भारतीय राजनीति में चर्च का अनुचित हस्तक्षेप
राष्ट्रवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर चर्च का हमला
यह विचार करने की बात है कि चर्च को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार से क्या दिक्कत हो रही है कि पादरियों ने सियासी पत्राचार प्रारंभ कर दिया है। ईसाई संप्रदाय में प्रमुख स्थान रखने वाले आर्कबिशप (प्रधान पादरी) भाजपा सरकार के विरुद्ध खुलकर दुष्प्रचार कर रहे हैं। सबसे पहले गुजरात चुनाव में आर्कबिशप थॉमस मैकवान ने चिट्ठी लिखकर ईसाई समुदाय के लोगों से अपील की है कि वे गुजरात चुनाव में 'राष्ट्रवादी ताकतों' को हराने के लिए मतदान करें। इसके बाद मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में भी भाजपा को सत्ता में आने से रोकने के लिए चर्च सक्रिय हुआ। कर्नाटक भी चर्च की राजनीति से अछूता नहीं रहा। अब दिल्ली के आर्कबिशप अनिल काउटो ने अन्य पादरियों को पत्र लिखकर अपील की है- ‘हम एक अशांत राजनैतिक वातावरण देख रहे हैं जो हमारे संविधान में निहित लोकतांत्रिक सिद्धांतों तथा हमारे देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के लिए खतरा है। देश तथा राजनेताओं के लिए हमेशा प्रार्थना करना हमारी प्रतिष्ठित परंपरा है, लेकिन आम चुनाव की ओर बढ़ते हुए यह और भी ज़रूरी हो जाता है। अब जब हम 2019 की ओर देखते हैं, जब हमारे पास नई सरकार होगी, तो आइए हम देश के लिए 13 मई से शुरू करते हैं एक प्रार्थना अभियान…’