प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आगरा में परिवर्तन रैली को जिस अंदाज में संबोधित किया है, उसे दो तरह से देखा जा सकता है। एक, उन्होंने विपक्ष पर करारा हमला बोला है। दो, नोटबंदी पर सरकार और प्रधानमंत्री को घेरने के लिए हाथ-पैर मार रहे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने सख्त सवाल पूछ लिया है। ऐसा सवाल जिसका सीधा उत्तर विपक्ष दे नहीं सकता। नोटबंदी का विरोध कर रहे नेताओं की ओर प्रधानमंत्री मोदी ने नागफनी-सा सवाल उछाल दिया है, जो निश्चित तौर पर उन्हें लहूलुहान करेगा। उन्होंने पूछ लिया कि यह कदम कालेधन वालों के खिलाफ उठाया गया है, फिर आपको परेशानी क्यों हो रही है? यकीनन प्रधानमंत्री का यह सवाल वाजिब है, क्योंकि परेशानी उठा रही आम जनता को भी यह समझ नहीं आ रहा है कि विपक्ष ने आखिर हाय-तौबा किस बात के लिए मचा रखी है? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि कालेधन के खिलाफ कार्रवाई हो? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि जाली मुद्रा को खत्म किया जाए? आखिर विपक्ष की मंशा क्या है? वह क्यों चाहता है कि नोटबंदी का निर्णय वापस लिया जाए और फिर से 500 और 1000 के पुराने नोट चलन में आएं? प्रधानमंत्री के तर्कसंगत सवाल से विपक्ष कठघरे में खड़े किसी अपराधी से कम नजर नहीं आ रहा है।
मंगलवार, 22 नवंबर 2016
रविवार, 20 नवंबर 2016
नोटबंदी पर एक से बढ़कर एक कुतर्क
कालेधन के विरुद्ध लड़ाई में नोटबंदी के निर्णय पर प्रतिपक्ष के नेता एक से बढ़कर एक कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कुतर्क यह भी साबित कर रहे हैं कि वह जमीन से जुड़े नेता नहीं हैं। उन्हें भारतीय जन के मानस की बिल्कुल भी समझ नहीं है। विपक्षी नेताओं के बयानों को सुनकर यह समझना मुश्किल हो रहा है कि वह आम जनता के शुभचिंतक हैं या फिल कालेधन वालों के? उनकी बौखलाहट देखकर संदेह यह भी है कि उनके पास भी कालेधन का भंडार है। वरना क्या कारण है कि नोटबंदी की वापसी के लिए चेतावनी जारी की जा रही हैं? साफ नजर आ रहा है कि विपक्षी नेता आम जनता की परेशानी की आड़ में अपने कालेधन की चिंता कर रहे हैं? तथाकथित पढ़े-लिखे नेता चौराहों की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। कुतर्क देखिए कि पाँच सौ और दो हजार रुपये का नया नोट चूरन की पुडिय़ा में निकलने वाले नकली नोट जैसा है। आश्चर्य है इनकी समझ पर।
शनिवार, 19 नवंबर 2016
दुर्भाग्य है नायसमंद की घटना
नये दौर में छूआछूत और भेदभाव की घटना किसी भी समाज के लिए कलंक से कम नहीं हैं। यह समूची मनुष्य जाति का दुर्भाग्य है कि समाज में कुछ लोग, कुछ लोगों को अपने से कमतर मानते हैं। उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। किसी मनुष्य के खेत में पैर रखने से क्या सफल सूख सकती है? क्या उसके छूने से पवित्रता समाप्त हो सकती है? यदि इसका प्रश्न हाँ है तब समूची धरती तथाकथित सवर्णों के लिए रहने लायक नहीं है। समूची धरती एक है और उसका स्पर्श हजारों हजार तथाकथित निम्न जाति के लोग करते हैं। उस भूमि को वह अपनी माता मानते हैं। यह अधिकार और ज्ञान तथाकथित सवर्ण समाज को किसने दिया कि एक वर्ग विशेष नजरें उठाकर नहीं चल सकता, उनकी औरतें-बेटियाँ सज-धज नहीं सकतीं, उन्हें होटल या धर्मशाला में पानी चुल्लू में लेकर पीना चाहिए?
