देश के प्राचीन एवं संविधान सम्मत नाम ‘भारत’ का जिस प्रकार विरोध किया जा रहा है, उससे दो बातें सिद्ध हो जाती हैं। पहली, देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है, जो मानसिक रूप से औपनिवेशिक गुलामी का शिकार है। भारत के ‘स्व’ और उसकी सांस्कृतिक परंपरा को लेकर उसके मन में गौरव की कोई अनुभूति नहीं है। दूसरी, वास्तव में यह समूह ‘भारत विरोधी’ है। भारतीयता का प्रश्न जब भी आता है, तब यह समूह उसके विरुद्ध ही खड़ा मिलता है। एक तरह से यह उसका स्वभाव बन गया है। देश की जनता देखकर आश्चर्यचकित है कि ‘भारत’ का विरोध करने के लिए कांग्रेस सहित उसके समर्थक राजनीतिक दल एवं वैचारिक समूह किस स्तर पर पहुँच गए हैं। ‘भारत’ को ‘भारत’ कहने पर आखिर हाय-तौबा क्यों मची हुई है? भारत विरोधी समूह को एक बार संविधान सभा की बहस पढ़नी चाहिए। निश्चित ही उसे ध्यान आएगा कि तत्कालीन कांग्रेसी नेता अपने देश का नाम ‘भारत’ ही रखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी मानसिकता के दास लोगों के सामने उनकी चली नहीं। आखिरकार ‘भारत’ के साथ ‘इंडिया’ नाम भी चिपक गया।
पुस्तकों का लेखन जितना सरल हो, उतने ही अधिक लोग उसे पढ़ते हैं। पत्रकार, मीडिया शिक्षक एवं बेहतरीन लेखक लोकेंद्र सिंह ने सरल शब्दों में अधिक संदर्भों के सहारे बड़ी ही तथ्यात्मक पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ लिखी है। यह पुस्तक हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक एवं स्वराज्य के उद्घोषक श्री शिव छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना एवं दुर्गों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ पाठकों से बड़ी ही सहजता से अपने विषय पर संवाद करती है। यात्रा वृतांत के रूप में लिखी गई इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है।
हमें ज्ञात है कि हिन्दवी स्वराज्य में दुर्ग केंद्रीय तत्व हैं। जब विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार से देश घिरता जा रहा था, तब हिन्दवी स्वराज के इन्हीं दुर्गों से स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी। स्वराज्य की स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज अपने इन्हीं दुर्गों से गर्जना कर मराठों में आत्मविश्वास और ‘स्व’ से प्रेम जाग्रत करते थे।
पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ में लेखक अपनी यात्रा के अनुभवों को आधार बनाते हुए हमें दुर्गों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। पुस्तक में पहले ही बताया गया है कि यह अपने इतिहास को, स्वराज्य के लिए हुए संघर्ष एवं बलिदान को समीप से जानने-समझने की एक अविस्मरणीय यात्रा को समर्पित है। पुस्तक पढ़ने से पहले हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में आपकी जो धारणा होगी, उससे अलग और अधिक जानकारी इस पुस्तक में है। दुर्ग, जिन्हें हम किले, गढ़ और कोट के नाम से भी जानते हैं। पुस्तक में दुर्गों के प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ पढ़ने के बाद दुर्गों के विभिन्न स्वरूपों की समझ विकसित होती है। इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज की प्रतिज्ञाभूमि की स्मृतियां ताजा होंगी।
श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक से लेकर उनके देवलोकगमन के अवसरों के साक्षी बने ‘श्री दुर्गदुर्गेश्वर- रायगढ़’ के किले की दास्तान सुनने को मिलेगी। मिर्जा राजा जयसिंह और छत्रपति के मध्य हुई ऐतिहासिक और रणनीति पुरंदर संधि की जानकारी प्राप्त होगी। इसमें तानाजी के शौर्य की गाथा कहते सिंहगढ़ की चर्चा होगी तो छत्रपति शंभूराजे की समाधि के महत्व सहित अनेक पहलुओं की बात है।
पुस्तक में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपने बच्चों की तरह दुर्गों का ध्यान रखकर उनके प्रति स्नेह दिखता है। साथ ही उनकी चतुराई की समझ का भी ज्ञान होता है, जहां वह दुर्गों की सुरक्षा देखने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते थे। महाराज ऐसा क्यों करवाते थे, यह आपको पुस्तक पढ़ने के बाद समझ आएगा। आप लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ को अवश्य पढ़ें। उनकी यह पुस्तक काफी चर्चाएं बटोर रही है। यह पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है, जिसे आप आसानी से घर बैठे ही ऑर्डर कर सकते हैं।
भारतीय क्रिकेट टीम आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रही है, लेकिन कांग्रेस की नेता डॉ. शमा मोहम्मद ने देश और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की जगह भारतीय क्रिकेट दल के कप्तान रोहित शर्मा की सेहत को लेकर ओछी टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा के शरीर को लेकर आपत्तिजनक एवं निंदनीय बयान दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने तत्काल उनके बयान से किनारा किया। डॉ. शमा ने लिखा कि “रोहित शर्मा एक खिलाड़ी के तौर पर मोटे हैं। उन्हें वजन कम करने की जरूरत है। निश्चित रूप से यह भारत का अब तक का सबसे निराशाजनक कप्तान”। कोई भी सभ्य नागरिक किसी के शरीर को लेकर इस प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकता। दरअसल, ऐसा लगता है कि नफरत और नकारात्मकता की आग कांग्रेस के खेमे में इस हद तक फैल गई है कि उसके दायरे में अब केवल भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं है अपितु उसके निशाने पर कोई भी आ सकता है। कांग्रेस की प्रवक्ता की इस टिप्पणी के बाद उनकी जमकर आलोचना हो रही है। डॉ. शमा को भी मजबूरी में यह टिप्पणी हटानी पड़ी है। हालांकि अपनी ओछी एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से माफी नहीं माँगी है। यह बताता है कि उन्होंने अपने नेताओं के दबाव में पोस्ट तो हटा ली लेकिन उनका मौलिक दृष्टिकोण नकारात्मक ही है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने तमिलनाडु में फिर से हिन्दी विरोध की राजनीति होते देखना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके पुत्र उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए हिन्दी विरोध की राजनीति को हवा देना शुरू कर दिया है। उनको लगता है कि राज्य में अपनी प्रासंगिकता को बचाने और भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यही एक रास्ता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री स्टालिन झूठ का सहारा लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। जब भारत के दक्षिणी हिस्से से उन्हें हिन्दी विरोध में कोई खास समर्थन मिलता नहीं दिखा तो उन्होंने अपनी कुटिल मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल सहित अन्य राज्यों में भाषायी संघर्ष का विस्तार करने की दृष्टि से बयानबाजी प्रारंभ कर दी है। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्षुद्र राजनीति करने के लिए ऐसे मूखर्तापूर्ण बयान दे रहा है कि उससे उसकी ही जगहंसाई हो रही है।