बैतूल में आरएसएस के समविचार संगठन 'विद्या भारती' द्वारा संचालित हॉस्पिटल |
प्रधानमंत्री
नरेन्द्र मोदी ने अपने लोकप्रिय रेडियो संवाद ‘मन की बात’
में भगवान श्रीकृष्ण और महात्मा गांधी के जीवन का उल्लेख करते हुए
सेवा को अपने जीवन में उतारने का आह्वान किया। भारतीय परंपरा-संस्कृति में सेवा का
अत्यधिक महत्व है। हम भारतीयों का यह एक ऐसा गुण है, जो हमें
एक-दूसरे से जोड़ता है। हमारे देश में सेवा को उपकार की तरह नहीं, बल्कि कर्तव्य की तरह देखा जाता है। कर्तव्य भी साधारण नहीं, अपितु विशेष। भारतीय परंपरा में ‘सेवा’ अर्थात् ‘करना ही चाहिए’ ऐसा
कार्य। सेवा हमारे यहां बदले में कुछ पाने का माध्यम नहीं है, बल्कि यह करणीय कार्य है। जबकि पश्चिम से जो ईसाई मिशनरीज आए उन्होंने
सेवा को कन्वर्जन (धर्मान्तरण) का माध्यम बनाया है। अर्थात् वह सेवा जैसे पवित्र
कार्य का भी दुरुपयोग करते हैं। जबकि हमारे लिए सेवा समाज ऋण से उऋण होने का
माध्यम है।
प्राचीन भारत के इतिहास में झांक कर देखें तो
पाएंगे कि समाज के प्रतिष्ठित और साधन-सम्पन्न लोग ही नहीं, अपितु
सामान्य जनमानस में भी सेवा की प्रवृत्ति थी। आधुनिकत जीवन पद्धति में कहीं न कहीं
हम ‘सेवा भाव’ से दूर हुए हैं।
स्व-केंद्रित जीवन होने के कारण हम अपने आस-पास जरूरतमंद लोगों को देख नहीं पाते
हैं। जबकि हम सहजता से उनकी विभिन्न प्रकार से मदद कर सकते हैं। यही बात
देशवासियों के ध्यान में लाने का प्रयास प्रधानमंत्री मोदी ने भगवान श्रीकृष्ण और
महात्मा गांधी के माध्यम से किया है। उन्होंने एक बार फिर महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को सार्थक ढंग से मनाने का आह्वान देश से किया है।
हम जानते हैं कि अंहिसा के बाद महात्मा गांधी
का सबसे बड़ा साधन एवं मंत्र ‘सेवा’ ही
है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही कहा कि महात्मा गांधी के जीवन से
एक बात हमेशा जुड़ी रही वह है, सेवा और सेवा भाव। उनका पूरा
जीवन देखने पर यह ‘सेवा भाव’ सदैव उनके
साथ दिखाई देता है। महात्मा गांधी ने दक्षिण अफ्रीका में उन लोगों की सेवा की,
जो नस्लीय हिंसा का शिकार थे। उस समय यह छोटी बात नहीं थी। उन्होंने
उन किसानों की सेवा की, जिनके साथ चंपारण में भेदभाव किया जा
रहा था। उन्होंने उन मिल मजदूरों की सेवा की, जिन्हें उचित
मजदूरी नहीं दी जा रही थी। उन्होंने गरीब, बेसहारा, कमजोर और भूखे लोगों की सेवा को अपने जीवन का परम कर्तव्य माना। अहिंसा और
सत्य के साथ गांधी का जितना अटूट नाता रहा है, सेवा के साथ
भी उनका उतना ही अनन्य, अटूट नाता रहा। जिस किसी को जब भी
जहां जरूरत पड़ी, महात्मा गांधी सेवा के लिए मौजूद रहे।
उन्होंने न केवल सेवा पर बल दिया, बल्कि उसके साथ जुड़े
आत्मसुख पर भी जोर दिया। सेवा शब्द की सार्थकता इसी अर्थ में है कि उसे आनंद के
साथ किया जाए।
इस महत्वपूर्ण वर्ष में जब हम महात्मा गांधी
को याद कर रहे हैं, उनकी सार्धशती को उत्साहित होकर मना रहे
हैं, तब सेवा को अपने आचरण में उतारना ही गांधीजी के प्रति
सच्ची श्रद्धांजलि है। सेवा कोई कठिन कार्य नहीं है, बल्कि
बहुत सहज है। अपने सामथ्र्य के अनुसार हम छोटे-छोटे उपक्रम करके सेवा कर सकते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने अनेक उपक्रम बताए ही हैं। अपने स्तर पर बहुत से लोग सेवा
कार्य कर भी रहे हैं। देश में जब भी निस्वार्थ सेवा कार्यों की चर्चा चलती है तब
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का उल्लेख अवश्य होता है/ होना भी चाहिए। संघ की प्रेरणा
से देशभर में अनेक समविचारी संगठन और स्वयंसेवक डेढ़ लाख से अधिक सेवा प्रकल्प
संचालित कर रहे हैं। सेवा कार्यों से समाज में क्या बदलाव आए हैं, उनकी प्रेरक कहानियां सेवागाथा डॉट ओआरजी पर पढ़ी जा सकती हैं। संघ के
स्वयंसेवकों ने सेवा को अपने जीवन में उतार लिया है, सेवा
कार्य करते हुए वह एक गीत भी गाते हैं- “सेवा है यज्ञ कुंड,
समिधा सम हम जलें।” हमारे जीवन में ‘सेवा’ किस ‘भाव’ से आनी चाहिए, उसको यह गीत स्पष्ट रूप में बताता है।