शुक्रवार, 18 नवंबर 2016
लोकमंथन : नए भारत निर्माण की राह
लोकहित में चिंतन और मंथन भारत की परंपरा में है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनमें यह परंपरा दिखाई देती है। महाभारत के कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद से लेकर नैमिषराण्य में ज्ञान सत्र के लिए 88 हजार ऋषि-विद्वानों का एकत्र आना, लोक कल्याण के लिए ही था। भारत में चार स्थानों पर आयोजित होने वाले महाकुम्भ भी देश-काल-स्थिति के अनुरूप पुरानी रीति-नीति छोडऩे और नये नियम समाज तक पहुंचाने के माध्यम थे। ज्ञान परंपरा से समृद्ध भारत और उसकी संतति का यह दुर्भाग्य रहा कि ज्ञात-अज्ञात कारणों से उसकी यह परंपरा कहीं पीछे छूट गई थी और यह सौभाग्य है कि अब फिर से वह परंपरा जीवित होती दिखाई दे रही है। भारत की चिंतन-मंथन की ऋषि परंपरा को आगे बढ़ाने का सौभाग्य भी विचारों की उर्वर भूमि मध्यप्रदेश को प्राप्त हुआ है। पिछले चार-पाँच वर्षों से ज्ञान सत्र आयोजित करने में मध्यप्रदेश की अग्रणी भूमिका रही है। अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन, मूल्य आधारित जीवन पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, सिंहस्थ महाकुंभ की धरती पर विचार महाकुंभ का आयोजन और अब 'राष्ट्र सर्वोपरि' की भावना से ओतप्रोत विचारकों एवं कर्मशीलों का राष्ट्रीय विमर्श 'लोकमंथन : देश-काल-स्थिति' का आयोजन, यह सब आयोजन नये भारत के निर्माण की राह तय करने वाले हैं। बौद्ध धर्म के गुरु एवं तिब्बत सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री सोमदोंग रिनपोछे भी मानते हैं कि लोकमंथन से भारतीय इतिहास में नये युग का सूत्रपात हुआ है। निश्चित ही लोकमंथन 'औपनिवेशिक मानसिकता' से मुक्ति और भारतीयता की अवधारणा को पुष्ट करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।
बुधवार, 16 नवंबर 2016
जनता प्रसन्न, विपक्ष परेशान क्यों?
केन्द्र सरकार के नोटबंदी के निर्णय को आम आदमी सकारात्मक ढंग से ले रहा है। लेकिन, विपक्षी दलों के नेताओं की तकलीफ समझ पाना मुश्किल हो रहा है। वह कह रहे हैं कि लोग परेशान हो रहे हैं, लोगों को बैंक और एटीएम में कतार में लगना पड़ रहा है। छोटे नोट की कमी के कारण जनता हलाकान हो रही है। यह सच है कि जनता परेशान हो रही है। लेकिन, उसकी परेशानी देश से बड़ी नहीं है। यह बात आम आदमी जानता है। इसलिए कतार में खड़ा देशभक्त आदमी कह रहा है कि वह राष्ट्रहित के लिए थोड़ी-बहुत परेशानी उठाने के लिए तैयार है। सरकार के निर्णय का समर्थन करने के लिए अनेक स्वयंसेवी कार्यकर्ता भी जरूरतमंदों की मदद के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। यह लोग बैंक से पैसा निकालने में लोगों की मदद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपानीत सरकार का विरोध करने को अपना धर्म समझने वाले आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी सामान्य व्यक्ति की भावना को समझने में भूल कर रहे हैं। इसे समझने के लिए इन दलों और नेताओं को 'इनशॉर्ट' की ओर से कराए गए सर्वेक्षण का अध्ययन करना चाहिए।
बेईमानों के लिए मुश्किल भरे रहेंगे ५० दिन
पाँच सौ और हजार रुपये के नोट बंद करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर अपने भाषण से भ्रष्टाचारी और बेईमान लोगों की नींद उड़ा दी है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का भरोसा दिलाते हुए जनता से कुछ वक्त और मांगा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि 'मुझे सिर्फ 50 दिन दीजिए। यदि उसके बाद मैं सफल नहीं हो सका तो जो सजा आप देंगे वह मुझे मंजूर होगी।' प्रधानमंत्री ने अपने इस भाषण में बेनामी संपत्ति के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाई के संकेत देकर भ्रष्टाचारियों को तनाव दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वह ३० दिसंबर के बाद भी चुप नहीं बैठेंगे। यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं कि बाजार से लेकर सत्ता में घुसपैठ करके बैठे भ्रष्टाचारियों की नींद छीनने के लिए वाकई बड़े जिगर की जरूरत थी।
