मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

यह लव जिहाद नहीं तो क्या है?

साभार : स्वदेश ज्याेति

भोपाल और इंदौर से लव जिहाद के जिस प्रकार के मामले सामने आए हैं, वे एक खतरनाक प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं। यह मामले अनिवार्य रूप से उस मानसिकता का संकेत दे रहे हैं जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा अपने मजहबी काम के तौर पर हिन्दू और गैर-इस्लामिक युवतियों को साजिश पूर्वक अपने जाल में फंसाया जाता है, उनका शारीरिक-मानसिक शोषण किया जाता जाता है। उसके बाद उन्हें या तो आपराधिक जगत में धकेल दिया जाता है या फिर इस्लाम में कन्वर्ट करके सम्प्रदाय के विस्तार के लिए उनका दुरुपयोग किया जाता है। चिंता की बात यह है कि ये मामले केवल भोपाल और इंदौर तक सीमित नहीं होंगे। मामले की गहराई से पड़ताल की जाए तो इस तरह के गिरोह मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में भी सक्रिय मिलेंगे, जो मजहबी मानसिकता से हिन्दू युवतियों को अपना शिकार बना रहे होंगे। इस लव जिहाद के पीछे बड़ा तंत्र है, जिसके तार हमें देशभर में फैले दिखाई देते हैं। फ़िल्म 'द केरल स्टोरी' के माध्यम से पहली बार लव जिहाद की साजिश को बड़े स्तर पर समाज के सामने लाया गया। उससे पहले केरल के उच्च न्यायालय ने 'लव जिहाद' शब्द का पहली बार उपयोग करते हुए, इस प्रवृत्ति पर अपनी चिंता जताई थी। परंतु हमने बीमारी को पहचान करके उसका उपचार करने की बजाय बीमारी को नकारने में अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर दी। भोपाल के प्रकरण में भी पुलिस प्रशासन ने यही गलती की। यदि मीडिया ने खोज-पड़ताल करके इस समाचार को प्रकाशित नहीं किया होता, तब पुलिस मामले को यूँ ही रफा-दफा कर देती। कहना होगा कि हम हर बार इस प्रकार के मामलों में सेकुलर दिखने की चक्कर में शुतुरमुर्ग बन जाते हैं।

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

संघ की शाखा में आए बाबा साहब डॉ. अंबेडकर

RSS की शाखा में अंबेडकर | आरएसएस और डॉ. भीमराव अंबेडकर


संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों में बहुत हद तक साम्य है। विशेषकर, हिन्दू समाज में काल के प्रवाह में आई अस्पृश्यता को दूर करने के लिए जिस प्रकार का संकल्प बाबा साहब के विचारों में दिखायी देता है, उसके दर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य में प्रत्यक्ष रूप से होते हैं। यही कारण है कि संघ और बाबा साहब प्रारंभ से, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के निकट रहे हैं। यह तथ्य बहुत कम ही सामने आया है कि डॉ. अंबेडकर ने संघ की शाखा एवं शिक्षा वर्गों में जाकर स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया है और संघ के पदाधिकारियों से संघ कार्य की जानकारी भी प्राप्त की थी। इसलिए आज जब कहा जाता है कि बाबा साहब भी संघ की शाखा पर आए थे, तो कई लोग आर्श्चय व्यक्त करते हैं। परंतु, यह सत्य है। यह भी याद रखें कि संघ के प्रति बाबा साहेब के मन में कभी कोई दुराग्रह या नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रहा है। अवसर आने पर उन्होंने संघ के संबंध में सद्भाव ही प्रकट किए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं एवं अधिकारियों के मन में भी बाबा साहेब के प्रति श्रद्धा का भाव है। संघ के कार्यकर्ता एकात्मता स्रोत में प्रतिदिन बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का स्मरण करते हैं।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

जब पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का सफल आंदोलन

देखें वीडियो- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राष्ट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। अपने लंबे पत्रकारीय जीवन के माध्यम से माखनलाल जी ने रचना, संघर्ष और आदर्श का जो पाठ पढ़ाया वह आज भी हतप्रभ कर देने वाला है। आज की पत्रकारिता के समक्ष जैसे ही गो-हत्या का प्रश्न आता है, वह हिंदुत्व और सेकुलरिज्म की बहस में उलझ जाता है। इस बहस में मीडिया का बड़ा हिस्सा गाय के विरुद्ध ही खड़ा दिखाई देता है। सेकुलरिज्म की आधी-अधूरी परिभाषाओं ने उसे इतना भ्रमित कर दिया है कि वह गो-संरक्षण जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय को सांप्रदायिक मुद्दा मान बैठा है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गो-संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, इस बात को समझना कोई टेड़ी खीर नहीं। हद तो तब हो जाती है जब मीडिया गो-संरक्षण या गो-हत्या को हिंदू-मुस्लिम रंग देने लगता है। गो-संरक्षण शुद्धतौर पर भारतीयता का मूल है। इसलिए ही ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से विख्यात महान संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी गोकशी के विरोध में अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर देते हैं। गोकशी का प्रकरण जब उनके सामने आया, तब उनके मन में द्वंद्व कतई नहीं था। उनकी दृष्टि स्पष्ट थी- भारत के लिए गो-संरक्षण आवश्यक है। कर्मवीर के माध्यम से उन्होंने खुलकर अंग्रेजों के विरुद्ध गो-संरक्षण की लड़ाई लड़ी और अंत में विजय सुनिश्चित की। 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

अमर संस्कृति का अक्षय वट है संघ

यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा नाता है। संघ की शाखा में प्रधानमंत्री मोदी का संस्कार हुआ है। उनके व्यक्तित्व में सादगी, त्याग, अनुशासन और देशभक्ति की जो अभिव्यक्ति होती है, उसके पीछे संघ का ही संस्कार है। अपने नागपुर प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी संघ के संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ‘डॉक्टर साहब’ और द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ के समाधि स्थल ‘स्मृति मंदिर’ पर पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ ही ‘अभ्यागत पंजीयन’ (विजिटर बुक) में जो विचार दर्ज किया है, वह समाज जीवन में संघ की भूमिका को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही लिखा है कि “राष्ट्रीय चेतना के जिस विचार का बीज 100 वर्ष पहले बोया गया था, वह आज एक महान वटवृक्ष के रूप में खड़ा है। सिद्धांत और आदर्श इस वटवृक्ष को ऊंचाई देते हैं, जबकि लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक इसकी टहनियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है, जो निरंतर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है”।