृष्ठों का ही नतीजा है कि मंगोलियन भी अपने देश से एक-एक कर शोषण की निशानियां मिटा गर्वोन्मुक्त महसूस कर रहे हैं। जिस समय मंगोलिया की राजधानी उलान बटोर में लेनिन की विशालकाय प्रतिमा हटाई जा रही थी तब सडक़ों पर उत्साहित नौजवानों और वृद्धों की भीड़ जमा थी। सब जुट आए थे कंलक को मिटता देखने के लिए।
हिन्दू संस्कृति का मंगोलिया पर खासा असर देखने को मिलता है। यही कारण रहा कि समय के साथ यहां के बर्बर लोग सभ्य होते दिखे। भारतीय संस्कृति के प्रभाव में आने के बाद यहां सांस्कृतिक परिवर्तन देखे गए। मंगोलिया में भारत की तरह दोनों हाथ जोडक़र अभिवादन करने की परंपरा थी। यहां धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना पूरी नहीं होती थी। यहां संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं में ग्रंथ रचे गए और यहां के लोक-काव्य में रामायण की कथाएं प्रचलित हैं। इतना ही नहीं बैकल झील के चारों ओर विद्या के अनेक केन्द्र थे। जहां देवी सरस्वती के अनेक चित्र और मूर्तियां थीं। मंगोलिया ने सभ्य होने के भारत से बहुत कुछ सीखा तो भारत को मंगोलिया से अब सीख लेनी चाहिए। जिस तरह गर्व से मंगोलिया ने शोषण के प्रतिकों को उखाड़ा है भारत को भी अपने देश से गुलामी के प्रतीक चिह्नों को हटा देना चाहिए। चाहे वो किसी मुस्लिम आक्रांता के नाम पर भारत की धरती पर अब तक स्थापित हो या ब्रिटिश शासन काल की निशानियां हों। आक्रांताओं और अत्याचारियों के बुत उखाड़ फेंक दिए जाएं, उनके नाम से बने शहर, सडक़, गली और मोहल्लों के नाम बदल दिए जाएं। तभी युवा भारत गर्व की सांस ले सकेगा।
मंगोल साम्राज्य की स्थापना १२०६ में क्रूर और अधर्मी लुटेरे चंगेज खान ने की थी। मंगोल को ही अरबी में मुगल कहते हैं। चंगेज खान के वंशजों ने भारतवासियों पर बहुत अत्याचार किए थे। स्वयं को दूसरा चंगेज खान मानने वाला तैमूर लंग एक तरह से राक्षस था। उसने दुनिया को लूटने की चाह में लाखों लोगों की हत्या की। तैमूर भारत लूटने भी आया था, तब उसने दिल्ली को सुल्तान विहीन कर दिया था। चंगेज खान और तैमूर लंग का वंशज ही था बाबर। आक्रांता बाबर भी अपने दादा-नानाओं की तरह वहशी था। उसने भारत की अस्मिता पर वार किया। बाबर के आदेश पर भारत के जन-जन के मन में बसने वाले राम का मंदिर ध्वस्त कर दिया गया। मंदिर की नींव पर ही मस्जिद बना दी गई। जिसे बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। इस कलंक को धोने का प्रयास कुछ राष्ट्रभक्तों ने किया तो बवंडर खड़ा हो गया जो आज तक थमने का नाम नहीं ले रहा है। खैर बात मंगोलिया की करते हैं। मंगोलिया खानाबदोशों ने यहां-वहां से आकर बसाया था। जिसे विधिवत रूप से साम्राज्य का रूप खूंखार और बर्बर चंगेज खान ने दिया था। बाद के वर्षों में मंगोलिया इस्लामिक राष्ट्र हो गया। बौद्ध धर्म भी मंगोलिया तक पहुंचा। फिलहाल मंगोलिया में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोगों की संख्या अधिक है। मंगोलिया में वामपंथियों के शासनकाल में सन् १९२४ के आसपास करीब ३० हजार बौद्धों को कत्ल कर दिया गया था। इस तरह की कत्लोगारत के लिए कम्युनिज्म जाना जाता है। रूस में स्टालिन, रूमानिया में चासेस्क्यू, पोलैंड में जारू जेलोस्की, हंगरी में ग्रांज, पूर्वी जर्मनी में होनेकर, चेकोस्लोवाकिया में ह्यूसांक, बुल्गारिया में जिकोव और चीन में माओ-त्से-तुंग जैसे अधिनायकवादों ने भारी नरसंहार कर आतंक का राज किया। कम्युनिज्म का आर्विभाव १९१७ में रूस की बोल्शेविक क्रांति के साथ हुआ। लेकिन, कम्युनिज्म के प्रति लोगों का आकर्षण इसी शताब्दी में खत्म हो गया। रूस में ही १९९१ में व्यापक भ्रष्टाचार और देशव्यापी भुखमरी के बीच कम्युनिज्म ने दम तोड़ दिया। रूस में कम्युनिज्म के पैरोकारों की क्या स्थिति वहां की जनता ने की होगी उसे इस बात से समझें। कम्युनिस्ट शासन ने तंग हो चुकी जनता ने रूस में लेनिन और स्टालिन के शवों को भी बुरी तरह पीटा था। बाद में यहां लेनिनग्राद का नाम पुन: सेंट पीटर्सबर्ग और स्टालिनग्राद का नाम वोल्गोग्राद कर दिया था। कम्युनिस्टों के कारनामों से काले पृष्ठों का ही नतीजा है कि मंगोलियन भी अपने देश से एक-एक कर शोषण की निशानियां मिटा गर्वोन्मुक्त महसूस कर रहे हैं। जिस समय मंगोलिया की राजधानी उलान बटोर में लेनिन की विशालकाय प्रतिमा हटाई जा रही थी तब सडक़ों पर उत्साहित नौजवानों और वृद्धों की भीड़ जमा थी। सब जुट आए थे कंलक को मिटता देखने के लिए।
हिन्दू संस्कृति का मंगोलिया पर खासा असर देखने को मिलता है। यही कारण रहा कि समय के साथ यहां के बर्बर लोग सभ्य होते दिखे। भारतीय संस्कृति के प्रभाव में आने के बाद यहां सांस्कृतिक परिवर्तन देखे गए। मंगोलिया में भारत की तरह दोनों हाथ जोडक़र अभिवादन करने की परंपरा थी। यहां धार्मिक कृत्य एवं पूजा गंगाजल के बिना पूरी नहीं होती थी। यहां संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं में ग्रंथ रचे गए और यहां के लोक-काव्य में रामायण की कथाएं प्रचलित हैं। इतना ही नहीं बैकल झील के चारों ओर विद्या के अनेक केन्द्र थे। जहां देवी सरस्वती के अनेक चित्र और मूर्तियां थीं। मंगोलिया ने सभ्य होने के भारत से बहुत कुछ सीखा तो भारत को मंगोलिया से अब सीख लेनी चाहिए। जिस तरह गर्व से मंगोलिया ने शोषण के प्रतिकों को उखाड़ा है भारत को भी अपने देश से गुलामी के प्रतीक चिह्नों को हटा देना चाहिए। चाहे वो किसी मुस्लिम आक्रांता के नाम पर भारत की धरती पर अब तक स्थापित हो या ब्रिटिश शासन काल की निशानियां हों। आक्रांताओं और अत्याचारियों के बुत उखाड़ फेंक दिए जाएं, उनके नाम से बने शहर, सडक़, गली और मोहल्लों के नाम बदल दिए जाएं। तभी युवा भारत गर्व की सांस ले सकेगा।