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साभार : स्वदेश ज्याेति |
भोपाल और इंदौर से लव जिहाद के जिस प्रकार के मामले सामने आए हैं, वे एक खतरनाक प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं। यह मामले अनिवार्य रूप से उस मानसिकता का संकेत दे रहे हैं जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा अपने मजहबी काम के तौर पर हिन्दू और गैर-इस्लामिक युवतियों को साजिश पूर्वक अपने जाल में फंसाया जाता है, उनका शारीरिक-मानसिक शोषण किया जाता जाता है। उसके बाद उन्हें या तो आपराधिक जगत में धकेल दिया जाता है या फिर इस्लाम में कन्वर्ट करके सम्प्रदाय के विस्तार के लिए उनका दुरुपयोग किया जाता है। चिंता की बात यह है कि ये मामले केवल भोपाल और इंदौर तक सीमित नहीं होंगे। मामले की गहराई से पड़ताल की जाए तो इस तरह के गिरोह मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में भी सक्रिय मिलेंगे, जो मजहबी मानसिकता से हिन्दू युवतियों को अपना शिकार बना रहे होंगे। इस लव जिहाद के पीछे बड़ा तंत्र है, जिसके तार हमें देशभर में फैले दिखाई देते हैं। फ़िल्म 'द केरल स्टोरी' के माध्यम से पहली बार लव जिहाद की साजिश को बड़े स्तर पर समाज के सामने लाया गया। उससे पहले केरल के उच्च न्यायालय ने 'लव जिहाद' शब्द का पहली बार उपयोग करते हुए, इस प्रवृत्ति पर अपनी चिंता जताई थी। परंतु हमने बीमारी को पहचान करके उसका उपचार करने की बजाय बीमारी को नकारने में अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर दी। भोपाल के प्रकरण में भी पुलिस प्रशासन ने यही गलती की। यदि मीडिया ने खोज-पड़ताल करके इस समाचार को प्रकाशित नहीं किया होता, तब पुलिस मामले को यूँ ही रफा-दफा कर देती। कहना होगा कि हम हर बार इस प्रकार के मामलों में सेकुलर दिखने की चक्कर में शुतुरमुर्ग बन जाते हैं।