शनिवार, 25 दिसंबर 2021

‘अटलपथ’ पर चल रही सरकार


मोदी सरकार ने भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को ‘सुशासन दिवस’ के रूप में मनाने की परंपरा प्रारंभ की है। यह केवल एक परंपरा न रहे, इसका प्रयास भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करते हैं। उनका तो ध्येय ही है-‘सुशासन’। केंद्र सरकार के लोककल्याण एवं विकास कार्यों को देखकर यह आश्वस्ति होती है कि वर्तमान सरकार अटल पथ पर चल रही है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि जब अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार बनी तो देश ने एक करवट ली और जनता के बीच आशा की नयी लहर दौड़ी थी। उन्होंने नये भारत के निर्माण की नींव रखी। अटलजी ने नये भारत के निर्माण को जहाँ छोड़ा था, मोदीजी उसे वहीं से आकार दे रहे हैं। वह मंदिर निर्माण का सपना हो या फिर जम्मू-कश्मीर से विवादास्पद अनुच्छेद-370 को समाप्त करने का संकल्प, सब आज संभव हो रहा है।

रविवार, 5 दिसंबर 2021

भारत में दर्शन का आधार है ‘संवाद’

सं गच्छध्वं सं वदध्वं सं वो मनांसि जानताम् । 

देवा भागं यथा पूर्वे संजानाना उपासते ॥2॥ 

समानो मन्त्रः समितिः समानी समानं मनः सह चित्तमेषाम् l 

समानं मन्त्रमभि मन्त्रये वः समानेन वो हविषा जुहोमि ॥3॥ 

समानी व आकूतिः समाना हृदयानि वः । 

समानमस्तु वो मनो यथा वः सुसहासति ॥4॥

ऋग्वेद के 10वें मंडल का यह 191वां सूक्त ऋग्वेदका अंतिम सूक्त है। इस सूक्त में सबकी अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाले अग्निदेव की प्रार्थना, जो आपसी मतभेदों को भुलाकर सुसंगठित होने के लिए की गयी है। आप परस्पर एक होकर रहें, परस्पर मिलकर प्रेम से वार्तालाप करें। समान मन होकर ज्ञान प्राप्त करें। जिस प्रकार श्रेष्ठजन एकमत होकर ज्ञानार्जन करते हुए ईश्वर की उपासना करते हैं, उसी प्रकार आप भी एकमत होकर एवं विरोध त्याग करके अपना काम करें। हम सबकी प्रार्थना एकसमान हो, भेद-भाव से रहित परस्पर मिलकर रहें, अंतःकरण मन-चित्त-विचार समान हों। मैं सबके हित के लिए समान मन्त्रों को अभिमंत्रित करके हवि प्रदान करता हूँ। तुम सबके संकल्प एकसमान हों, तुम्हारे ह्रदय एकसमान हों और मन एकसमान हों, जिससे तुम्हारा कार्य परस्पर पूर्णरूपसे संगठित हों।

बुधवार, 1 दिसंबर 2021

इस्लामिक कानूनों की माँग का औचित्य


भारत जैसे देश में इस्लामिक संगठन यदि ‘ईशनिंदा’ जैसे विवादित कानून की माँग कर रहे हैं, तब इस ओर गंभीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। जरा यह भी देखने की आवश्यकता है कि सेकुलर बुद्धिजीवी इस तरह के कानूनों की माँग का विरोध करने की जगह किस कोने में दुबक गए हैं? जब भी देश में समान नागरिक संहिता जैसे सेकुलर कानून की माँग उठती है तब यही बुद्धिजीवी उछल-उछलकर विरोध करते हैं। स्पष्ट है कि वे कहने के लिए सेकुलर हैं, लेकिन उनका आचरण घोर सांप्रदायिक है। उनके व्यवहार में हिन्दू विरोध और इस्लामिक तुष्टीकरण की झलक दिखाई देती है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने हाल ही में सम्पन्न हुई अपनी एक बैठक में भारत में पाकिस्तान के उस कानून को लागू करने का प्रस्ताव पारित किया है, जिसके तहत मोहम्मद पैगंबर साहब या कुरान के संबंध में अपमानजनक, आपत्तिजनक या आलोचनात्मक बात कहने पर मृत्युदंड का प्रावधान है। पाकिस्तान में इस कानून का दुरुपयोग सुधारवादी मुस्लिमों के विरुद्ध ही नहीं अपितु गैर-मुस्लिमों को भयाक्रांत करने और उन्हें दबाने के लिए किया जाता है। यह भी देखने में आया है कि सामान्य बात को भी ‘ईशनिंदा’ बताकर अनेक गैर-मुस्लिमों को प्रताडि़त और दंडित किया गया है। क्या भारत जैसे देश में इस प्रकार के सांप्रदायिक कानून की वकालत होनी चाहिए?