कालेधन के खिलाफ सर्जीकल स्ट्राइक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को देश के नाम संबोधन में कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा निर्णय लेकर जता दिया है कि उनकी सरकार जनहित में बड़े से बड़ा निर्णय बेहिचक ले सकती है। प्रधानमंत्री को यह भी भरोसा था कि देशहित के इस निर्णय में परेशानी उठाकर भी जनता उनके साथ आएगी। सामान्य जन से जो रुझान आ रहा है, वह इस भरोसे की हामी भरता है। जनता ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के साहसी निर्णय का स्वागत किया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि पिछले 70 वर्षों में कालेधन के खिलाफ यह पहला लक्षित हमला (सर्जीकल स्ट्राइक) है। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ जारी लड़ाई में यह निर्णय सरकार को प्रभावी जीत दिलाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचारियों और कालाधन दबाकर बैठे लोगों को संभलने का कोई मौका नहीं दिया। इतना बड़ा फैसला और किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई, यह इस बात का भी प्रमाण है कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रशासन पर गहरी पकड़ है।
शनिवार, 5 नवंबर 2016
आज की आवश्यकता है एकात्म मानवदर्शन
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार 'एकात्म मानवदर्शन' ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे हैं। अनियंत्रित पूँजीवाद और वर्ग-संघर्ष की साम्यवादी विचारधाराओं को अपनाने के कारण ही विश्वभर में बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण की समस्याएं सुलझ नहीं सकी हैं। विविध देशों में बढ़ते आर्थिक संकट और विश्व के दो-तिहाई से अधिक उत्पादन पर चंद देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आधिपत्य आदि समस्याएं अत्यन्त चिंताजनक हैं। एकात्म मानवदर्शन के अनुसरण से संसार के इन संकटों का समाधान सहजता से संभव है। संघ ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि चर-अचर सहित समग्र सृष्टि के प्रति लोक-मंगल की प्रेरक एकात्म दृष्टि के साथ सम्पूर्ण जगत के पोषण का भाव ही 'एकात्म मानवदर्शन' आधार है।
गुरुवार, 3 नवंबर 2016
बांग्लादेश पर दबाव बनाए सरकार
भारत सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि उसके पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं को लक्षित करके हमले किए जा रहे हैं। बांग्लादेश में बढ़ रही जेहादी मानसिकता और कट्टरवाद को रोकने के लिए भारत को हर संभव प्रयास करना चाहिए। यदि बांग्लादेश में इस्लामिक जेहादी मानसिकता हावी हो गई, तब भारत के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न हो जाएंगी। विकराल हो चुके कट्टरवाद से तब शायद निपटना आसान भी न होगा। इसलिए भारत सरकार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर दबाव बनाएं कि इन हमलों को रोकने के ठोस प्रबंध किए जाएं और हिंदुओं की सुरक्षा की चिंता भी गंभीरता से करें। पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में चरमपंथी गुटों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुनियोजित ढंग से निशाना बनाया, ताकि उनके मन में खौफ पैदा किया जा सके। अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला भी इसी कड़ी का हिस्सा है, जिसके तहत स्वतंत्र सोच रखने वाले लेखकों, पत्रकारों, ब्लॉगरों और सामान्य लोगों की हत्याएँ की जा रही हैं।
बुधवार, 2 नवंबर 2016
पुलिस और जनता की बड़ी कामयाबी
भोपाल केंद्रीय जेल से भागे आठों आतंकियों को जिस तत्परता से पुलिस ने ढूंढ़ कर ढेर किया है, उसके लिए मध्यप्रदेश पुलिस की प्रशंसा की जानी चाहिए। जेल से भागे आतंकियों को चंद घंटों में मार गिराना पुलिस और सुरक्षा बलों के बढ़े मनोबल का ताजा उदाहरण हैं। देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी प्रकार के आतंक से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को साहसिक फैसले लेने की खुली छूट दे रखी है। सरकार के इस रुख से देशभर में पुलिस और सुरक्षा बलों के हौसले बुलंद हैं, जिसका परिणाम भी सामने आ रहा है। हालांकि कुछ राजनीतिक दल, संगठन और वामपंथी विचारधारा के लोग पुलिस के साहसिक और सराहनीय काम से आहत हैं। उन्हें इस बात की प्रसन्नता नहीं है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मप्र की पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली है, बल्कि उन्हें इस बात की अधिक चिंता हो रही है कि आतंकियों को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा? इनका दु:ख तब प्रकट नहीं हुआ, जब इन्हीं आतंकियों ने जेल से भागने के लिए दीपावली के दिन एक संतरी की गला रेतकर हत्या कर दी। शहीद जवान रमाकांत के घर में अगले माह बेटी का विवाह है। बर्बर तरीके से इस जवान की हत्या हमारे मानवाधिकारियों के कलेजों को पिघला नहीं सकी, लेकिन आतंकियों की मौत से यह सब विचलित हैं।
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